Extra Questions for Class 10 क्षितिज Chapter 14 एक कहानी यह भी - मन्नू भंडारी Hindi

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Extra Questions for Class 10 क्षितिज Chapter 14 एक कहानी यह भी - मन्नू भंडारी Hindi

Chapter 14 एक कहानी यह भी Kshitij Extra Questions for Class 10 Hindi

गद्यांश आधारित प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. निम्नलिखित गद्यांश को ध्यान से पढ़िए और पूछे गये प्रश्नों के सही उत्तर वाले विकल्प चुनकर लिखिए-

हमने भाइयों के साथ गिल्ली-डंडा भी खेला और पतंग उड़ाने, काँच पीसकर माँजा सूतने का काम भी किया, लेकिन उनकी गतिविधियों का दायरा घर के बाहर ही अधिक रहता था और हमारी सीमा थी घर । हाँ, इतना ज़रूर था कि उस ज़माने में घर की दीवारें घर तक ही समाप्त नहीं हो जाती थीं, बल्कि पूरे मोहल्ले तक फैली रहती थीं। इसलिए मोहल्ले के किसी भी घर में जाने पर कोई पाबंदी नहीं थी बल्कि कुछ घर तो परिवार का हिस्सा ही थे। आज तो मुझे बड़ी शिद्दत के साथ यह महसूस होता है कि अपनी जिंदगी खुद जीने के इस आधुनिक दबाव ने महानगरों के फ्लैट में रहने वालों को हमारे इस परंपरागत 'पड़ोस कल्चर' से विच्छिन्न करके हमें कितना संकुचित, असहाय और असुरक्षित बना दिया है।

(क) लेखिका के भाइयों की गतिविधियों का दायरा घर के बाहर था, क्योंकि-

(i) उनकी गतिविधियाँ घर में संपन्न नहीं हो सकती थीं ।
(ii) पतंग और गिल्ली-डंडा का खेल घर से बाहर का था ।
(iii) घर से बाहर उनकी गतिविधियों पर कोई नियंत्रण नहीं था ।
(iv) पारिवारिक परंपरा के अनुसार पुरुष को बाहर जाने की स्वतंत्रता थी ।

(ख) लेखिका की सीमा घर ही क्यों थी ?

(i) लड़कियाँ डरपोक स्वभाव के कारण घर की सीमा में ही रहती थीं।
(ii) घर से बाहर का वातावरण उनके लिए असुरक्षित था ।
(iii) समाज में लड़कियों का बाहर जाना ठीक नहीं माना जाता था ।
(iv) पारिवारिक परंपरा के अनुसार यही नियम था ।

(ग) 'उस ज़माने में घर की दीवारें घर तक ही समाप्त नहीं हो जाती थीं बल्कि पूरे मोहल्ले में फैली रहती थीं' वाक्य का आशय है-

(i) घर और पड़ोसी के बीच में कोई विभाजक दीवार नहीं थी ।
(ii) पूरा मोहल्ला एक-दूसरे के सुख-दुख का हिस्सेदार था ।
(iii) आपसी प्रेमभाव के कारण पूरे मोहल्ले में पारिवारिक संबंध थे ।
(iv) परंपरागत 'पड़ोस कल्चर' पड़ोसी को भी परिवार का सदस्य मानती थी ।

(घ) परंपरागत 'पड़ोस कल्चर' से विच्छिन्न होने का परिणाम है-

(i) हम फ़्लैटों में रहने लगे हैं।
(ii) पारस्परिक प्रेमभाव क्षीण हो गया है।
(iii) सामाजिकता घट गई है।
(iv) हम असहाय, असुरक्षित और संकुचित हो गए हैं।

(ङ) 'हमने गिल्ली-डंडा भी खेला और पतंग उड़ाने का काम भी किया' । वाक्य का प्रकार है-

(i) सरल वाक्य
(ii) मिश्र वाक्य
(iii) संयुक्त वाक्य
(iv) दीर्घ वाक्य

उत्तर

(क) (iv) पारिवारिक परंपरा के अनुसार पुरुष को बाहर जाने की स्वतंत्रता थी ।

(ख) (iv) पारिवारिक परंपरा के अनुसार यही नियम था ।

(ग) (iii) आपसी प्रेमभाव के कारण पूरे मोहल्ले में पारिवारिक संबंध थे

(घ) (i) हम फ़्लैटों में रहने लगे हैं।

(ङ) (iii) संयुक्त वाक्य


प्रश्न 2. निम्नलिखित गद्यांश पर आधारित प्रश्नों के सही उत्तर वाले विकल्प चुनिए-

पिता के ठीक विपरीत थीं हमारी बेपढ़ी लिखी माँ । धरती से कुछ ज़्यादा ही धैर्य और सहनशक्ति थी शायद उनमें। पिताजी की हर ज़्यादती को अपना प्राप्य और बच्चों की हर उचित-अनुचित फ़रमाइश और ज़िद को अपना फ़र्ज़ समझकर बड़े सहज भाव से स्वीकार करती थीं वे। उन्होंने जिंदगी-भर अपने लिए कुछ माँगा नहीं, चाहा नहीं- केवल दिया ही दिया। हम भाई-बहनों का सारा लगाव (शायद सहानुभूति से उपजा) माँ के साथ था लेकिन निहायत असहाय मजबूरी में लिपटा उनका यह त्याग कभी मेरा आदर्श नहीं बन सका... न उनका त्याग, न उनकी सहिष्णुता।

(क) कौन-सी विशेषता माँ की नहीं है?

(i) बेपढ़ा-लिखा होना
(iii) आवेश और क्रोध
(ii) सबकी सेवा करना
(iv) धैर्य और सहनशीलता

(ख) कैसे कहा जा सकता है कि लेखिका की माँ में धरती से अधिक सहनशक्ति थी ?

(i) पिता की ज्यादतियाँ और बच्चों की फ़रमाइशें मानती थीं।
(ii) उन्होंने पारिवारिक दायित्वों को निभाया था ।
(iii) अपने शांत स्वभाव के कारण सहनशील थीं।
(iv) धनाभाव की कठिनाइयों ने उन्हें सहनशील बना दिया था ।

(ग) माँ ने किसे क्या नहीं दिया?

(i) संसार को लगाव
(iii) परिवार को प्यार
(ii) अपनों को सहानुभूति
(iv) अपने आपको सुख-सुविधा

(घ) लेखिका के लिए उनकी माँ की त्याग भावना आदर्श क्यों नहीं बन सकी ?

(i) पिता के व्यवहार के कारण
(ii) विवशता में किए जाने के कारण
(iii) ईर्ष्या के कारण
(iv) अतीत में घटी घटनाओं की प्रतिक्रिया के कारण

(ङ) 'हम भाई-बहिनों का सारा लगाव माँ के साथ था लेकिन निहायत असहाय मजबूरी में लिपटा उनका यह त्याग मेरा आदर्श न बन सका'- यह किस प्रकार का वाक्य है?

