Class 7 Hindi Chapter 8 बिरजू महाराज से साक्षात्कार Questions Answers NCERT Solutions मल्हार
Chapter 8 बिरजू महाराज से साक्षात्कार Class 7 NCERT Solutions
पाठ से
मेरी समझ
(क) नीचे दिए गए प्रश्नों का सबसे सही उत्तर कौन-सा है? उनके सामने तारा (★) बनाइए। कुछ प्रश्नों के एक से अधिक उत्तर भी हो सकते हैं।
(1) बिरजू महाराज ने गंडा बाँधने की परंपरा में परिवर्तन क्यों किया होगा?
- वे गुरु के प्रति शिष्य की निष्ठा को परखना चाहते थे।
- वे नृत्य शिक्षण के लिए इस परंपरा को महत्वपूर्ण नहीं मानते थे।
- वे नृत्य के प्रति शिष्य की लगन व समर्पण को जांचना चाहते थे।
- वे शिष्य की भेंट देने की सामर्थ्य को परखना चाहते थे।
उत्तर
वे नृत्य के प्रति शिष्य की लगन व समर्पण को जांचना चाहते थे। (★)
स्पष्टीकरण: बिरजू महाराज ने कहा कि वे कई वर्षों तक नृत्य सिखाने के बाद शिष्य की सच्ची लगन देखकर ही गंडा बाँधते हैं। इससे पता चलता है कि वे शिष्य के समर्पण और लगन को महत्व देते थे, न कि भेंट की सामर्थ्य या परंपरा की औपचारिकता को।
(2) “जीवन में उतार-चढ़ाव तो होते ही हैं।” बिरजू महाराज के जीवन में किस तरह के उतार-चढ़ाव आए?
- पिता के देहांत के बाद आर्थिक अभावों का सामना करना पड़ा।
- कोई भी संस्था नृत्य प्रस्तुतियों के लिए आमंत्रित नहीं करती थी।
- किसी विशेष समय में घर में सुख-समृद्धि थी।
- नृत्य के औपचारिक प्रशिक्षण के अवसर बहुत ही सीमित हो गए थे।
उत्तर
पिता के देहांत के बाद आर्थिक अभावों का सामना करना पड़ा। (★)
किसी विशेष समय में घर में सुख-समृद्धि थी। (★)
स्पष्टीकरण: बिरजू महाराज ने बताया कि उनके पिता के देहांत के बाद आर्थिक तंगी आई, जिससे परिवार को कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। साथ ही, शुरुआती जीवन में हवेली और सिपाहियों के साथ सुख-समृद्धि भी थी। अन्य विकल्पों का पाठ में स्पष्ट उल्लेख नहीं है।
(3) बिरजू महाराज के अनुसार बच्चों को लय के साथ खेलने की अनुशंसा क्यों की जानी चाहिए?
- संगीत, नृत्य, नाटक और अन्य कलाएँ बच्चों में मानवीय मूल्यों का विकास नहीं करती हैं।
- कला संबंधी विषयों से जुड़ाव बच्चों के बौद्धिक विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
- कला भी एक खेल है, जिसमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है।
- वर्तमान समय में कला एक सफल माध्यम नहीं है।
उत्तर
कला संबंधी विषयों से जुड़ाव बच्चों के बौद्धिक विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। (★)
कला भी एक खेल है, जिसमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है। (★)
स्पष्टीकरण: बिरजू महाराज ने कहा कि लय के साथ खेलना बच्चों को अनुशासन और संतुलन सिखाता है, और यह उनके बौद्धिक विकास के लिए महत्वपूर्ण है। उन्होंने कला को एक खेल के रूप में भी देखा, जिसमें सीखने के कई अवसर हैं।
(ख) अब अपने मित्रों के साथ चर्चा कीजिए और कारण बताइए कि आपने ये उत्तर ही क्यों चुने?
