Extra Questions for Class 10 क्षितिज Chapter 15 स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन - महावीर प्रसाद दि्वेदी Hindi

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Extra Questions for Class 10 क्षितिज Chapter 15 स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन - महावीर प्रसाद दि्वेदी Hindi

Chapter 15 स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन Kshitij Extra Questions for Class 10 Hindi

गद्यांश आधारित प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.  निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सही उत्तर वाले विकल्प चुनकर लिखिए-

पढ़ने-लिखने में स्वयं कोई बात ऐसी नहीं जिससे अनर्थ हो सके । अनर्थ का बीज उसमें हरगिज़ नहीं । अनर्थ चाहिए। पुरुषों से भी होते हैं। अपढ़ों और पढ़े-लिखों, दोनों से । अनर्थ, दुराचार और पापाचार के कारण और ही होते हैं और वे व्यक्ति विशेष का चाल-चलन देखकर जाने भी जा सकते हैं। अतएव स्त्रियों को अवश्य पढ़ाना जो लोग यह कहते हैं कि पुराने ज़माने में यहाँ स्त्रियाँ न पढ़ती थीं अथवा उन्हें पढ़ने की मुमानियत थी वे या तो इतिहास से अभिज्ञता नहीं रखते या जान-बूझकर लोगों को धोखा देते हैं। समाज की दृष्टि में ऐसे लोग दंडनीय हैं क्योंकि स्त्रियों को निरक्षर रखने का उपदेश देना समाज का अपकार और अपराध करना है। समाज की उन्नति में बाधा डालना है।

(क) लेखक 'अनर्थ' का मूल नहीं मानता है-
(i) पढ़ने-लिखने की उपेक्षा को ।
(ii) स्त्री-पुरुष होने को ।
(iv) दुराचार और पापाचार को ।
(iii) स्त्रियों की पढ़ाई को ।

(ख) वे लोग इतिहास की जानकारी नहीं रखते जो कहते हैं कि-
(i) स्त्री-शिक्षा समाज की उन्नति में बाधा है।
(ii) पुराने ज़माने में स्त्रियाँ नहीं पढ़ती थीं ।
(iii) स्त्रियों को जान-बूझकर अनपढ़ रखा जाता था ।
(iv) स्त्रियों को भी पुरुषों के समान अधिकार है।

(ग) 'अनर्थ' का तात्पर्य है-
(i) दोषपूर्ण कार्य
(ii) निंदनीय कार्य
(iii) धनरहित कार्य
(iv) अनुचित कार्य

(घ) सामाजिक दृष्टि से ऐसे लोग दंड के पात्र हैं जो-
(i) स्त्रियों को पढ़ाने की बात करते हैं
(ii) जान-बूझकर लोगों को धोखा देते हैं
(iii) सामाजिक नियमों की अनदेखी करते हैं
(iv) समाज की उन्नति में बाधा डालते हैं

(ङ) 'अभिज्ञ' शब्द का विलोम है-
(i) अज्ञ
(ii) अनभिज्ञ
(iii) सुभिज्ञ
(iv) प्राज्ञ

उत्तर

(क) (iii) स्त्रियों की पढ़ाई को ।

(ख) (iv) पुराने ज़माने में स्त्रियाँ नहीं पढ़ती थीं ।

(ग) (iv) अनुचित कार्य ।

(घ) (iv) समाज की उन्नति में बाधा डालते हैं।

(ङ) (ii) अनभिज्ञ


प्रश्न 2. निम्नांकित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सही उत्तर वाले विकल्प चुनकर लिखिए-

बड़े शोक की बात है, आजकल भी ऐसे लोग विद्यमान हैं जो स्त्रियों को पढ़ाना उनके और गृह-सुख के नाश का कारण समझते हैं और लोग भी ऐसे-वैसे नहीं, सुशिक्षित लोग- ऐसे लोग जिन्होंने बड़े-बड़े स्कूलों और शायद कॉलिजों में भी शिक्षा पाई है, जो धर्म - शास्त्र और संस्कृत के ग्रंथ साहित्य से प्ररिचय रखते हैं, और जिनका पेशा कुशिक्षितों को सुशिक्षित करना, कुमार्गगामियों को सुमार्गगामी बनाना और अधार्मिकों को धर्मतत्त्व समझाना है । 

(क) लेखक ने बड़े शोक की बात मानी है-
(i) आजकल के समय को
(ii) स्त्री-शिक्षा के विरोधियों के अस्तित्व को
(iii) गृह- सुख के विनाश को
(iv) स्त्रियों के पढ़ाने - लिखाने को

