Notes of Science in Hindi for Class 10 Chapter 3 धातु एवं अधातु विज्ञान 

Ch 3 धातु एवं अधातु mind maps

इस अध्याय में विषय
  • धातु एवं अधातु में अंतर
  • वायु के साथ धातु की अभिक्रिया
  • धातुओं का एनोडीकरण
  • तनु अम्लों के साथ धातु की अभिक्रिया
  • धातुओं की अन्य लवणों के साथ अभिक्रिया
  • धातुओं की अधातुओं के साथ अभिक्रिया
  • आयनिक यौगिकों के गुणधर्म
  • धातुओं की प्राप्ति
  • सक्रियता श्रेणी में निचली धातुओं का निष्कर्षण
  • सक्रियता श्रेणी के मध्य में स्थित धातुओं का निष्कर्षण
  • सक्रियता श्रेणी के शीर्ष में उपस्थित धातुओं का निष्कर्षण
  • धातुओं का परिष्करण

Ch 3 धातु एवं अधातु Class 10 विज्ञान Notes

धातु एवं अधातु

वर्तमान में 118 तत्व ज्ञात हैं। इनमें 90 से अधिक धातुऐं, 22 अधातुऐं और कुछ उपधातु हैं।

सोडियम (Na), पोटाशियम (K) मैग्नीशियम (Mg), लोहा (Fe), एलुमिनियम (Al), कैल्शियम (Ca), बेरियम (Ba) धातुऐं हैं ।

ऑक्सजीन (O), हाइड्रोजन (H), नाइट्रोजन (N), सल्फर (S), फास्फोरस (P), फ्लूओरीन (F), क्लोरीन (Cl), ब्रोमीन (Br), आयोडिन (I), अधातुऐं हैं।


धातुओं और अधातुओं में अंतर

धातुऐं

अधातुऐं

भौतिक गुणधर्म

क्लोरीन - गैस, आयोडीन - ठोस

तन्य और आघातवर्ध्य

अधातुऐं तन्य और आघातवर्ध्य नहीं होती।

ध्वानिक और चमक दर्शाने वाली

अधातुऐं ध्वानिक नहीं होती और चमकहीन होती हैं। आयोडीन और ग्रेफाइट में चमक होती है।

सामान्यतः उच्च घनत्व, लेकिन सोडियम और पोटाशियम का धनत्व कम होता है।

अधातुओं का घनत्व अपेक्षाकृत कम होता है।

धातु ऑक्साइड क्षारीय या उमयधर्मी होते है।

रासायनिक गुणधर्म

अधातु ऑक्साइड की प्रकृति अम्लीय होती।

धातुऐं तनु अम्ल से हाइड्रोजन को विस्थापित कर हाइड्रोजन गैस निर्मित करती है।

अधातु ऑक्साइड तनु अम्ल से हाइड्रोजन को विस्थापित नहीं करती।

धातु ऑक्साइड आयनिक होते हैं ।

अधातु ऑक्साइड सहसंयोजी होते हैं।


वायु के साथ अभिक्रिया

धातु वायु में जल सकते हैं, वायु से अभिक्रिया कर सकते हैं या अप्रभावित रहते है।

धातु + ऑक्सीजन ⟶ धातु ऑक्साइड

  • Na तथा K को आकस्मिक आग से रोकने के लिये किरोसीन तेल में डुबो कर रखा जाता है।
  • Mg, Al, Zn, Pb वायु के साथ धीरे अभिक्रिया करते हैं। इन धातुओं पर ऑक्साइड की पतली सुरक्षा परत चढ़ जाती है।
  • Mg वायु में जलने पर सफेद MgO बनाता है।
  • Fe एवं Cu वायु में गर्म करने पर प्रज्वलित नहीं होते अपितु अपने ऑक्साइड बनाते हैं। ज्वाला में लौह चूर्ण डालने पर वे तेजी से जलने लगते हैं।
  • Ag तथा Au (गोल्ड) ऑक्सीजन के साथ अभिक्रिया नहीं करते ।
    2Na + O2 ⟶ Na2O
    2Mg + O2 ⟶ 2MgO
    2Cu + O2 ⟶ 2CuO (काला)

उभयधर्मी ऑक्साइडः वे धातु ऑक्साइड जो अम्ल तथा क्षार के अभिक्रिया करने के बाद लवण एवं जल उत्पन्न करते हैं। जैसे ZnO, Al2O3