उत्तर
मैंने ये उत्तर इसलिए चुने क्योंकि:
- बिरजू महाराज ने गंडा बाँधने की परंपरा को शिष्य की लगन पर आधारित किया, जो उनकी शिक्षण शैली की गहराई को दर्शाता है।
- उनके जीवन में सुख-समृद्धि और आर्थिक तंगी दोनों का उल्लेख है, जो उनके उतार-चढ़ाव को स्पष्ट करता है।
- कला को खेल मानकर और इसके बौद्धिक लाभों को देखकर मैंने ये विकल्प चुने।
मिलकर करें मिलान
पाठ से चुनकर कुछ शब्द एवं शब्द समूह नीचे दिए गए हैं। अपने समूह में इन पर चर्चा कीजिए और इन्हें उनके सही संदर्भ या अवधारणाओं से मिलाइए। इसके लिए आप शब्दकोश, इंटरनेट या अपने शिक्षकों की सहायता ले सकते हैं।
उत्तर
शीर्षक
इस पाठ का शीर्षक ‘बिरजू महाराज से साक्षात्कार’ है। यदि आप इस साक्षात्कार को कोई अन्य नाम देना चाहते हैं, तो क्या नाम देंगे? आपने यह नाम क्यों चुना? लिखिए।
उत्तर
नया शीर्षक: "कथक के महाराज: बिरजू महाराज की कहानी"
कारण: यह शीर्षक बिरजू महाराज की कथक में महारत और उनके जीवन की प्रेरणादायक कहानी को दर्शाता है। यह आकर्षक और प्रासंगिक है, जो पाठकों का ध्यान खींचेगा।
पंक्तियों पर चर्चा
साक्षात्कार में से चुनकर कुछ वाक्य नीचे दिए गए हैं। इन्हें ध्यान से पढ़ें और इन पर विचार करें। आपको इनका क्या अर्थ समझ में आया? अपने विचार लिखिए।
उत्तर
अर्थ:बिरजू महाराज के चाचा ने उनसे कहा कि नौकरी करने से उनका ध्यान नृत्य से हट जाएगा, और वे कथक में पूर्ण रूप से विकसित नहीं हो पाएँगे।
विचार: यह वाक्य दर्शाता है कि कला के लिए पूर्ण समर्पण चाहिए। नौकरी जैसे अन्य कार्य कला की साधना में बाधा बन सकते हैं।
उत्तर
अर्थ: लय को नर्तक के लिए सबसे महत्वपूर्ण और पूजनीय माना गया है, जैसे कोई देवता।
विचार: यह वाक्य लय की महत्ता को दर्शाता है, जो नृत्य को सुंदर और संतुलित बनाती है। लय के बिना नृत्य अधूरा है।
उत्तर
अर्थ: नृत्य केवल शारीरिक गतिविधि नहीं है; इसमें मन का ध्यान और तपस्या जैसी मेहनत भी शामिल है।
विचार: यह वाक्य नृत्य को एक आध्यात्मिक और समर्पित कला के रूप में प्रस्तुत करता है, जो साधना की तरह है।
उत्तर
अर्थ: कथक में गर्दन की हल्की और कोमल गति को चिराग की लौ की तरह सुंदर और नाजुक बताया गया है।
विचार: यह वाक्य कथक की कोमलता और सौंदर्य को दर्शाता है, जो इसे अन्य नृत्यों से अलग बनाता है।
सोच-विचार के लिए
1. साक्षात्कार को एक बार पुन: पढ़ें और निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए।(क) बिरजू महाराज नृत्य का औपचारिक प्रशिक्षण आरंभ होने से पहले ही कथक कैसे सीख गए थे?
उत्तर
बिरजू महाराज ने औपचारिक प्रशिक्षण से पहले घर के कथक माहौल में देख-देखकर कथक सीखा। उनके पिता, चाचा और परिवार में कथक का अभ्यास होता था, जिससे वे छोटी उम्र में ही नवाब के दरबार में नाचने लगे थे।
(ख) नृत्य सीखने के लिए संगीत की समझ होना क्यों अनिवार्य है?
उत्तर
संगीत की समझ नृत्य के लिए जरूरी है क्योंकि नृत्य में लय और ताल का विशेष महत्व है। बिरजू महाराज ने कहा कि लय नृत्य को सुंदरता और संतुलन देती है। अगर नर्तक को सुर-ताल की समझ हो, तो वह गलत लय को पहचान सकता है और नृत्य को बेहतर बना सकता है।
(ग) नृत्य के अतिरिक्त बिरजू महाराज को और किन-किन कार्यों में रुचि थी?