(ख) 'ऐसे वैसे नहीं' से तात्पर्य है-
(i) सुशिक्षित और शास्त्रज्ञ
(ii) मूर्ख और अनपढ़
(iii) हठी और सनकी
(iv) कुमार्गगामी और अधर्मी

(ग) 'ये लोग' क्या व्यवसाय करते हैं?
(i) स्कूल-कॉलिजों में पढ़ाते हैं ।
(ii) भटके राहगीरों को राह दिखाते हैं ।
(iii) अधार्मिकों को धर्म के तत्त्व समझाते हैं। 
(iv) असामाजिकों को सामाजिक बनाते हैं ।

(घ) 'शोक' का समानार्थक है-
(i) शौक
(iii) मातम
(ii) दुख
(iv) वेदना

(ङ) 'ऐसे लोग हैं जिन्होंने बड़े-बड़े स्कूलों, कॉलिजों में शिक्षा पाई है'- वाक्य का प्रकार है-
(i) सरल
(ii) संयुक्त
(iii) मिश्र
(iv) साधारण

उत्तर

(क) (ii) स्त्री-शिक्षा के विरोधियों के अस्तित्व को

(ख) (ii) मूर्ख और अनपढ़

(ग) (i) स्कूल-कॉलिजों में पढ़ाते हैं ।

(घ) (iii) मातम

(ङ) (iii) मिश्र


प्रश्न 3. निम्नलिखित गद्यांश पर आधारित प्रश्नों के सही उत्तर वाले विकल्प चुनिए-

नाटकों में स्त्रियों का प्राकृत बोलना उनके अपढ़ होने का प्रमाण नहीं। अधिक से अधिक इतना ही कहा जा सकता है कि वे संस्कृत न बोल सकती थीं । संस्कृत न बोल सकना न अपढ़ होने का सबूत है और न गँवार होने का । अच्छा तो उत्तररामचरित में ऋषियों की वेदांतवादिनी पत्नियाँ कौन-सी भाषा बोलती थीं? उनकी संस्कृत क्या कोई गँवारी संस्कृत थी ? भवभूति और कालिदास आदि के नाटक जिस ज़माने के हैं उस ज़माने में शिक्षितों का समस्त समुदाय संस्कृत ही बोलता था, इसका प्रमाण पहले कोई दे ले, तब प्राकृत बोलने वाली स्त्रियों को अपढ़ बताने का साहस करे। इसका क्या सबूत कि उस ज़माने में बोलचाल की भाषा प्राकृत न थी? सबूत तो प्राकृत के चलन के ही मिलते हैं । प्राकृत यदि उस समय की प्रचलित भाषा न होती तो बौद्धों और जैनों के हज़ारों ग्रंथ उसमें क्यों लिखे जाते, और भगवान् शाक्य मुनि तथा उनके चेले प्राकृत ही में क्यों धर्मोपदेश देते ? बौद्धों के त्रिपिटक ग्रंथ की रचना प्राकृत में किए जाने का एकमात्र कारण यही है कि उस ज़माने में प्राकृत ही सर्वसाधारण की भाषा थी ।

(क) संस्कृत नाटकों में स्त्रियों के लिए प्राकृत बोलने का विधान था, क्योंकि-
(i) वे अपढ़ होती थीं।
(ii) संस्कृत नहीं बोल सकती थीं ।
(iii) वे गँवार थीं।
(iv) उस युग में बोलचाल की भाषा प्राकृत थी

(ख) लेखक क्या सिद्ध करने की चुनौती देता है ?
(i) कालिदास और भवभूति संस्कृत नाटककार
(ii) कालिदास के 'युग सब संस्कृत ही बोलते थे ।
(iii) कालिदास के युग 'सब प्राकृत ही बोलते थे ।
(iv) कालिदास और भवभूति का इतिहास में कोई प्रमाण नहीं है ।

(ग) बौद्धों के त्रिपिटक ग्रंथ की भाषा है-
(i) पाली
(ii) संस्कृत
(iii) अपभ्रंश
(iv) प्राकृत

(घ) भगवान शाक्य मुनि और उनके शिष्य प्राकृत में ही धर्मोपदेश क्यों देते थे?
(i) उन्हें संस्कृत का ज्ञान नहीं था ।
(ii) वे केवल प्राकृत ही जानते थे ।
(iii) वे अपढ़ थे।
(iv) सर्वसाधारण की भाषा प्राकृत ही थी ।

(ङ) पत्नियाँ कौन-सी भाषा बोलती थीं?' वाक्य में 'कौन-सी' शब्द व्याकरण की दृष्टि से है ?
(i) सर्वनाम
(ii) सार्वनामिक विशेषण
(iii) अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण
(iv) अनिश्चित परिमाणवाचक विशेषण