  • Al2O3 + 6HCl → 2AlCl3 + 3H2O
  • Al2O3 + 2NaOH → 2NaAlO2 + Н2О 

(NaAlO:सोडियम एल्यूमिनेट)

धातुओं का एनोडीकरण

इस प्रक्रम में एल्यूमिनियम को ऐनोड और ग्रेफाइट को कैथोड बनाया जाता है। सल्फ्यूरिक अम्ल के वैदयुत अपघटन के बाद ऑक्सीजन गैस उत्पन्न होती हे। ऑक्सीजन और एल्यूमिनियम की अभिक्रिया से, धातु की बाहरी सतह पर ऑक्साइड की मोटी परत बनती है।

जल के साथ अभिक्रियाः धातुओं एवं जल की अभिक्रिया भिन्न होती है। सभी धातुऐं जल से अभिक्रिया नहीं करती ।

  • 2K + 2H2O → 2KOH + H2
  • Ca + 2H2O → 2Ca(OH)2 + H2
  • Mg + 2H2O → Mg(OH)2 +H2

Ca तथा Mg की जल से अभिक्रिया के दौरान उत्पन्न हाइड्रोजन गैस के बुलबुले धातु के साथ चिपक जाते हैं तथा धातु तैरना प्रारंभ कर देती है।

  • 2Al + 3H2O → Al2O3 + 3H2
  • 3Fe + 4H2O → Fe3O4 + 4H2


तनु अम्लों के साथ अभिक्रिया

धातु + तनु अम्ल → लवण + हाइड्रोजन गैस


(i) सामान्यतः धातुऐं तनु अम्ल (HCl तथा H2SO4) के साथ अभिक्रिया कर लवण तथा हाइड्रोजन उत्पन्न करती है।

  • Fe + 2HCl → FeCl2 + H2
  • Mg + 2HCl → MgCl2 + H2
  • Zn + 2HCl → ZnCl2 + H2
  • Al + 6HC1 → 2AlCl3 + 3H2

कॉपर, मर्करी एवं चाँदी तनु अम्लों के साथ अभिक्रिया नहीं करते।


(ii) तनु नाइट्रिक अम्ल के साथ अभिक्रियाः उत्पन्न H2 गैस उपचयित हो H2O उत्पन्न करती है, जब धातु नाइट्रिक अम्ल (HNO3) के साथ अभिक्रिया करते हैं । (परंतु Mg एवं Mn धातुऐं, तनु नाइट्रिक अम्ल से अभिक्रिया करने पर, H2 गैस बनाती है ।)

ऐक्वारेजिया

यह 3:1 के अनुपात में सांद्र हाइड्रोक्लोरिक अम्ल एवं सांद्र नाइट्रिक अम्ल का मिश्रण होता है। यह गोल्ड और प्लैटिनम को गलाने में समर्थ होता है।


धातुओं की अन्य लवणों के साथ अभिक्रिया

धातु (क) + धातु (ख) का लवण विलयन → धातु (क) का लवण विलयन + धातु (ख)

  • सभी धातुऐं सम- अभिक्रियाशील नहीं होती। अधिक क्रियाशील धातुऐं: अपने से कम क्रियाशील धातुओं को उनके यौगिक के विलयन या गलित अवस्था में विस्थापित करती है। यह तथ्य धातुओं की सक्रियता श्रेणी का आधार है ।
  • सक्रियता श्रेणी: वह सूची जिसमें धातुओं को क्रियाशीलता के अवरोही क्रम में व्यवस्थित किया गया है।
    K>Na>Ca>Mg>Al>Zn>Fe>Pb>H>Cu>Hg>Ag>Au

Cu + AgNO3 → Cu(NO3)2 + Ag

(Cu(NO3)2 का रंग नीला होता है)

कॉपर चाँदी से अधिक क्रियाशील होने के कारण चाँदी को विस्थापित करता है ।


धातुओं की अधातुओं के साथ अभिक्रिया

तत्वों की अभिक्रियाशीलता, संयोजकता कोश को पूर्ण करने की प्रवृति के रूप में समझी जा सकती है।

