Extra Questions for Class 10 क्षितिज Chapter 16 नौबतखाने में इबादत - यतीन्द्र मिश्र Hindi

Here, students will find Important Questions for Class 10 Kshitij Chapter 16 Naubatkhane me Ibadat by Yatindra Mishra Hindi with answers on this page which will increase concentration among students and have edge over classmates. A student should revise on a regular basis so they can retain more information and recall during the precious time. These extra questions for Class 10 Hindi Kshitij play a very important role in a student's life and developing their performance.

Extra Questions for Class 10 क्षितिज Chapter 16 नौबतखाने में इबादत - यतीन्द्र मिश्र Hindi

Chapter 16 नौबतखाने में इबादत Kshitij Extra Questions for Class 10 Hindi

गद्यांश आधारित प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. निम्नांकित गद्यांश पर आधारित प्रश्नों के लिए सही उत्तर वाले विकल्प चुनकर लिखिए-

मसलन बिस्मिल्ला खाँ की उम्र अभी 14 साल है। वही काशी है। वही पुराना बालाजी का मंदिर जहाँ बिस्मिल्ला खाँ को नौबतखाने रियाज़ के लिए जाना पड़ता है। मगर एक रास्ता है बालाजी मंदिर तक जाने का। यह रास्ता रसूलनबाई और बतूलनबाई के यहाँ से होकर जाता है। इस रास्ते से अमीरुद्दीन को जाना अच्छा लगता है। इस रास्ते न जाने कितने तरह के बोल-बनाव, कभी ठुमरी, कभी टप्पे, कभी दादरा के मार्फत ड्योढ़ी तक पहुँचते रहते हैं। रसूलन और बतूलन जब गाती हैं, तब अमीरुद्दीन को खुशी मिलती है। अपने ढेरों साक्षात्कारों में बिस्मिल्ला खाँ साहब ने स्वीकार किया है कि उन्हें अपने जीवन के आरम्भिक दिनों में संगीत के प्रति आसक्ति में इन्हीं गायिका बहिनों को सुनकर मिली है। एक प्रकार से उनकी अबोध उम्र में अनुभव की स्लेट पर संगीत प्रेरणा की वर्णमाला रसूलनबाई और बतूलनबाई ने उकेरी है।

(क) बिस्मिल्ला खाँ का मूल नाम है-
(i) सादिक हुसैन
(ii) शम्सुद्दीन
(iii) अमीरुद्दीन
(iv) अलीबख़्श

(ख) बिस्मिल्ला खाँ को बालाजी मंदिर जाने के लिए एक खास रास्ता ही क्यों पसंद था ?
(i) वह रास्ता छोटा था ।
(ii) उस रास्ते पर उनके मित्रों के घर थे।
(iii) उस रास्ते पर दो बहिनों का गायन सुनने को मिलता था ।
(iv) उन्हें ठुमरी, टप्पा, दादरा पसंद था।

(ग) कैसे कहा जा सकता है कि उन्हें संगीत की प्रेरणा इन दोनों बहिनों से मिली?
(i) इनका गायन बहुत उत्कृष्ट था ।
(ii) यह गायन प्रायः उन्हें सुनने को मिलता था ।
(iii) इस गायन के प्रति आसक्ति को उन्होंने स्वीकार किया है।
(iv) इस गायन में एक विशेष मोहकता थी ।

(घ) संगीत का एक रूप नहीं है-
(i) शहनाई
(ii) टप्पा
(iii) ठुमरी
(iv) दादरा

(ङ) 'रसूलन और बतूलन जब गाती हैं तब अमीरुद्दीन को खुशी मिलती है'-
(i) सरल
(ii) संयुक्त
(iii) मिश्र
(iv) साधारण

उत्तर

(क) (iii) अमीरुद्दीन

(ख) (iii) उस रास्ते पर दो बहिनों का गायन सुनने को मिलता था ।

(ग) (iii) इस गायन के प्रति आसक्ति को उन्होंने स्वीकार किया है ।

(घ) (i) शहनाई

(ङ) (iii) मिश्र वाक्य


प्रश्न 2. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सही उत्तरों वाले विकल्प छाँटिए-

काशी में संगीत - आयोजन की एक प्राचीन एवं अद्भुत परंपरा है। यह आयोजन पिछले कई बरसों से संकटमोचन मंदिर में होता आया है। यह मंदिर शहर के दक्षिण में लंका पर स्थित है व हनुमान जयंती के अवसर पर यहाँ पाँच दिनों तक शास्त्रीय उपशास्त्रीय गायन-वादन की उत्कृष्ट सभा होती है। इसमें बिस्मिल्ला अवश्य रहते हैं । अपने मज़हब प्रति अत्यधिक समर्पित उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ की श्रद्धा काशी विश्वनाथ जी के प्रति भी अपार है। वे जब भी काशी से बाहर रहते हैं तब विश्वनाथ व बालाजी मंदिर की दिशा की ओर मुँह करके बैठते हैं, थोड़ी देर ही सही, मगर उसी ओर शहनाई का प्याला घुमा दिया जाता है।

(क) काशी के संगीत - आयोजन में बिस्मिल्ला खाँ अवश्य रहते थे, क्योंकि-
(i) काशी ही उनका निवास स्थान है।
(ii) वे महान संगीतकार थे।
(iii) वहाँ आने-जाने की सुविधा रहती है ।
(iv) वे समन्वयवादी और उदार थे।

(ख) कौन-सा कथन बिस्मिल्ला खाँ के बारे में सच नहीं है?
(i) वे अपने मज़हब के प्रति समर्पित थे । 
(ii) काशी उन्हें बहुत प्यारी थी ।
(iii) वे धार्मिक दृष्टि से कट्टरपंथी थे ।
(iv) बालाजी में उनकी अपार श्रद्धा थी

(ग) काशी के प्रति उनकी अपार श्रद्धा का पता चलता है-
(i) सदा काशी में ही रहने से
(ii) नित्य - प्रति मंदिर में जाने से
(iii) विश्वनाथ मंदिर की ओर मुँह करके शहनाई बजाने से
(iv) धर्म के प्रति कट्टर न होने से

(घ) वे जब भी काशी से बाहर रहते हैं तब विश्वनाथ व बालाजी मंदिर की दिशा की ओर मुँह करके बैठते हैं। यह वाक्य है-
(i) सरल
(ii) संयुक्त
(iii) मिश्र
(iv) जटिल