उत्तर
बिरजू महाराज को मशीनों और यंत्रों में रुचि थी। वे पेचकस और छोटे औजार रखते थे और पंखा, फ्रिज जैसी मशीनें ठीक करते थे। उन्हें चित्रकला में भी रुचि थी, और उन्होंने लगभग सत्तर चित्र बनाए।
(घ) बिरजू महाराज ने बच्चों की शिक्षा और रुचियों के बारे में अभिभावकों से क्या कहा है?
उत्तर
बिरजू महाराज ने अभिभावकों से कहा कि अगर बच्चे को संगीत या नृत्य में रुचि है, तो उसे लय के साथ खेलने दें। कला एक खेल की तरह है, जो अनुशासन, संतुलन और बौद्धिक विकास सिखाती है। उन्होंने बच्चों को संगीत सीखने की सलाह दी, क्योंकि यह मन की शांति के लिए जरूरी है।
2. पाठ में से उन प्रसंगों की पहचान करें और उन पर चर्चा करें, जिनसे पता चलता है कि—
(क) बिरजू महाराज बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे।
उत्तर
प्रसंग: उन्होंने कथक में नवाचार किए, जैसे भाव-भंगिमाओं को शामिल करना और आधुनिक कवियों की रचनाओं पर नृत्य रचना।
वे तबला, हारमोनियम बजाते थे और गाना भी गाते थे।
मशीनों को ठीक करने और चित्रकला में उनकी रुचि थी।
चर्चा: ये प्रसंग दर्शाते हैं कि बिरजू महाराज केवल नर्तक नहीं थे, बल्कि संगीत, चित्रकला और तकनीकी कार्यों में भी निपुण थे।
(ख) बिरजू महाराज को नृत्य की ऊँचाइयों तक पहुँचाने में उनकी माँ का बहुत योगदान रहा।
उत्तर
प्रसंग: उनकी माँ ने आर्थिक तंगी में भी उन्हें अभ्यास जारी रखने के लिए प्रेरित किया।
उन्होंने पुरानी साड़ियों के सोने-चाँदी के तार बेचकर परिवार का गुजारा किया और बिरजू की तालीम के लिए भेंट दी।
चर्चा: माँ की प्रेरणा और त्याग ने बिरजू को कठिन समय में भी कथक की साधना करने की शक्ति दी।
(ग) बिरजू महाराज महिलाओं के लिए समानता के पक्षधर थे।
उत्तर
प्रसंग: उन्होंने अपनी बेटियों को कथक सिखाया, जबकि उनकी बहनों को नहीं सिखाया गया था।
वे मानते थे कि लड़कियों को शिक्षा और हुनर सीखना चाहिए ताकि वे आत्मनिर्भर बनें।
चर्चा: ये प्रसंग दिखाते हैं कि बिरजू महाराज ने लैंगिक समानता को बढ़ावा दिया और महिलाओं की शिक्षा को महत्व दिया।
शब्दों की बात
(क) पाठ में आए कुछ शब्द नीचे दिए गए हैं। इन्हें ध्यान से पढ़ें—
आपने इन शब्दों पर ध्यान दिया होगा कि मूल शब्द के आगे या पीछे कोई शब्दांश जोड़कर नया शब्द बना है। इससे शब्द के अर्थ में परिवर्तन आ गया है। शब्द के आगे जुड़ने वाले शब्दांश उपसर्ग कहलाते हैं, जैसे—
अदृश्य → अ + दृश्य
आवरण → आ + वरण
प्रशिक्षण → प्र + प्रशिक्षण
यहाँ पर ‘अ’, ‘आ’ और ‘प्र’ उपसर्ग हैं।
शब्द के पीछे जुड़ने वाले शब्दांश प्रत्यय कहलाते हैं और मूल शब्द के अर्थ में नवीनता, परिवर्तन या विशेष प्रभाव उत्पन्न करते हैं, जैसे—
सीमित → सीमा + इत
सुंदरता → सुंदर + ता
भारतीय → भारत + ईय
सामूहिक → समूह + इक
