MCQ and Summary for नाखून क्यों बढ़ते हैं? (Nakhun kyu Badhte hain) Class 10 Hindi Godhuli Part 2 Bihar Board

नाखून क्यों बढ़ते हैं? - हजारी प्रसाद द्विवेदी MCQ and सारांश

Multiple Choice Question Solutions (बहुविकल्पी प्रश्न)


1. 'नाखून क्यों बढ़ते हैं' किस प्रकार का निबंध है ?
(A) ललित
(B) भावात्मक
(C) विवेचनात्मक
(D) विवरणात्मक
उत्तर
(A) ललित

2. हजारी प्रसाद द्विवेदी किस निबंध के रचयिता हैं ?
(A) नागरी लिपि
(B) नाखून क्यों बढ़ते हैं
(C) परंपरा का मूल्यांकन
(D) शिक्षा और संस्कृति
उत्तर
(B) नाखून क्यों बढ़ते हैं

3. अल्पज्ञ पिता कैसा जीव होता है ?
(A) दयनीय
(B) बहादुर
(C) अल्पभाषी
(D) मृदुभाषी
उत्तर
(A) दयनीय

4. दधीचि की हड्डी से क्या बना था ?
(A) तलवार
(B) त्रिशूल
(C) इन्द्र का वज्र
(D) कुछ भी नहीं
उत्तर
(C) इन्द्र का वज्र

5. "कामसूत्र' किसकी रचना है ?
(A) वात्स्यायन
(B) हजारी प्रसाद द्विवेदी
(C) भीमराव अम्बेडकर
(D) गुणाकर मूले
उत्तर
(A) वात्स्यायन

6. हजारी प्रसाद का जन्म किस राज्य में हुआ था ?
(A) बिहार
(B) मध्य प्रदेश
(C) बलिया (उत्तर प्रदेश)
(D) राजस्थान
उत्तर
(C) बलिया (उत्तर प्रदेश)

7. हजारी प्रसाद का जन्म कब हुआ था ?
(A) 1907 में
(B) 1807 में
(C) 2007 में
(D) 1606 में
उत्तर
(A) 1907 में

8. पांडित्य एवं सहृदयता की प्रतिमूर्ति निम्नलिखित में कौन थे ?
(A) आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी
(B) बर्बर मानव
(C) आदि पुरुष
(D) आदि मानव
उत्तर
(A) आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी

9. लेखक के अनुसार मनुष्य के नाखून किसके जीवंत प्रतीक हैं ?
(A) मनुष्यता के
(B) सभ्यता के
(C) पाशवो वृत्ति के
(D) सौन्दर्य के
उत्तर
(C) पाशवो वृत्ति के

10. सहजात वृत्तियाँ किसे कहते हैं ?
(A) अस्त्रों के संचयन को
(B) अनजान स्मृतियों को
(C) 'स्व' के बंधन को
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर
(B) अनजान स्मृतियों को


11. नाख़ून का इतिहास किस पुस्तक में मिलता है ?

उत्तर
कामसूत्र में 


12. हजारी प्रसाद द्रिवेदी ने डी. लिट. की उपाधि किस विश्वविद्यालय से प्राप्त की ?

उत्तर
लखनऊ विवि से 

13. खानी में चन्द्रकार त्रिकोण दंतुल वर्तुलाकार आकृतियों का संबंध मानव के किस अंग से है ?

उत्तर
नख से 


14. अलक्तक का अर्थ है ?

उत्तर
आलता 


15. द्रिवेदी जी को साहित्य अकादमी पुरस्कार किस रचना पर मिला था ?

उत्तर
आलोक पर्व पर 


16. प्राचीन मानव का प्रमुख अस्त्र - शास्त्र था ?

उत्तर
नाख़ून 


17. आर्यों के पास था ?

उत्तर
घोड़े 


18. सब पुराने अच्छे नहीं होते और सब नए खराब नहीं होते , ऐसा किसने कहा ?