उत्तर

(क) (ii) संस्कृत नहीं बोल सकती थीं ।

(ख) (ii) कालिदास के युग में सब संस्कृत ही बोलते थे ।

(ग) (iv) प्राकृत

(घ) (iv) सर्वसाधारण की भाषा प्राकृत ही थी ।

(ङ) (ii) सार्वनामिक विशेषण


प्रश्न 4. निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लीखिए-

इस देश की वर्तमान शिक्षा प्रणाली अच्छी नहीं। इस कारण यदि कोई स्त्रियों को पढ़ाना अनर्थकारी समझे तो उसे उस प्रणाली का संशोधन करना या कराना चाहिए, खुद पढ़ने-लिखने को दोष न देना चाहिए। लड़कों की ही शिक्षा प्रणाली कौन-सी बड़ी अच्छी है। प्रणाली बुरी होने के कारण क्या किसी ने यह राय दी है कि सारे स्कूल और कॉलेज बंद कर दिए जाएँ? आप ख़ुशी से लड़कियों और स्त्रियों की शिक्षा-प्रणाली का संशोधन कीजिए। उन्हें क्या पढ़ाना चाहिए, कितना पढ़ाना चाहिए, किस तरह की शिक्षा देनी चाहिए और कहाँ पर देनी चाहिए - घर में या स्कूल में इन सब बातों पर बहस कीजिए, विचार कीजिए, जी में आए सो कीजिए, पर परमेश्वर के लिए यह न कहिए कि स्वयं पढ़ने-लिखने में कोई दोष है।

(क) स्त्रियों की पढ़ाई-लिखाई के पक्ष में लेखक के तर्क का आशय समझाइए ।

(ख) शिक्षा प्रणाली के दोषों के निराकरण के लिए लेखक ने कौन-से विकल्प दिए हैं?

(ग) आशय स्पष्ट कीजिए- 'लड़कों की ही शिक्षा-प्रणाली कौन-सी बड़ी अच्छी है।'

उत्तर

(क) लेखक के तर्क का आशय यह है कि यदि शिक्षा प्रणाली में दोष है, तो उसका कुप्रभाव स्त्री-पुरुष दोनों की ही शिक्षा पर पड़ेगा। मात्र स्त्रियों की शिक्षा को समाप्त कर देना इसका समाधान नहीं है क्योंकि इस स्थिति में तो लड़कों को भी पढ़ाना बंद कर देना चाहिए। इस समस्या का वास्तविक समाधान यह है कि शिक्षा प्रणाली में सुधार लाया जाए।

(ख) शिक्षा प्रणाली के दोषों के निराकरण के लिए लेखक ने विकल्प दिए हैं कि शिक्षा के उद्देश्य, विषय तथा स्थान और विकल्प आदि पर बहस करनी चाहिए, सोच-विचार करना चाहिए। पढ़ाई-लिखाई को दोष देना सर्वथा अनुचित है।

(ग) इस कथन के द्वारा लेखक ने उन पुरातनपंथियों की दूषित सोच पर व्यंग्य किया है जो सोचते हैं कि स्त्रियों को शिक्षा देना अनर्थकारी हो जाएगा। लेखक का मानना है कि यदि स्त्रियों को शिक्षा देने से उसका उनपर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, तो फिर यह विश्वास के साथ कैसे कहा जा सकात है कि लड़कों के लिए बनाई गई शिक्षा प्रणाली उनपर केवल सकारात्मक प्रभाव ही छोड़ रही है। लड़कों के अंदर आज जो नकारात्मक प्रभाव दिखाई दे रहा है, उसे देखकर तो उनके कॉलेजों को ही बंद कर देना चाहिए, किंतु अगर ऐसा लड़कों साथ नहीं किया जा रहा, तो फिर स्त्री-शिक्षा को अनर्थकारी क्यों बताया जा रहा है?


लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. 'प्राकृत केवल अपढ़ों की नहीं अपितु सुशिक्षितों की भी भाषा थी'- महावीर प्रसाद द्विवेदी ने यह क्यों कहा है?

उत्तर

प्राकृत केवल अपढ़ों की नहीं, अपितु सुशिक्षितों की भी भाषा थी यह महावीर प्रसाद जी ने इसलिए कहा है क्योंकि उस समय जनसाधारण यही भाषा बोलता था। अनेक विद्वानों ने 'गाथा सप्तशती' सेतुबंध - महाकाव्य, कुमारपाल चरित और बौद्धों ने त्रिपिटक ग्रंथों की रचना प्राकृत में की थी। भगवान शाक्य मुनि और उनके चेले प्राकृत में ही धर्मोपदेश देते थे । अतः यह स्पष्ट है कि प्राकृत आम बोल-चाल की भाषा के रूप में प्रचलित थी और उसे बोलने वालों को किसी भी प्रकार से अपढ़ बताना उचित नहीं है।