यहाँ पर ‘इत’, ‘ता’, ‘ईय’ और ‘इक’ प्रत्यय हैं।
उत्तर
पाठ में दिए गए शब्दों में उपसर्ग और प्रत्यय का उपयोग हुआ है:
- आजीविका: आ + जीविका (उपसर्ग: आ)
- प्रशिक्षण: प्र + शिक्षण (उपसर्ग: प्र)
- आधुनिक: आ + धुनिक (उपसर्ग: आ)
- पारंपरिक: परंपरा + इक (प्रत्यय: इक)
- शास्त्रीय: शास्त्र + ईय (प्रत्यय: ईय)
(ख) नीचे दो तबले दी गई हैं—एक में कुछ शब्दांश (उपसर्ग व प्रत्यय) हैं, और दूसरे तबले में मूल शब्द हैं। इनकी सहायता से नए शब्द बनाइए।
उत्तर
(ग) इस पाठ में से उपसर्ग व प्रत्यय की सहायता से बने कुछ और शब्द छाँटकर उनसे वाक्य बनाइए।
उत्तर
- अद्भुत (उपसर्ग अद् + भुत)।
वाक्य: बिरजू महाराज का नृत्य अद्भुत होता था। - कलाकार (मूल शब्द कला + प्रत्यय कार)।
वाक्य: वे एक महान कलाकार के रूप में प्रसिद्ध हुए। - नृत्यांगना (मूल शब्द नृत्य + प्रत्यय अंगा)।
वाक्य: उन्होंने कई नृत्यांगनाओं को प्रशिक्षित किया। - मंचन (मूल शब्द मंच + प्रत्यय न)।
वाक्य: उनका कथक नृत्य मंचन दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देता था। - प्रेरणा (मूल शब्द प्रेरण + प्रत्यय आ)।
वाक्य: उन्हें अपनी माँ से प्रेरणा मिली। - अभिनय (उपसर्ग अभि + नय)।
वाक्य: उनके नृत्य में अभिनय की अद्भुत झलक होती थी। - सांस्कृतिक (मूल शब्द संस्कृति + प्रत्यय क)।
वाक्य: बिरजू महाराज ने भारतीय सांस्कृतिक धरोहर को विश्वभर में पहुँचाया।
शब्दों का प्रभाव
पाठ में आए नीचे दिए गए वाक्य पढ़ें—
1. “कुछ कथिक डर गए किंतु उन कथिकों की कला में इतना दम था कि डाकू सब कुछ भूलकर उन कथिकों के कथक में मग्न हो गए।”
इस वाक्य में रेखांकित शब्द ‘इतना’ हटाकर वाक्य पिढ़ए और पहचािनए कि क्या परिवर्तन आया है?
उत्तर
इस वाक्य में रेखांकित शब्द ‘इतना’ हटाने पर वाक्य का प्रभाव बदल जाता है। ‘इतना’ शब्द कला की विशिष्टता और प्रभाव को अधिक गहराई से व्यक्त करता है। इसे हटाने से वाक्य का प्रभाव हल्का हो जाता है और कथिकों की कला की महत्ता कम प्रतीत होती है।
पाठ में आए अन्य वाक्यों में ऐसे शब्द खोजें और उन्हें रेखांकित करें, जिनके प्रयोग से वाक्य में विशेष प्रभाव उत्पन्न होता है।
उत्तर
अन्य वाक्य और शब्द:
- वाक्य: “लय एक तरह का आवरण है, जो नृत्य को सुंदरता प्रदान करती है।”
- शब्द: ‘आवरण’ – यह शब्द लय को एक विशेष गुण के रूप में दर्शाता है।
- वाक्य: “नृत्य करना एक तरह से अदृश्य शक्ति को निमंत्रण देना है।”
- शब्द: ‘अदृश्य’ – यह नृत्य को आध्यात्मिक बनाता है।
पाठ से आगे
कला का संसार
(क) बिरजू महाराज— “कथक की पुरानी परंपरा को तो कायम रखा है। हाँ, उसके प्रस्तुतीकरण में बदलाव किए हैं।” इस कथन को ध्यान में रखते हुए लिखें कि कथक की प्रस्तुतियों में किस प्रकार के परिवर्तन आए हैं?