उत्तर
कालिदास ने 


19. नखधर मनुष्य आज किस पर भरोस कर रहा है ?

उत्तर
एटम बम पर


20. मनुष्य की मनुष्यता यही है की वह सबके दुःख - सुख को सहानुभूति के साथ देखता है | यह तथ्य किसका है ?

उत्तर
गौतम बुद्ध का 


21. नाख़ून क्यों बढ़ते है, के निबंधकार कौन है ?

उत्तर
आचार्य हजारी प्रसाद द्रिवेदी 


22. आचार्य हजारी प्रसाद द्रिवेदी जी का साहित्य की किस विधा में लेखन नहीं है ?

उत्तर
कहानी 


23. कौन सी रचना हजारी प्रसाद द्रिवेदी की नहीं है ?

उत्तर
माटी की मुरते 


24. द्रिवेदी जी ने निर्लज्ज अपराधी किसे कहा है ?

उत्तर
नाख़ून को 


25. कामसूत्र किसकी रचना है ?

उत्तर
वात्स्यायन की 


26. सिक्थक का अर्थ होता है ?

उत्तर
मोम 


27. महाभारत क्या है ?

उत्तर
पुराण


28. प्राचीनकाल में दक्षिण भारत के लोग कैसा नाख़ून रखते थे ?

उत्तर
छोटे - छोटे 


29. दधिची की हड्डी से क्या बना था ? 

उत्तर
इंद्र का व्रज 


30. हजारी प्रसाद द्रिवेदी का जन्म कहाँ हुआ ?

उत्तर
बलिया, उत्तर प्रदेश 


31. कौन मनुष्य का आदर्श नहीं बन सकती ?

उत्तर
बंदरिया 


32. देवताओं का राजा से किन्हें संबोधित किया जाता है ?

उत्तर
इंद्र

नाखून क्यों बढ़ते हैं? लेखक परिचय

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म सन् 1907 ई० में आरत दुबे का छपरा, बलिया (उत्तर । प्रदेश) में हुआ । द्विवेदी जी का साहित्य कर्म भारतवर्ष के सांस्कृतिक इतिहास की रचनात्मक परिणति है । संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, बांग्ला आदि भाषाओं व उनके साहित्य के साथ इतिहास, संस्कृति, धर्म, दर्शन और आधुनिक ज्ञान-विज्ञान की व्यापकता व गहनता में पैठकर उनका अगाध पांडित्य नवीन मानवतावादी सर्जना और आलोचना की क्षमता लेकर प्रकट हुआ है। वे ज्ञान को बोध और पांडित्य की सहृदयता में दाल कर एक ऐसा रचना संसार हमारे सामने उपस्थित करते हैं जो विचार की तेजस्विता, कथन के लालित्य और बंध की शास्त्रीयता का संगम है । इस प्रकार उनमें एकसाथ कबीर, तुलसी और रवींद्रनाथ एकाकार हो उठते हैं। उनकी सांस्कृतिक दृष्टि अपूर्व है। उनके अनुसार भारतीय संस्कृति किसी एक जाति की देन नहीं, बल्कि समय-समय पर उपस्थित अनेक जातियों के श्रेष्ठ साधनांशों के लवण-नीर संयोग से विकसित हुई हैं।

