MCQ and Summary for नागरी लिपि (Nagiri Lipi) Class 10 Hindi Godhuli Part 2 Bihar Board

नागरी लिपि - गुणाकर मुले MCQ and सारांश

Multiple Choice Question Solutions (बहुविकल्पी प्रश्न)

1. गुणाकर मुले किस निबंध के रचयिता हैं?
(A) नाखून क्यों बढ़ते हैं
(B) नागरी लिपि
(C) परंपरा का मूल्यांकन
(D) आविन्यों
उत्तर
(B) नागरी लिपि

2. देवनागरी लिपि में मुद्रण के टाइप कब बने ?
(A) दो सदी पहले
(B) दो दशक पहले
(C) बीसवीं सदी में
(D) 11वीं सदी में
उत्तर
(A) दो सदी पहले

3. नागरी लिपि कब एक सार्वदेशिक लिपि थी?
(A) पन्द्रहवीं सदी में
(B) ईसा पूर्व काल में
(C) 8वीं-11वीं सदी में
(D) कभी नहीं
उत्तर
(C) 8वीं-11वीं सदी में

4. पहले दक्षिण भारत की नागरी लिपि क्या कहलाती थी?
(A) नदिनागरी
(B) कोंकणी
(C) ब्राह्मी
(D) सिद्धम
उत्तर
(D) सिद्धम

5. हिन्दी के आदिकवि का नाम क्या था?
(A) विद्यापति
(B) सरहदपाद
(C) कबीर
(D) दैतिदुग
उत्तर
(B) सरहदपाद

6. गुणाकर मुले का स्वर्गवास कब हुआ था ?
(A) 1909
(B) 1809
(C) 1935
(D) 2009
उत्तर
(D) 2009

7. गुणाकर मुले का जन्म किस राज्य में हुआ था ?
(A) बिहार
(B) उत्तर प्रदेश
(C) महाराष्ट्र
(D) राजस्थान
उत्तर
(C) महाराष्ट्र

8. गुणाकर मुले का जन्म कब हुआ था ?
(A) 1925
(B) 1915
(C) 1945
(D) 1935
उत्तर
(D) 1935

9. नागरी लिपि के आरंभिक लेख हमें कहाँ से मिले हैं ?
(A) पूर्वी भारत
(B) पश्चिमी भारत
(C) दक्षिणी भारत
(D) उत्तरी भारत
उत्तर
(C) दक्षिणी भारत

10. बेतमा दानपत्र किस समय का है ?
(A) 1020 ई.
(B) 1021 ई०
(C) 1022 ई०
(D) 1023 ई०
उत्तर
(A) 1020 ई.

नागरी लिपि लेखक परिचय

गुणाकर मुले का जन्म 1935 ई० में महाराष्ट्र के अमरावती जिले के एक गाँव में हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा ग्रामीण परिवेश में हुई । शिक्षा की भाषा मराठी थी। उन्होंने मिडिल स्तर तक मराठी पढ़ाई भी । फिर वे वर्धा चले गये और वहाँ उन्होंने दो वर्षों तक नौकरी की, साथ ही अंग्रेजी व हिंदी का अध्ययन किया । फिर इलाहाबाद आकर उन्होंने गणित विषय में मैट्रिक से लेकर एम० ए० तक की पढ़ाई की । सन् 2009 में मुले जी का निधन हो गया ।

गुणाकर मुले के अध्ययन एवं कार्य का क्षेत्र बड़ा ही व्यापक है । उन्होंने गणित, खगोल विज्ञान, अंतरिक्ष विज्ञान, विज्ञान का इतिहास, पुरालिपिशास्त्र और प्राचीन भारत का इतिहास व संस्कृति जैसे विषयों पर खूब लिखा है। पिछले पच्चीस वर्षों में मुख्यतः इन्हीं विषयों से संबंधि तं उनके 2500 से अधिक लेखों तथा तीस पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका है। उनकी प्रमुख कृतियों के नाम हैं 

  • अक्षरों की कहानी
  • भारत: इतिहास और संस्कृति
  • प्राचीन भारत के महान वैज्ञानिक
  • आधुनिक भारत के महान वैज्ञानिक
  • मैंडलीफ
  • महान वैज्ञानिक
  • सौर मंडल
  • सूर्य
  • नक्षत्र-लोक
  • भारतीय लिपियों की कहानी
  • अंतरिक्ष-यात्रा
  • ब्रह्मांड परिचय
  • भारतीय विज्ञान की कहानी

गुणाकर मुले की एक पुस्तक है ‘अक्षर कथा’। इस पुस्तक में उन्होंने संसार की प्रायः सभी प्रमुख पुरालिपियों की विस्तृत जानकारी दी है।

प्रस्तुत निबंध गुणाकर मुले की पुस्तक भारतीय लिपियों की कहानी’ से लिया गया है । इसमें हिंदी की अपनी लिपि नागरी या देवनामरी के ऐतिहासिक विकास की रूपरेखा स्पष्ट की गयी है। यहाँ हमारी लिपि की प्राचीनता, व्यापकता और शाखा विस्तार का प्रवाहपूर्ण शैली में प्रामाणिक आख्यान प्रस्तुत किया गया है। तकनीकी बारीकियों और विवरणों से बचते हुए लेखक ने निबंध को बोझिल नहीं होने दिया है तथा सादगी और सहजता के साथ जरूरी ऐतिहासिक जानकारियाँ देते हुए लिपि के बारे में हमारे भीतर आगे की जिज्ञासाएँ जगाने की कोशिश की है।


नागरी लिपि का सारांश (Summary)