उत्तर
कथक की प्रस्तुतियों में आए परिवर्तन इस प्रकार हैं:
- मंचीय रूप में विकास:पहले कथक दरबारों और मंदिरों में प्रस्तुत किया जाता था, लेकिन अब यह मंच पर नाट्य रूप में प्रस्तुत किया जाने लगा है।
- कथावाचन का समावेश:बिरजू महाराज ने कथक में भाव और अभिनय के साथ कथावाचन जोड़ा, जिससे नृत्य की प्रस्तुति और अधिक प्रभावशाली और संवादपूर्ण बन गई।
- नई विषयवस्तु का चयन: परंपरागत धार्मिक कथाओं के साथ-साथ सामाजिक, ऐतिहासिक और समकालीन विषयों को भी कथक में शामिल किया गया।
- लाइटिंग और संगीत में प्रयोग: मंच पर रौशनी, बैकग्राउंड संगीत और तकनीकी प्रभावों का उपयोग कर कथक को और आकर्षक बनाया गया।
- दर्शकों से संवाद: बिरजू महाराज ने कथक को केवल देखने की कला न बनाकर, दर्शकों से जुड़ने की कला बना दिया वे दर्शकों को समझाते, मुस्कुराते और भावों से जोड़ते थे।
(ख) लोकनृत्य और शास्त्रीय नृत्य में क्या अंतर है? लिखिए।
(इस प्रश्न के उत्तर के लिए आप अपने सहपाठियों, अभिभावकों, शिक्षकों, पुस्तकालय या इंटरनेट की सहायता भी ले सकते हैं।)
उत्तर
(ग) “बैरगिया नाला जुलुम जोर,
नौ कथिक नचावें तीन चोर।
जब तबला बोले धीन–धीन,
तब एक-एक पर तीन-तीन।”
इस पाठ में हरिया गाँव में गाए जाने वाले उपर्युक्त पद का उल्लेख है। आप अपने क्षेत्र में गाए जाने वाले किसी लोकगीत को कक्षा में प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर
लोकगीत:
सावन की आई बहार रे,
बदरिया बरसे झमाझम रे।
मोर नाचे, कोयल गाए,
हरियाली छाए चारों धाए रे।
साक्षात्कार की रचना
प्रस्तुत ‘साक्षात्कार’ के आधार पर बताइए—
(क) साक्षात्कार से पहले क्या-क्या तैयारियाँ की गई होंगी?
उत्तर
साक्षात्कार से पहले निम्नलिखित तैयारियां की गई होंगी:
- बिरजू महाराज के जीवन, कथक करियर, और उपलब्धियों पर शोध किया गया होगा।
- उनके कथक घराने और योगदान के बारे में जानकारी एकत्र की गई होगी।
- बच्चों के लिए सरल और प्रासंगिक प्रश्न तैयार किए गए होंगे।
- साक्षात्कार का समय और स्थान निश्चित किया गया होगा।
(ख) आप इस साक्षात्कार में और क्या-क्या प्रश्न जोड़ना चाहेंगे?
उत्तर
इस साक्षात्कार में निम्लिखित प्रश्न जोड़ना चाहेंगे:
- कथक सीखने की शुरुआत करने वाले बच्चों को आप क्या सलाह देंगे?
- विदेशों में कथक की लोकप्रियता बढ़ाने के लिए आपने क्या प्रयास किए?
- कथक के भविष्य को आप कैसे देखते हैं?
(ग) यह साक्षात्कार एक सुप्रसिद्ध कलाकार का है। यदि आपको किसी सब्जी विक्रेता, रिक्शा चालक, घरेलू सहायक या सहायिका का साक्षात्कार लेना हो तो आपके प्रश्न किस प्रकार के होंगे?
उत्तर
यदि मुझे सब्जी विक्रेता, रिक्शा चालक, या घरेलू सहायक का साक्षात्कार लेना हो, तो प्रश्न इस प्रकार होंगे:
- आपने यह काम क्यों और कब शुरू किया?
- आपके काम में सबसे बड़ी चुनौती क्या है?
- दिनभर के काम के बाद आप अपने परिवार के साथ समय कैसे बिताते हैं?
- आपके सपने और भविष्य की योजनाएँ क्या हैं?
