Notes of Science in Hindi for Class 10 Chapter 12 विद्युत् धारा के चुम्बकीय प्रभाव विज्ञान 

Notes of Science in Hindi for Class 10 Chapter 12 विद्युत् धारा के चुम्बकीय प्रभाव विज्ञान


इस अध्याय में विषय
  • चुम्बक के गुण
  • छड़ चुम्बक का चुम्बकीय क्षेत्र
  • दक्षिण (दायाँ) हस्त अंगुष्ठ नियम
  • परिनालिका
  • फ्लेमिंग का वाम (बाया) हस्त नियम
  • विद्युत मोटर
  • लेमिंग दक्षिण (दायां) हस्त नियम
  • विद्युत जनित्र
  • DC दिष्ट धारा जनित्र
  • घरेलू विद्युत परिपथ

Ch 12 विद्युत् धारा के चुम्बकीय प्रभाव Class 10 विज्ञान Notes

चुम्बक वह पदार्थ है जो लौह तथा लौह युक्त चीजों को अपनी तरफ आकर्षित करती है।

चुम्बक के गुण :

  • प्रत्येक चुम्बक के दो ध्रुव होते हैं: उत्तरी ध्रुव तथा दक्षिणी ध्रुव ।
  • समान ध्रुव एक-दूसरे को प्रतिकर्षित करते हैं।
  • असमान ध्रुव एक-दूसरे को आकर्षित करते हैं।
  • स्वतंत्र रूप से लटकाई हुई चुम्बक लगभग उत्तर-दक्षिण दिशा में रुकती है, उत्तरी ध्रुव उत्तर दिशा की और संकेत करते हुए ।


चुम्बकीय क्षेत्र: चुम्बक के चारों ओर का वह क्षेत्र जिसमें चुम्बक के बल का संसूचन किया जाता है।

SI मात्रक: टेस्ला (Tesla) है।

चुम्बकीय क्षेत्र में परिमाण व राशि दोनों होते हैं। चुम्बकीय क्षेत्र को दिक्सूचक की सहायता समझाया जा सकता है।

दिक्सूचक की सूई स्वतंत्र लटकी हुई एक छड़ चुम्बक होती है।

चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं के गुण:

  • क्षेत्रीय रेखाएं उत्तरी ध्रुव से प्रकट होती हैं तथा दक्षिणी ध्रुव पर विलीन हो जाती हैं।
  • क्षेत्र रेखाएं बंद वक्र होती हैं।
  • प्रबल चुम्बकीय क्षेत्र में रेखाएँ अपेक्षाकृत अधिक निकट होती हैं।
  • दो रेखाएँ कहीं भी एक-दूसरे को प्रतिच्छेद नहीं करतीं क्योंकि यदि वे प्रतिच्छेद करती हैं तो इसका अर्थ है कि एक बिंदु पर दो दिशाएँ जो संभव नहीं हैं।
  • चुम्बकीय क्षेत्र की प्रबलता को क्षेत्र रेखाओं की निकटता की कोटि द्वारा दर्शाया जाता है।


छड़ चुम्बक का चुम्बकीय क्षेत्र

हैंस क्रिश्चियन ऑर्टेड: वह पहला व्यक्ति था जिसने पता लगाया था कि विद्युत धारा चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करती है।


दक्षिण (दायाँ) हस्त अंगुष्ठ नियम

कल्पना कीजिए कि आप अपने दाहिने हाथ में विद्युत धारावाही चालक को इस प्रकार पकड़े हुए हो कि आपका अंगूठा विद्युत धारा की ओर संकेत करता हो तो आपकी अगुलियाँ चालक के चारों ओर चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा बताएँगी।


सीधे चालक से विद्युत धारा प्रवाहित होने के कारण चुम्बकीय क्षेत्र:

  • चुम्बकीय क्षेत्र चालक के हर बिंदु पर सकेंद्री वृतों द्वारा दर्शाया जा सकता है।
  • चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा दक्षिण हस्त अंगुष्ठ नियम या दिक्सूचक से दी जा सकती है। ● चालक के नजदीक वाले वृत निकट-निकट होते हैं।
  • चुम्बकीय क्षेत्र ∝ धारा की शक्ति ।
  • चुम्बकीय क्षेत्र ∝ 1/चालक से दूरी


विद्युत धारावाही वृताकार पाश के कारण चुम्बकीय क्षेत्र :