प्रश्न 2. स्त्री-शिक्षा के समर्थन में महावीर प्रसाद द्विवेदी द्वारा दिए गए दो तर्कों का उल्लेख कीजिए ।

उत्तर

स्त्री-शिक्षा के समर्थन में महावीर प्रसाद द्विवेदी ने अकाट्य तर्क देकर पुरातनपंथी स्त्री-शिक्षा विरोधी मानसिकता पर गहरा कटाक्ष किया है उन्होंने कहा है कि यदि पढ़ाई करने के बाद स्त्री को अनर्थ करने वाली माना जाता है, तो पुरुषों द्वारा किया हुआ अनर्थ भी शिक्षा का ही दुष्परिणाम समझा जाना चाहिए । साथ ही प्राचीन काल की अनेक विदुषी महिलाओं का उदाहरण देते हुए द्विवेदी जी ने यह भी सिद्ध किया है कि तत्कालीन समय में भी स्त्री-शिक्षा का चलन था । उन्होंने यह भी कहा है पुराने समय में स्त्री पढ़ी-लिखी नहीं थी, शायद स्त्रिायों को पढ़ाना तब जरूरी नहीं माना गया। लेकिन आज परिस्थितियाँ बदल गई हैं, इसलिए उन्हें पढ़ाना चाहिए। जैसे आवश्यकता के अनुसार पुराने नियमों को तोड़कर हमने नए नियम बनाए हैं, उसी प्रकार स्त्रियों की शिक्षा के लिए भी नियम बनाना चाहिए ।


प्रश्न 3. महावीर प्रसाद द्विवेदी स्त्री-शिक्षा का पुरज़ोर समर्थन करते हैं। उनके दो तर्कों का उल्लेख कीजिए ।

उत्तर

महावीर प्रसाद द्विवेदी जी स्त्री-शिक्षा का समर्थन करते हैं क्योंकि पढ़ने-लिखने में स्वयं ऐसी कोई बात नहीं है जो किसी का अनर्थ कर सके। प्राचीन समय में उन्हें शिक्षित करना, हो सकता हो कि उचित न हो पर आज इस प्राचीन मान्यता में संशोधन कर नारी - शिक्षा अनिवार्य कर देनी चाहिए। नारी को निरक्षर रखने से समाज का अपकार व अपराध होता है । एक शिक्षित नारी ही मानव, समाज व देश को शिक्षित व विकसित कर सकती है।


प्रश्न 4. लेखक नाटकों में स्त्रियों की भाषा प्राकृत होने को उनकी अशिक्षा का प्रमाण नहीं मानता। इसके लिए वह क्या तर्क देता है?

उत्तर

नाटकों में स्त्रियों का प्राकृत भाषा बोलना उनकी अशिक्षा का प्रमाण नहीं है क्योंकि उस समय संस्कृत कुछ गिने-चुने व्यक्ति ही बोलते थे। आम व्यक्ति प्राकृत भाषा ही बोलते थे। प्राकृत ही आम बोलचाल की भाषा थी। संस्कृत न बोल पाना अपढ़ या अशिक्षा का प्रमाण नहीं था। भवभूति व कलिदास के नाटक जिस ज़माने के हैं, उस ज़माने में शिक्षितों का समस्त समुदाय संस्कृत बोलता हो, ऐसा कोई प्रमाण नहीं है।


प्रश्न 5. 'महावीर प्रसाद द्विवेदी का निबंध उनकी खुली सोच और दूरदर्शिता का परिचायक है', कैसे?

उत्तर

महावीर प्रसाद द्विवेदी जी का निबंध अवश्य ही उनकी खुली सोच और दूरदर्शिता का परिचायक है क्योंकि उन्होंने उस समय स्त्री शिक्षा का समर्थन किया, जब कुछ स्वार्थी और पुरातनपंथी लोग उसे व्यर्थ और अनावश्यक समझते थे। महावीर जी जानते थे कि किसी भी समाज व देश का विकास बिना नारी की शिक्षा के संभव नहीं होगा। उन्होंने अनेक उदाहरणों तथा द्रोपदी, गार्गी आदि के माध्यम से नारी शिक्षा के महत्त्व को सिद्ध किया ।


प्रश्न 6. स्त्री-शिक्षा के विरोधी अपने पक्ष में क्या-क्या तर्क देते हैं? दो का उल्लेख कीजिए ।

उत्तर

स्त्री-शिक्षा के विरोधी अपने पक्ष में निम्नलिखित तर्क देते हैं-

  1. प्राचीन संस्कृत कवियों के नाटकों में कुलीन स्त्री पात्रों को अनपढ़ों की भाषा बोलते दिखाया गया है। इससे पता चलता है कि हमारे देश में स्त्री-शिक्षा का चलन न था।
  2. स्त्रियों को पढ़ाने से अनर्थ होता है । शकुंलता ने पढ़ाई के कारण ही दुष्यंत को कटु वचन कहे, जिस कारण अनर्थ हुआ।


प्रश्न 7. 'स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन' लेखक की दूरगामी और खुली सोच का परिचायक है । कैसे ?