सृजन
आपके विद्यालय में कथक नृत्य का आयोजन होने जा रहा है।
(क) आप दर्शकों को कथक नृत्यकला के बारे में क्या-क्या बताएँगे? लिखिए।
उत्तर
कथक भारत का एक प्रमुख शास्त्रीय नृत्य है जिसकी उत्पत्ति उत्तर भारत में हुई। यह नृत्यकला “कथक” शब्द से बनी है, जिसका अर्थ है – “कहानी कहने वाला”। कथक की विशेषता इसकी सुंदर मुद्राएँ, भावपूर्ण अभिनय (अभिनय), घुंघरूओं की लयबद्ध झंकार, तथा ताल की सटीकता में निहित होती है। इसमें कलाकार तालबद्ध घूमनों, तेज़ पैर की थापों और आँखों के भावों से कथा को प्रस्तुत करता है। प्रसिद्ध कथक नर्तक बिरजू महाराज जी ने इस नृत्य को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया। यह नृत्य सिर्फ कला नहीं, भारतीय संस्कृति, परंपरा और आध्यात्मिकता का प्रतीक भी है। इस नृत्य के माध्यम से रामायण, महाभारत जैसी कथाएँ भी प्रस्तुत की जाती हैं।
(ख) इस कार्यक्रम की सूचना देने के लिए एक विज्ञापन तैयार करें।
उत्तर
सूचना/विज्ञापन
विद्यालय में कथक नृत्य कार्यक्रम
सभी विद्यार्थियों, अभिभावकों एवं शिक्षकों को सूचित किया जाता है कि हमारे विद्यालय में एक विशेष कथक नृत्य कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। इस कार्यक्रम में विद्यालय के प्रतिभाशाली छात्र-छात्राएँ अपनी नृत्य प्रतिभा का प्रदर्शन करेंगे।
तिथि: 15 मई 2025
समय: प्रातः 10:30 बजे
स्थान: विद्यालय सभागार
विशेष आकर्षण:बिरजू महाराज शैली में कथक प्रस्तुति
सभी से अनुरोध है कि समय पर उपस्थित होकर कलाकारों का उत्साहवर्धन करें।
— प्रधानाचार्य,
सरस्वती विद्या मंदिर इंटर कॉलेज
(ग) यदि इस नृत्य कार्यक्रम में कोई दृष्टिबाधित दर्शक है और वह नृत्य का आनंद लेना चाहे तो इसके लिए विद्यालय की ओर से क्या व्यवस्था की जानी चाहिए?
उत्तर
यदि कार्यक्रम में कोई दृष्टिबाधित दर्शक है, तो विद्यालय को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वह भी नृत्य का आनंद ले सके। इसके लिए एक प्रशिक्षित स्वयंसेवक या टिप्पणीकार को नियुक्त किया जाना चाहिए जो उन्हें कार्यक्रम के दौरान मुँहज़ुबानी रूप में नृत्य की प्रत्येक गतिविधि, भाव-भंगिमा, वेशभूषा, मंच सजावट और कथा की जानकारी दे। यह विवरण धीमी आवाज़ में या हेडफोन के माध्यम से दिया जा सकता है ताकि अन्य दर्शकों को असुविधा न हो। इसके साथ-साथ कथक के संगीत, ताल और घुंघरुओं की आवाज़ से वह दर्शक नृत्य के भावों को अनुभव कर सकता है। इस प्रकार की व्यवस्था उन्हें भी सम्मानपूर्वक सांस्कृतिक अनुभव का अवसर प्रदान करेगी और समावेशी वातावरण को बढ़ावा देगी।
आज की पहेली
“अगर नर्तक को सुर-ताल की समझ है तो वह जान पाएगा कि यह लहरा ठीक नहीं है, इसके माध्यम से नृत्य अंगों में प्रवेश नहीं करेगा।” संगीत में लय को प्रदर्शित करने के लिए ताल का सहारा लिया जाता है। किसी भी गीत की पंक्तियों में लगने वाले समय को मात्राओं द्वारा ठीक उसी प्रकार मापा जाता है, जैसे दैनिक जीवन में समय को सेकंड के द्वारा मापा जाता है। ताल कई मात्रा समूहों का संयुक्त रूप होता है। संगीत के समय को मापने की सबसे छोटी इकाई ‘मात्रा’ होती है और ताल कई मात्राओं का संयुक्त रूप होता है। जिस तरह घंटे में मिनट और मिनट में सेकंड होते हैं, उसी तरह ताल में मात्रा होती है। आज हम आपके लिए ताल से जुड़ी एक अनोखी पहेली लाए हैं।
एक विद्यार्थी ने अपनी डायरी में अपने विद्यालय के किसी एक दिन का उल्लेख किया है। उस उल्लेख में संगीत की कुछ तालों के नाम आए हैं। आप उन तालों के नाम ढूँढिए—
अब नीचे दी गई शब्द पहेली में से संगीत की उन तालों के नाम ढूँढकर लिखें।
उत्तर
शब्द पहेली और डायरी के उल्लेख से तालों के नाम: