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Summary of किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया by शमशेर बहादुर सिंह Class 9 Kritika Notes

Summary of किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया by शमशेर बहादुर सिंह Class 9 Kritika Notes

Kis Tarah Aakhirkar Mai Hindi me Aaya Summary Class 9 Kritika

प्रस्तुत पाठ में लेखक शमशेर बहादुर सिंह ने अपने हिंदी के क्षेत्र में आने और हिंदी में लेखन यात्रा का विवरण दिया है। लेखक घर में उर्दू के ही वातावरण में पला-बढ़ा था। बी०ए० में भी उसने उर्दू ही एक विषय लिया था। हिंदी से उसका संबंध नहीं था। उसकी भावनाएँ कविता और गज़ल बनकर उर्दू में निरुपित होतीं। अपने आंतरिक भावों को लेखक कभी-कभी अंग्रेजी भाषा में अभिव्यक्त करता था। हिंदी के क्षेत्र में आने के बाद लेखक का हिंदी से इतनी आत्मीयता का संबंध बन गया कि उसे अपने अंग्रेजी में लेखक का अफसोस होने लगा। इस पाठ में लेखक ने अपनी हिंदी तक पहुँचने की यात्रा का वर्णन करने के साथ-साथ हिंदी के सर्वश्रेष्ठ कवि हरिवंश राय बच्चन के सहयोग और उनके व्यक्तित्व का चित्रांकन भी किया है।

लेखक की रुचि अपनी भावनाओं को शब्दों और चित्रों के माध्यम से अभिव्यक्त करने की थी। उसे पेंटिंग का बहुत शौक था। लोगों द्वारा कहे गए वाक्य से आहत होकर लेखक ने दिल्ली आकर उकील आर्ट स्कूल में प्रवेश लेकर पेंटिंग में महारत हासिल करने का निर्णय किया। लेखक सुबह जब अपनी कक्षा तक पहुँचने का मार्ग तय करता तो अपने शौक के अनुसार मार्ग में उसकी दृष्टि आस- पास के लोगों के चेहरों और दृश्यों में अपनी ड्राइंग के लिए तत्व खोजने लगती। यह तत्व उसकी कविताओं और उसके चित्रों का आधार बनते। दिल्ली में रह रहे लेखक को उनके भाई तेज बहादुर द्वारा कभी-कभी सहायता मिल जाती और कभी वे साइनबोर्ड पेंट कर अपना गुजारा चला लेते।

लेखक का हृदय पत्नी के देहांत के बाद से ही उदास और खिन्न रहने लगा था। लेखक अपनी भावनाओं को लिखकर या कागज़ पर उकेर कर अपने एकाकीपन को भरने का प्रयास करता। एक बार बच्चन जी लेखक से मिल नहीं पाए लेकिन उन्होंने लेखक के लिए एक नोट छोड़ दिया जिसे पाकर लेखक ने अपने आप को कृतज्ञ अनुभव किया। अपनी कृतज्ञता की अभिव्यक्ति स्वरूप लेखक ने एक कविता लिखी। वह कविता अंग्रेजी में थी जिसका हिंदी क्षेत्र में आने पर लेखक को अफसोस हुआ। लेखक ने बच्चन को वह कविता भेजी।

लेखक का जीवन एकाकी था। खिन्न और उदास होते हुए भी लेखक अपनी परिस्थितियों से तालमेल बैठाने की कोशिश कर रहा था। एक बार बच्चन लेखक के भाई के मित्र ब्रजमोहन गुप्त के साथ लेखक से मिलने आए। लेखक उनके व्यक्तित्व से प्रभावित हुए। बच्चन उस समय पत्नी वियोग की पीड़ा झेल रहे थे। वे निश्छल कवि थे जिसके मन में कोई छल-कपट नहीं था। बात और वाणी के धनी थे। हृदय मक्खन-सा कोमल था तो संकल्प फौलाद से मजबूत। समय का कठोरता से पालन करना बच्चन की आदत थी। वे वक्त पर अपने स्थान पर पहुँचते थे।