उत्तर

लेखक महावीर प्रसाद द्विवेदी जी का यह निबंध उनकी दूरगामी व खुली सोच का परिचायक है क्योंकि उन्होंने उस समय स्त्री-शिक्षा का समर्थन किया जब लोग इसे व्यर्थ और अनावश्यक मानते थे। उनका दृष्टिकोण स्त्री-शिक्षा के पक्ष में व्यापक था। भविष्य में उनकी बात सही साबित हुई। सभी को स्त्री-शिक्षा का महत्त्व समझ में आने लगा । आज स्त्रियाँ शिक्षित होकर एक-से-एक बड़े कार्य कर रही हैं। लेखक ने बिल्कुल उचित समय पर नारी शिक्षा के प्रति अपना योगदान दिया ।


प्रश्न 8. महावीर प्रसाद द्विवेदी किस परिस्थिति में प्रसिद्ध अख़बार के संपादक को भी अपढ़ मानते है और क्यों?

उत्तर

महावीर प्रसाद द्विवेदी आज की उस परिस्थिति में प्रसिद्ध अख़बार के संपादक को भी अपढ़ मानते हैं क्योंकि वह भी आज की प्रसिद्ध भाषा का प्रयोग संपादन के लिए करते हैं । अतः यदि प्राचीन काल की स्त्रियाँ भी प्रचलित भाषा प्राकृत बोलने के कारण अपढ़ और गँवार मानी जाती थीं, तो आजकल के संपादक और बुद्धिजीवी भी प्रचलित भाषा के प्रयोग के कारण अपढ़ और गँवार माने जा सकते हैं ।


प्रश्न 9. वर्तमान में स्त्रियों का पढ़ना क्यों ज़रूरी माना गया है, स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर

वर्तमान समय स्त्रियों का पढ़ना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि वे एक परिवार का संचालन करने के साथ-साथ समाज निर्माण में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं, वे पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर चलती हैं। आज वे घर के साथ-साथ बाहर की दुनिया में भी कदम रख चुकी हैं। स्त्रियों को निरक्षर रखने से समाज का अपकार व पतन होता है। यदि देश की जनसंख्या का आधा भाग अशिक्षित होगा, तो उन्नति में अवरोध उत्पन्न होगा। अतः देश, समाज व परिवार के कल्याण और विकास के लिए स्त्रियों का पढ़ना ज़रूरी माना गया है।


प्रश्न 10. स्त्री-शिक्षा विरोधियों के किन्हीं दो कुतर्कों का उल्लेख कीजिए ।

उत्तर

स्त्री-शिक्षा विरोधियों के दो कुतर्क निम्नलिखित हैं-

  1. उनके अनुसार स्त्रियों को पढ़ाने से अनर्थ होते हैं । शकुंतला ने दुष्यंत से जो कटु वाक्य कहे वह उसकी कम पढ़ाई का ही दुष्परिणाम था। उसकी इस कम पढ़ाई ने अनर्थ कर डाला था।
  2. स्त्री-शिक्षा विरोधियों ने तो यहाँ तक कह डाला कि स्त्रियों को पढ़ाने से घर के सुख का नाश होता है । प्राचीन संस्कृत कवियों ने नाटकों में कुलीन स्त्री - पात्रों को अनपढ़ों की भाषा बोलते दर्शाया है। इन उदाहरणों से वे साबित करना चाहते थे कि प्राचीन काल में स्त्रियों की शिक्षा का चलन न था ।


प्रश्न 11. पुराने समय में स्त्रियों द्वारा प्राकृत बोलना क्या उनके अपढ़ होने का सबूत है? पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए ।

उत्तर

पुराने समय में स्त्रियों द्वारा प्राकृत बोलना उनके अपढ़ होने का सबूत नहीं है क्योंकि उस समय प्राकृत आम बोलचाल की भाषा थी। अनेक विद्वानों ने उस समय प्राकृत भाषा में अनेक महान ग्रंथों की रचना की थी। भगवान शाक्य मुनि और उनके शिष्यों ने प्राकृत में ही धर्मोपदेश दिए। महात्मा बुद्ध के त्रिपिटिक ग्रंथ की रचना प्राकृत में किए जाने का एकमात्र कारण यह था कि उस समय प्राकृत ही जन साधारण की भाषा थी। अतः प्राचीन समय में नारियों का प्राकृत बोलना उनके अपढ़ होने का प्रमाण नहीं है। हाँ, यह हो सकता है कि उस समय कुछ गिने-चुने लोग ही संस्कृत बोलते थे और स्त्रियों व अन्य जन साधारण के लिए प्राकृत भाषा बोलने का नियम रहा होगा ।


प्रश्न 12. 'महिलाओं द्वारा जो अनुचित व्यवहार किया जा रहा है- वह उसकी शिक्षा का ही परिणाम है।' ऐसा कुतर्क कौन देते हैं और क्यों ?