  • चुम्बकीय क्षेत्र प्रत्येक बिंदु पर संकेन्द्री वृत्तों द्वारा दर्शाया जा सकता है।
  • जब हम तार से दूर जाते हैं तो वृत निरंतर बड़े होते जाते हैं।
  • विद्युत धारावाही तार के प्रत्येक बिंदु से उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ पाश के केंद्र पर सरल रेखा जैसे प्रतीत होने लगती है।
  • पाश के अंदर चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा एक समान होती है।

 

 

विद्युत धारावाही वृत्ताकार पाश के चुम्बकीय क्षेत्र को प्रभावित करने वाले कारक :

  • चुम्बकीय क्षेत्र ∝ चालक में से प्रभावित होने वाली धारा।
  • चुम्बकीय क्षेत्र ∝ 1/चालक से दूरी ।
  • चुम्बकीय क्षेत्र कुंडली के फेरों की संख्या ।

चुम्बकीय क्षेत्र संयोजित है। प्रत्येक फेरे का चुम्बकीय क्षेत्र दूसरे फेरे के चुम्बकीय क्षेत्र में संयोजित हो जाता है क्योंकि विद्युत धारा की दिशा हर वृत्ताकार फेरे में समान है।


परिनालिका

पास-पास लिपटे विद्युत रोधी तांबे के तार की बेलन की आकृति की अनेक फेरों वाली कुंडली का परिनालिका कहते हैं।

  • परिनालिका का चुम्बकीय क्षेत्र छड़ चुम्बक के जैसा होता है।
  • परिनालिका के अंदर चुम्बकीय क्षेत्र एक समान है तथा समांतर रेखाओं के द्वारा दर्शाया जाता है।

चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा:

  • परिनालिका के बाहर - उत्तर से दक्षिण
  • परिनालिका के अंदर - दक्षिण से उत्तर
  • परिनालिका का उपयोग किसी चुम्बकीय पदार्थ जैसे नर्म लोहे को चुम्बक बनाने में किया जाता है।

 

विद्युत चुम्बक

स्थायी चुम्बक

1. यह अस्थायी चुम्बक होता है अत: आसानी से चुम्बकत्व समाप्त हो सकता है।

1. आसानी से चुम्बकत्व समाप्त नहीं किया जा सकता।

2. इसकी शक्ति बदली जा सकती है।

2. शक्ति निश्चित होती है।

3. ध्रुवीयता बदली जा सकती है।

3. ध्रुवीयता नहीं बदली जा सकती।

4. प्रायः अधिक शक्तिशाली होते हैं।

4. प्राय: कमजोर चुम्बक होते हैं।

 

चुम्बकीय क्षेत्र में किसी विद्युत धारावाही चालक पर बल

आंद्रे मेरी ऐम्पियर ने प्रस्तुत किया कि चुम्बक भी किसी विद्युत धारावाही चालक पर परिमाण में समान परन्तु दिशा में विपरीत बल आरोपित करती है।

चालक में विस्थापन उस समय अधिकतम होता है जब विद्युत धारा की दिशा चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा के लम्बवत् होती है ।

विद्युत धारा की दिशा बदलने पर बल की दिशा भी बदल जाती है।


फ्लेमिंग का वाम (बाया) हस्त नियम

अपने हाथ की तर्जनी, मध्यमा तथा अंगूठे को इस प्रकार फैलाइए कि ये तीनों एक-दूसरे के परस्पर लम्बवत हों । यदि तर्जनी चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा और मध्यमा चालक में प्रवाहित धारा की दिशा की ओर संकेत करती है तो अंगूठा चालक की गति की दिशा या बल की दिशा की ओर संकेत करेगा ।


विद्युत मोटर

विद्युत मोटर एक ऐसी घूर्णन युक्ति है जो विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में रूपांतरित करती है। विद्युत मोटर का उपयोग विद्युत पंखों, रेफ्रिजेरेटरों, वाशिंग मशीन, विद्युत मिश्रकों MP-3 प्लेयरों आदि में किया जाता है।

विद्युत मोटर का सिद्धांत

विद्युत मोटर - विद्युत धारा के चुम्बकीय प्रभाव का उपयोग करती है। जब किसी धारावाही आयतकार कुंडली को चुम्बकीय क्षेत्रा में रखा जाता है तो कुंडली पर एक बल आरो"त होता है जिसके फलस्वरूप कुंडली और धुरी का निरंतर घुर्णन होता रहता है। जिससे मोटर को दी गई विद्युत उर्जा यांत्रिक उर्जा में रूपांतरित हो जाती है।

संरचना:

  1. आर्मेचर: विद्युत मोटर में एक विद्युत रोधी तार की एक आयतकार कुंडली ABCD जो कि एक नर्म लोहे के कोड पर लपेटी जाती है उसे आर्मेचर कहते हैं।
  2. प्रबल चुम्बक: यह कुंडली किसी प्रबल चुम्बकीय क्षेत्र के दो ध्रुवों के बीच इस प्रकार रखी जाती है कि इसकी भुजाएँ AB तथा CD चुम्बकीय क्षेत्रा की दिशा के लबंवत रहें।
  3. विभक्त वलय या दिक परिवर्त्तक: कुंडली के दो "रे धातु की बनी विभक्त वलय को दो अर्ध भागों P तथा Q से संयोजित रहते हैं। इस युक्ति द्वारा कुंडली में प्रवाहित विद्युत धारा की दिशा को बदला या उर्तमत किया जा सकता है।
  4. ब्रुश: दो स्थिर चालक (कार्बन की बनी ) ब्रुश X तथा Y विभक्त वलय P तथा Q से हमेशा स्पर्श में रहती है। ब्रुश हमेशा विभक्त वलय तथा बैटरी को जोड़ कर रखती है।
  5. बैटरी: बैटरी दो ब्रुशों X तथा Y के बीच संयोजित होती है। विद्युत धारा बैटरी से चलकर ब्रुश X से होते हुए कुंडली ABCD में प्रवेश करती है तथा ब्रुश Y से होते हुए बैटरी के दूसरे टर्मिनल पर वापस आ जाती है।

मोटर की कार्यविधि :

  1. जब कुंडली ABCD में विद्युत धारा प्रवाहित होती है, तो कुंडली के दोनों भुजा AB तथा CD पर चुम्बकीय बल होता है।
  2. फ्लेमिंग वामटस्त नियम अनुसार कुंडली की AB भुजा पर आरो" त बल उसे अधोमुखी ध् ाकेलता है तथा CD भुजा पर बल उपरिमुखी धकेलता है।
  3. दोनों भुजाओं पर बल बराबर तथा विपरित दिशाओं में लगते हैं। जिससे कुंडली अक्ष पर वामावर्त घूर्णन करती है।
  4. आधे घूर्णन में Q का सम्पर्क ब्रुश X से होता है तथा P का सम्पर्क ब्रुश Y से होता है। अंत: कुंडली में विद्युत धारा उत्क्रमित होकर पथ DCBA के अनुदिश प्रवाहित होती है।
  5. प्रत्येक आधे घूर्णन के पश्चात विद्युत धारा के उत्क्रमित होने का क्रम दोहराता रहता है जिसके फलस्वरूप कुंडली तथा धुरी का निरंतर घूर्णन होता रहता है।

व्यावसायिक मोटरों - मोटर की शक्ति में वृद्धि उपाय

  1. स्थायी चुम्बक के स्थान पर विद्युत चुम्बक प्रयोग किए जाते है।
  2. विद्युत धारावाही कुंडली में फेरों की संख्या अधिक होती है।
  3. कुंडली नर्म लौह-क्रोड पर लपेटी जाती है। नर्म लौह क्रोड जिस पर कुंडली लपेटी जाती है तथा कुंडली दोनों को मिलाकर आर्मेचर कहते है।
  • मानव शरीर के हृदय व मस्तिष्क में महत्वपूर्ण चुम्बकीय क्षेत्र होता है।

MRI (Megnetic Resonance Imaging): चुम्बकीय अनुनाद प्रतिबिंबन का प्रयोग करके शरीर के भीतरी अंगों के प्रतिबिम्ब प्राप्त किए जा सकते हैं।

गेल्वेनोमीटर: एक ऐसी युक्ति है जो परिपथ में विद्युत धारा की उपस्थिति संसूचित करता है। यह धारा की दिशा को भी संसूचित करता है।

वैद्युत चुम्बकीय प्रेरण: जब किसी चालक को परिवर्ती चुम्बकीय क्षेत्र में रखा जाता है तो चालक में विद्युत धारा प्रेरित होती है। यह धारा, प्रेरित विद्युत धारा कहलाती है तथा यह परिघटना वैद्युत चुम्बकीय प्रेरणा कहलाती है।

क्रिया कलाप (1)