(i) मिश्र
(ii) संयुक्त
(iii) साधारण
(iv) सरल

उत्तर

(क) (iii) आवेश और क्रोध

(ख) (i) पिता की ज्यादतियाँ और बच्चों की फ़रमाइशें मानती थीं।

(ग) (iv) अपने आपको सुख-सुविधा

(घ) (iv) विवशता में किए जाने के कारण

(ङ) (ii) संयुक्त


प्रश्न 3. निम्नलिखित गद्यांश पर आधारित प्रश्नों के सही उत्तर वाले विकल्प चुनिए-

यों खेलने को हमने भाइयों के साथ गिल्ली-डंडा भी खेला और पतंग उड़ाने, काँच पीसकर माँजा सूतने का काम भी किया, लेकिन उनकी गतिविधियों का दायरा घर के बाहर ही अधिक रहता था और हमारी सीमा थी घर । हाँ, इतना ज़रूर था कि उस ज़माने में घर की दीवारें घर तक ही समाप्त नहीं हो जाती थीं, बल्कि पूरे मोहल्ले तक फैली रहती थीं। इसलिए मोहल्ले के किसी भी घर में जाने पर कोई पाबंदी नहीं थी, बल्कि कुछ घर तो परिवार का हिस्सा ही थे। आज तो मुझे बड़ी शिद्दत के साथ यह महसूस होता है कि अपनी ज़िंदगी खुद जीने के इस आधुनिक दबाव ने महानगरों के फ्लैटों में रहने वालों को हमारे इस परंपरागत ‘पड़ोस कल्चर' से विच्छिन्न करके हमें कितना संकुचित, असहाय और असुरक्षित बना दिया है।

(क) लेखिका के भाइयों की गतिविधियों का दायरा घर के बाहर और लेखिका का घर की सीमा के भीतर क्यों था?

(i) लड़कियों और लड़कों में भेदभाव करने के कारण।
(ii) लड़कियों का उच्छृंखल होने की आशंका के कारण ।
(iii) लड़कियों की सुरक्षा लड़कों के द्वारा किए जाने के कारण ।
(iv) लड़कियों को घर में ही सुरक्षित मानने के कारण ।

(ख) 'घर की दीवारें घर तक ही समाप्त नहीं हो जाती थीं...' कथन का आशय है-

(i) आपसी प्रेमभाव एवं भाईचारा होता था।
(ii) मुहल्ला और पड़ोस भी घर जैसा होता था।
(iii) पारिवारिक लोग उदार होते थे।
(iv) सौहार्द की भावना महत्त्वपूर्ण थी।

(ग) 'पड़ोस कल्चर' के न पनपने का कारण है- 

(i) अपनी जिंदगी खुद जीने का आधुनिक दबाव
(ii) फ़्लैटों में रहने की विवशता
(iii) स्वार्थी मनोवृत्ति का प्रभुत्व
(iv) बौद्धिकता की प्रबलता 

(घ) परंपरागत 'पड़ोस कल्चर' के विच्छिन्न होने के दुष्परिणाम हैं-

(i) स्वार्थभाव प्रबल हो गया है।
(ii) हम संकुचित और असहाय हो गए हैं।
(iii) पारस्परिक प्रेमभाव कमज़ोर पड़ रहा है।
(iv) हम फ़्लैटों में रहने लगे हैं।

(ङ) 'उनकी गतिविधियों का दायरा घर के बाहर ही अधिक रहता था और हमारी सीमा थी घर' - किस प्रकार का वाक्य है?

(i) साधारण वाक्य
(ii) मिश्र वाक्य
(iii) संयुक्त वाक्य
(iv) सरल वाक्य

उत्तर

(क) (iv) लड़कियों को घर में ही सुरक्षित मानने के कारण ।

(ख) (ii) मुहल्ला और पड़ोस भी घर जैसा होता था ।

(ग) (ii) फ़्लैटों में रहने की विवशता

(घ) (ii) हम संकुचित और असहाय हो गए हैं।

(ङ) (iii) संयुक्त वाक्य


प्रश्न 4. निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लीखिए-

पिताजी की आज़ादी की सीमा यहीं तक थी कि उनकी उपस्थिति में घर में आए लोगों के बीच उठू बैहूँ, जानूँ-समझँ। हाथ उठा-उठाकर नारे लगाती, हड़तालें करवाती लड़कों के साथ शहर की सड़कें नापती, लड़की को अपनी सारी आधुनिकता के बावजूद बर्दाश्त करना उनके लिए मुश्किल हो रहा था तो किसी की दी हुई आज़ादी के दायरे में चलना मेरे लिए। जब रगों में लहू की जगह लावा बहता तो सारे निषेध, सारी वर्जनाएँ और सारा भय कैसे ध्वस्त हो जाता है, यह तभी जाना और अपने क्रोध से सबको थरथरा देने वाले पिताजी से टक्कर लेने का जो सिलसिला तब शुरू हुआ था, राजेंद्र से शादी की, तब तक वह चलता ही रहा।

(क) लेखिका और उसके पिता के मध्य मनमुटाव का क्या कारण था ?

(ख) लेखिका की रगों में लहू की जगह लावा क्यों बह रहा था ?

(ग) लेखिका के लिए निर्धारित निषेध और वर्जनाएँ क्या थीं? वे किसके कारण ध्वस्त हुई ?

उत्तर

(क) लेखिका और उसके पिता के मध्य मनमुटाव का कारण वैचारिक अंतर था । पिताजी यह तो चाहते थे कि उनकी बेटी घर में आए लोगों के बीच उठे-बैठे, किंतु उन्हें लेखिका का हड़तालें करवाना, लड़कों के साथ आंदोलन कतरे हुए सड़कों पर घूमना बिलकुल पसंद नहीं था, जबकि नारे लगाना, लेखिका अपने पिताजी द्वारा दी गई केवल घर की आज़ादी के दायरे में नहीं चलना चाहती थीं।

(ख) 'रंगों में लावा बहना' मुहावरा है, जिसका अर्थ है - मन में विराध की चाह का उठना। लेखिका भी पिताजी द्वारा दी गई केवल घर की आज़ादी के दायरे में नहीं चलना चाहती थीं। वे निषेधों, वर्जनाओं तथा भय को तोड़कर सामाजिक गतिविधियों एवं आज़ादी के आंदोलनों में खुलकर भाग लेना चाहती थीं। अतः पिताजी की बंदिशों को तोड़ने के लिए लेखिका की रंगों में लावा बह रहा था।

(ग) लेखिका के पिताजी यह नहीं चाहते थे कि लेखिका हड़तालें करवाए, हाथ उठा-उठाकर नारे लगाए और लड़कों के साथ आंदोलन करते हुए सड़कों पर घूमे। इस कारण लेखिका के लिए निर्धारित निषेध और वर्जनाएँ यही थीं कि वह ऐसी गतिविधियों से स्वयं को दूर रखे, किंतु लेखिका आधुनिक विचारों की सशक्त युवती थीं इसलिए उन्होंने पिताजी द्वारा लगाई गई बंदिशों को तोड़ने की ठानी। इस प्रकार उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति व विरोधी स्वभाव के कारण ये बंदिशें ध्वस्त हुईं।


प्रश्न 5. निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लीखिए-

गिरती आर्थिक स्थिति ने ही उनके व्यक्तित्व के सारे सकारात्मक पहलुओं को निचोड़ना शुरू कर दिया। सिकुड़ती आर्थिक स्थिति के कारण और अधिक विस्फारित उनका अहं उन्हें इस बात तक की अनुमति नहीं देता था कि वे कम-से-कम अपने बच्चों को तो अपनी आर्थिक विवशताओं का भागीदार बनाएँ । नवाबी आदतें, अधूरी महत्त्वाकांक्षाएँ, हमेशा शीर्ष पर रहने के बाद हाशिए पर सरकते चले जाने की यातना क्रोध बनकर हमेशा माँ को कँपाती, थरथराती रहती थी । 'अपनों' के हाथों विश्वासघात की जाने की कैसी गहरी चोटें होंगी। वे जिन्होंने आँख मूँदकर सबका विश्वास करने वाले पिता को बाद के दिनों में इतना शक्की बना दिया था कि जब-तब हम लोग भी उसकी चपेट में आते ही रहते।

(क) 'व्यक्तित्व के सकारात्मक पहलुओं' से लेखिका का क्या आशय है?