उत्तर

'महिलाओं द्वारा जो अनुचित व्यवहार किया जा रहा है, वह उनकी शिक्षा का ही परिणाम है।' ऐसा कुतर्क पुरातनपंथी व दकियानूसी विचारों से ग्रस्त लोग देते हैं। ऐसे लोग समाज में केवल पुरुषों का ही वर्चस्व चाहते हैं और उन्हें लगता है कि यदि महिलाएँ पढ़-लिख गईं, तो घर की चहारदीवारी लाँघकर समाज में निकल जाएँगी और समाज में फिर पुरुषों का आधिपत्य समाप्त हो जाएगा। शिक्षा महिलाओं को आत्मनिर्भर बना देगी और वे फिर अपने निर्णय स्वयं ले सकेंगी।


प्रश्न 13. पुराने नियमों, रूढ़ियों और परंपराओं को तोड़ना कब और क्यों आवश्यक हो जाता है ?

उत्तर

पुराने नियमों, रूढ़ियों और परंपराओं को तोड़ना तब आवश्यक हो जाता है जब वे सड़-लाएँ अर्था महत्त्वहीन हो जाएँ और समाज का कल्याण करने के स्थान पर अकल्याणकारी हो जाएँ । पुरानी परंपराओं व रूढ़ियों को तोड़ना इसलिए आवश्यक है क्योंकि ये मानव के विकास में अवरोध पैदा करती हैं। विवेकपूर्ण फ़ैसले के द्वारा उन्हीं परंपराओं को ग्रहण करना चाहिए, जो कल्याणकारी हैं। परिवर्तन प्रकृति का नियम है । अतः प्राचीन परंपराओं व रूढ़ियों में भी परिवर्तन व संशोधन कर समाज व देश को शिक्षित व विकसित बनाने के लिए नई व कल्याणकारी परंपराओं का निर्माण करना चाहिए।


प्रश्न 14. 'स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन' पाठ में शकुंतला और सीता का उल्लेख क्यों किया गया है?

उत्तर

'स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन' पाठ में शकुंतला और सीता का उल्लेख इसलिए किया गया है क्योंकि दोनों ने ही शकुंतला ने दुष्यंत को और सीता ने राम को कटु वचन कहे थे। सीता ने राम के आचरण को कुल, शील व पांडित्य को बट्टा लगाने वाला बताया था, क्योंकि उन्होंने सीता की अग्नि परीक्षा के बाद भी उसे त्याग दिया था । यहाँ तक कि सीता ने राम को आर्यपुत्र, नाथ व देव न कहकर केवल राजा कहकर अपना संदेश भेजा था । लेखक ने इनका उल्लेख इसलिए किया है कि यदि शकुंतला की कम पढ़ाई ने यह अनर्थ किया, तो सीता तो पढ़ी-लिखी, जनक- पुत्री थीं। अतः पढ़ने लिखने से अनर्थ हो सकने वाली बात का कोई संबंध नहीं है।


प्रश्न 15. सिद्ध कीजिए कि वर्तमान में लड़कियाँ क्षमता में लड़कों से पीछे नहीं हैं।

उत्तर

ईश्वर की कृति लड़का और लड़की को समान बनाया गया है। लड़कियाँ क्षमता में लड़कों से किसी भी प्रकार कम नहीं है। आज वे शिक्षा में लड़कों से अधिक अंक लाती हैं। लड़कों के समान शारीरिक शक्ति वाले कार्यों जैसे- खेलकूद, सेना की नौकरी, अंतरिक्ष अनुसंधान सभी में सफलतापूर्वक अपना योगदान दे रही हैं। साथ ही वे घर सँभालने के साथ-साथ शिक्षित होकर बाहर भी कुशल भूमिका निभा रही हैं तथा परिवार, समाज और देश के विकास में संपूर्ण योगदान दे रही हैं।


प्रश्न 16. स्त्री-शिक्षा के विषय में आप महावीर प्रसाद द्विवेदी के विचारों से कहाँ तक सहमत हैं? उचित तर्क देकर अपने विचारों की पुष्टि कीजिए ।