(ङ) 'संकटमोचन' का अर्थ है-
(i) संकट और मुक्ति
(ii) संकट द्वारा मुक्ति
(iii) संकटों से मुक्ति
(iv) संकटों को कम करने वाला

उत्तर

(क) (iv) वे समन्वयवादी और उदार थे ।

(ख) (iii) वे धार्मिक दृष्टि से कट्टरपंथी थे ।

(ग) (i) सदा काशी में ही रहने से

(घ) (iii) मिश्र

(ङ) (iv) संकटों को कम करने वाला


प्रश्न 3. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और पूछे गए प्रश्नों के सही उत्तर वाले विकल्प चुनकर लिखिए-

इधर सुलोचना की नयी फ़िल्म सिनेमाहाल में आई और उधर अमीरुद्दीन अपनी कमाई लेकर चला फ़िल्म देखने जो बालाजी मंदिर पर रोज़ शहनाई बजाने से उसे मिलती थी। एक अठन्नी मेहनताना। उस पर यह शौक़ ज़बरदस्त कि सुलोचना की कोई नयी फ़िल्म न छूटे और कुलसुम की देसी घी वाली दुकान । वहाँ की संगीतमय कचौड़ी। संगीतमय कचौड़ी इस तरह क्योंकि कुलसुम जब कलकलाते घी में कचौड़ी डालती थी, उस समय छन्न से उठने वाली आवाज़ में उन्हें सारे आरोह-अवरोह दिख जाते थे। राम जाने, कितनों ने ऐसी कचौड़ी खाई होंगी। मगर इतना तय है कि अपने खाँ साहब रियाज़ी और स्वादी दोनों रहे हैं और इस बात में कोई शक नहीं कि दादा की मीठी शहनाई उनके हाथ लग चुकी है।

(क) अमीरुद्दीन वस्तुतः कौन थे ?
(i) शम्सुद्दीन
(ii) सादिक हुसैन
(iii) अली बख्श
(iv) बिस्मिल्ला खाँ

(ख) अमीरुद्दीन को कौन-सा शौक नहीं था ?
(i) फ़िल्म देखने का
(ii) जलेबी खाने का
(iii) संगीत सुनने का
(iv) पैसे कमाने का

(ग) अमीरुद्दीन को सुलोचना जितनी पसंद थी, उतनी ही पसंद थी-
(i) जलेबियाँ
(ii) कचौड़ियाँ
(iii) शहनाइयाँ
(iv) मिठाइयाँ

(घ) 'मीठी शहनाई हाथ लगना' से अभिप्राय है-
(i) दादा की शहनाई मिल जाना
(ii) मिठाई के साथ शहनाई बजीना
(iii) दादा की तरह मीठी शहनाई बजाना
(iv) मीठे संगीत में डूब जाना

(ङ) 'उन्हें सारे आरोह-अवरोह दिख जाते थे' इससे खाँ साहब के किस गुण का बोध होता है?
(i) स्वादी होने का
(ii) रियाज़ी होने का
(iii) फ़िल्मों के शौकीन होने का
(iv) संगीत में डूब जाने का

उत्तर

(क) (iv) बिस्मिल्ला खाँ

(ख) (iv) पैसे कमाने का

(घ) (iii) दादा की तरह मीठी शहनाई बजाना

(ग) (ii) कचौड़ियाँ

(ङ) (ii) रियाज़ी होने का


प्रश्न 4. निम्नलिखित गद्यांश पर आधारित प्रश्नों के सही उत्तर वाले विकल्प चुनिए-

काशी आज भी संगीत के स्वर पर जगती और उसी की थापों पर सोती है। काशी में मरण भी मंगल माना गया है। काशी आनंद- कानन है। सबसे बड़ी बात है कि काशी के पास उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ जैसा लय और सुर की तमीज़ सिखाने वाला नायाब हीरा रहा है जो हमेशा से दो क़ौमों को एक होने व आपस में भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देता रहा ।

(क) लेखक ने ऐसा क्यों कहा है कि काशी संगीत के स्वर पर जगती और उसी की थापों पर सोती है?
(i) काशी के निवासी बिस्मिल्ला खाँ की शहनाई सुनकर जगते और सोते हैं ।
(ii) वहाँ के वासी संगीत के प्रेमी हैं ।
(iii) वहाँ प्रत्येक त्योहार पर संगीत का आयोजन होता है।
(iv) वे रेडियो और दूरदर्शन से प्रसारित संगीत के अनुरागी हैं।

(ख) काशी में मरण भी मंगल माना गया है क्योंकि
(i) काशी में मृत्यु दुखदायक नहीं होती ।
(ii) वहाँ शरीर त्याग मोक्ष का कारण माना गया है।
(iii) वहाँ दाह-संस्कार की बड़ी सुविधा है ।
(iv) वहाँ पंडे-पुरोहित मिल जाते हैं ।

(ग) काशी को 'आनंद-कानन' क्यों कहा है?
(i) वह एक सुंदर नगरी है ।
(ii) वहाँ बाग-बगीचे बहुत हैं ।
(iii) वह संगीत, साहित्य और संस्कृति की नगरी है।
(iv) वहाँ का गंगा तट बहुत रमणीक है ।

(घ) बिस्मिल्ला खाँ को काशी का 'नायाब हीरा' क्यों कहा गया है?
(i) उन्होंने काशीवासियों को तहज़ीब सिखाई ।
(ii) काशी को अनुपम साहित्य दिया ।
(iii) अनुपम शहनाई वादन से काशी को ख्याति दिलाई।
(iv) सांप्रदायिकता को दूर कर आपस में भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा दी ।

(ङ) 'हीरा' शब्द की व्याकरणिक कोटि है-
(i) जातिवाचक संज्ञा
(ii) व्यक्तिवाचक संज्ञा
(iii) भाववाचक संज्ञा
(iv) समूहवाचक संज्ञा

उत्तर

(क) (ii) वहाँ के वासी संगीत के प्रेमी हैं ।

(ख) (ii) वहाँ शरीर मोक्ष का कारण माना गया है।

(ग) (iii) वह संगीत, साहित्य और संस्कृति की नगरी हैं ।

(घ) (iv) सांप्रदायिकता को दूर कर आपस में भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा दी।

(ङ) (i) जातिवाचक संज्ञा


प्रश्न 5. निम्नलिखित गद्यांश पर आधारित प्रश्नों के सही विकल्प चुनकर लिखिए-

अपने ऊहापोहों से बचने के लिए हम स्वयं किसी शरण, किसी गुफ़ा को खोजते हैं जहाँ अपनी दुश्चिंताओं, दुर्बलताओं को छोड़ सकें और वहाँ से फिर अपने लिए एक नया तिलिस्म गढ़ सकें । हिरन अपनी ही महक से परेशान पूरे जंगल उस वरदान को खोजता है जिसकी गमक उसी में समाई है। अस्सी बरस से बिस्मिल्ला खाँ यही सोचते आए हैं कि सातों सुरों को बरतने की तमीज़ उन्हें सलीक़े से अभी तक क्यों नहीं आई?

