Summary of मेरे संग की औरतें by मृदुला गर्ग Class 9 Kritika Notes

Summary of मेरे संग की औरतें Class 9 Kritika Notes

Mere Sang ki Auratein Summary Class 9 Kritika

‘मेरे संग की औरतें’ मृदुला गर्ग द्वारा रचित संस्मरण है, जिसमें उन्होंने स्पष्ट किया है कि परंपरागत रूप से जीवन व्यतीत करते कैसे लीक से हटकर जीया जाता है। लेखिका की एक नानी थीं, जिन्हें उसने देखा नहीं था। लेखिका की माँ के विवाह से पूर्व ही उनकी मृत्यु हो गई थी। लेखिका की नानी एक परंपरागत, अनपढ़ तथा परदे में रहने वाली स्त्री थीं। नाना शादी के तुरंत बाद बैरिस्ट्री पढ़ने विलायत चले गए थे और लौटकर विलायती ढंग से जीवन जीने लगे थे, जबकि नानी अपने ही ढंग से जी रही थीं।

उन्होंने अपनी पसंद-नापसंद कभी भी अपने पति पर व्यक्त नहीं की। जब नानी मरने वाली थीं, तो उन्हें अपनी पंद्रह वर्षीय अविवाहिता बेटी की चिंता ने परदे का लिहाज़ छोड़ने पर विवश कर दिया। उन्होंने अपने पति से कहा कि वे उनके मित्र स्वतंत्रता सेनानी प्यारेलाल शर्मा से मिलना चाहती हैं। सब उनके इस कथन से हैरान थे, पर नाना ने उन्हें प्यारेलाल शर्मा से मिलाया। नानी ने उनसे वचन ले लिया कि वे उनकी बेटी का विवाह किसी स्वतंत्रता सेनानी से ही करवाएँगे।

नानी की मृत्यु हो गई, परंतु लेखिका की माँ का विवाह एक ऐसे पढ़े-लिखे युवक से हुआ जिसे आई० सी० एस० की परीक्षा में इसलिए बैठने नही दिया गया था क्योंकि वह स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेता था। लेखिका की माँ बहुत ही कोमल तथा सुकुमारी महिला थीं। उन्हें पति के स्वतंत्रता सेनानी होने के कारण गांधी जी के आदर्शों का पालन करते हुए तथा सादा जीवन व्यतीत करते हुए खादी पहननी पड़ती थी। ससुराल वालों की आर्थिक स्थिति अधिक सुदृढ़ नहीं थी, परंतु वे इसी बात से प्रसन्न थे कि उनके समधी पक्के साहब हैं।

लेखिका की माँ की सुंदरता, नजाकत, गैर-दुनियादारी और ईमानदारी का भी इस परिवार पर बहुत प्रभाव पड़ा था। उनसे कोई ठोस काम नहीं करवाया जाता था। वे बच्चों की देखभाल, लाड़-प्यार आदि पर ध्यान नहीं देती थीं तथा बच्चों के लिए खाना भी नहीं पकाती थीं। वे बीमार रहती थीं। उन्हें पुस्तक पढ़ने, साहित्य-चर्चा तथा संगीत सुनने में बहुत रुचि थी। परिवार वाले उन्हें कुछ नहीं कहते थे, क्योंकि वे साहबी परिवार से थीं। वे कभी झूठ नहीं बोलती थीं और एक की गोपनीय बात दूसरे को नहीं बताती थीं।

इन्हीं विशेषताओं के कारण उन्हें घरवालों से आदर मिलता था तथा बाहरवालों से मित्रता। वे लेखिका तथा अन्य बच्चों की भी मित्र थीं। माँ के सारे काम लेखिका के पिता निभा देते थे। उनके पत्रों को भी घर में कोई नहीं खोलता था। घर में सबको अपना निजत्व बनाए रखने की पूरी छूट थी, जिस कारण वे तीन बहनें और छोटा भाई लेखन कार्य में लग सके। परंपरा से हटकर जीने वाली लेखिका की परदादी भी थीं। उनका व्रत था कि यदि कभी उनके पास दो से तीन धोतियाँ हो गईं, तो वे तीसरी धोती दान कर देंगी।