उत्तर

स्त्री-शिक्षा के विषय में हम महावीर प्रसाद द्विवेदी जी के विचारों से पूर्णतः सहमत हैं क्योंकि आज आधुनिक समय में नारी शिक्षा के अभाव में किसी भी परिवार, समाज व देश का विकास असंभव है। नारी शिक्षा आज के समय की प्रबल माँग है । स्त्री परिवार की धुरी होती है। उसके शिक्षित होने से ही परिवार व समाज शिक्षित होगा । स्त्री आबादी का आधा हिस्सा होने के साथ-साथ पुरुष की पूरक भी है। आज वह हर क्षेत्र में पुरुष के कंधे से कंधा मिलाकर कार्य कर रही है। शिक्षा के अभाव में वह देश के विकास में अपना संपूर्ण योगदान करने में असमर्थ होगी। महावीर जी प्राचीन समय में भी नारियों की शिक्षा का समर्थन करते थे कि वे उस समय भी पढ़ी-लिखी होती थीं और आज तो उनकी शिक्षा अनिवार्य होनी चाहिए, तभी संपूर्ण देश का विकास व कल्याण संभव है।


प्रश्न 17. स्त्री-शिक्षा के समर्थन या विरोध में अपनी ओर से दो तर्क दीजिए जिनका उल्लेख पाठ में न हुआ हो ।

उत्तर

स्त्री-शिक्षा के समर्थन में हम तर्क देना चाहते हैं कि-

  1. एक स्त्री परिवार की धुरी है। यदि वह शिक्षित होगी, तो पूरा परिवार शिक्षित होगा। परिवार शिक्षित होंगे, तो समाज शिक्षित होगा। एक शिक्षित समाज ही देश का सच्चा विकास कर सकता है। अतः स्त्रियों के लिए शिक्षा अति आवश्यक है।
  2. स्त्री आबादी का आधा हिस्सा होने के साथ-साथ पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कार्य कर रही है। अतः शिक्षा के अभाव में समाज व देश के विकास में उसकी क्षमता पूरा योगदान देने में असमर्थ होगी।


प्रश्न 18. 'स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन' पाठ में स्त्री-शिक्षा के विरोधियों ने किन तर्कों के आधार पर अपने पक्ष को पुष्ट किया है?

उत्तर

पाठ 'स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन' में स्त्री-शिक्षा के विरोधियों ने निम्नलिखित तर्कों के आधार पर अपने पक्ष को पुष्ट किया है-

  1. उनके अनुसार स्त्रियों को पढ़ाने से अनर्थ होते थे ।
  2. शकुंतला ने दुष्यंत से जो कटु वाक्य कहे, वह उसकी कम पढ़ाई का ही दुष्परिणाम था।
  3. उन्होंने यहाँ तक कह डाला कि स्त्रियों को पढ़ाने से घर के सुख का नाश होता है।
  4. प्राचीन संस्कृत कवियों ने नाटकों में कुलीन स्त्री पात्रों को अनपढ़ों की भाषा बोलते दर्शाया है।

इन उदाहरणों द्वारा वे साबित करना चाहते थे कि प्राचीन काल में स्त्रियों की शिक्षा का चलन न था।


प्रश्न 19. 'स्त्रियाँ शैक्षिक दृष्टि से पुरुषों से कम नहीं रही हैं'- इसके लिए महावीर प्रसाद द्विवेदी ने क्या उदाहरण दिए हैं? किन्हीं दो का उल्लेख कीजिए ।

उत्तर

'स्त्रियाँ शैक्षिक दृष्टि से पुरुषों से कम नहीं रही हैं' के तर्क में श्री महावीर प्रसाद द्विवेदी जी ने निम्नलिखित उदाहरण दिए हैं-

  1. ऋषि अत्रि की पत्नी घंटों भाषण देते हुए अपनी विद्वत्ता का व्याख्यान करती थीं। जो प्रमाणित करता है कि स्त्रियाँ भी शिक्षा में पुरुषों से कम न थीं ।
  2. गार्गी ने तो अपने पांडित्य प्रदर्शन में बड़े-बड़े ज्ञानी ब्रह्मऋषियों तक को हरा दिया था । उपर्युक्त उदाहरणों के द्वारा लेखक ने अपने मत को उचित ठहराया है।


प्रश्न 20. महावीर प्रसाद द्विवेदी के निबंध के आलोक में बताइए कि स्त्री-शिक्षा के प्रति हमारे दृष्टिकोण में क्या अंतर आया है और उसका क्या परिणाम हुआ है?