(क) 'ऊहापोहों से' का अभिप्राय है।
(i) उलझनों से
(ii) तर्क-वितर्क से
(iii) सोच-विचार से
(iv) समस्याओं से

(ख) 'हम किसी की शरण और एकांत को क्यों खोजते हैं?
(i) परेशानियों से छुटकारा पाने के लिए
(ii) इच्छा पूर्ति हेतु
(iii) सांसारिक कठिनाइयों से मुक्ति पाकर, नई राह पाने के लिए
(iv) दुनिया से मुँह छिपाने के लिए

(ग) हिरन कौन - सी महक से परेशान होता है?
(i) जंगलों से आ रही सुगंध से
(ii) अपनी नाभि में स्थित सुगंधित वस्तु से
(iii) विशेष प्रकार की औषधीय गंध से
(iv) अपने मन की अमिट प्यास से

(घ) हिरन जंगल में किस वरदान को खोजता है?
(i) जो उसके पास नहीं है
(ii) जो उसके पास है
(iii) जो उसे मिल सकता है
(iv) जो जंगल में उपलब्ध है

(ङ) अस्सी बरस से बिस्मिल्ला खाँ क्या सोचते आए हैं?
(i) शहनाई की मंगल ध्वनि की मिठास के बारे में
(ii) सच्चे स्वरों को शहनाई में उतारने के विषय में
(iii) सातों स्वरों के प्रयोग की तमीज़ के बारे में
(iv) सुरों में प्रभावकारी गुणों को पैदा करने के बारे में


प्रश्न 6. निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए:

शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के लिए उपयोगी हैं। शहनाई बजाने के लिए रीड का प्रयोग होता है। रीड अंदर से पोली होती है जिसके सहारे शहनाई को फूँका जाता है। रीड, नरकट (एक प्रकार की घास) से बनाई जाती है जो डुमराँव में मुख्यतः सोन नदी के किनारों पर पाई जाती है । इतनी ही महत्ता है इस समय डुमराँव की जिसके कारण शहनाई जैसा वाद्य बजता है । फिर अमीरुद्दीन जो हम सबके प्रिय हैं, अपने उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ साहब हैं। उनका जन्म स्थान भी डुमराँव ही है। इनके परदादा उस्ताद सलार हुसैन खाँ डुमराँव निवासी थे । बिस्मिल्ला खाँ उस्ताद पैगंबर बख्श खाँ और मिट्ठन के छोटे साहबजादे हैं ।

(क) शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के पूरक हैं, कैसे ?

(ख) यहाँ रीड के बारे में क्या-क्या जानकारियाँ मिलती हैं?

(ग) अमीरुद्दीन के माता-पिता कौन थे?

उत्तर

(क) शहनाई और डुमराँव एक दूसरे के पूरक हैं क्योंकि शहनाई बजाने के लिए प्रयोग 'जाने वाली रीड़ डुमराँव में सोन नदी के किनारे पाई जाती है। शहनाई वादक बिस्मिल्ला खाँ साहब का जन्मस्थल भी डुमराँव ही है। अतः बिस्मिल्ला खाँ, उनकी शहनाई दोनों ही डुमराँव से जुड़े होने के कारण एक-दूसरे पूरक के हैं ।

(ख) रीड का प्रयोग शहनाई बजाने के लिए किया जाता है। रीड अंदर से पोली अर्थात खोखली होती है जिसके सहारे शहनाई को फूँका जाता है। रीड नरकट से बनाई जाती है, जो एक प्रकार की घास है। यह घास डुमराँव में सोन नदी के किनारों पर बहुतायत में पाई जाती है, जिसकी सहायता के बिना शहनाई बजाने की कल्पना भी नहीं की जा सकती है।

(ग) अमीरुद्दीन, बिस्मिल्ला खाँ के बचपन का नाम है और इनके पिताजी का नाम उस्ताद पैगंबर बख्श खाँ और माताजी का नाम मिट्ठन था ।


प्रश्न 7. निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए-

वही पुराना बालाजी का मंदिर जहाँ बिस्मिल्ला खाँ को नौबतखाने रियाज़ के लिए जाना पड़ता है । मगर एक रास्ता है बालाजी मंदिर तक जाने का। यह रास्ता रसूलनबाई और बतूलनबाई के यहाँ से होकर जाता है । इस रास्ते से अमीरुद्दीन को जाना अच्छा लगता है। इस रास्ते न जाने कितने तरह के बोल - बनाव कभी ठुमरी, कभी ठप्पे, कभी दादरा के मार्फ़त ड्योढ़ी तक पहुँचते रहते हैं । रसूलन और बतूलन जब गाती हैं तब अमीरुद्दीन को खुशी मिलती है। अपने ढेरों साक्षात्कारों में बिस्मिल्ला खाँ साहब ने स्वीकार किया है कि उन्हें अपने जीवन के आरंभिक दिनों में संगीत के प्रति आसक्ति इन्हीं गायिका बहिनों को सुनकर मिली है।

(क) बिस्मिल्ला खाँ कौन थे? बालाजी मंदिर से उनका क्या संबंध है?

(ख) रसूलनबाई और बतूलनबाई के यहाँ से होकर बालाजी के मंदिर जाना बिस्मिल्ला खाँ को क्यों अच्छा लगता था ?

(ग) ‘रियाज़' से क्या तात्पर्य है?