द्विवेदीजी की प्रमुख रचनाएँ हैं – ‘अशोक के फूल’, ‘कल्पलता’, ‘विचार और वितर्क’, ‘कुटज’,’विचार-प्रवाह’, ‘आलोक पर्व’, ‘प्राचीन भारत के कलात्मक विनोद’ (निबंध संग्रह); ‘बाणभट्ट की आत्मकथा’, ‘चारुचंद्रलेख’, ‘पुनर्नवा’, ‘अनामदास का पोथा’ (उपन्यास); ‘सूर साहित्य’, ‘कबीर’, ‘मध्यकालीन बोध का स्वरूप’, ‘नाथ संप्रदाय’, ‘कालिदास की लालित्य योजना’, ‘हिंदी साहित्य का आदिकाल’, ‘हिंदी साहित्य की भूमिका’, ‘हिंदी साहित्य : उद्भव और विकास’ (आलोचना-साहित्येतिहास); ‘संदेशरासक’, ‘पृथ्वीराजरासो’, ‘नाथ-सिद्धों की बानियाँ'(ग्रंथ संपादन): ‘विश्व भारती’ (शांति निकेतन) पत्रिका का संपादन । द्विवेदीजी को आलोकपर्व’ पर साहित्य अकादमी पुरस्कार, भारत सरकार द्वारा ‘पद्मभूषण’ सम्मान एवं लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा डी० लिट् की उपाधि मिली । वे काशी हिंदू विश्वविद्यालय, शांति निकेतन विश्वविद्यालय, . चंडीगढ़ विश्वविद्यालय आदि में प्रोफेसर एवं प्रशासनिक पदों पर रहे । सन् 1979 में दिल्ली में उनका निधन हुआ।

हजारी प्रसाद द्विवेदी ग्रंथावली से लिए गए प्रस्तुत निबंध में प्रख्यात लेखक और निबंधकार का मानववादी दृष्टिकोण प्रकट होता है । इस ललित निबंध में लेखक ने बार-बार काटे जाने पर भी बढ़ जाने वाले नाखूनों के बहाने अत्यंत सहज शैली में सभ्यता और संस्कृति की विकाम-गाथा उद्घाटित कर दिखायी है। एक ओर नाखूनों का बढ़ना मनुष्य की आदिम पाशविक वृत्ति और संघर्ष चेतना का प्रमाण है तो दूसरी ओर उन्हें बार-बार काटते रहना और अलंकृत करते रहना मनुष्य के सौंदर्यबोध और सांस्कृतिक चेतना को भी निरूपित करता है । लेखक ने नाखूनों के बहाने मनोरंजक शैली में मानव-सत्य का दिग्दर्शन कराने का सफल प्रयत्न किया है। यह निबंध नई पीढ़ी में सौंदर्यबोध, इतिहास चेतना और सांस्कृतिक आत्मगौरव का भाव जगाता है।


नाखून क्यों बढ़ते हैं? का सारांश (Summary)

बच्चे कभी-कभी चक्कर में डाल देने वाले प्रश्न कर बैठते हैं। मेरी छोटी लड़की ने जब उस दिन पूछ.दिया कि आदमी के नाखून क्यों बढ़ते हैं, तो मैं सोच में पड़ गया, हर तीसरे दिन नाखून बढ़ जाते हैं, बच्चे कुछ दिन तक अगर उन्हें बढ़ने दें, तो माँ-बाप अकसर उन्हें डाँटा करते हैं। पर कोई नहीं जानता कि ये अभागे नाखन क्यों इस प्रकार बढ़ा करते हैं। काट दीजिए वे चुपचाप दंड स्वीकार कर लेंगे पर निर्लज्ज अपराधी की भांति फिर छूटते ही सेंध पर हाजिर।

कुछ लाख ही वर्षों की बात है, जब मनुष्य जंगली था; वनमानुष जैसा। उसे नाखून की जरूरत थी। उसकी जीवन-रक्षा के लिए नाखून बहुत जरूरी थे। असल में वही उसके अस्त्र थे। दाँत भी थे पर नाखून के बाद ही उनका स्थान था। उन दिनों उसे जूझना पड़ता था, प्रतिद्वंदियों को पछाड़ना पड़ता था, नाखून उसके लिए आवश्यक अंग था। फिर धीरे-धीरे वह अपने अंग से बाहर की वस्तुओं का सहारा लेने लगा। पत्थर के ढेले और पेंड की डालें काम में लाने लगा। उसने हड्डियों के भी हथियार बनाये। मनुष्यं और आगे बढ़ा। उसने धातु के हथियार बनाए। पलीतेवाली बंदूकों ने, कारतूसों ने, तोपों ने, बमों ने, बमवर्षक वायुयानों ने इतिहास को किस कीचड़ भरे घाट पर घसीटा है, यह सबको मालूम है। नखधर मनुष्य अब एटम बम पर भरोसा करके आगे की ओर चल पड़ा है। पर उसके नाखून अब भी बढ़ रहे थे।