(ख) सिकुड़ती आर्थिक स्थिति ने लेखिका के पिताजी को किस रूप में प्रभावित किया?

(ग) लेखिका के पिता क्रोधी और शक्की स्वभाव के क्यों हो गए थे?

उत्तर

(क) 'व्यक्तित्व के सकारात्मक पहलुओं' से लेखिका का आशय अच्छी और उन्नत सोच, स्वस्थ एवं व्यापक विचार, प्रसन्नता, विश्वास तथा आत्मविश्वास आदि गुणों से है।

(ख) सिकुड़ती आर्थिक स्थिति ने लेखिका के पिताजी की विचारधारा और व्यक्तित्व दोनों ही बदल दिए। आशा निराशा बन गई, हर्ष के स्थान पर विषाद रहने लगा तथा विश्वास का स्थान अविश्वास ने ले लिया तथा अधूरी महत्त्वाकांक्षाओं और शीर्ष से हाशिए पर आ जाना, उन्हें मानसिक रूप से भी प्रताड़ित करने लगा।

(ग) लेखिका के पिता क्रोधी और शक्की स्वभाव के इसलिए हो गए क्योंकि 'अपनों' ने उन्हें विश्वासघात की चोट दी थी। पहले वे आँख मूँदकर विश्वास करते थे, बाद में वे शक्की बन गए थे तथा आर्थिक स्थिति के चरमरा जाने से वे क्रोधी भी हो गए थे।


प्रश्न 6. निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए-

आए दिन विभिन्न राजनैतिक पार्टियों के जमावड़े होते थे और जमकर बहसें होती थीं। बहस करना पिता जी का प्रिय शगल था । चाय-पानी या नाश्ता देने जाती तो पिता जी मुझे भी वहीं बैठने को कहते। वे चाहते थे कि मैं भी वहीं बैहूँ, सुनूँ और जानूँ कि देश में चारों ओर क्या कुछ हो रहा है। देश में हो भी तो कितना कुछ रहा था । सन् 42 के आंदोलन के बाद से तो सारा देश जैसे खौल रहा था, लेकिन विभिन्न राजनैतिक पार्टियों की नीतियाँ, उनके आपसी विरोध या मतभेदों की तो मुझे दूर-दूर तक कोई समझ नहीं थी । हाँ, क्रांतिकारियों और देशभक्त शहीदों के रोमानी आकर्षण, उनकी कुर्बानियों से ज़रूर मन आक्रांत रहता था ।

(क) लेखिका के पिता लेखिका को घर में होने वाली बहसों में बैठने को क्यों कहते थे?

(ख) घर के ऐसे वातावरण का लेखिका पर क्या प्रभाव पड़ा ?

(ग) देश में उस समय क्या कुछ हो रहा था ?

उत्तर

(क) लेखिका के पिता लेखिका को घर में होने वाली बहसों में बैठने के लिए इसलिए कहते थे, ताकि वह भी देश में घटित होने वाली घटनाओं और देश के आंदोलनों के विषय में जान सके।

(ख) घर में होने वाली राजनैतिक पार्टियों, क्रांतिकारियों व देशभक्तों के आने-जाने से उनके देशप्रेम व उनकी कुर्बानियों के प्रति लेखिका के संवेदनशील मन पर उसका व्यापक असर पड़ा और वह भी देश में होने वाली घटनाओं से जुड़ने लगीं ।

(ग) देश में उस समय आज़ादी पाने के लिए संघर्ष चरमोत्कर्ष पर था । सन् 42 के आंदोलन के बाद से सारा देश आक्रोश से भरा था।


प्रश्न 7. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सही उत्तर वाले विकल्प चुनकर लिखिए-

पर यह पितृ-गाथा मैं इसलिए नहीं गा रही कि मुझे उनका गौरव गान करना है, बल्कि मैं तो यह देखना चाहती हूँ कि उनके व्यक्तित्व की कौन-सी खूबी और खामियाँ मेरे व्यक्तित्व के ताने-बाने में गुँथी हुई हैं या कि अनजाने-अनचाहे किए उनके व्यवहार ने मेरे भीतर किन ग्रंथियों को जन्म दे दिया। मैं काली हूँ। बचपन में दुबली और मरियल भी थी। गोरा रंग पिताजी की कमज़ोरी थी सो बचपन में मुझसे दो साल बड़ी खूब गोरी, स्वस्थ और हँसमुख बहिन सुशीला से हर बात में तुलना और फिर उसकी प्रशंसा ने ही, क्या मेरे भीतर ऐसे गहरे हीन भाव की ग्रंथि पैदा नहीं कर दी कि नाम, सम्मान और प्रतिष्ठा पाने के बावजूद आज तक मैं उससे उबर नहीं पाई ? आज भी परिचय करवाते समय जब कोई कुछ विशेषता लगाकर मेरी लेखकीय उपलब्धियों का ज़िक्र करने लगता है तो मैं संकोच से सिमट ही नहीं जाती बल्कि गड़ने - गड़ने को हो आती हूँ।

(क) लेखिका द्वारा अपने पिता के व्यक्तित्व के विषय में लिखने का उद्देश्य है-

(i) उनका गौरव गान।
(ii) उनके गुण-दोषों की चर्चा।
(iii) अपने व्यक्तित्व की संरचना में उनका प्रभाव।
(iv) उनके व्यक्तित्व के विभिन्न रूपों का बखान।

(ख) लेखिका की हीन भावना का कारण था-

(i) पिताजी का अनजाना- अनचाहा व्यवहार।
(ii) पिताजी का क्रोधी तथा शक्की स्वभाव ।
(iii) लेखिका का रूप-रंग तथा बहिन से तुलना।
(iv) गोरी, स्वस्थ और हँसमुख बहिन ।

(ग) लेखिका के मन में उपजी हीन भावना का क्या परिणाम हुआ?