उत्तर

(क) बिस्मिल्ला खाँ देश के सुप्रसिद्ध, शहनाई वादक थे। बालाजी मंदिर से उनका गहरा भावात्मक संबंध था। इसी बालाजी की दहलीज़ के नौबतखाने पर जाकर वे रोज़ शहनाई के द्वारा मंगल ध्वनि करते थे ।

(ख) रसूलनबाई और बतूलनबाई के यहाँ से होकर बालाजी के मंदिर जाना बिस्मिल्ला खाँ को इसलिए अच्छा लगता था क्योंकि वे तरह-तरह के बोल, ठुमरी, ठप्पे, दादरा आदि मधुर स्वर में गाती थीं । इन दोनों ने ही खाँ साहब के जीवन में संगीत के प्रति आसक्ति पैदा की।

(ग) अपनी कला का बार-बार अभ्यास करना ही 'रियाज़' है । खाँ साहब भी घंटों शहनाई वादन का रियाज़ करते थे और जीवन पर्यंत करते रहे, ताकि उनके सुर सधे रहें ।


प्रश्न 8. निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए-

किसी दिन एक शिष्या ने डरते-डरते खाँ साहब को टोका, “बाबा! आप यह क्या करते हैं, इतनी प्रतिष्ठा है आपकी अब तो आपको भारतरत्न भी मिल चुका है, यह फटी तहमद न पहना करें। अच्छा नहीं लगता, जब भी कोई आता है आप इसी फटी तहमद में सबसे मिलते हैं।” खाँ साहब मुसकराए, लाड़ से भरकर बोले, “धत्! पगली ई भारतरत्न हमको शहनईया पे मिला है, लुंगिया पे नाहीं । तुम लोगों की तरह बनाव सिंगार देखते रहते, तो उमर ही बीत जाती हो चुकती शहनाई । तब क्या खाक रियाज़ हो पाता । ठीक है बिटिया, आगे से नहीं पहनेंगे, मगर इतना बताए देते हैं कि मालिक से यही दुआ है, फटा सुर न बख्शें । लुंगिया का क्या है, आज फटी है, तो कल सी जाएगी।”

(क) 'तुम लोगों की तरह बनाव सिंगार देखते रहते तो उमर ही बीत जाती, हो चुकती शहनाई । उपर्युक्त कथन में युवावर्ग के लिए क्या संदेश है?

(ख) किसी भी कला या कार्य की सफलता में रियाज़ का कितना योगदान होता है, गद्यांश के आधार पर लिखिए ।

(ग) शिष्या के टोकने को बिस्मिल्ला खाँ ने बुरा क्यों नहीं माना ?

उत्तर

(क) उपर्युक्त कथन में युवावर्ग के लिए लक्ष्य प्राप्ति हेतु बनाव- सिंगार व फ़ैशनबाज़ी के स्थान पर साधना व समर्पण का संदेश निहित है। वास्तव में, यदि युवावर्ग स्वयं को सच्चा साधक बनाकर अपने लक्ष्य को साधने का प्रयास करे और बाहरी आकर्षणों की अति से स्वयं को बचाए, तो उसे उस क्षेत्र में ऊँचाइयों तक पहुँचने से कोई नहीं रोक सकता । महान शहनाई वादक बिस्मिल्ला खाँ का जीवन भी बनाव-सिंगार से दूर सुरों की सच्ची साधना का प्रतीक है।

(ख) किसी भी कला या कार्य की सफलता में रियाज़ का बहुत अधिक योगदान होता है। आप किसी भी कला को थोड़े प्रयास से सीख तो सकते हैं, किंतु उसमें निपुणता प्राप्त नहीं कर सकते हैं। यह निपुणता केवल और केवल रियाज़ यानी अभ्यास द्वारा ही संभव होती है। आज अपने-अपने क्षेत्रों में शीर्ष पर बैठे हुए सफल व्यक्तियों से यदि पूछा जाए, तो उनमें से हर कोई यही कहेगा कि उसने स्वयं को यहाँ तक लाने के लिए जी तोड़ अभ्यास किया है।

(ग) बिस्मिल्ला खाँ बहुत ही उदार व हँसमुख व्यक्ति थे । वे अपने शिष्यों से बहुत घुले-मिले थे । इसलिए उन्होंने अपनी शिष्या द्वारा फटी लुंगी के लिए टोकने का बुरा नहीं माना और उसे प्यार से यह समझा दिया कि जीवन में बनाव - सिंगार से अधिक महत्त्व साधना का है तथा साथ ही उसकी भावनाओं का सम्मान करते हुए यह भी कह दिया कि बिटिया, आगे से फटी लुंगी नहीं पहनेंगे।


प्रश्न 9. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सही उत्तर वाले विकल्प चुनकर लिखिए-

काशी आज भी संगीत के स्वर पर जगती और उसी की थापों पर सोती है। काशी में मरण भी मंगल माना गया है। काशी आनंदकानन है। सबसे बड़ी बात है कि काशी के पास उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ जैसा लय और सुर की तमीज़ सिखाने वाला नायाब हीरा रहा है जो हमेशा से दो क़ौमों को एक होने व आपस में भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देता रहा । भारतरत्न से लेकर इस देश के ढेरों विश्वविद्यालयों की मानद उपाधियों से अलंकृत व संगीत नाटक अकादमी - पुरस्कार एवं पद्मविभूषण जैसे सम्मानों से नहीं, बल्कि अपनी अजेय संगीत यात्रा के लिए बिस्मिल्ला खाँ साहब भविष्य में हमेशा संगीत के नायक बने रहेंगे ।

(क) काशी की सबसे बड़ी विशेषता लेखक के अनुसार है-
(i) संगीत के संस्कार
(ii) मरण को भी मंगल मानना
(iii) बिस्मिल्ला खाँ जैसा संगीतकार
(iv) आपसी भाईचारा

(ख) बिस्मिल्ला खाँ का जीवन प्रेरित करता है-
(i) संगीत के प्रति अनुराग
(ii) जातियों में परस्पर बंधुत्व का भाव
(iii) लय और सुर की परख करना
(iv) काशी से अनुराग

(ग) बिस्मिल्ला खाँ को प्राप्त पुरस्कारों में सबसे विशेष है-
(i) संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार
(ii) विश्वविद्यालय की मानद उपाधि
(iii) पद्मविभूषण
(iv) भारतरत्न

(घ) बिस्मिल्ला खाँ सदा याद किए जाएँगे -
(i) काशी के प्रति प्रेम के लिए
(ii) सर्वश्रेष्ठ संगीतकार होने के कारण
(iii) अनेक उपाधियों से अलंकृत होने कारण
(iv) भाईचारे की प्रेरणा देने के कारण

(ङ) 'सुर की तमीज़' से तात्पर्य है-
(i) संगीत से लगाव
(ii) संगीत की समझ
(iii) संगीत की साधना
(iv) संगीत की प्रेरणा

उत्तर

(क) (iii) बिस्मिल्ला खाँ जैसा संगीतकार

(ख) (ii) जातियों में परस्पर बंधुत्व का भाव

(ग) (iv) भारतरत्न

(घ) (ii) सर्वश्रेष्ठ संगीतकार होने के कारण

(ङ) (ii) संगीत की समझ


लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. कैसे कहा जा सकता है कि बिस्मिल्ला खाँ मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक थे?

उत्तर

बिस्मिल्ला खाँ मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक थे क्योंकि उनके मन में किसी भी धर्म-संप्रदाय के प्रति द्वेष नहीं था। वे बनारस में बालाजी के मंदिर में शहनाई बजाते थे; तो मुस्लिम पर्व मुहर्रम भी पूरी शिद्दत से मनाते और शोक के दस दिनों तक शहनाई न बजाते। उन्हें काशी, बालाजी मंदिर तथा गंगा के प्रति असीम लगाव था। वे संकटमोचन मंदिर में होने वाले आयोजनों में अवश्य सम्मिलित होते थे। वे तो संगीत के उपासक थे। उनका संगीत सभी धर्मों को जोड़ने का काम करता था। सभी उनकी कला के प्रशंसक थे । उनका संगीत सबका और वे सबके थे ।


प्रश्न 2. आप कैसे कह सकते हैं कि बिस्मिल्ला खाँ मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक थे ?

उत्तर

बिस्मिल्ला खाँ मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक थे क्योंकि उनके मन में किसी भी धर्म-संप्रदाय के प्रति द्वेष नहीं था। वे बनारस में बालाजी के मंदिर में शहनाई बजाते थे; तो मुस्लिम पर्व मुहर्रम भी पूरी शिद्दत से मनाते और शोक के दस दिनों तक शहनाई न बजाते। उन्हें काशी, बालाजी मंदिर तथा गंगा के प्रति असीम लगाव था । वे संकटमोचन मंदिर में होने वाले आयोजनों में अवश्य सम्मिलित होते थे । वे तो संगीत के उपासक थे। उनका संगीत सभी धर्मों को जोड़ने का काम करता था। सभी उनकी कला के प्रशंसक थे । उनका संगीत सबका और वे सबके थे।


प्रश्न 3. काशी में हो रहे कौन-से परिवर्तन बिस्मिल्ला खाँ को व्यथित करते थे ?

उत्तर

समय बीतने के साथ-साथ बिस्मिल्ला खाँ ने काशी में अनेक परिवर्तन देखे, जो उन्हें व्यथित करते थे, यथा-

  1. काशी की प्राचीन और अत्यंत महत्त्वपूर्ण परंपराएँ समाप्ति के कगार तक पहुँच चुकी थीं।
  2. साहित्य और संगीत की कद्र धीरे-धीरे कम होने लगी थी ।
  3. खान-पान की पुरानी चीज़ों में, जैसे संगीतमय कचौड़ी व जलेबी में भी पहले जैसा स्वाद नहीं रहा था ।
  4. हिंदुओं और मुस्लिमों में सांप्रदायिक प्रेम कम होता चला गया था ।
  5. कलाकारों के प्रति सम्मान की भावना में कमी आई थी।


प्रश्न 4. बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगलध्वनि का नायक क्यों कहा गया है ?

उत्तर

बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगल ध्वनि का नायक इसलिए कहा गया है क्योंकि शहनाई एक ऐसा वाद्य माना जाता है। जिसका प्रयोग मांगलिक विधि-विधानों में किया जाता है। दक्षिण भारत के मंगल वाद्य 'नागस्वरम्' की तरह शहनाई भी प्रभाती की मंगल ध्वनि का परिचायक है। बिस्मिल्ला खाँ शहनाई के माध्यम से मंगल ध्वनि बजाते थे और इस क्षेत्र में वे सर्वश्रेष्ठ स्थान रखते थे। उन्होंने अनेक मंगल और शुभ अवसरों जैसे 15 अगस्त, 1947 तथा गणतंत्र दिवस 26 जनवरी, 1950 को शहनाई की मंगल ध्वनि की थी, अतः वे मंगल ध्वनि के नायक माने जाते हैं ।


प्रश्न 5. कैसे कहा जा सकता है कि बिस्मिल्ला खाँ साहब सच्चे अर्थों में भारत रत्न थे ।

उत्तर

बिस्मिल्ला खाँ सच्चे अर्थों में 'भारत रत्न' थे क्योंकि भारतीयता के जीवनमूल्य विनम्रता, सादगी, हुनर, साधना, देशभक्ति और सांप्रदायिक सद्भावना जैसे गुण उनमें कूट-कूट कर भरे थे । 'भारत रत्न' व अन्य उपाधियाँ जैसे पद्मविभूषण, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार व अन्य सम्मान प्राप्ति के बाद भी घमंड उन्हें छू तक नहीं गया था। बिना धन-लालसा के वे जीवन पर्यंत सुरों की साधना सादगी के साथ करते रहे ।


प्रश्न 6. एक संगीतज्ञ के रूप में खाँ साहब का जीवन हमें विद्यार्थी जीवन के लिए किन मूल्यों की शिक्षा देता है?

उत्तर

एक संगीतज्ञ के रूप में खाँ साहब का जीवन विद्यार्थियों को अनेक मूल्यपरक शिक्षाएँ देता है । उनके जीवन से हम विद्यार्थी विनम्रता, सादगी, किसी भी लक्ष्य को पाने के लिए परिश्रम व लगन जैसे गुण सीख सकते हैं। सफलता पर अभिमान न करना, सांप्रदायिक सद्भावना बनाए रखना, सभी धर्मों को समान मानना, देशहित सर्वोपरि रखना व अंत तक बेहतरी के लिए साधना व श्रमरत रहने जैसे जीवन मूल्यों की सीख हम खाँ साहब के जीवन से ग्रहण कर सकते हैं।


प्रश्न 7. शहनाई की दुनिया में 'डुमराँव' को क्यों याद किया जाता है? दो कारणों का उल्लेख कीजिए ।

उत्तर

शहनाई की दुनिया में डुमराँव को इसलिए याद किया जाता है क्योंकि शहनाई बजाने के लिए जिस रीड का प्रयोग किया जाता है वह प्रमुख रूप से 'डुमराँव' में सोन नदी के किनारों पर पाई जाती है। दूसरा प्रमुख कारण यह है कि डुमराँव 'भारत रत्न' से सम्मानित सुप्रसिद्ध शहनाई वादक बिस्मिल्ला खाँ साहब का जन्म स्थल है। डुमराँव के कारण ही शहनाई जैसा वाद्य बजता है अतः शहनाई की दुनिया में डुमराँव को विशेष रूप से स्थान दिया जाता है और याद किया जाता है। दोनों एक दूसरे से गहराई से जुड़े हैं।


