Notes of Science in Hindi for Class 10 Chapter 6 नियंत्रण एवं समन्वय विज्ञान 



इस अध्याय में विषय
  • तंत्रिका तंत्र
  • तंत्रिका कोशिका (न्यूरॉन)
  • मानव मस्तिष्क
  • मस्तिष्क एवं मेरूरज्जु की सुरक्षा
  • पौधों में समन्वय
  • पादप हॉर्मोन
  • जंतुओं में हॉर्मोन
  • हॉर्मोन, अंत: स्रावी ग्रंथियां एवं उनके कार्य
  • आयोडीन युक्त नमक

Ch 6 नियंत्रण एवं समन्वय Class 10 विज्ञान Notes

सभी सजीव अपने पर्यावरण में हो रहे परिवर्तनों के अनुरूप अनुक्रिया करते हैं। पर्यावरण में हो रहे ये परिवर्तन जिसके अनुरूप सजीव अनुक्रिया करते हैं, उद्दीपन कहलाता है। जैसे कि प्रकाश, ऊष्मा, ठंडा, ध्वनि, सुगंध, स्पर्श आदि । पौधे एवं जन्तु अलग-अलग प्रकार से उद्दीपन के प्रति अनुक्रिया करते हैं।

जंतुओं में नियंत्रण एवं समन्वय

यह सभी जंतुओं में दो मुख्य तंत्रों द्वारा किया जाता है:

  • तंत्रिका तंत्र
  • अंतःस्रावी तंत्र


तंत्रिका तंत्र

  • नियंत्रण एवं समन्वय तंत्रिका एवं पेशीय उत्तक द्वारा प्रदान किया जाता है।
  • तंत्रिका तंत्र तंत्रिका कोशिकाओं या न्यूरॉन के एक संगठित जाल का बना होता है और यह सूचनाओं को विद्युत आवेग के द्वारा शरीर के एक भाग से दूसरे भाग तक ले जाता है।

ग्राही (Receptors):

ग्राही तंत्रिका कोशिका के विशिष्टीकृत सिरे होते हैं, जो वातावरण से सूचनाओं का पता लगाते हैं। ये ग्राही हमारी ज्ञानेन्द्रियों में स्थित होते हैं।

  1. कान:
    (i) सुनना
    (ii) शरीर का संतुलन
  2. आँख:
    (i) प्रकाशग्राही
    (ii) देखना
  3. त्वचा:
    (i) तापग्राही
    (ii) गर्म एवं ठंडा
    (iii) स्पर्श
  4. नाक:
    (i) घ्राणग्राही
    (ii) गंध का पता लगाना
  5. जीभ:
    (i) रस संवेदी ग्राही
    (ii) स्वाद का पता लगाना

तंत्रिका कोशिका (न्यूरॉन): यह तंत्रिका तंत्र की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई है।


तंत्रिका कोशिका (न्यूरॉन) के भाग

  • दुमिका: कोशिका काय से निकलने वाली धागे जैसी संरचनाएँ, जो सूचना प्राप्त करती हैं।
  • कोशिका काय: प्राप्त की गई सूचना विद्युत आवेग के रूप में चलती है।
  • तंत्रिकाक्ष(एक्सॉन): यह सूचना के विद्युत आवेग को, कोशिकाकाय से दूसरी न्यूरॉन की द्रुमिका तक पहुँचाता है।

अंतर्ग्रथन (सिनेप्स): यह तंत्रिका के अंतिम सिरे एवं अगली तंत्रिका कोशिका के द्रुमिका के मध्य का रिक्त स्थान है। यहाँ विद्युत आवेग को रासायनिक संकेत में बदला जाता है जिससे यह आगे संचरित हो सके।

प्रतिवर्ती क्रिया: किसी उद्दीपन के प्रति तेज व अचानक की गई अनुक्रिया प्रतिवर्ती क्रिया कहलाती है।

उदाहरण: किसी गर्म वस्तु को छूने पर हाथ को पीछे हटा लेना।

प्रतिवर्ती चाप: प्रतिवर्ती क्रिया के दौरान विद्युत आवेग जिस पथ पर चलते हैं, उसे प्रतिवर्ती चाप कहते हैं।


अनुक्रिया

यह तीन प्रकार की होती है:

  1. ऐच्छिक: अग्रमस्तिष्क द्वारा नियंत्रित की जाती है।
    उदाहरण: बोलना, लिखना
  2. अनैच्छिक: मध्य एवं पश्चमस्तिष्क द्वारा नियंत्रित की जाती है।
    उदाहरण: श्वसन, दिल का धड़कना
  3. प्रतिवर्ती क्रिया: मेरुरज्जु द्वारा नियंत्रित की जाती है।
    उदाहरण: गर्म वस्तु छूने पर हाथ को हटा लेना ।