(i) साहित्यिक चिंतन बाधित हुआ।
(ii) स्वास्थ्य और गतिविधियाँ प्रभावित हुई।
(iii) उपलब्धि और प्रतिष्ठा के बाद भी आत्मविश्वास न रहा।
(iv) पिता के प्रति व्यवहार सराहनीय न रहा ।

(घ) लेखकीय उपलब्धियों के प्रशंसा के क्षणों में भी लेखिका के अतिशय संकोच का कारण है-

(i) उपलब्धियों की कमी।
(ii) रचनाओं की सदोषता।
(iii) हीन भावना का प्रभाव।
(iv) विनम्र और संकोची स्वभाव।

(ङ) 'उपलब्धि' का समानार्थक शब्द है-

(i) उपेक्षा
(ii) अपेक्षा
(iii) समाप्ति
(iv) प्राप्ति

उत्तर

(क) (iii) अपने व्यक्तित्व की संरचना में उनका प्रभाव ।

(ख) (iii) लेखिका का रूप-रंग तथा बहिन से तुलना ।

(ग) (iii) उपलब्धि और प्रतिष्ठा के बाद भी आत्मविश्वास न रहा ।

(घ) (iii) हीन भावना का प्रभाव ।

(ङ) (iv) प्राप्ति।


प्रश्न 8. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सही उत्तर वाले विकल्प चुनकर लिखिए-

शायद गिरती आर्थिक स्थिति ने ही उनके व्यक्तित्व के सारे सकारात्मक पहलुओं को निचोड़ना शुरू कर दिया। सिकुड़ती आर्थिक स्थिति के कारण और अधिक विस्फारित उनका अहं उन्हें इस बात तक की अनुमति नहीं देता था कि वे कम-से-कम अपने बच्चों को तो अपनी आर्थिक विवशताओं का भागीदार बनाएँ। नवाबी आदतें, अधूरी महत्त्वाकांक्षाएँ, हमेशा शीर्ष पर रहने के बाद हाशिए पर सरकते चले जाने की यातना क्रोध बनकर हमेशा माँ को कँपाती - थरथराती रहती थीं। अपनों के हाथों विश्वासघात की जाने कैसी गहरी चोटें होंगी वे जिन्होंने आँख मूँदकर सबका विश्वास करने वाले पिता को बाद के दिनों में इतना शक्की बना दिया था कि जब-तब हम लोग भी उसकी चपेट में आते रहते।

(क) पिता के व्यक्तित्व में सकारात्मक पहलू न रहने के पीछे कारण थे-

(i) निरंतर पुस्तक - पुस्तिकाओं का अध्ययन
(ii) समाज-सुधार के कार्यों में रुचि
(iii) आर्थिक स्थिति और अहंकार
(iv) नवाबी आदतें और पत्नी के प्रति क्रोध

(ख) 'विस्फारित अहं' का अभिप्राय है-

(i) बनावटी स्वाभिमान
(ii) बढ़ा हुआ गुरूर
(iii) मिथ्याभिमान
(iv) मदांधता

(ग) लेखिका की माँ के प्रति उसके पिता के क्रोध का कारण था-

(i) बेहद क्रोधी और अहंवादी स्वभाव
(ii) अधूरी इच्छाएँ तथा प्रतिष्ठा गिरने का भय
(iii) पतनशील आर्थिक स्थिति से
(iv) पत्नी और संतान के बेमेल विचार

(घ) लेखिका के पिता का स्वभाव से शक्की बनने का कारण था ।

(i) उनकी आर्थिक दशा
(ii) सकारात्मक दृष्टि न होना
(iii) अपनों की कृतघ्नता
(iv) अधूरी महत्त्वाकांक्षाएँ

(ङ) 'यातना' का समानार्थक नहीं है-

(i) वेदना
(ii) संवेदना
(iii) व्यथा
(iv) पीड़ा

उत्तर

(क) (iii) आर्थिक स्थिति और अहंकार

(ग) (ii) अधूरी इच्छाएँ तथा प्रतिष्ठा गिरने का भय

(ख) (iii) मिथ्याभिमान

(घ) (iii) अपनों की कृतघ्नता

(ङ) (ii) संवेदना


प्रश्न 9. निम्नांकित गद्यांश पर आधारित प्रश्नों के लिए सही उत्तर वाले विकल्प चुनकर लिखिए-

उस समय तक हमारे परिवार में लड़की के विवाह के लिए अनिवार्य योग्यता थी- उम्र में सोलह वर्ष और शिक्षा में मैट्रिक । सन् 44 में सुशीला ने यह योग्यता प्राप्त की और शादी करके कोलकाता चली गई। दोनों बड़े भाई भी आगे पढ़ाई के लिए बाहर चले गए। इन लोगों की छत्र-छाया के हटते ही पहली बार मुझे नए सिरे से अपने वजूद का एहसास हुआ। पिताजी का ध्यान भी पहली बार मुझ पर केंद्रित हुआ। लड़कियों को जिस उम्र में स्कूली शिक्षा के साथ-साथ सुघड़ गृहिणी और कुशल पाक-शास्त्री बनने के नुस्खे जुटाए जाते थे, पिताजी का आग्रह रहता था कि मैं रसोई से दूर ही रहूँ । रसोई को वे भटियारखाना कहते थे और उनके हिसाब से वहाँ रहना अपनी क्षमता और प्रतिभा को भट्टी में झोंकना था।

(क) लड़की की वैवाहिक योग्यता से सिद्ध होती है, उस परिवार की- 

(i) स्वतंत्र विचारधारा
(ii) परंपरावादी मान्यता
(iii) पाश्चात्य विचारधारा
(iv) अत्याधुनिक सोच

(ख) बड़े बहन-भाई के परिवार से जाने के बाद-

(i) परिवार में लेखिका का महत्त्व बढ़ गया।
(ii) माता-पिता से अधिक प्यार मिलने लगा।
(iii) लेखिका को अपने अस्तित्व का बोध हुआ।
(iv) लेखिका को पाक - शास्त्र पढ़ाया जाने लगा।

(ग) लेखिका के पाक-शास्त्री बनने के विषय में पिताजी का मानना था-

(i) पाक-क्रिया की कुशलता से लड़की सुघड़ गृहिणी बनती है।
(ii) विवाह के उपरांत ससुराल में उसकी सराहना होती है।
(iii) उसका गृहस्थ जीवन सदा सुखी और स्वस्थ रहता है।
(iv) रसोई के काम से लड़की की योग्यता और प्रतिभा कुंद हो जाती है।

(घ) 'पिताजी का आग्रह था कि मैं रसोई से दूर ही रहूँ' - वाक्य का प्रकार है ।

(i) सरल
(ii) संयुक्त
(iii) मिश्र
(iv) साधारण

(ङ) 'इन लोगों की छत्र-छाया हटते ही' कथन में 'इन लोगों' से तात्पर्य है-

(i) क्षमता और प्रतिभा
(ii) भाई-बहिन
(iii) माता-पिता
(iv) सखी-सहेली

उत्तर

(क) (ii) परंपरावादी मान्यता

(ख) (iii) लेखिका को अपने अस्तित्व का बोध हुआ ।

(ग) (iv) रसोई के काम से लड़की की योग्यता और प्रतिभा कुंद हो जाती है ।

(घ) (iii) मिश्र वाक्य

(ङ) (ii) भाई-बहिन


प्रश्न 10. निम्नांकित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सही उत्तर वाले विकल्प चुनकर लिखिए-

जन्मी तो मध्य प्रदेश के भानपुरा गाँव में थी, लेकिन मेरी यादों का सिलसिला शुरू होता है अजमेर के ब्रह्मपुरी मोहल्ले के उस दो मंजिला मकान से, जिसकी ऊपरी मंज़िल में पिताजी का साम्राज्य था, जहाँ वे निहायत अव्यवस्थित ढंग से फैली -बिखरी पुस्तकों-पत्रिकाओं और अख़बारों के बीच या तो कुछ पढ़ते रहते थे या फिर ? 'डिक्टेशन' देते रहते थे। नीचे हम सब भाई-बहिनों के साथ रहती थीं। हमारी बेपढ़ी-लिखी माँ... सवेरे से शाम तक हम सबकी इच्छाओं और पिता जी की आज्ञाओं का पालन करने व्यक्तित्वविहीन के लिए सदैव तत्पर ।

(क) यादों का सिलसिला का अभिप्राय है- 

(i) यादों का इतिहास
(ii) स्मृतियों की शृंखला
(iii) याद करने योग्य बातें
(iv) सिलसिलेवार घटनाएँ

(ख) पिताजी के साम्राज्य का फैलाव था-

(i) दो मंज़िले मकान तक
(ii) अपने कर्मचारियों तक
(iii) ऊपरी मंज़िल में स्थित उनके अध्ययन कक्ष तक
(iv) मित्रों और परिचितों तक

(ग) माँ के विषय में कौन-सा कथन असत्य है ?