प्रश्न 8. काशी विश्वनाथ के प्रति बिस्मिल्ला खाँ की श्रद्धा का सोदाहरण उल्लेख कीजिए ।

उत्तर

अपने मज़हब के प्रति अत्यधिक समर्पित उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ की श्रद्धा काशी विश्वानाथ के प्रति भी अपार थी। वे नित्यप्रति विश्वनाथ, बाला जी मंदिर आरती के समय शहनाई बजाते थे। बाबा विश्वनाथ व बिस्मिल्ला खाँ एक-दूसरे के पूरक रहे हैं। काशी, गंगा व बाबा विश्वनाथ से बिस्मिल्ला खाँ को अलग करके नहीं देखा जा सकता। वे जब भी काशी से बाहर रहते तब विश्वनाथ व बालाजी मंदिर की तरफ़ मुँह करके बैठते और अपनी शहनाई का प्याला घुमा और सुर साध कर अपनी श्रद्धा प्रकट करते और भीतर की आस्था रीड के माध्यम से बजनी शुरू हो जाती थी।


प्रश्न 9. उदाहरण देकर सिद्ध कीजिए कि बिस्मिल्ला खाँ वास्तविक अर्थों में सच्चे इंसान थे ।

उत्तर

बिस्मिल्ला खाँ सही अर्थों में एक सच्चे इंसान थे क्योंकि वे सांप्रदायिक सौहार्द की भावना से प्रेरित थे। वे हिंदू-मुस्लिम दोनों क़ौमों में एकता बनाए रखने के जीवंत उदाहरण थे । वे संगीत के सर्वोच्च शिखर पर पहुँचने के बाद भी सादगी व सरलता से रहते थे । वे एक आस्थावान व्यक्ति थे । भारतरत्न से सम्मानित होकर भी उन्हें घमंड छू तक नहीं गया था। धन के प्रति उनके मन में कोई लोभ नहीं था । विनम्रता के कारण उन्होंने अपने सुरों को कभी पूर्ण नहीं माना और मालिक से एक अच्छे सुर बख़्शने की दुआएँ माँगते रहे ।


प्रश्न 10. बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगल-ध्वनि का नायक क्यों कहा गया है?

उत्तर

बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगल ध्वनि का नायक इसलिए कहा गया है क्योंकि शहनाई एक ऐसा वाद्य माना जाता है। जिसका प्रयोग मांगलिक विधि-विधानों में किया जाता है। दक्षिण भारत के मंगल वाद्य 'नागस्वरम्' की तरह शहनाई भी प्रभाती की मंगल ध्वनि का परिचायक है। बिस्मिल्ला खाँ शहनाई के माध्यम से मंगल ध्वनि बजाते थे और इस क्षेत्र में वे सर्वश्रेष्ठ स्थान रखते थे। उन्होंने अनेक मंगल और शुभ अवसरों जैसे 15 अगस्त, 1947 तथा गणतंत्र दिवस 26 जनवरी, 1950 को शहनाई की मंगल ध्वनि की थी, अतः वे मंगल ध्वनि के नायक माने जाते हैं ।


प्रश्न 11. 'नौबतखाने में इबादत' के लेखक ने किन विशेषताओं के आधार पर यह कहा है कि बिस्मिल्ला खाँ साहब भविष्य में हमेशा संगीत के नायक बने रहेंगे ।

उत्तर

पाठ 'नौबतखाने में इबादत' के लेखक यतींद्र मिश्र ने कहा है कि बिस्मिल्ला खाँ साहब भविष्य में हमेशा संगीत के नायक बने रहेंगे क्योंकि उनके समान संगीत की सच्ची साधना, निःस्वार्थ उपासना करने वाला कोई विरला ही पैदा होगा। अस्सी साल तक वे सुरों की साधना करते रहे, उसके बाद भी वे मालिक से एक अच्छा सुर बख़्शने की फ़रियाद करते रहते। भारत के सर्वोच्च पुरस्कार भारतरत्न से सुसज्जित होने के बाद भी बिना गुरु, बिना धन लिए संगीत को संपूर्णता और एकाधिकार के साथ उन्होंने जिंदा रखा । उनका अनूठा संगीत दिलों की गहराइयों को छूता और सांप्रदायिक सद्भावना को बनाए रखने में सक्षम था। वे सदा एक ऐसे नायक के रूप में भारत की क़ौम में जीवित रहेंगे जो सरलता व सादगी से सफलता के शिखर पर पहुँचे। वे विनम्र और शहनाई के क्षेत्र के बेताज बादशाह थे और सदा रहेंगे ।


प्रश्न 12. 'नौबतखाने में इबादत' पाठ के आधार पर उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ का प्रारंभिक परिचय देते हुए बताइए कि उनमें संगीत के प्रति आसक्ति किनके गायन और संगीत को सुनकर हुई थी ?

उत्तर

उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ के बचपन का नाम अमीरुद्दीन था । उनके मामा सादिक हुसैन तथा अलीबख्श देश के जाने-माने शहनाई वादक थे । बिस्मिल्ला खाँ साहब का जन्म डुमराँव (बिहार) के एक संगीत प्रेमी परिवार में हुआ। 5-6 साल की उम्र से ही वे ननिहाल काशी में आ गए। । इनके पिता पैगंबरबख्श खाँ व माँ मिट्ठन थीं। 14 वर्ष की अवस्था में ही बिस्मिल्ला खाँ बालाजी मंदिर के नौबतखाने में रियाज़ के लिए जाते थे। उनमें संगीत के प्रति आसक्ति उन्हें रसूलनबाई और बतूलनबाई के गाने सुनकर हुई थी । वे जब रियाज़ के लिए बालाजी मंदिर जाते, तो रसूलनबाई और बतूलनबाई के रास्ते से होकर जाते। उनके ठुमरी, ठप्पे, दादरा और गीत सुनकर अमीरुद्दीन को बेहद खुशी मिलती थी ।


प्रश्न 13. बिस्मिल्ला खाँ काशी क्यों नहीं छोड़ना चाहते थे? कोई दो कारण लिखिए ।

उत्तर

  • बिस्मिल्ला खाँ काशी इसलिए नहीं छोड़ना चाहते थे क्योंकि वे गंगा मैया से अपना अटूट संबंध मानते थे और कहते थे कि उनके खानदान की कई पुश्तों ने यहाँ शहनाई बजाई है।
  • जहाँ से अदब हासिल हुआ, जिस ज़मीन ने उन्हें ये हुनर दिया उस जन्नत को छोड़कर जीते जी जाना संभव नहीं है।