बच्चन जी ने ही लेखक को इलाहाबाद चलकर एम० ए० करने के लिए प्रेरित किया। लेखक ने एम० ए० के दोनों सालों का जिम्मा भी बच्चन ने अपने ऊपर ले लिया था। उनकी यही इच्छा थी कि लेखक पढ़-लिखकर अपने पैर जमाकर एक अच्छा आदमी बन जाए। परंतु लेखक ने अपने मन में नौकरी न करने की बात ठान रखी थी। पंत जी की कृपा से लेखक को इंडियन प्रेस में अनुवाद का काम मिला। तब लेखक ने हिंदी कविता को गंभीरता से लिखने का निर्णय लिया। लेखक की ‘सरस्वती’ और ‘चाँद’ में रचनाएँ छपीं। बच्चन ने ‘अभ्युदय’ में प्रकाशित उनके सॉनेट को पसंद किया।

निराला और पंत के विचार, उनसे प्राप्त संस्कार, इलाहाबाद का हिंदी साहित्यिक वातावरण, मित्रों का प्रोत्साहन आदि लेखक के हिंदी के प्रति खिंचाव के लिए कारक सिद्ध हुए। बच्चन के प्रभाव और उनकी प्रेरणा से लेखक ने बहुत कुछ सीखा। बच्चन ने कविता के क्षेत्र में नवीन प्रयोग किए। लेखक ने भी उसी प्रकार का प्रयोग कर अपनी रचनाएँ लिखीं। लेखक अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर सका जिसका बच्चन जी को क्षोभ रहा। लेखक का हिंदी कविता में अभ्यास सफल हुआ। ‘सरस्वती’ में छपी उनकी कविता की निराला ने प्रशंसा की।

लेखक ने निबंध और कहानी के क्षेत्र में भी कार्य किया। लेखक अपने आप को हिंदी के साहित्यिक प्रांगण में लाने का श्रेय बच्चन जी को ही देता है। बच्चन जी वह मौन सजग प्रतिभा थी जिसने लेखक की प्रतिभा को स्वाभाविक रूप से जीवन दिया था। लेखक बच्चन के व्यक्तित्व को उनकी श्रेष्ठ कविता से बड़ा आँकता है। उन्हीं के कारण ही लेखक शमशेर सिंह बहादुर हिंदी साहित्य में श्रेष्ठ लेखन कर सके। लेखक की दृष्टि में उसका हिंदी तक पहुँचने का यह अनुभव नया या अनोखा नहीं है परंतु बच्चन जैसा व्यक्तित्व अवश्य दुष्प्राप्य है।

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • जुमला – वाक्य
  • फौरन – तत्काल
  • इम्तिहान – परीक्षा
  • लबे-सड़क – सड़क के किनारे
  • चुनाँचे – इसलिए
  • शेर – गाल के दो चरण
  • आकर्षण – खिंचाव
  • उद्विग्न – बेचैन
  • संलग्न – लीन
  • उपलब्धि – सफलता
  • महारत – निपुणता
  • अजूबा-इबारत – वाक्य की बनावट
  • अदब – सम्मान
  • सामंजस्य – तालमेल
  • प्रबल – शक्तिशाली
  • मेजबान – आतिथ्य करने वाला
  • बराय नाम – नाम के लिए
  • न्नेह – प्यार
  • प्लान – योजना
  • संकीर्ण – संकुचित
  • द्योतक – परिचायक
  • विन्यास – व्यवस्थित करना
  • क्षोभ – दुख
  • आकस्मिक – अचानक
  • व्यवधान – रुकावट, बाधा
  • दुष्प्राप्य – जिसका मिलना कठिन हो
  • तय – निश्चित
  • मुख्तसर – संक्षिप्त
  • बिला फीस – बिना फीस के
  • वहमो गुमान – ख्वाबो ख्याल, अंदेशा
  • गाल – फारसी और उर्दू में मुक्तक काव्य का एक प्रकार
  • विशिष्ट – अनूठा
  • जिक्र – चर्चा
  • देहांत – निधन
  • वसीला – सहारा
  • सॉनेट – यूरोपीय कविता का एक लोकप्रिय छंद जिसका प्रयोग
  • हिंदी कवियों ने भी किया है
  • गोया – मानो
  • एकांत – सुनसान
  • एकांतिकता – एकाकीपन
  • इत्तिफ़ाक – संयोग
  • झंझावात – तूफान
  • इसरार – आग्रह
  • बेफिक्र – चिंतामुक्त
  • अरसे तक – लंबे समय तक
  • खालिस – शुद्ध
  • उच्च-घोष – ऊँचे स्वर
  • स्टैंजा – गीत का चरण
  • आकृष्ट – आकर्षित
  • निरर्थक – व्यर्थ, अर्थहीन
  • सजग – जागरूक
  • मर्यादा – सीमा
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