(i) बहुत कृपण और गुस्सैल थीं।
(ii) अशिक्षित एवं व्यक्तित्वविहीन थीं ।
(iii) संतान से प्यार करती थीं ।
(iv) पति की आज्ञाकारी थीं।

(घ) 'डिक्टेशन' देने का अर्थ है-
(i) निर्देश देना
(ii) रौब जमाना
(iii) बोलकर लिखाना
(iv) तानाशाही चलाना

(ङ) 'तत्पर' का समानार्थक है-

(i) तटस्थ
(ii) उद्यत
(iii) तमस
(iv) तरीक़ा

उत्तर

(क) (ii) स्मृतियों की शृंखला

(ख) (iii) ऊपरी मंज़िल में स्थित उनके अध्ययन कक्ष तक

(ग) (i) बहुत कृपण और गुस्सैल थीं।

(घ) (iii) बोलकर लिखाना

(ङ) (ii) उद्यत


प्रश्न 11. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सही उत्तरों वाले विकल्प छाँटिए-

गिरती आर्थिक स्थिति ने ही उनके व्यक्तित्व के सारे सकारात्मक पहलुओं को निचोड़ना शुरू कर दिया। सिकुड़ती आर्थिक स्थिति के कारण और अधिक विस्फारित उनका अहं उन्हें इस बात तक की अनुमति नहीं देता था कि वे कम-से-कम अपने बच्चों को तो अपनी आर्थिक विवशताओं का भागीदार बनाएँ। नवाबी आदतें, अधूरी महत्त्वाकांक्षाएँ, हमेशा शीर्ष पर रहने के बाद हाशिए पर सरकते चले जाने की यातना क्रोध बनकर हमेशा माँ को कँपाती - थरथराती रहती थीं। अपनों के हाथों विश्वासघात की जाने कैसी गहरी चोटें होंगी वे जिन्होंने आँख मूँदकर सबका विश्वास करने वाले पिता को बाद के दिनों में इतना शक्की बना दिया था कि जब-तब हम लोग भी उसकी चपेट में आते ही रहते।

(क) लेखिका के पिताजी के व्यक्तित्व को कुछ अंशों में नकारात्मक बनाया था-

(i) उनके क्रोध ने
(ii) माताजी के व्यवहार ने
(iii) बच्चों की ज़रूरतों ने
(iv) आर्थिक हालात ने

(ख) पिताजी बच्चों से किस विषय में बातें नहीं करते थे?

(i) बच्चों की पढ़ाई-लिखाई के बारे में
(ii) घर की गरीबी के बारे में
(iii) माताजी की कार्यशैली के बारे में
(iv) घर में आने वाले लोगों के बारे में

(ग) पिताजी को शक्की बना दिया था-

(i) नवाबी आदतों ने
(ii) अधूरी महत्त्वाकांक्षाओं ने
(iii) अपनों ही से प्राप्त विश्वासघात ने 
(iv) पिछड़ते जाने के दर्द ने

(घ) प्रस्तुत अनुच्छेद में वर्णन है-

(i) घर में पैर फैलाती अव्यवस्था का
(ii) टूटती - गिरती आर्थिक स्थिति का
(iii) पिताजी की शक्की मनोदशा का
(iv) पिताजी के व्यक्तित्व के सकारात्मक पहलुओं का

(ङ) 'विश्वासघात' में समास है-

(i) तत्पुरुष
(ii) कर्मधारय
(iii) द्वंद्व
(iv) द्विगु

उत्तर

(क) (iv) आर्थिक हालात ने

(ख) (ii) घर की ग़रीबी के बारे में

(ग) (iii) अपनों ही से प्राप्त विश्वासघात ने

(घ) (ii) टूटती - गिरती आर्थिक स्थिति का

(ङ) (i) तत्पुरुष समास


प्रश्न 12. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

इसने उन्हें यश और प्रतिष्ठा तो बहुत दी, पर अर्थ नहीं और शायद गिरती आर्थिक स्थिति ने ही उनके व्यक्तित्व के सारे सकारात्मक पहलुओं को निचोड़ना शुरू कर दिया। सिकुड़ती आर्थिक स्थिति के कारण और अधिक विस्फारित उनका अहं उन्हें इस बात तक की अनुमति नहीं देता था कि वे कम-से-कम अपने बच्चों को तो अपनी आर्थिक विवशताओं का भागीदार बनाएँ। नवाबी आदतें, अधूरी महत्वाकांक्षाएँ, हमेशा शीर्ष पर रहने के बाद हाशिए पर सरकते चले जाने की यातना क्रोध बनकर हमेशा माँ को कँपाती- थरथराती रहती थी। अपनों के हाथों विश्वासघात की जाने कैसी गहरी चोटें होंगी वे जिन्होंने आँख मूँदकर सबका विश्वास करने वाले पिता को बाद के दिनों में इतना शक्की बना दिया था कि जब-तब हम लोग भी उसकी चपेट में आते ही रहते।

(क) मन्नू भंडारी के पिता की गिरती आर्थिक स्थिति का उन पर क्या प्रभाव पड़ा ?

(ख) पहले इंदौर में उनकी आर्थिक स्थिति कैसी रही होगी?

(ग) मन्नू के पिता का स्वभाव शक्की क्यों हो गया था ?

उत्तर

(क) पिता की गिरती आर्थिक स्थिति ने उनके व्यक्तित्व के सारे सकारात्मक पहलुओं को निचोड़ना शुरू कर दिया। सिकुड़ती आर्थिक तंगी के कारण उनका अहं, उन्हें अपने बच्चों को अपनी आर्थिक विवशता में भागीदार बनाने से रोकता।

(ख) इंदौर में उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी थी। वहाँ उनकी बड़ी प्रतिष्ठा थी। दस-दस विद्यार्थियों को अपने घर में रखकर पढ़ाया करते थे। उन दिनों घर में खुशहाली थी ।

(ग) मन्नू के पिता का स्वभाव शक्की इसलिए हो गया था क्योंकि उन्हें अपने लोगों के हाथों विश्वासघात झेलना पड़ा था।


लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. शीला अग्रवाल का मन्नू भंडारी को घर की चारदीवारी से बाहर निकलने को प्रेरित करना और पिताजी का घर के दायरे में रखना, इन दो दबावों से लेखिका कैसे जूझती है? स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर

लेखिका के पिताजी के अनजाने, अनचाहे व्यवहार से लेखिका हीन भावना एवं कुंठा से ग्रसित हो गई थी। वे उसे घर की चारदीवारी में रखकर देश और समाज के प्रति जागरूक तो बनाना चाहते थे, परंतु इसकी भी एक निश्चित सीमा थी। वे नहीं चाहते थे कि उनकी बेटी आंदोलनों में भाग ले या सड़क पर हड़तालों इत्यादि में शामिल हो। लेखिका और उनके पिताजी में सदैव वैचारिक टकराहट रही । लेखिका, जब प्राध्यापिका शीला अग्रवाल के संपर्क में आई, तब वह इस चारदीवारी से बाहर निकलने को प्रेरित हुईं। प्रभात-फेरियाँ, हड़तालें, जुलूस सब में सक्रिय भाग लिया। शीला अग्रवाल की जोशीली बातों ने उसे देश के लिए सक्रिय होकर काम करने के लिए प्रेरित किया और फिर यह सिलसिला जीवन का महत्त्वपूर्ण अंग बन गया। शीला अग्रवाल के निर्देशन को पाकर उनकी राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय भागीदारी रही ।


प्रश्न 2. 'एक कहानी यह भी' की लेखिका ने अपनी माँ को व्यक्तित्वविहीन क्यों कहा है?

उत्तर

'एक कहानी यह भी' की लेखिका मन्नू भंडारी ने अपनी माँ को व्यक्तिविहीन इसलिए कहा है क्योंकि वह पढ़ी-लिखी नहीं थीं। सुबह से शाम तब वह पिताजी की आज्ञाओं का पालन करने में और बच्चों की इच्छाओं की पूर्ति में उलझी रहती थीं । यद्यपि वह धैर्य और सहनशक्ति की प्रतिमूर्ति थीं, परंतु पिताजी की ज़्यादती को सहन करना उनके व्यक्तित्व को अस्तित्वविहीन करता था। बच्चों की हर उचित - अनुचित फ़रमाइश एवं ज़िद को पूरा करना वह अपना कर्तव्य समझती थीं । स्नेह एवं ममत्व से परिपूर्ण होने पर भी उनका व्यक्तित्व बिलकुल निरीह था । स्वयं के प्रति वह पूर्णतया लापरवाह थीं। अपने लिए उनकी कोई माँग नहीं थी। लेखिका की दृष्टि में उनकी माँ का अपना कोई वजूद या व्यक्तित्व नहीं था ।


प्रश्न 3. 'एक कहानी यह भी' के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि लेखिका की बेपढ़ी-लिखी माँ भारतीय स्त्री की प्रतिनिधि पात्र है।

उत्तर

'एक कहानी यह भी ' पाठ की लेखिका की माँ भारतीय स्त्री का प्रतिनिधिपात्र हैं। भारतीय नारी युग से पुरुष के शोषण को सहन करती आई है। उसके आश्रय में रहकर वह स्वयं को कमज़ोर समझती रही है इसलिए हर दबाव को सहन करना उसकी सहज प्रवृत्ति बन गई है। सहशीलता, त्याग उसके जीवन का आधार है। यही रूप लेखिका की माँ में दिखाई देता है। वह भारतीय नारी का जीता-जागता रूप थीं। सुबह से शाम तक बच्चों की इच्छाओं और पति की आज्ञाओं का पालन करने में तत्पर रहती थीं। धैर्य और सहनशीलता की प्रतिमूर्ति बन वह पति की हर ज्यादती को सहन करती थीं। हर काम को सिर झुकाकर, फ़र्ज़ समझ कर करते रहना, उसकी आदत बन गई थी। उसने जिंदगी भर अपने लिए कुछ नहीं माँगा । वास्तविकता यह है कि वे स्नेह और ममत्व से भरी पूर्ण परंपरागत, नितांत घरेलू एवं निरीह भारतीय स्त्री थीं।


प्रश्न 4. मन्नू भंडारी अपने व्यक्तित्व में उभरी कुंठाओं और ग्रंथियों को पिता की देन क्यों मानती हैं?

उत्तर

लेखिका के पिताजी के व्यवहार ने बचपन में ही लेखिका के मन में यह हीन भावना की ग्रंथि पैदा कर दी थी कि वह काली हैं। उनके पिताजी को गोरा रंग पसंद था इसलिए लेखिका से दो वर्ष बड़ी, खूब गोरी, स्वस्थ और हँसमुख बहन सुशीला से उसके पिता उसकी तुलना किया करते थे और हमेशा सुशीला की ही प्रशंसा किया करते थे । पिताजी के इस व्यवहार ने लेखिका के मन में हीन भाव की ग्रंथि पैदा कर दी थी। मान-सम्मान, प्रतिष्ठा पाने के उपरांत भी लेखिका इस कुंठा से उबर नहीं पाईं। इतना ही नहीं पिताजी के शक्की स्वभाव के कारण लेखिका को बड़े होने पर अपने अंदर हीनता नज़र आने लगी, जिसके कारण वह खंडित विश्वासों की पीड़ा झेलने लगी। अपने भीतर 'अपनों' के हाथों विश्वासघात की गहरी व्यथा को महसूस करने लगी । वास्तव में, ये कुंठाएँ और ग्रंथियाँ पिता की ही देन थीं। 


प्रश्न 5. देश की आज़ादी के संघर्ष में मन्नू भण्डारी की सक्रिय भागीदारी को लेकर पिताजी के साथ उनके टकराव की स्थिति को अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर

देश की आज़ादी के संघर्ष में मन्नू भंडारी की सक्रिय भागीदारी को लेकर उनका अपने पिता के साथ टकराव होता रहता था। उनके पिता को उनका रसोई में काम करना पसंद न था और वे उसे घर में होने वाली राजनीतिक बैठकों में भाग लेने को कहते थे, पर दूसरी तरफ सामाजिक दवाब के कारण उन्हें अपनी पुत्री का सड़कों पर नारे लगाना, जुलूस में भाग लेना आदि पसंद न आता था। कभी वे अपनी पुत्री की सक्रिय भागीदारी का विरोध करते, तो कभी मित्रों के द्वारा उनके भाषण की सुनकर गर्व अनुभव करते । स्कूल की प्रिंसिपल के द्वारा बुलाए जाने पर और उनकी शिकायत लगाए प्रशंसा जाने पर भी उन्हें बुरा नहीं लगा क्योंकि उनकी दृष्टि में आज़ादी के लिए हड़तालें करना, नारे लगाना समय की माँग थी । वास्तव में, उनके पिता आर्थिक, समाजिक और विकासशील प्रवृत्ति के बीच सामंजस्य बिठाने में असमर्थ रहे, इसलिए उनका लेखिका के विचारों से मतभेद रहा।


प्रश्न 6. 'एक कहानी यह भी' - आत्मकथ्य की लेखिका के व्यक्तित्व को बनाने में किस-किस का, किन रूपों में योगदान रहा?