  • धातु के परमाणु, अपने संयोजकता कोश से इलेक्ट्रान त्याग करते हैं तथा धनायन बनाते हैं।
  • अधातु के परमाणु, संयोजकता कोश में इलेक्ट्रॉन ग्रहण कर ऋणायन बनाते है। विपरीत आवेशित आयन एक-दूसरे को आकर्षित करते हैं तथा मजबूत स्थिर वैद्युत बल में बँधकर आयनिक यौगिक बनाते हैं ।

MgCl2 का निर्माण:


आयनिक यौगिकों के गुणधर्म

  • कठोर तथा भंगुर।
  • उच्च गलनांक एवं क्वथनांक।

मजबूत अंतर: आयनिक आकर्षण को तोड़ने के लिये ऊर्जा की पर्याप्त मात्रा में आवश्यकता।

सामान्यता जल में घुलनशील। किरोसीन एवं पैट्रोल में अघुलनशील।

गलित अवस्था तथा विलयन रूप में विद्युत के सुचालक। इन अवस्थाओं में मुक्त आयन उपलब्ध होने के कारण विद्युत प्रवाहित होती है।


धातुओं की प्राप्ति

  • खनिजः पृथ्वी में प्राकृतिक रूप से उपस्थित तत्वों एवं धातु के यौगिकों को खनिज कहते हैं।
  • अयस्कः वे खनिज जिनमें कोई विशेष धातु प्रचुर मात्रा में होती है तथा उसे निकालना सरल और लाभकारी होता है।
  • सक्रियता श्रेणी में निचली धातुऐं स्वतंत्र अवस्था में पाई जाती है। उदाहरण, गोल्ड, सिल्वर, कॉपर। यद्यपि कॉपर तथा सिल्वर सल्फाईड तथा ऑक्साइड अयस्क के रूप में प्राप्त होते हैं।
  • सक्रियता श्रेणी में मध्य में उपस्थित धातु प्रमुखतः सल्फाईड, ऑक्साईड तथा कार्बोनेट अयस्क के रूप में प्राप्त होते हैं। उदाहरण- Zn, Fe, Pb । अधिक क्रियाशील धातुऐं स्वतंत्र रूप से नहीं मिलती। जैसे - पोटाशियम, सोडियम, कैल्शियम।
  • गैंगः खनिज अयस्कों में मिट्टी, रेत जैसी अशुद्धियां होती हैं, जो गैंग कहलाती है।


धात्विकी: अयस्क धातु प्राप्ति की क्रम-गत प्रक्रिया ।

  • अयस्क का समृद्धिकरण/सांद्रिकरण ।
  • सांद्रित अयस्क से धातु की प्राप्ति ।
  • अशुद्ध से शुद्ध धातु की परिष्करण द्वारा प्राप्ति ।


सक्रियता श्रेणी में निचली धातुओं का निष्कर्षण

अयस्क को वायु में गर्म करके।

  • सिनाबार से मर्करी की प्राप्ति
  • कॉपर सल्फाईड द्वारा कॉपर की प्राप्ति


सक्रियता श्रेणी के मध्य में स्थित धातुओं का निष्कर्षण

धातु को ऑक्साईड अयस्क से प्राप्त करना सुलभ होता है। इसी कारणवश सल्फाईड एवं कार्बोनेट अयस्कों को ऑक्साईड अयस्क में परिवर्तित किया जाता है।

  • अयस्क को वायु में अधिक ताप पर गर्म करना।

    यह प्रक्रम भर्जन कहलाता है।
  • अयस्क को सीमित वायु में अधिक ताप पर गर्म करना

    यह प्रक्रम निस्तापन कहलाता है।
    धातु आक्साईड का अपचयन

(i) कोयला प्रयोग करके: अपचयकारक के रूप में कोयला

(ii) विस्थापन अभिक्रिया करके: अधिक क्रियाशील धातु जैसे Na, Ca तथा Al का प्रयोग क क्रियाशील धातुओं को उनके यौगिकों से विस्थापित करने में किया जाता है।

उपरोक्त अभिक्रिया में लोहा गलित रूप में प्राप्त होता है, जिसका उपयोग रेल की टूटी हुई पटरियों को जोड़ने में होता है । इस प्रक्रम को थर्मिट अभिक्रिया कहते है।