उन्होंने लेखिका की माँ के पहली बार गर्भवती होने पर मंदिर में जाकर लड़की की कामना की, जबकि सब पहली संतान लड़का चाहते हैं। उन्होंने अपनी इस इच्छा को सबके सामने भी व्यक्त कर दिया था। इसका परिणाम यह हुआ कि माँ ने पाँच कन्याओं को जन्म दिया। लोगों का मानना था कि मेरी परदादी के भगवान से सीधे तार जुड़े हुए हैं। एक बार किसी विवाह के संदर्भ में सभी पुरुष गाँव से बाहर गए हुए थे तथा औरतें रतजगा मना रही थीं। एक चोर सेंध लगाकर परदादी के कमरे में घुस गया, तो उन्होंने पूछा कि कौन है ? उत्तर ‘जी मैं’ मिलने पर परदादी ने उसे पानी पिलाने के लिए कहा और लोटा पकड़ा दिया।

उसने घबराकर कहा कि मैं तो चोर हूँ। परदादी ने उसे अच्छी तरह से हाथ धोकर पानी लाने के लिए भेज दिया। पहरेदार ने उसे कुएँ पर देखकर पकड़ लिया, तो परदादी ने लोटे का आधा पानी स्वयं पीकर शेष उस चोर को पिला दिया और उसे अपना बेटा कहकर चोरी छोड़कर खेती करने की सलाह दे डाली। 15 अगस्त, 1947 को आजादी मिलने पर लेखिका इंडिया गेट पर जाकर आज़ादी का समारोह देखना चाहती थी, परंतु टाइफाइड के कारण न जा सकी। उस समय वह नौ वर्ष की थी। वह रोने लगी, तो पिता ने उसे ‘ब्रदर्स कारामजोव’ उपन्यास पढ़ने के लिए दिया।

लेखिका को पुस्तकें पढ़ने का विशेष शौक था। वह रोना छोड़कर पढ़ने लगी। इस पुस्तक में निहित बच्चों पर होने वाले अत्याचार- अनाचार का अध्याय उसे कंठस्थ हो गया था। लेखिका व उसकी चारों बहनें लड़कियाँ होते हुए भी कभी हीनभावना से ग्रस्त नहीं हुईं और सदा लीक पर चलने से इनकार करती रहीं। पहली लड़की लेखिका की बड़ी बहन मंजुल भगत थी, जिनका घर का नाम रानी था। इन्होंने ये नाम विवाह के बाद लेखिका बनने पर रखा था। लेखिका का घर का नाम उमा था, परंतु साहित्य जगत में मृदुला गर्ग हुआ।

लेखिका से छोटी लड़की का घर का नाम गौरी और बाहर का चित्रा है, पर वह लिखती नहीं थी। चौथी रेणु और पाँचवीं अचला थी। इन पाँचों के बाद भाई पैदा हुआ, जिसका नाम राजीव रखा गया। अचला और राजीव भी लिखते हैं। अचला अंग्रेज़ी में लिखती थी, परंतु राजीव हिंदी में ही लिखता था। इन चारों का लिखा परिवार में सभी पढ़ते हैं, परंतु लेखिका को उसकी ससुराल में कोई नहीं पढ़ता। इससे वह प्रसन्न है कि घर में तो कोई उसकी आलोचना नहीं करेगा।

लेखिका अपनी उन बहनों की चर्चा करती है, जो लिखती नहीं थीं। चौथी बहन रेणु कार में बैठना सामंतशाही का प्रतीक मानकर गरमी की दुपहरी में भी बस अड्डे से घर पैदल आती थी, जबकि अचला गाड़ी में बैठकर आती थी। रेणु ने बचपन में एक बार चुनौती दिए जाने पर जनरल थिमैया को पत्र लिखकर उनका चित्र मँगवा लिया था, जो एक मोटर सवार फौजी उसे घर आकर दे गया था। तब से आस-पास के सभी बच्चे उसे मानने लगे थे।

उसे परीक्षा देना भी पसंद नहीं था। स्कूल कक्षाएँ तो उसने पास कर ली थीं, परंतु बी०ए० की परीक्षा न देने के लिए अड़ गई थी। उसका मानना था कि बी०ए० करने से क्या लाभ? उसे नौकरी व समाज में सम्मान पाने आदि के तर्क भी बी०ए० करने के लिए प्रभावित न कर सके तो पिताजी की खुशी के लिए उसने बी०ए० पास किया। सच बोलने में तो वह माँ से भी आगे थी। किसी की भेंट भी उसे अच्छी नहीं लगती थी।

