Chapter 3 नात्सीवाद और हिटलर का उदय Revision Notes Class 9 इतिहास History

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Chapter 3 नात्सीवाद और हिटलर का उदय Revision Notes Class 9 इतिहास History

Chapter 3 नात्सीवाद और हिटलर का उदय Notes Class 9 Itihas

Topics in the Chapter

  • वाइमर गणराज्य
  • वर्साय की संधि
  • राजनीतिक रैडिकलवाद और आर्थिक संकट
  • नात्सीवाद
  • हिटलर के उदय के कारण
  • जर्मनी में नात्सीवाद को लोकप्रियता
  • द्वितीय विश्व युद्ध का अंत
  • नात्सी जर्मनी में युवाओं की स्थिति
  • महिलाओं की स्थिति

सामाजिक परिवर्तन का युग

वाइमर गणराज्य की स्थापना

  • जर्मनी ने ऑस्ट्रियाई साम्राज्य के साथ और मित्र राष्ट्रों (इंग्लैंड, फ्रांस और रूस) के खिलाफ प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) लड़ा।
  • जर्मनी ने शुरू में फ्रांस और बेल्जियम पर कब्जा करके लाभ कमाया। हालाँकि, मित्र राष्ट्रों ने 1918 में जर्मनी और केंद्रीय शक्तियों को हराकर जीत हासिल की।
  • वीमर में एक नेशनल असेंबली की बैठक हुई और एक संघीय ढांचे के साथ एक लोकतांत्रिक संविधान की स्थापना की।
  • जून 1919 में वर्साय की संधि पर हस्ताक्षर हुए जिसमें जर्मनी के ऊपर मित्र शक्तियों ने कई अपमानजनक शर्तें थोपी जैसे :-
  1. युद्ध अपराध बोध अनुच्छेद के तहत छह अरब पौंड का र्जुमाना लगाना।
  2. युद्ध में हुए क्षति के लिए सिर्फ जर्मनी को जिम्मेदार मानना।
  3. जर्मनी को सैन्यविहीन करना।
  4. सारे उपनिवेश 10% आबादी 13% भू–भाग, 75% लौह भंडार और 26% कोयला भंडार का मित्र राष्ट्रों में आपस में बाँट लेना आदि।
  • वर्साय की संधि द्वारा जर्मनी में वाइमर गणराज्य की स्थापना हुई।

वाइमर गणराज्य के सामने आई समस्याएँ

वाइमर संधि

  • वर्साय में हुई शांति–संधि की वजह से जर्मनी को अपने सारे उपनिवेश, तकरीबन 10 प्रतिशत आबादी, 13 प्रतिशत भूभाग, 75 प्रतिशत लौह भंडार और 26 प्रतिशत कोयला भंडार फ्रांस, पोलैंड, डेनमार्क और लिथुआनिया के हवाले करने पड़े।
  • मित्र राष्टों ने उसकी सेना भी भंग कर दी। यद्ध अपराधबोध अनुच्छेद के तहत युद्ध के कारण हुई सारी तबाही के लिए जर्मनी को ज़िम्मेदार ठहराकर उस पर छः अरब पौंड का जुर्माना लगाया गया। खनिज संसाधनों वाले राईनलैंड पर भी बीस के दशक में ज़्यादातर मित्र राष्ट्रों का ही क़ब्ज़ा रहा।

वर्साय की संधि

प्रथम विश्वयुद्ध के बाद पराजित जर्मनी ने 28 जून 1919 के दिन वर्साय की सन्धि पर हस्ताक्षर किये। इसकी वजह से जर्मनी को अपनी भूमि के एक बड़े हिस्से से हाथ धोना पड़ा, दूसरे राज्यों पर कब्जा करने की पाबन्दी लगा दी गयी, उनकी सेना का आकार सीमित कर दिया गया और भारी क्षतिपूर्ति थोप दी गयी।

वर्साय की सन्धि को जर्मनी पर जबरदस्ती थोपा गया था। इस कारण एडोल्फ हिटलर और अन्य जर्मन लोग इसे अपमानजनक मानते थे और इस तरह से यह सन्धि द्वितीय विश्वयुद्ध के कारणों में से एक थी।

आर्थिक संकट

  • युद्ध में डूबे हुए ऋणों के कारण जर्मन राज्य आर्थिक रूप से अपंग हो गया था जिसका भुगतान सोने में किया जाना था। इसके बाद, सोने के भंडार में कमी आई और जर्मन निशान का मूल्य गिर गया। आवश्यक वस्तुओं की कीमतें आसमान छूने लगीं।

राजनीतिक संकट

  • राष्ट्रीय सभा द्वारा वाडमर गणराज्य का विकास तथा सुरक्षा के रास्ते पर लाने के लिए एक नये जनतांत्रिक संविधान का निर्माण किया गया, किन्तु यह अपने उद्देश्य में असफल रहा। संविधान में बहुत सारी कमजोरियाँ थीं। आनुपातिक प्रतिनिधित्व संबंधी नियमों तथा अनुच्छेद 48 के कारण एक राजनीतिक संकट पैदा हुआ जिसने तानाशाही शासन का रास्ता खोल दिया।