सक्रियता श्रेणी के शीर्ष में उपस्थित धातुओं का निष्कर्षण

इन धातुओं की बंधुता कार्बन की अपेक्षा ऑक्सीजन के प्रति अधिक होती है।

इन धातुओं को वैद्युत अपघटनी अपचयन के द्वारा प्राप्त करते हैं । सोडियम को उसके गलित क्लोराइड के विद्युत अपघटन द्वारा प्राप्त करते हैं।

NaCl → Na+ + Cl-

विलयन अथवा गलित अवस्था में विद्युत प्रवाह में पश्चात् कैथोड (ऋण आवेशित) पर सोडियम निक्षेपित हो जाती है तथा ऐनोड (धन आवेशित) पर क्लोरीन मुक्त होती है।

  • कैयोड परः Na+ + e- → Na
  • ऐनोड परः 2Cl- → Cl2 + 2e-


धातुओं का परिष्करण

प्राप्त धातुओं की अशुद्वियों या अपद्रव्य को वैद्युत अपघटनी परिष्करण द्वारा हटाया जा सकता है। शुद्ध कॉपर को इस विधि से प्राप्त किया जाता है। वैद्युत अपघटनी परिष्करण में निम्नलिखित प्रयुक्त होते हैं।

  •  ऐनोड – अशुद्ध कॉपर धातु की छड़।
  •  कैथोड – शुद्ध कॉपर धातु की छड़।

विलयन: कॉपर सल्फेट के जलीय विलयन के साथ सूक्ष्म मात्रा में तनु सल्फ्यूरिक अम्ल।

विद्युत प्रवाह करने के पश्चात् ऐनोड में अशुद्ध धातु विद्युत अपघट्य में घुल जाती है। तथा उतनी ही मात्रा में शुद्ध कॉपर विद्युत अपघट्य से कैथोड पर निक्षेपित होती है।

अविलेय अशुद्धियां ऐनोड तली पर निक्षेपित होती है, जिसे ऐनोड पंक कहते हैं।

  • संक्षारणः धातुऐं अपने आसपास अम्ल, आर्द्रता आदि के संपर्क में आने पर संक्षारित होती है।
  • सिल्वर: वायु में उपस्थित सल्फर के साथ अभिक्रिया कर सिल्वर सल्फाइड बनाता है तथा वस्तु काली हो जाती है।
  • लोहा: आर्द्र वायु में लोहे पर भूरे रंग के पत्रकी पदार्थ की परत चढ़ जाती है, जिसे जंग कहते हैं। वायु तथा आर्द्रता लोहे पर जंग लगने के लिये आवश्यक है।
  • कॉपर: आर्द्र कार्बन डाइऑक्साइड के साथ अभिक्रिया करके हरे रंग का क्षारीय कॉपर कार्बेनेट बनाता है।
  • संक्षारण से सुरक्षाः लोहे को जंग लगने से पेंट करके, तेल लगाकर, ग्रीस लगाकर, यशदलेपन कर, क्रोमियम लेपन द्वारा, ऐनोडीकरण या मिश्रधातु बनाकर बचाया जा सकता है।
    लोहे एवं इस्पात को जंग से सुरक्षित रखने के लिये उनपर जस्ते (जिंक) की पतली परत चढ़ाई जाती है, इसे यशदलेपन प्रक्रम कहते हैं।
  • मिश्रधातुः ये धातु तथा अन्य धातुओं अथवा अधातुओं का समांगी मिश्रण होते हैं ।
    सूक्ष्म मात्रा में कार्बन का मिश्रण करने पर लोहा कठोर एवं प्रबल हो जाता है।
    लोहे में निकैल और क्रोमियम मिश्रित करने पर स्टेनलैस इस्पात प्राप्त होता है। जो कठोर एवं जंग-रोधी होता है।
    मर्करी (पारद) को अन्य तत्वों के साथ मिश्रित करने पर अमलगम निर्मित होते है।
  • पीतल: कॉपर एवं जिंक की मिश्रधातु ।
  • कांसा: कॉपर एवं टिन की मिश्रधातु ।
    इन दोनों मिश्रधातु की विद्युत चालकता एवं गलनांक शुद्ध धातु की अपेक्षा कम होता है।
  • सोल्डर, यह सीसा और टिन (Pb एवं Sn) का मिश्रधातु है जिसका गलनांक बहुत कम होता है और इसका उपयोग विद्युत तारों को परस्पर वेल्डिंग के लिये करते हैं।

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