प्रस्तुत पाठ ’नागरी लिपि’ गुणाकर मुले के द्वारा लिखित है। इसमें लेखक ने देवनागरी लिपि की उत्पति, विकास एवं व्यवहार पर अपना विचार व्यक्त किया गया है। लेखक का कहना है कि जिस लिपि में यह पुस्तक छपी है, उसे नागरी या देवनागरी लिपि कहते हैं। इस लिपि की टाइप लगभग 250 वर्ष पहले बनी। इसके विकास से अक्षरों में स्थिरता आ गई।

हिन्दी तथा इसकी विविध बोलियाँ, संस्कृत एवं नेपाली आदि इसी लिपि में लिखी जाती है। देवनागरी के संबंध में एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि विश्व में संस्कृत एवं प्राकृत की पुस्तकें प्रायः इसी लिपि में छपती है।

देश में बोली जाने वाली भिन्न-भिन्न भाषाएँ तथा बोलियाँ भी इसी लिपि में लिखी जाती है। तमिल, मलयालम, तेलुगु एवं कन्नड़ की लिपियों में भिन्नता दिखाई पड़ती है, लेकिन ये लिपियाँ भी नागरी की तरह ही प्राचीन ब्राह्मी लिपि से विकसित हुई है।

लेखक का कहना है कि नागरी लिपि के आरंभिक लेख हमें दक्षिण भारत से ही मिले हैं। यह लिपि नंदिनागरी लिपि कहलाती थी। दक्षिण भारत में तमिल-मलयालम और तेलुगु-कन्नड़ लिपियों का स्वतंत्र विकास हो रहा है, फिर भी कई शासकों ने नागरी लिपि का प्रयोग किया है। जैसे- ग्यारहवीं सदी में राजराज और राजेन्द्र जैसे प्रतापी चोल राजाओं के सिक्कों पर नागरी अक्षर अंकित है तो बारहवीं सदी में केरल के शासकों के सिक्कों पर “विर केरलस्य’।

इसी प्रकार नौवीं सदी के वरगुण का पलियम ताम्रपत्र नागरी लिपि में है तो ग्यारहवीं सदी में इस्लामी शासन की नींव डालने वाले महमूद गजनवी के चाँदी के सिक्कों पर भी नागरी लिपि के शब्द मिलते हैं।

गजनवी के बाद मुहम्मद गोरी, अलाउदीन खिलजी, शेरशाह आदि शासकों ने भी सिक्कों पर नागरी शब्द खुदवाए। अकबर के सिक्कों पर तो नागरी लिपि में ’रामसीय’ शब्द अंकित है। तात्पर्य है कि नागरी लिपि का प्रचलन ईसा की आठवीं-नौवीं सदी से आरंभ हो गया था।

लेखक ने लिपि के पहचान में कहा है कि ब्राह्मी तथा सिद्धम् लिपि अक्षर तिकोन है जबकि नागरी लिपि के अक्षरों के सिरों पर लकिर की लम्बाई और चौड़ाई एक समान है।

प्राचीन नागरी लिपि के अक्षर आधुनिक नागरी लिपि से मिलते-जुलते हैं। इस प्रकार दक्षिण भारत में नागरी लिपि के लेख आठवीं सदी से तथा उत्तर भारत में नौवीं सदी से मिलने लग जाते हैं।

अब प्रश्न यह उठता है कि इस नई लिपि को नागरी, देवनागरी तथा नंदिनागरी क्यों कहते हैं ? —नागरी शब्द के उत्पति के संबंध में विद्वानों का मत एक नहीं है। कुछ विद्वानों का मत है कि गुजरात के नागर ब्राह्मण ने इस लिपि का सर्वप्रथम प्रयोग किया था, इसलिए इसका नाम नागरी पड़ा, किंतु कुछ विद्वानों के मत के अनुसार अन्य नगर तो मात्र नगर है, परन्तु काशी को देवनगरी माना जाता है, इसलिए इसका नाम देवनागरी पड़ा।

अल्बेरूनी के अनुसार 1000 ई0 के आसपास नागरी शब्द अस्तित्व में आया। इतना निश्चित है कि नागरी शब्द किसी नगर अथवा शहर से संबंधित है। दूसरी बात यह है कि उत्तर भारत की स्थापत्य-कला की विशेष शैली को ’नागर शैली’ कहा जाता था। यह नागर या नागरी उत्तर भारत के किसी बड़े नगर से संबंध रखता था। उस समय उत्तर भारत में प्राचीन पटना सबसे बड़ा नगर था। साथ ही गुप्त शासक चन्द्रगुप्त (द्वितीय) ’विक्रमादित्य’ का व्यक्तिगत नाम ’देव’ था, संभव है कि गुप्तों की राजधानी पटना को ’देवनगर कहा गया हो और देवनगर की लिपि होने के कारण देवनागरी नाम दिया गया हो।

अन्ततः लेखक इस निष्कर्ष पर पहुँचता है कि ईसा के आठवीं से ग्यारहवीं सदी तक यह लिपि सार्वदेशिक हो गई थी, इसलिए इसके नामकरण के विषय में कुछ कहना संभव नहीं लगता।

मिहिर भोज की ग्वालियर प्रशस्ति नागरी लिपि में है। धारा नगरी का परमार शासक भोज अपने विद्यानुराग के लिए इतिहास प्रसिद्ध है। 12 वीं सदी के बाद भारत के सभी हिंदू शासक तथा कुछ इस्लामी शासकों ने अपने सिक्कों पर नागरी लिपि अंकित किए हैं।


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