युद्ध के प्रभाव

  • युद्ध से मनोवैज्ञानिक और आर्थिक रूप से पूरे महाद्वीप पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा।
  • यूरोप कल तक कर्ज देने वालों का महाद्वीप कहलाता था जो युद्ध खत्म होते – होते कर्जदारो का महाद्वीप बन गया
  • पहले महायुद्ध ने यूरोपीय समाज और राजनीतिक व्यवस्था पर अपनी गहरी छाप छोड़ दी थी।
  • सिपाहियों को आम नागरिकों के मुकाबले ज्यादा सम्मान दिए जाने लगा।
  • राजनेता और प्रचारक इस बात पर जोर देने लगे कि पुरुषों को आक्रामक, ताकतवर और मर्दाना गुणों वाला होना चाहिए।

राजनीतिक रैडिकलवाद और आर्थिक संकट

  • राजनीतिक रैडिकलवादी विचारों को 1923 के आर्थिक संकट से और बल मिला जर्मनी ने पहला विश्वयुद्ध मोटे तौर पर कर्ज लेकर लड़ा था।
  • युद्ध के बाद तो उसे स्वर्ण मुद्रा में हर्जाना भी भरना पड़ा। इस दोहरे बोझ से जर्मनी के स्वर्ण भंडार लगभग खत्म होने की स्थिति में पहुंच गए थे।

vआखिरकार 1923 में जर्मनी ने कर्ज और हर्जाना चुकाने से इंकार कर दिया। इसका जवाब में फ्रांसीसियों ने जर्मनी के मुख्य औद्योगिक इलाके रूर पर कब्जा कर लिया।

  • यह जर्मनी के विशाल कोयला भंडारों वाला इलाका था। जर्मन सरकार ने इतने बड़े पैमाने पर मुद्रा छाप दी की उसकी मुद्रा मार्क का मूल्य तेजी से गिरने लगा।
  • अप्रैल में एक अमेरिकी डॉलर की कीमत 24,000 मार्क के बराबर थी। जो जुलाई में 3,53,000 मार्क और अगस्त में 46,21,000 मार्क तथा दिसंबर में 9,88,60,000 मार्क हो गई।


अति–मुद्रास्फीति

जैसे–जैसे मार्क की कीमत गिरती गई, जरूरी चीजों की कीमत आसमान छूने लगी जर्मन समाज दुनिया भर में हमदर्दी का पात्र बनकर रह गया इस संकट को बाद में अति – मुद्रास्फीति का नाम दिया गया। जब कीमतें बेहिसाब बढ़ जाती है तो उस स्थिति को अति मुद्रास्फीति का नाम दिया जाता है।


मंदी के साल

  • 1924 से 1928 तक जर्मनी में कुछ स्थिरता रही लेकिन यह स्थिरता मानव रेत के ढेर पर खड़ी थी।
  • जर्मन निवेश और औद्योगिक गतिविधियों में सुधार मुख्यत : अमेरिका से लिए गए अल्पकालिक कर्जो पर आश्रित था।
  • जब 1929 में शेयर बाजार धराशाई हो गया तो जर्मनी को मिल रही यह मदद भी रातों – रात बंद हो गई।
  • कीमतों में गिरावट की आशंका को देखते हुए लोग धड़ाधड़ अपने शेयर बेचने लगे 24 अक्टूबर को केवल 1 दिन में 1.3 करोड़ शेयर बेच दिए गए।
  • यह आर्थिक महामंदी की शुरुआत थी फैक्ट्रियां बंद हो गई थी, निर्यात गिरता जा रहा था, किसानों की हालत खराब थी, सट्टेबाज बाजार से पैसा खींचते जा रहे थे।
  • अमेरिकी अर्थव्यवस्था में आई इस मंदी का असर दुनियाभर में महसूस किया गया और सबसे बुरा प्रभाव जर्मन अर्थव्यवस्था पर पड़ा।
  • मजदूर या तो बेरोजगार होते जा रहे थे या उनके वेतन काफी गिर चुके थे बेरोजगारों की संख्या 60 लाख तक जा पहुंची।


नात्सीवाद

यह एक सम्पूर्ण व्यवस्था और विचारों की पूरी संरचना का नाम है। जर्मन साम्राज्य में यह एक विचारधारा की तरह फ़ैल गई थी जो खास तरह की मूल्य – मान्यताओं, एक खास तरह के व्यवहार सम्बंधित था।

नाज़ीवाद, जर्मन तानाशाह एडोल्फ़ हिटलर की विचार धारा थी। यह विचारधारा सरकार और आम जन के बीच एक नये से रिश्ते के पक्ष मे थी। इस के अनुसार सरकार की हर योजना मे पहल हो परंतु फिर वह योजना जनता-समाज की भागिदारी से चले। कट्टर जर्मन राष्ट्रवाद, देशप्रेम, विदेशी विरोधी, आर्य और जर्मन हित इस विचार धारा के मूल अंग है।