प्रतिवर्ती क्रिया की आवश्यकता

कुछ परिस्थितियों में जैसे गर्म वस्तु छूने पर, पैनी वस्तु चुभने पर आदि हमें तुरंत क्रिया करनी होती है वर्ना हमारे शरीर को क्षति पहुँच सकती है। यहाँ अनुक्रिया मस्तिष्क के स्थान पर मेरुरज्जू से उत्पन्न होती है, जो जल्दी होती है।

मानव मस्तिष्क

मस्तिष्क सभी क्रियाओं के समन्वय का केन्द्र है। इसके तीन मुख्य भाग है।

  1. अग्रमस्तिष्क
  2. मध्यमस्तिष्क
  3. पश्चमस्तिष्क

1. अग्रमस्तिष्क

यह मस्तिष्क का सबसे अधिक जटिल एवं विशिष्ट भाग है। यह प्रमस्तिष्क है।

कार्य:

  • मस्तिष्क का मुख्य सोचने वाला भाग ।
  • ऐच्छिक कार्यों को नियंत्रित करता है।
  • सूचनाओं को याद रखना ।
  • शरीर के विभिन्न हिस्सों से सूचनाओं को एकत्रित करना एवं उनका समायोजन करना।
  • भूख से संबंधित केन्द्र।

2. मध्यमस्तिष्क

अनैच्छिक क्रियाओं को नियंत्रित करना।

जैसे- पुतली के आकार में परिवर्तन। सिर, गर्दन आदि की प्रतिवर्ती क्रिया ।

3. पश्चमस्तिष्क:

इसके तीन भाग हैं:

  1. अनुमस्तिष्क: शरीर की संस्थिति तथा संतुलन बनाना, ऐच्छिक क्रियाओं की परिशुद्धि, उदाहरण: पैन उठाना।
  2. मेडुला: अनैच्छिक कार्यों का नियंत्रण जैसे- रक्तचाप, वमन आदि।
  3. पॉन्स: अनैच्छिक क्रियाओं जैसे श्वसन का नियंत्रण ।


मस्तिष्क एवं मेरूरज्जु की सुरक्षा

(i) मस्तिष्क: मस्तिष्क एक हड्डियों के बॉक्स में अवस्थित होता है। बॉक्स के अन्दर तरलपूरित गुब्बारे में मस्तिष्क होता है जो प्रघात अवशोषक का कार्य करता है।

(ii) मेरुरज्जु: मेरुरज्जु की सुरक्षा कशेरुकदंड या रीढ़ की हड्डी करती है।


तंत्रिका उत्तक एवं पेशी उत्तक के बीच समन्वय

विद्युत संकेत या तंत्रिका तंत्र की सीमाएँ

  1. विद्युत संवेग केवल उन कोशिकाओं तक पहुँच सकता है, जो तंत्रिका तंत्र से जुड़ी हैं।
  2. एक बार विद्युत आवेग उत्पन्न करने के बाद कोशिका, नया आवेग उत्पन्न करने से पहले, अपनी कार्यविधि सुचारु करने के लिए समय लेती है। अत: कोशिका लगातार आवेग उत्पन्न नहीं कर सकती।
  3. पौधों में कोई तंत्रिका तंत्र नहीं होता ।

रासायनिक संचरण: विद्युत संचरण की सीमाओं को दूर करने के लिए रासायनिक संरचण का उपयोग शुरू हुआ।


पौधों में समन्वय

पौधों में गति:

  1. वृद्धि पर निर्भर न होना।
  2. वृद्धि पर निर्भर गति।

(i) उद्दीपन के लिए तत्काल अनुक्रिया

  • वृद्धि पर निर्भर न होना।
  • पौधे विद्युत रासायनिक साधन का उपयोग कर सूचनाओं को एक कोशिका से दूसरी कोशिका तक पहुँचाते हैं।
  • कोशिका अपने अन्दर उपस्थित पानी की मात्रा को परिवर्तित कर, गति उत्पन्न करती है जिससे कोशिका फूल या सिकुड़ जाती है।
    उदाहरण: छूने पर छुई-मुई पौधे की पत्तियों का सिकुड़ना ।