प्रश्न 14. बिस्मिल्ला खाँ के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताओं ने आपको प्रभावित किया? आप इनमें से किन विशेषताओं को अपनाना चाहेंगे? कारण सहित किन्हीं दो का उल्लेख कीजिए ।

उत्तर

बिस्मिल्ला खाँ असाधारण प्रतिभा के धनी थे। उनकी सादगी, मेहनत, लगन, शहनाई के प्रति साधना, मातृभूमि से प्रेम, सभी धर्मों के प्रति समान भाव, खुदा के प्रति आस्था, सरलता, अपने संगीतकारों के प्रति आदर, विनम्रता और सांप्रदायिक सौहार्द की भावना ने हमें ही नहीं सभी के दिलों को छू लिया। हम भी उनके असंख्य गुणों में से कुछ को अवश्य ही अपनाना चाहेंगे-

  1. उनकी सांप्रदायिक सौहार्द की भावना, ताकि इसे अपनाकर हम विभिन्न धर्मों में एकता और भाईचारे का विकास कर सकें, जो आज की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है।
  2. हम उनकी सादगी व निराभिमान की भावना को भी अपनाना चाहेंगे। इतने प्रसिद्ध व 'भारत रत्न' की सर्वोच्च उपाधि पाकर भी वे सादगी के साथ रहते थे। हमें भी इसे अपनाकर अपने कार्यों को देश के प्रति समर्पित कर सादगीपूर्ण जीवन-शैली को ही प्राथमिकता देनी चाहिए।


प्रश्न 15. बिस्मिल्ला खाँ जीवन भर ईश्वर से क्या माँगते रहे, और क्यों? इससे उनकी किस विशेषता का पता चलता है?

उत्तर

बिस्मिल्ला खाँ जीवन भर ईश्वर से यही माँगते रहे कि खुदा उन्हें एक अच्छा सुर बख़्श दे। ऐसा सुर जिसमें इतना असर हो कि आँखों से सच्चे मोती जैसे आँसू निकल आएँ । ऐसा वे इसलिए माँगते क्योंकि उन्होंने अपनी कला को कभी पूर्ण नहीं माना । निरंतर बेहतर होने की साधना में लगे रहे। इससे उनकी इस विशेषता का पता चलता है कि वे खुदा में बहुत आस्था व यकीन रखते थे और विनम्रता के साथ सुरों की साधना करते थे । वे कला को ईश्वर की देन मानते थे । वे अपने सुरों से बालाजी, विश्वनाथ व हज़रत इमाम हुसैन तीनों की ही सेवा समान रूप से करते थे ।


प्रश्न 16. 'शहनाई और काशी से बढ़कर कोई जन्नत नहीं इस धरती पर ' - बिस्मिल्ला खाँ के इस कथन के आधार पर उनके शहनाई वादन और काशी- प्रेम से संबंधित कुछ घटनाओं का उल्लेख कीजिए ।

उत्तर

बिस्मिल्ला खाँ साहब के इस कथन से उनके शहनाई और काशी से प्रेम के प्रति पता चलता है। वे अपनी शहनाई के लिए खुदा से रोज़ सच्चे सुर माँगते थे । वे बालाजी मंदिर की तरफ़ मुँह करके अपनी समस्त श्रद्धा से शहनाई वादन किया करते थे। वे अपने 'भारतरत्न' की उपाधि को शहनाई की देन मानते थे । इसी प्रकार काशी को भी वे जन्नत मानते थे क्योंकि वहाँ गंगा मैया थीं, वे कहते थे कि जीते जी न तो शहनाई छूटेगी और न ही काशी ।


प्रश्न 17. 'नौबतखाने में इबादत' पाठ के आधार पर बताइए कि बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगलध्वनि का नायक क्यों कहा गया है।

उत्तर

बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगल ध्वनि का नायक इसलिए कहा गया है क्योंकि शहनाई एक ऐसा वाद्य माना जाता है। जिसका प्रयोग मांगलिक विधि-विधानों में किया जाता है। दक्षिण भारत के मंगल वाद्य 'नागस्वरम्' की तरह शहनाई भी प्रभाती की मंगल ध्वनि का परिचायक है। बिस्मिल्ला खाँ शहनाई के माध्यम से मंगल ध्वनि बजाते थे और इस क्षेत्र में वे सर्वश्रेष्ठ स्थान रखते थे। उन्होंने अनेक मंगल और शुभ अवसरों जैसे 15 अगस्त, 1947 तथा गणतंत्र दिवस 26 जनवरी, 1950 को शहनाई की मंगल ध्वनि की थी, अतः वे मंगल ध्वनि के नायक माने जाते हैं ।


प्रश्न 18. 'नौबतखाने में इबादत' पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि बिस्मिल्ला खाँ वास्तव में एक सच्चे इंसान थे ।

उत्तर

बिस्मिल्ला खाँ सही अर्थों में एक सच्चे इंसान थे क्योंकि वे सांप्रदायिक सौहार्द की भावना से प्रेरित थे । वे हिंदू-मुस्लिम दोनों क़ौमों में एकता बनाए रखने के जीवंत उदाहरण थे । वे संगीत के सर्वोच्च शिखर पर पहुँचने के बाद भी सादगी व सरलता से रहते थे । वे एक आस्थावान व्यक्ति थे। भारतरत्न से सम्मानित होकर भी उन्हें घमंड छू तक नहीं गया था। धन के प्रति उनके मन में कोई लोभ नहीं था । विनम्रता के कारण उन्होंने अपने सुरों को कभी पूर्ण नहीं माना और मालिक से एक अच्छे सुर बख़्शने की दुआएँ माँगते रहे ।


प्रश्न 19. शहनाई के संदर्भ में डुमराँव को क्यों याद किया जाता है?

