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Summary of रीढ़ की हड्डी by जगदीश चन्द्र माथुर Class 9 Kritika Notes

Summary of रीढ़ की हड्डी by जगदीश चन्द्र माथुर Class 9 Kritika Notes

Ridh ki Haddi Summary Class 9 Kritika

एकांकी ‘रीढ़ की हड्डी’ एक सामाजिक एकांकी है। इस एकांकी के लेखक श्री जगदीश चंद्र माथुर हैं। इसमें उन्होंने लड़के और लड़की में भेदभाव करने वाले लोगों पर प्रहार करते हुए दोनों को समान सामाजिक प्रतिष्ठा देने की बात कही है। एकांकी का संक्षिप्त सार इस प्रकार है –

एकांकी का आरंभ रामस्वरूप बाबू के घर में होने वाली साज-सज्जा से होता है। उनकी लड़की उमा को देखने के लिए बाबू गोपाल प्रसाद और उनका बेटा शंकर आने वाले हैं। बावू रामस्वरूप, उनकी पत्नी प्रेमा और उनका नौकर रतन कमरे को सजाते हैं। बीच-बीच में बाबू रामस्वरूप अपने नौकर पर झुंझलाते भी हैं, तभी प्रेमा उन्हें बताती है कि उनकी लड़की उमा को जब से लड़के वालों के आने की बात कही है, तभी से वह मुँह फुलाए पड़ी है। रामस्वरूप अपनी पत्नी को कहते हैं कि वह उमा को जैसे-तैसे समझाकर तैयार कर दे। साथ ही वे अपनी पत्नी से कहते हैं कि लड़के वालों के सामने उमा की उच्च शिक्षा की बात नहीं बतानी है। वे कम पढ़ी-लिखी लड़की चाहते हैं, अतः वे उमा को मैट्रिक तक पढ़ा-लिखा ही बताएँगे।

उसी समय लड़के वालों का आगमन होता है। बाबू गोपाल प्रसाद पढ़े-लिखे और पेशे से वकील हैं। उनका बेटा शंकर बी० एससी० के बाद लखनऊ के मेडिकल कॉलेज में पढ़ता है। उसकी आवाज़ पतली और खिसियाहट भरी है। झुकी हुई कमर उसकी खासियत है रामस्वरूप अतिथियों की आवभगत करते हैं। गोपाल प्रसाद अपने अतीत की बातें करते हैं और आत्म-प्रशंसा करते हुए अपने आप को महान साबित करने की कोशिश करते हैं।

कुछ ही देर बाद गोपाल प्रसाद विवाह को ‘बिजनेस’ कहकर विवाह की बात छेड़ते हैं। रामस्वरूप उनके लिए नाश्ता लाकर उनकी सेवा करते हैं। कुछ इधर-उधर की बातों के बाद गोपाल प्रसाद स्पष्ट कहते हैं कि उन्हें कम पढ़ी-लिखी लड़की चाहिए। उनका मत है कि लड़कियों को अधिक पढ़ाना बेकार है। पढ़ना और कमाकर लाना तो केवल पुरुषों का काम है। स्त्रियों का कार्य तो केवल घर-गृहस्थी संभालना है। गोपाल प्रसाद कहते हैं कि उच्च शिक्षा प्राप्त करना केवल लड़कों का अधिकार है, लड़कियों का नहीं। उनका लड़का शंकर भी उनकी इस विचारधारा का समर्थन करता है।

थोड़ी दी देर बाद रामस्वरूप अपनी बेटी उमा को आवाज़ लगाते हैं। पान की तश्तरी हाथों में लिए उमा अत्यंत सादे कपड़ों में आती है। उसकी आँखों पर लगे चश्मे को देखते ही गोपाल प्रसाद और शंकर चौंक पड़ते हैं। रामस्वरूप बताता है कि कुछ दिन पहले ही आँखों में आई कुछ खराबी के कारण ही वह चश्मा लगा रही है। गोपाल प्रसाद उससे गाने-बजाने के बारे में पूछते हैं। रामस्वरूप भी उमा को गाने के लिए कहते हैं। उमा सितार उठाकर मीरा का मशहूर गीत ‘मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई’ गाने लगती है।