  1. जब चुम्बक को कुंडली की तरफ लाया जाता है तो - गेल्वेनोमीटर में क्षणिक विक्षेप विद्युत धारा की उपस्थिति को इंगित करता है।
  2. जब चुम्बक को कुंडली के निकट स्थिर अवस्था में रखा जाता है तो कोई विक्षेप नहीं।
  3. जब चुम्बक को दूर ले जाया जाता है तो, गेल्वेनोमीटर में क्षणिक विक्षेप होता है। परन्तु पहले के विपरीत है।

क्रिया कलाप (2):

प्राथमिक कुंडली

द्वितीयक कुंडली

1. स्विच ऑन किया जाता है

1. गेल्वेनोमीटर में क्षणिक विक्षेप

2. स्थायी विद्युत धारा

2. कोई विक्षेप नहीं

3. सिवच ऑफ किया जाता है

3. गेल्वेनोमीटर में क्षणिक विक्षेप परन्तु पहले के विपरीत दिशा में

 

लेमिंग दक्षिण (दायां) हस्त नियम

अपने दाहिने हाथ की तर्जनी, मध्यमा तथा अंगूठे को इस प्रकार फैलाइए कि तीनों एक-दूसरे के लम्बवत हों। यदि तर्जनी चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा तथा अंगूठा चालक की दिशा की गति की ओर संकेत करता है तो मध्यमा चालक में प्रेरित विद्युत धारा की दिशा दर्शाती है।

यह नियम :

  1. जनित्र (जनरेटर) की कार्य प्रणाली का सिद्धांत है।
  2. प्रेरित विद्युत धारा की दिशा ज्ञात करने के काम आता है।


विद्युत जनित्र

विद्युत जनित्र द्वारा विद्युत उर्जा या विद्युत धारा का निर्माण किया जाता है। विद्युत जनित्रा में यांत्रिक उर्जा को विद्युत उर्जा में रूपांतरित किया जाता है।

विद्युत जनित्र का सिद्धांत :

विद्युत जनित्र में यांत्रिक उर्जा का उपयोग चुम्बकीय क्षेत्र में रखे किसी चालक को घूर्णी गति प्रदान करने में किया जाता है। जिसके फलस्वरूप विद्युत धारा उत्पन्न होती है । विद्युत जनित्र वैद्युत चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धान्त पर कार्य करता है। एक आयताकार कुंडली ABCD को स्थायी चुम्बकीय क्षेत्रा में घुर्णन कराए जाने पर, जब कुंडली की गति की दिशा चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा के लम्बवत होती है तब कुंडली में प्रेरित विद्युत धारा उत्पन्न होती है। विद्युत जनित्र फ्लेमिंग के दक्षिण हस्त नियम पर आधारित है।

सरंचना :

  1. स्थायी चुम्बक: कुंडली को स्थायी प्रबल चुम्बकीय क्षेत्र के दो ध्रुवों के बीच रखा जाता है।
  2. आर्मेचर: विद्युतरोधी तार के अधिक फेरों वाली आयताकार कुंडली ABCD जो एक नर्म होले के क्रोड पर लपेटी जाती है उसे आर्मेचर कहते हैं।
  3. वलय: कुंडली के दो सिरे दो Brass वलय R1 and R2 से समायोजित होते हैं जब कुंडली घूर्णन गति करती है तो वलय R1 और R2 भी गति करते है।
  4. ब्रुश: दो स्थिर चालक ग्रेफाइट ब्रुश B1 और B2 पृथक-पृथक रूप से क्रमशः वलय R1 और R2 को दबाकर रखती है। दोनों ब्रुश B1 और B2 कुंडली में उत्पन्न प्रेरित विद्युत धारा को बाहरी परिपथ में भेजने का कार्य करती है।
  5. धुरी: दोनों वलय R1 और R2 धुरी से इस प्रकार जुड़ी रहती है कि बिना बाहरी परिपथ को हिलाए वलय स्वतंत्रातापूर्वक घूर्णन गति करती है।
  6. गैलवेनो मीटर: प्रेरित विद्युत धारा को मापने के लिए ब्रुशों के बाहरी सिरों को गैलवेनो मीटरmके दोनों टर्मिनलों से जोड़ा जाता है।

कार्यविधि :