कुछ हजार साल पहले मनुष्य ने नाखून को सुकुमार विनोदों के लिए उपयोग में लाना शुरू किया था। वात्स्यायन के कामसूत्र से पता चलता है कि आज से दो हजार वर्ष पहले का भारतवासी नाखूनों को जम के संवारता था। उनके काटने की कला काफी मनोरंजक बताई गई है। त्रिकोण, वर्तुलाकार, चंद्राकार दंतुल आदि विविध आकृतियों के नाखून उन दिनों विलासी नागरिकों के न. जाने किस काम आया करते थे। उनको सिक्थक (मोम) और अलंक्तक (आलता) से यत्नपूर्वक रगड़कर लाल और चिकना बनाया जाता था। गौड़ देश के लोग उन दिनों बड़े-बड़े नखों को , पसंद करते थे और दक्षिणात्य लोग छोटे नखों को। लेकिन समस्त अधोगामिनी वृत्तियों को और नीचे खींचनेवाली वस्तुओं को भारतवर्ष ने मनुष्योचित बनाया है, यह बात चाहूँ भी तो भूल नहीं सकता।

15 अगस्त को जब अंगरेजी भाषा के पत्र ‘इण्डिपेण्डेन्स की घोषणा कर रहे थे, देशी भाषा के पत्र ‘स्वाधीनता दिवस की चर्चा कर रहे थे। इण्डिपेण्डेन्स का अर्थ है स्वाधीनता ‘शब्द का – अर्थ है अपने ही अधीन’ रहना। उसने अपने आजादी के जितने भी नामकरण किए, स्वतंत्रता, स्वराज्य, स्वाधीनता-उन सबमें ‘स्व’ का बंधन अवश्य रखा। अपने-आप पर अपने-आप के द्वारा लगाया हुआ बंधन हमारी संस्कृति की बड़ी भारी विशेषता है।

मनुष्य झगड़े-डंटे को अपना आदर्श नहीं मानता, गुस्से में आकर चढ़-दौड़ने वाले अविवेकी को बुरा समझता है और वचन, मन और शरीर से किए गए असत्याचरण को गलत आचरण मानता है। यह किसी भी जाति या वर्ण या समुदाय का धर्म नहीं है। यह मनुष्यमात्र का धर्म है। महाभारत में इसीलिए निर्वैर भाव, सत्य और अक्रोध को सब वर्गों का सामान्य धर्म कहा है –
एतद्धि विततं श्रेष्ठं सर्वभूतेषु भारत!
निर्वैरता महाराज सत्यमक्रोध एव च।

अन्यत्र इसमें निरंतर दानशीलता को भी गिनाया गया है। गौतम ने ठीक ही कहा था कि मनुष्य – की मनुष्यता यही है कि वह सबके दुःख-सुख को सहानुभूति के साथ देखता है।

ऐसा कोई दिन आ सकता है, जबकि मनुष्य के नाखूनों का बढ़ना बंद हो जाएगा। प्राणिशास्त्रियों का ऐसा अनुमान है कि मनुष्य का अनावश्यक अंग उसी प्रकार झड़ जाएगा, जिस प्रकार उसकी पूँछ झड़ गई है। उस दिन मनुष्य की पशुता भी लुप्त हो जाएगी। शायद उस दिन वह मारणास्त्रों का प्रयोग भी बंद कर देगा। .

नाखूनों का बढ़ना मनुष्य की उस अंध सहजात वृत्ति का परिणाम है, जो उसके जीवन में सफलता ले आना चाहती है, उसको काट देना उस ‘स्व’-निर्धारित आत्म-बंधन का पुल है, जो उसे चरितार्थता की ओर ले जाती है। कमबख्त नाखून बढ़ते हैं तो बढ़े, मनुष्य उन्हें बढ़ने नहीं देगा।

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