वह गीत में इतना तल्लीन हो जाती है कि उसकी झुकी गर्दन ऊपर उठती है तो वह शंकर को देखती है। शंकर को देखते ही वह गाना बंद कर देती है। तब गोपाल प्रसाद उससे पेंटिंग, सिलाई और अन्य चीज़ों से संबंधित सवाल पूछते हैं किंतु उमा कोई उत्तर नहीं देती। गोपाल प्रसाद उसे बोलने के लिए कहते हैं। रामस्वरूप भी अपनी बेटी को जवाब देने के लिए कहता है। तरह-तरह के सवालों से अपमानित उमा कहती है कि लड़कियाँ केवल निर्जीव वस्तुएँ अथवा बेबस जानवर नहीं होतीं। उनका भी मान-सम्मान होता है। इस प्रकार तरह-तरह के सवाल पूछकर उन्हें अपमानित करना उचित नहीं है।

गोपाल प्रसाद जाने के लिए उठते हैं। तब उमा उन्हें बताती है कि जिस लड़के के लिए वे सर्वगुणसंपन्न लड़की चाहते हैं उनका वह लड़का लड़कियों के हॉस्टल के इर्द-गिर्द ताक-झाँक करता हुआ कई बार पकड़ा गया है। गोपाल प्रसाद को पता चल जाता है कि उमा पढ़ी-लिखी लड़की है। वे रामस्वरूप को कहते हैं कि उन्होंने उनके साथ धोखा किया है। यह कहकर वे दरवाज़े की ओर बढ़ते हैं। तब उमा कहती है कि जाइए और घर जाकर यह ज़रूर पता लगा लेना कि आपके लाडले बेटे की रीढ़ की हड्डी भी है या नहीं।

बाबू गोपाल प्रसाद के चेहरे पर बेबसी का गुस्सा और शंकर के चेहरे पर रुआँसापन आ जाता है। दोनों बाहर चले जाते हैं। रामस्वरूप वहीं कुर्सी पर धम से बैठ जाते हैं। उमा रोने लगती है। घबराई हुई प्रेमा वहाँ पहुँचती है। तभी उनका नौकर रतन भी वहाँ आ जाता है। वह मेहमानों के लिए मक्खन लेने गया हुआ था। सभी रतन की ओर देखते हैं। यहीं एकांकी समाप्त हो जाती है।

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • सहसा – अचानक
  • मर्प्र – बीमारी
  • टीम-टाम – साज-सज्जा, शृंगार
  • तालीम – शिक्षा
  • खासियत – विशेषता
  • वीक-एंड – सप्ताह का अंतिम दिन
  • तकदीर – भाग्य
  • बैकबोन – रीढ़ की हड्डी
  • आमदनी – आय
  • तश्तरी – प्लेट
  • जायचा – जन्म-पत्री
  • पालिटिक्स – राजनीति
  • अधीर – बेचैन
  • बेबस – माबूर
  • होस्टल – छात्रावास
  • दगा – धोखा
  • भीगी बिल्ली की तरह – डरा-डरा सा जतन – यत्न, प्रयास
  • दकियानूसी – रूढ़िवादी
  • सब चौपट कर देना – काम बिगाड़ देना तकलीफ – परेशानी
  • मार्जिन – अंतर
  • काबिल – योग्य
  • जायका – स्वाद
  • बेढब – अजीव, विचित्र
  • निहायत – बहुत ही
  • खुद-ब-खुद – अपने आप
  • ज़ाहिर – पता चलना
  • खरीददार – चीज खरीदने वाला
  • बेइज्जती – अपमान
  • इर्द-गिर्द – आस-पास
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