  1. एक आयताकार कुंडली ABCD जिसे स्थायी चुम्बक के दो ध्रुवों के बीच क्षैतिज रखा जाता है।
  2. कुंडली को दक्षिणावर्त घुमाया जाता है।
  3. कुंडली की भुजा AB पर की ओर तथा भुजा CD नीचे की ओर गति करती है।
  4. कुंडली चुम्बकीय क्षेत्रा रेखाओं को काटती है।
  5. फ्लेमिंग दक्षिण हस्त नियमानुसार प्रेरित विद्युत धारा AB भुजा में A से B तथा CD भुजा में C से D की ओर बहता है ।
  6. प्रेरित विद्युत धारा बा५ विद्युत परिपथ में B2 से B1 की दिशा में प्रवाहित होती है।
  7. अर्धघूर्णन के पश्चात भुजा CD ऊपर की ओर तथा भुजा AB नीचे की ओर जाने लगती है । फलस्वरूप इन दोनों भुजाओं में प्रेरित विद्युत धारा की दिशा परिवर्तित हो जाती है और DCBA के अनुदिश प्रेरित विद्युत धारा प्रवाहित होती है। बा५ परिपथ में विद्युत धारा की दिशा B1 से B2 होती है।
  8. प्रत्येक आधे घूर्णन के पश्चात बा५ परिपथ में विद्युत धारा की दिशा परिवर्तित होती है। ऐसी विद्युत धारा जो समान समय अंतरालों के पश्चात अपनी दिशा में परिवर्तन कर लेती है उसे प्रत्यावर्ती धारा कहते हैं। (संक्षेप में AC)
  9. विद्युत उत्पन्न करने की इस युक्ति को प्रत्यावर्ती विद्युत जनित्रा (AC जनित्र) कहते हैं।


DC दिष्ट धारा जनित्र

दिष्ट धारा प्राप्त करने के लिए विभक्त वलय प्रकार के दिक् परिवर्त्तक का उपयोग किया जाता है । इस प्रकार के दिक्परिवर्त्तक से एक ब्रुश सदैव ही उसी भुजा के सम्पर्क में रहता है। इस व्यवस्था से एक ही दिशा की विद्युत धारा उत्पन्न होती है।

प्रत्यावर्ती धारा: जो विद्युत धारा समान समय अंतरालों के पश्चात अपनी दिशा परिवर्तित कर लेती है।

भारत में विद्युत धारा हर 1/100 सेकंड के बाद अपनी दिशा उत्क्रमित कर लेती है।

लाभ: प्रत्यावर्ती धारा को सुदूर स्थानों पर बिना अधिक ऊर्जा क्षय के प्रेषित किया जा सकता है।

हानि: प्रत्यावर्ती धारा को संचित नहीं किया जा सकता ।


दिष्ट धारा

  • जो विद्युत धारा अपनी दिशा परिवर्तित नहीं करती, दिष्ट धारा कहलाती है।
  • दिष्ट धारा को संचित कर सकते हैं।
  • सुदूर स्थानों पर प्रेषित करने में ऊर्जा का क्षय ज्यादा होता है।

स्रोत: सेल, बेटरी, संग्रहक सेल।


घरेलू विद्युत परिपथ

तीन प्रकार की तारें प्रयोग में लाई जाती हैं।

  1. विद्युन्मय तार (धनात्मक) लाल विद्युत रोधी आवरण
  2. उदासीन तार (ऋणात्मक) काला विद्युत रोधी आवरण
  3. भूसंपर्क तार - हरा विद्युत रोधी आवरण

भारत में विद्युन्मय तार तथा उदासीन तार के बीच 220 V का विभवांतर होता है।

  • खंभा → मुख्य आपूर्ति → फ्यूज → विद्युतमापी मीटर → वितरण वक्स → पृथक परिपथ

भूसम्पर्क तार: यदि साधित्र के धात्विक आवरण से विद्युत धारा का क्षरण होता है तो यह हमें विद्युत आघात से बचाता है। यह धारा क्षरण के समय अल्प प्रतिरोध पथ प्रदान करता है।

लघुपथन (शॉर्ट सर्किट): जब अकस्मात विद्युन्मय तार व उदासीन तार दोनों सीधे संपर्क में आते हैं तो :

  • परिपथ में प्रतिरोध कम हो जाता है।
  • अतिभारण हो सकता है।

अतिभारण: जब विद्युत तार की क्षमता से ज्यादा विद्युत धारा खींची जाती है तो यह अभिभारण पैदा करता है।

कारण:

  1. आपूर्ति वोल्टता में दुर्घटनावश होने वाली वृद्धि।
  2. एक ही सॉकेट में बहुत से विद्युत साधित्रों को संयोजित करना।

सुरक्षा युक्तियाँ :

  1. विद्युत फ्यूज
  2. भूसंपर्क तार
  3. मिनिएचर सर्किट ब्रेकर (M. C. B.)
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