यदि कोई उसे इत्र भेंट करता, तो वह कहती मुझे नहीं चाहिए क्योंकि मैं तो रोज नहाती हूँ। लेखिका की तीसरे नंबर की बहन चित्रा थी। वह कॉलेज में पढ़ती थी। वह स्वयं पढ़ने के स्थान पर दूसरों को पढ़ाने में अधिक रुचि रखती थी। इस कारण उसे परीक्षा में कम अंक मिलते थे। उसने स्वयं एक लड़के को पसंद करके अपने विवाह का निर्णय लिया था, जबकि उस लड़के, लड़के के माता-पिता तथा लेखिका के माता-पिता को भी यह पता नहीं था। उसने उस लड़के को पहली मुलाकात में ही अपना निर्णय बता दिया था और वह उससे विवाह करने के लिए तैयार हो गया था।

लेखिका की सबसे छोटी बहन अचला ने पिता के कथनानुसार अर्थशास्त्र, पत्रकारिता आदि की पढ़ाई करके उनकी इच्छा के अनुरूप ही विवाह किया। वह भी परंपरा के अनुसार न चलकर तीस वर्ष की होते ही लिखने लग गई थी। उन सब बहनों में एक बात एक-सी रही कि उन सबने घर-परिवार परंपरागत रूप से न चलाते हुए भी परिवार को तोड़ा नहीं। शादी एक बार की और उसे कायम रखा। शादी के बाद लेखिका को बिहार के छोटे-से कस्बे डालमिया नगर में रहना पड़ा, जहाँ फ़िल्म देखते समय स्त्री-पुरुष को पति-पत्नी होते हुए भी अलग-अलग बैठना पड़ता था।

वह वहाँ दिल्ली के कॉलेज में नौकरी छोड़कर गई थी। उसे नाटकों में अभिनय करने का शौक था। वहाँ उसने साल भर में ही अकाल राहत कोष के लिए नाटक किया था। कर्नाटक के बागलकोट में रहते हुए उसने बच्चों के लिए स्कूल भी चलाया और उसे कर्नाटक सरकार से मान्यता भी दिलवाई। लेखिका बहुत ज़िद्दी थी। अपने लेखन को भी उसने अपनी ज़िद्द से ही आगे चलाया था। लेकिन वह स्वयं को अपनी छोटी बहन रेणु के बराबर नहीं पहुँचा पाई थी। उदाहरणस्वरूप उन्नीस सौ पचास के आखिरी दिनों में दिल्ली में खूब वर्षा हो रही थी। सब यातायात ठप्प था।

रेणु को स्कूल बस लेने नहीं आई थी। सबने उसे समझाया कि स्कूल बंद होगा, मत जाओ। स्कूल में फोन था, पर वह भी ठप्प था। किसी का कहना न मानकर वह पैदल ही स्कूल चल दी। वह सड़क पर फैले पानी में दो मील पैदल चलकर स्कूल पहुँची और स्कूल बंद देखकर दो मील चलकर वापस घर पहुँची। सबने उसे कहा कि हमने तो पहले ही कह दिया था। उसने उसे भी नहीं माना। लेखिका को लगा कि रेणु का इस प्रकार पानी में लब-लब करते, सुनसान शहर में निपट अकेले अपनी ही धुन में मंज़िल की तरफ चले जाना-इस अकेलेपन का मजा ही और था।


कठिन शब्दों के अर्थ :

  • ज्ञाहिर – स्पष्ट
  • मर्म – रहस्य, भेद
  • परदानर्शी – परदा करने वाली
  • इज़हार – व्यक्त करना, प्रकट करना
  • मुहज्तोर – बहुत बोलने वाली
  • लिहाज़ – व्यवहार
  • नज़ाकत – सुकुमारता
  • हैरतअंगेज़ – आश्चर्यजनक
  • फ़रमा बरदार – आज्ञाकारी
  • जुनून – सनक
  • दरअसल – वास्तव में
  • बाशिंदों – निवासियों
  • अभिभूत – वशीभूत
  • ख्वाहिश – इच्छा
  • रज़ामंदी – स्वीकार करना
  • मुस्तैद – चुस्त
  • फ़ायदा – लाभ
  • फ़ज़ल – कृपा, दया
  • अपरिग्रह – संग्रह न करना
  • पोशीदा – गुप्त रखना, छिपाना
  • वाजिब – उचित
  • बदस्तूर – नियमपूर्वक
  • आरजू – इच्छा
  • गुमान – अनुमान, कल्पना
  • जुस्तजू – तलाश, खोज
  • जुगराफ़िया – भूगोल, नक्शा
  • अकबकाया – घबराया
  • जश्न – समारोह
  • शिरकत – शामिल होना, भाग लेना
  • इजाज़त – आज्ञा
  • मोहलत – अवकाश
  • फ़ारिग – काम से खाली होना
  • खरामा-खरामा – धीरे-धीरे
  • इसरार – आग्रह
  • मलाल – खेद, दुख
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