(ii) वृद्धि के कारण गति

ये दिशिक या अनुवर्तन गतियाँ, उद्दीपन के कारण होती है।

  • प्रतान: प्रतान का वह भाग जो वस्तु से दूर होता है, वस्तु के पास वाले भाग की तुलना में तेजी से गति करता है जिससे प्रतान वस्तु के चारों तरफ लिपट जाती है।
  • प्रकाशानुवर्तन: प्रकाश की तरफ गति उदाहरण- प्ररोह की प्रकाश की ओर वृद्धि
  • गुरुत्वानुवर्तन: पृथ्वी की तरफ या दूर गति उदाहरण जड़ की पानी की ओर वृद्धि
  • रासायनानुवर्तन : रसायन की तरफ/दूर गति पराग नली की अंडाशय की तरफ गति ।
  • जलानुवर्तन: पानी की तरफ गति उदाहरण जड़ की पानी की ओर वृद्धि


पादप हॉर्मोन

ये वो रसायन है जो पौधों कि वृद्धि, विकास व अनुक्रिया का समन्वय करते हैं।

मुख्य पादप हॉर्मोन हैं:

(i) ऑक्सिन:

  • शाखाओं के अग्रभाग पर बनता है।
  • कोशिका की लम्बाई में वृद्धि ।
  • प्रकाशानुवर्तन में सहायक ।

(ii) जिब्बेरेलिन:

  • तने की वृद्धि में सहायक ।

(iii) साइटोकाइनिन:

  • कोशिका विभाजन तीव्र करता है।
  • फल व बीज में अधिक मात्रा में पाया जाता है।

(iv) एब्सिसिक अम्ल:

  • वृद्धि संदमन।
  • पत्तियों का मुरझाना।
  • तनाव हॉर्मोन ।

 

जंतुओं में हॉर्मोन

हॉर्मोन: ये वो रसायन है जो जंतुओं की क्रियाओं, विकास एवं वृद्धि का समन्वय करते हैं।

अंतः स्रावी ग्रन्थि: ये वो ग्रंथियाँ हैं जो अपने उत्पाद रक्त में स्रावित करती हैं, जो हॉर्मोन कहलाते हैं।


हॉर्मोन, अंत: स्रावी ग्रंथियां एवं उनके कार्य

क्र. स.

हॉर्मोन

ग्रंथि

स्थान

कार्य

1.

थायरॉक्सिन

अवटुग्रंथि

गर्दन में

कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन व वसा का उपापचय

2.

वृद्धि हॉर्मोन

पीयूष ग्रंथि (मास्टर ग्रंथि)

मस्तिष्क में

वृद्धि व विकास का नियंत्रण

3.

एड्रीनलीन

अधिवृक्क

वृक्क (Kidney) के ऊपर

B.P., हृदय की धड़कन आदि का नियंत्रण आपातकाल में

4.

इंसुलिन

अग्न्याशय

उदर के नीचे

रक्त में शर्करा की मात्रा का नियंत्रण

5.

लिंग हॉर्मोन:

टेस्टोस्टेरोन (नर में)

एस्ट्रोजन मादा में

 

वृषण

अंडाशय

पेट का निचला हिस्सा

यौवनारंभ से संबंधित परिवर्तन (लैंगिक परिपक्वता)

6.

मोचक हार्मोन

हाइपोथेलमस

मस्तिष्क में

पीयूष ग्रंथि से हार्मोन के स्त्राव को प्ररित करता है।


आयोडीन युक्त नमक

अवटुग्रंथि (थॉयरॉइड ग्रंथि) को थायरॉक्सिन हॉर्मोन बनाने के लिए आयोडीन की आवश्यकता होती है। थायरॉक्सिन कार्बोहाइड्रेट, वसा तथा प्रोटीन के उपापचय का नियंत्रण करता है जिससे शरीर की संतुलित वृद्धि हो सके। अतः अवटुग्रंथि के सही रूप से कार्य करने के लिए आयोडीन की आवश्यकता होती है। आयोडीन की कमी से गला फूल जाता है, जिसे गॉयटर (घेंघा) बीमारी कहते हैं।


मधुमेह (डायबिटीज): इस बीमारी में रक्त में शर्करा का स्तर बढ़ जाता है।

कारण: अग्न्याशय ग्रंथि द्वारा स्रावित इंसुलिन हॉर्मोन की कमी के कारण होता है। इंसुलिन रक्त में शर्करा के स्तर को नियंत्रित करता है।

निदान (उपचार): इंसुलिन हॉर्मोन का इंजेक्शन ।

पुनर्भरण क्रियाविधि: हॉर्मोन का अधिक या कम मात्रा में स्रावित होना हमारे शरीर पर हानिकारक प्रभाव डालता है। पुनर्भरण क्रियाविधि यह सुनिश्चित करती है कि हॉर्मोन सही मात्रा में तथा सही समय पर स्रावित हो ।

उदाहरण के लिए: रक्त में शर्करा के नियंत्रण की विधि ।

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