उत्तर

'एक कहानी यह भी' की लेखिका मन्नू भंडारी के अनुसार उनके व्यक्तित्व की संरचना में उनके पिता का तथा कॉलेज की हिंदी अध्यापिका श्रीमती शीला अग्रवाल का योगदान सर्वाधिक रहा। उनके पिता को श्वेत रंग के प्रति अत्यधिक आकर्षण था । अतः लेखिका के साँवले रंग के प्रति उनके मन में उपेक्षा का भाव रहता था। लेखिका के मन में इसके कारण आक्रोश और विद्रोह की भावना रहती थी जो उनके साहित्य में भी प्रदर्शित हुई है। श्रीमती शीला अग्रवाल ने उन्हें उत्कृष्ट साहित्य का चयन करना सिखाया तथा उनकी रुचि को परिष्कृत किया था। बाद में राजनीति में उन्हें सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए भी प्रेरित किया था ।


प्रश्न 7. 'एक कहानी यह भी ' पाठ की लेखिका के अपने पिता के साथ वैचारिक टकराहट के कारणों पर प्रकाश डालिए।

उत्तर

लेखिका के अपने पिता के साथ कई कारणों से वैचारिक टकराहट होती थी। जैसे एक ओर तो उसके पिता उसे सदैव आसपास वातावरण और देश के लिए जागरूक होने को कहते थे। उसके मन में देश की स्वतंत्रता की अलख जगाना चाहते थे। वे चाहते थे कि लेखिका स्वतंत्रता आंदोलन में भाग ले, परंतु उसके कार्यक्षेत्र को घर के अंदर तक सीमित भी कर देना चाहते थे। वे चाहते थे कि लेखिका अपने विचार तो सशक्त रखे और प्रकट भी करे, परंतु सड़कों पर उतरकर यह सब करे, यह उन्हें नहीं भाता था। फलस्वरूप दोनों के अहं टकरा जाते थे।


प्रश्न 8. 'एक कहानी यह भी ' पाठ की लेखिका ने 'आस-पड़ोस' के महत्त्व के विषय में जो विचार प्रकट किए हैं? आज के महानगरीय परिवेश में उनकी प्रासंगिकता पर विचार कीजिए ।

उत्तर

लेखिका ने ‘आस-पड़ोस’ के महत्त्व को बताया है कि लोग आपस में सुख-दुख बाँटते थे तथा घर की सीमा मोहल्ले तक फैली हुई होती थी अर्थात लोग एक-दूसरे के घर ख़ूब आया-जाया करते थे। उनके संबंधों में स्नेह व विश्वास था। आज की महानगरीय संस्कृति में आस-पड़ोस के लिए कोई स्थान नहीं है। लोग अपने घरों तक सीमित होकर रह गए हैं। लोगों का परस्पर प्रेम, उनकी सुरक्षा, उदारता, सामाजिकता सब कुछ धीरे-धीरे समाप्त हो रहे हैं।


प्रश्न 9. 'मन्नू भंडारी की माँ त्याग और धैर्य की पराकाष्ठा थीं- फिर भी लेखिका के लिए आदर्श न बन सकीं।' क्यों ?

उत्तर

“लेखिका मन्नू भंडारी की माँ त्याग और धैर्य की पराकाष्ठा थीं।” त्याग व परिश्रम की मूर्ति थीं, फिर भी वह लेखिका की आदर्श न बन सकीं क्योंकि लेखिका को अपनी माँ का चुपचाप हर बात को मान लेना, पिताजी की किसी भी बात का विरोध न करना, अपने लिए कोई आवाज़ न उठाना, परिवार के लिए अपनी इच्छाओं का दमन कर अपने को उनकी खुशी के लिए स्वाहा कर देना लेखिका के व्यक्तित्व के विपरीत था । लेखिका उस समय की सक्रिय युवती थीं जो हर अनैतिकता के खिलाफ खड़ी होतीं थीं, जुलूस व हड़तालों में भाग लेती थीं। वह उत्साह और ओज से भरी आज़ादी के लिए लड़ने वाली युवती थीं। उन्हें अपनी माँ का दब्बूपन व अत्याचार का विरोध न करना कभी पसंद न आया।


प्रश्न 10. मन्नू भंडारी के पिता की कौन-कौन सी विशेषताएँ अनुकरणीय हैं ?

उत्तर

मन्नू भंडारी के पिता एक विरोधाभासी व्यक्तित्व के व्यक्ति थे। उनकी अनेक विशेषताएँ अनुकरणीय हो सकती हैं-

  1. वे बेहद कोमल और संवेदनशील व्यक्ति थे। अपने बच्चों की भावनाओं को समझते थे ।
  2. वे शिक्षा के प्रति अत्यंत जागरूक थे । वे इसके प्रसार के लिए घर में आठ-दस बच्चों को शिक्षित करने का दायित्व खुशी से उठाते थे ।
  3. उनकी देशप्रेम की भावना अनुकरणीय है। वे चाहते थे कि मन्नू उनके घर में आए दिन होने वाली राजनैतिक पार्टियों का हिस्सा बने ।
  4. वे यश पाने के इच्छुक थे और विशिष्ट बनकर जीना चाहते थे और उसके लिए प्रयासरत रहते थे । (v) उनके द्वारा बेटी के अच्छे कार्यों व भाषण आदि पर गर्व करना और देशप्रेम के प्रति अग्रसर करना भी अनुकरणीय है।


प्रश्न 11. शीला अग्रवाल जैसी प्राध्यापिका किसी भी विद्यार्थी के जीवन को कैसे संवार सकती हैं?

उत्तर

लेखिका के लिए शीला अग्रवाल जी केवल विषयगत ज्ञान देने वाली शिक्षिका नहीं थीं, बल्कि एक सच्ची मार्गदर्शक थीं। उनकी प्रेरणा ने लेखिका के अंदर एक अद्भुत आत्मविश्वास भर दिया था । उन्होंने लेखिका को जीवन में सही निर्णय लेकर बाधाओं का सामना करते हुए आगे बढ़ना सिखाया। उनके पदचिह्नों पर चलते हुए वे सामाजिक आंदोलनों एवं गतिविधियों में भाग लेकर उन दकियानूसी घरेलू बंदिशों को तोड़ने में कामयाब रहीं, जिन्हें तोड़ना उन दिनों न केवल उनके लिए, बल्कि हर लड़की के लिए बेहद मुश्किल काम था । अतः कहा जा सकता है कि शीला अग्रवाल जी जैसी अध्यापिका किसी भी विद्यार्थी के जीवन को सँवार सकती हैं।


प्रश्न 12. 'मन्नू भंडारी' के पिता के व्यक्तित्व में संवेदनशीलता भी थी और अहंवादिता भी उदाहरण देकर इस कथन की पुष्टि कीजिए।

उत्तर

'मन्नू भंडारी' के पिता एक विरोधाभासी व्यक्तित्व के व्यक्ति थे । बहुत बड़े आर्थिक संकट और अपनों के द्वारा दिए गए विश्वासघात से वे बुरी तरह टूट गए थे। एक तरफ तो वे बेहद कोमल और संवेदनशील थे। उन्हें अपनी पुत्री का रसोई में काम करना पसंद न आता। वे सोचते कि लड़कियों को भी राजनीति में सक्रिय योगदान देना चाहिए, वहीं दूसरी तरफ़ उनकी अहंवादिता और सामाजिक दबाव उसे लड़कों के समान बाहर जुलूस निकालने, हड़तालें करने से रोकने की कोशिश करता। एक ओर विशिष्ट बनने और बनाने की उनकी इच्छा, उन्हें संवेदनशील बनाती, तो अपनी पत्नी पर ज्यादतियाँ करना उनका अहं प्रदर्शित करता है।


प्रश्न 13. उस घटना का उल्लेख कीजिए जिसके बारे में 'एक कहानी यह भी' की लेखिका को न अपने कानों पर विश्वास हो पाया और न आँखों पर।

उत्तर

'एक कहानी यह भी' की लेखिका मन्नू भंडारी यहाँ उस घटना का उल्लेख कर रही हैं जिसमें उनके कॉलिज के प्रिंसिपल का पत्र उनके पिता को बुलाने के लिए आया, तो पिताजी क्रोधित हो गए कि लेखिका के अनुशासनहीन कार्यों के लिए उन्हें यह दिन देखना पड़ेगा। पता नहीं वहाँ जाकर क्या-क्या सुनना पड़ेगा, लेकिन जब पिताजी वापस आए और खुश होकर कहने लगे कि प्रिंसिपल बहुत परेशान हैं और कह रहे हैं कि आप अपनी पुत्री को घर बैठा लें क्योंकि पूरा कॉलिज इन तीन लड़कियों के इशारों पर नाच रहा है- एक इशारे पर सारी लड़कियाँ मैदान में निकलकर नारे लगाने लगती हैं, तब पिताजी और गर्व से कहने लगे कि यह तो पूरे देश की पुकार है, इसे कैसे रोक सकते हैं। यह सब अपने विषय में पिताजी से सुनकर लेखिका को अपनी आँखों और कानों पर विश्वास न हुआ।


प्रश्न 14. आज़ादी की लड़ाई में मन्नू भंडारी की भागीदारी के सिलसिले में शीला अग्रवाल एवं उनके पिताजी के योगदान पर प्रकाश डालिए ।

उत्तर

आज़ादी की लड़ाई में मन्नू भंडारी की भागीदारी के लिए उनकी हिंदी अध्यापिका शीला अग्रवाल ने उन्हें प्रेरित किया था। उन्हें साहित्य समझने की नई दृष्टि देने के साथ-साथ साहसी और आत्मविश्वासी बनाया था। उनके अंदर देशभक्ति की भावना जागृत की थी। शीला जी की जोशीली बातों ने ही मन्नू की रगों में बहते खून को ‘लावे' में बदल दिया था। उनसे ही प्रेरित हो मन्नू हड़तालें करतीं और जोशीले भाषण देती थीं। मन्नू के पिताजी बचपन से ही उन्हें पढ़ाने-लिखने पर ज़ोर देते थे। साथ ही घर में होने वाली राजनीतिक सभाओं में हिस्सा लेने के लिए कहते थे। जिस कारण लेखिका में बचपन से ही देश की परिस्थितियों को समझने की समझ और देशप्रेम की भावना का उदय हुआ था। जब लेखिका ने सक्रिय रूप से आज़ादी की लड़ाई में भाग लेने के लिए हड़तालें कीं और जोशीले भाषण देने शुरू किए, तो पिता उनके इन कार्यों से गर्वित हुए।


प्रश्न 15. मन्नू भंडारी के लेखकीय व्यक्तित्व निर्माण में शीला अग्रवाल की भूमिका को स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर

लेखिका मन्नू भंडारी के व्यक्तित्व-निर्माण में उनकी हिंदी प्राध्यापिका शीला अग्रवाल की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। उनके साथ की गई लंबी बहसों ने लेखिका को साहित्य समझने की दृष्टि प्रदान की। उन्हें साहसी बनाने में भी शीला जी का योगदान रहा। शीला जी ने ही उनके अंदर देशभक्ति की भावना प्रबल रूप से जगाई व देश की गतिविधियों में उन्हें सक्रिय रूप से भागीदार बनने में अहम भूमिका निभाई। शीला अग्रवाल की जोशीली बातों ने उनकी रगों में बहते खून को लावे में बदल दिया । वह नारे लगातीं, हड़ताल करातीं और लड़कों के साथ जुलूसों में साहस के साथ हिस्सा लेतीं ।


प्रश्न 16. मन्नू भंडारी की ऐसी कौन-सी खुशी थी जो 15 अगस्त, 1947 की खुशी में समाकर रह गई ?

उत्तर

मन्नू भंडारी ने 1947 के आंदोलन में जोश व उत्साह के साथ भाग लिया। हड़तालों, जूलूसों व प्रभातफेरियों में ज़ोर-शोर से नारे लगाए। उनके जोशीले भाषण की तारीफ़ हुई। मई 1947 में उनकी अध्यापिका शीला अग्रवाल को अनुशासन भंग करने के आरोप में विद्यालय से निकाल दिया, जिसका विरोध सभी विद्यार्थियों व लेखिका ने भी किया । थर्ड इयर की कक्षाएँ बंद कर दी गईं पर लड़कियों ने इतना हुड़दंग मचाया कि कॉलिज वालों को अगस्त में कॉलेज फिर खोलना पड़ा। शताब्दी की सबसे बड़ी उपलब्धि 15 अगस्त 1947 को मिलने वाली आज़ादी के बीच लेखिका की विद्यालय पुनः खुलवाने, जोशीले भाषणों की प्रशंसा होने व आज़ादी के लिए स्वतंत्र रूप से सभी बंधन तोड़ने की सभी खुशियाँ, आज़ादी पाने की खुशी में समा गई।


प्रश्न 17. देश के स्वतंत्रता आंदोलन में मन्नू भंडारी की भागीदारी के दो उदाहरण दीजिए।

उत्तर

देश के स्वतंत्रता आंदोलन में मन्नू भंडारी ने सक्रिय रूप से भाग लिया ।

  1. जब देश में आज़ादी से पहले जगह-जगह आज़ादी पाने के लिए प्रभात फेरियाँ निकलती, हड़तालें होती और जुलूस निकलते, तो मन्नू भंडारी उनमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लेतीं ।
  2. लेखिका स्कूल, कॉलिज में कक्षाएँ छोड़कर सभी विद्यार्थियों को इकट्ठा कर देशप्रेम के नारे लगातीं। मन्नू भंडारी ने मुख्य बाज़ार के चौराहे पर जोशीला भाषण भी दिया, जिसकी सभी ने प्रशंसा भी की।


प्रश्न 18. लेखिका मन्नू भंडारी को साधारण से असाधारण बनाने में 'शीला अग्रवाल' की भूमिका पर प्रकाश डालिए।

उत्तर

लेखिका मन्नू भंडारी को साधारण से असाधारण बनाने में उनकी हिंदी अध्यापिका 'शीला अग्रवाल' ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके साथ की गई लंबी बहसों ने लेखिका को साहित्य समझने की दृष्टि प्रदान की। अनेक महत्त्वपूर्ण लेखकों को पढ़ने का सुझाव देकर शीला जी ने मन्नू के चिंतन और मनन को सँवारा । उन्हें साहसी और आत्मविश्वासी बनाया। उन्होंने ही असाधारण क्षमता का परिचय कराते हुए लेखिका को देश के स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भागीदार बनाया। उनकी जोशीली बातों से ही लेखिका की रंगों का खून लावा में बदल गया। उन्हीं के मार्गदर्शन में उन्होंने हड़तालें कीं, नारे लगाए, जुलूस व प्रभातफेरियाँ निकालीं और चौक पर प्रभावशाली भाषण दिया, जिसकी सभी ने प्रशंसा की थी। उचित ही है कि शीला जी ने मन्नू के व्यक्तित्व को निखार कर खरा सोना बना दिया।

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