उत्तर

शहनाई की दुनिया में 'डुमराँव' को हमेशा याद किया जाता है, क्योंकि डुमराँव गाँव की सोन नदी के किनारों पर पाई जाने वाली नरकट घास से शहनाई की रीड बनती है। इसी कारण शहनाई जैसा वाद्ययंत्र बजता है। इतना ही नहीं प्रसिद्ध शहनाई वादक बिस्मिल्ला खाँ की जन्मस्थली भी डुमराँव गाँव ही है और बिस्मिल्ला खाँ के परदादा उस्ताद सलार हुसैन खाँ डुमराँव के ही निवासी थे । इन्हीं कारणों से शहनाई की दुनिया में डुमराँव को याद किया जाता है ।


प्रश्न 20. बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगलध्वनि का नायक क्यों कहा गया है? 'नौबतखाने में इबादत' पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए ।

उत्तर

बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगल ध्वनि का नायक इसलिए कहा गया है क्योंकि शहनाई एक ऐसा वाद्य माना जाता है। जिसका प्रयोग मांगलिक विधि-विधानों में किया जाता है। दक्षिण भारत के मंगल वाद्य 'नागस्वरम्' की तरह शहनाई भी प्रभाती की मंगल ध्वनि का परिचायक है। बिस्मिल्ला खाँ शहनाई के माध्यम से मंगल ध्वनि बजाते थे और इस क्षेत्र में वे सर्वश्रेष्ठ स्थान रखते थे। उन्होंने अनेक मंगल और शुभ अवसरों जैसे 15 अगस्त, 1947 तथा गणतंत्र दिवस 26 जनवरी, 1950 को शहनाई की मंगल ध्वनि की थी, अतः वे मंगल ध्वनि के नायक माने जाते हैं ।


प्रश्न 21. आप यह कैसे कह सकते हैं कि बिस्मिल्ला खाँ मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक थे? पाठ के आधार पर लिखिए ।

उत्तर

बिस्मिल्ला खाँ मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक थे क्योंकि उनके मन में किसी भी धर्म-संप्रदाय के प्रति द्वेष नहीं था। वे बनारस में बालाजी के मंदिर में शहनाई बजाते थे; तो मुस्लिम पर्व मुहर्रम भी पूरी शिद्दत से मनाते और शोक के दस दिनों तक शहनाई न बजाते। उन्हें काशी, बालाजी मंदिर तथा गंगा के प्रति असीम लगाव था। वे संकटमोचन मंदिर में होने वाले आयोजनों में अवश्य सम्मिलित होते थे। वे तो संगीत के उपासक थे। उनका संगीत सभी धर्मों को जोड़ने का काम करता था। सभी उनकी कला के प्रशंसक। उनका संगीत सबका और वे सबके थे ।


प्रश्न 22. बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगलध्वनि का नायक क्यों कहा जाता है?

उत्तर

बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगल ध्वनि का नायक इसलिए कहा गया है क्योंकि शहनाई एक ऐसा वाद्य माना जाता है। जिसका प्रयोग मांगलिक विधि-विधानों में किया जाता है। दक्षिण भारत के मंगल वाद्य 'नागस्वरम्' की तरह शहनाई भी प्रभाती की मंगल ध्वनि का परिचायक है। बिस्मिल्ला खाँ शहनाई के माध्यम से मंगल ध्वनि बजाते थे और इस क्षेत्र में वे सर्वश्रेष्ठ स्थान रखते थे। उन्होंने अनेक मंगल और शुभ अवसरों जैसे 15 अगस्त, 1947 तथा गणतंत्र दिवस 26 जनवरी, 1950 को शहनाई की मंगल ध्वनि की थी, अतः वे मंगल ध्वनि के नायक माने जाते हैं।


प्रश्न 23. शहनाई की दुनिया में 'डुमराँव' को क्यों याद किया जाता है? पाठ के आधार पर लिखिए ।

उत्तर

शहनाई की दुनिया में 'डुमराँव' को हमेशा याद किया जाता है, क्योंकि डुमराँव गाँव की सोन नदी के किनारों पर पाई जाने वाली नरकट घास से शहनाई की रीड बनती है। इसी कारण शहनाई जैसा वाद्ययंत्र बजता है। इतना ही नहीं प्रसिद्ध शहनाई वादक बिस्मिल्ला खाँ की जन्मस्थली भी डुमराँव गाँव ही है और बिस्मिल्ला खाँ के परदादा उस्ताद सलार हुसैन खाँ डुमराँव के ही निवासी थे। इन्हीं कारणों से शहनाई की दुनिया में डुमराँव को याद किया जाता है।


प्रश्न 24. मुहर्रम से बिस्मिल्ला खाँ के जुड़ाव को अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर

मुहर्रम से बिस्मिल्ला खाँ का गहरा संबंध था। मुहर्रम के महीने में बिस्मिल्ला खाँ और उनका पूरा खानदान शिया मुसलमान हज़रत इमाम हुसैन एवं उनके वंशजों के प्रति शोक प्रकट करता। शोक दस दिन तक चलता था। उनके खानदान में कोई भी व्यक्ति मुहर्रम के दिनों में न तो शहनाई बजाता था और न ही संगीत के किसी कार्यक्रम में शामिल होता था। मुहर्रम की आठवीं तारीख़ उनके लिए विशेष महत्त्व रखती थी। इस दिन खाँ साहब खड़े होकर शहनाई बजाते थे । वे करीब आठ किलोमीटर पैदल रोते हुए नौहा बजाते चलते थे। इस दिन कोई राग नहीं बजाया जाता था ।


प्रश्न 25. 'नौबतखाने में इबादत' शीर्षक का आशय स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर

'नौबतखाने' का अर्थ है - प्रवेश द्वार के ऊपर मंगल ध्वनि बजाने का स्थान और इबादत का अर्थ है- उपासना । काशी में पंचगंगा घाट स्थित बाला जी के मंदिर की ड्योढ़ी थी । ड्योढ़ी के नौबतखाने में बिस्मिल्ला खाँ बचपन से शहनाई बजाया करते थे। उनके हर दिन की शुरुआत इस ड्योढ़ी से हुआ करती थी। उनके अब्बाजान भी यहीं डयोढ़ी पर शहनाई बजाते थे । नौबतखाने में इबादत उनके जीवन का महत्त्वपूर्ण अंग था । शहनाई का रियाज़ और सच्चे सुर की पकड़ का अभ्यास यहीं से हुआ था। उनकी यह इबादत केवल शहनाई बजाने तक सीमित नहीं थी, अपितु उनकी धार्मिक उदारता को भी प्रकट करती थी। पाँचों वक़्त की नमाज़ पढ़ने वाले बिस्मिल्ला खाँ की बालाजी, विश्वनाथ एवं संकटमोचन पर गहरी आस्था थी । इस प्रकार 'नौबतखाने से इबादत' शीर्षक बिस्मिल्ला की शहनाई वादन कला और उनकी गहरी आस्था को प्रकट करता है ।

Previous Post Next Post