उत्तर

महावीर प्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित पाठ के संदर्भ में आज स्त्री-शिक्षा के प्रति हमारे दृष्टिकोण में काफी अंतर आया है। समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग स्त्री-शिक्षा का समर्थन करता है क्योंकि वह देश के विकास में शिक्षित स्त्री के योगदान से परिचित है, लेकिन आज भी कुछ पढ़े-लिखे लोगे ऐसे हैं जो स्त्री-शिक्षा का समर्थन नहीं करते या जिनका अहं स्त्री को उनसे आगे निकलते नहीं देखकर सकता, पर फिर भी आज स्त्रियाँ शिक्षा के प्रति जागरूक हैं। इसका परिणाम सुखद ही हुआ है। आज हर क्षेत्र में शिक्षित स्त्रियों का बोलबाला है। वे जी-जान से परिवार, समाज व देश के विकास में अपना पूर्ण योगदान दे रही हैं।


प्रश्न 21. परंपराएँ विकास के मार्ग में अवरोधक हों तो उन्हें तोड़ना ही चाहिए, कैसे ? 'स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन' पाठ के आधार पर लिखिए ।

उत्तर

महावीर प्रसाद द्विवेदी जी द्वारा रचित पाठ 'स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन' पाठ में लेखक ने ऐसी परंपराओं का जमकर विरोध किया है जो स्त्री शिक्षा का विरोध करती हैं? ऐसी परंपराएँ जो स्त्री पुरुष 'के समकक्ष न माने उन्हें तोड़ने में ही भलाई है। प्रकृति के द्वारा स्त्री-पुरुष को समान उद्देश्यों की पूर्ति हेतु बनाया गया था, परंतु पुरुष ने समाज के नियम बना, स्त्री का पतन निश्चित किया और अपने को ऊपर रखा। ऐसे पुरुषों को समझना होगा कि स्त्री-पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं। स्त्री शिक्षा का महत्त्व पुरुष से भी अधिक है। शिक्षित स्त्री पूरे परिवार व समाज को शिक्षित कर सकती है। अतः हमें ऐसी परंपराओं को शीघ्र ही तोड़ देना चाहिए जो विकास में अवरोध उत्पन्न करती हैं। उनकी भागीदारी को समझना होगा।


प्रश्न 22. द्विवेदी जी ने विक्षिप्त, वातव्यथित और ग्रहग्रस्त किन लोगों को कहा है और क्यों?

उत्तर

द्विवेदी जी ने विक्षिप्त, वातव्यथित, ग्रहग्रस्त उन लोगों को कहा है जो यह मानते हैं कि स्त्रियों को पढ़ाने से अनर्थ होते हैं। यदि स्त्रियों का किया हुआ अनर्थ उन्हें पढ़ाने का ही परिणाम है, तो पुरुषों का किया हुआ अनर्थ भी उनकी विद्या और शिक्षा का ही परिणाम समझना चाहिए क्योंकि यदि बम के गोले फेंकना, नरहत्या करना, डाके डालना, चोरियाँ करना आदि पढ़ने-लिखने के परिणाम हैं, तो सारे कॉलिज, स्कूल और पाठशालाएँ बंद हो जाने चाहिए। वास्तव में, ऐसी दलीलें देने वाले विक्षिप्त, वात-व्यथित, ग्रहगस्त लोगों की सोच अति संकीर्ण है क्योंकि वे स्वयं कुछ करने की क्षमता नहीं रखते। उनकी संकुचित वैचारिक दृष्टि उन्हें आगे बढ़ने नहीं देती ।


प्रश्न 23. पुराने समय में स्त्रियों द्वारा प्राकृत भाषा में बोलना उनके अपढ़ होने का प्रमाण नहीं है । 'स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन' पाठ के आधार पर सिद्ध कीजिए ।

उत्तर

पुराने समय में स्त्रियों द्वारा प्राकृत बोलना उनके अपढ़ होने का सबूत नहीं है क्योंकि उस समय प्राकृत आम बोलचाल की भाषा थी। अनेक विद्वानों ने उस समय प्राकृत भाषा में अनेक महान ग्रंथों की रचना की थी। भगवान शाक्य मुनि और उनके शिष्यों ने प्राकृत में ही धर्मोपदेश दिए । महात्मा बुद्ध के त्रिपिटिक ग्रंथ की रचना प्राकृत में किए जाने का एकमात्र कारण यह था कि उस समय प्राकृत ही जन साधारण की भाषा थी। अतः प्राचीन समय में नारियों का प्राकृत बोलना उनके अपढ़ होने का प्रमाण नहीं है। हाँ, यह हो सकता है कि उस समय कुछ गिने-चुने लोग ही संस्कृत बोलते थे और स्त्रियों व अन्य जन साधारण के लिए प्राकृत भाषा बोलने का नियम रहा होगा ।

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