नाजीयों का विश्व दृष्टिकोण

  • राष्ट्रीय समाजवाद का उदय।
  • सक्षम नेतृत्व।
  • नस्ली कल्पनालोक (यूजोपिया)
  • जीवन परिधि (लेबेन्सत्राउम) अपने लोगों को बसाने के लिए ज्यादा से ज्यादा इलाकों पर कब्जा करना।
  • नस्लीय श्रेष्ठता शुद्ध और नार्डिक आर्यो का समाज।

जर्मनी में हिटलर के उदय के कारण

  • वर्साय की संधि शर्ते।
  • वाइमर रिपब्लिक की कमजोरियों।
  • आमूल परिवर्तन वादियों और समाजवादियों में आपसी फूट।
  • नात्सी प्रोपेगैंडा।
  • सर्वघटाकारण का भय।
  • बेरोजगारी।
  • आर्थिक महामंदी।

हिटलर का उदय

हिटलर का जन्म 1889 में हुआ था और उसकी युवावस्था गरीबी में बीती थी। प्रथम विश्व युद्ध में उसने सेना की नौकरी पकड़ ली और तरक्की करता गया। युद्ध में जर्मनी की हार से वह दुखी था लेकिन वर्साय संधि द्वारा जर्मनी पर लगाई शर्तों के कारण उसका गुस्सा और बढ़ गया था।

  • हिटलर ने 1919 में वर्कर्स पार्टी की सदस्यता ली और धीरे – धीरे उसने इस संगठन पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया।
  • फिर उसे सोशलिस्ट पार्टी का नाम दे दिया।
  • यही पार्टी बाद में नात्सी पार्टी के नाम से जाना गया।
  • महामंदी के दौरान जब जर्मन अर्थव्यवस्था जर्जर हो चुकी थी काम धंधे बंद हो रहे थे।
  • मजदुर बेरोजगार हो रहे थे।
  • जनता लाचारी और भुखमरी में जी रही थी तो नात्सियों ने प्रोपेगैंडा के द्वारा एक बेहतर भविष्य की उम्मीद दिखाकर अपना नात्सी आन्दोलन चमका लिया।
  • और इसी के बाद चुनावों में 32 फीसदी वोट से हिटलर जर्मन का चांसलर बना।

हिटलर के उदय के कारण

  • आर्थिक संकट:1929 की महामंदी ने जर्मनी की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचाया। बेरोज़गारी मूल्य वृद्धि, व्यापार व वाणिज्य का पतन हुआ।
  • हिटलर का व्यक्तित्व: हिटलर का प्रभावशाली व्यक्तित्व, उसका बढ़िया वक्ता होना तथा बढ़िया संगठन कर्ता होना, हिटलर के उदय में सहायक बना।
  • राजनैतिक उथल पुथल: जर्मनी के लोगों का लोकतंत्र से विश्वास उठ गया था।

हिटलर की राजनैतिक शैली

  • वह लोगों को गोल बंद करने के लिए आडंबर और प्रदर्शन करने में विश्वास रखता था।
  • वह लोगों का भारी समर्थन दर्शाने और लोगों में परस्पर एकता की भावना पैदा करने के लिए बड़े बड़े रैलियाँ और सभाएँ करता था।
  • स्वस्तिक छपे लाल झंडे, नात्सी सैल्यूट का प्रयोग किया करता था और भाषण खास अंदाज में दिया करता था।
  • भाषणों के बाद तालियाँ भी खास अंदाज ने नात्सी लोग बजाया करते थे।
  • चूँकि उस समय जर्मनी भीषण आर्थिक और राजनीतिक संकट से गुजर रहा था इसलिए वह खुद को मसीहा और रक्षक के रूप में पेश कर रहा था जैसे जनता को इस तबाही उबारने के लिए ही अवतार लिया हो।


जर्मनी में नात्सीवाद को लोकप्रियता

  • 1929 के बाद बैंक दिवालिया हो चुके, काम धंधे बंद होते जा रहे थे, मजदुर बेरोजगार हो रहे थे और मध्यवर्ग को लाचारी और भुखमरी का डर सता रहा था।
  • नात्सी प्रोपेगैंडा में लोगों को एक बेहतर भविष्य की उम्मीद दिखाई देती थी। धीरे – धीरे नात्सीवाद एक जन आन्दोलन का रूप लेता गया और जर्मनी में नात्सीवाद को लोकप्रियता मिलने लगी।
  • हिटलर एक जबरदस्त वक्ता था। उसका जोश और उसके शब्द लोगों को हिलाकर रख देते थे। वह अपने भाषणों में एक शक्तिशाली राष्ट्र की स्थापना, वर्साय संधि में हुई नाइंसाफी जर्मन समाज को खोई हुई प्रतिष्ठा वापस दिलाने का आश्वासन देता था।
  • उसका वादा था कि वह बेरोजगारों को रोजगार और नौजवानों को एक सुरक्षित भविष्य देगा। उसने आश्वासन दिया कि वह देश को विदेशी प्रभाव से मुक्त कराएगा और तमाम विदेशी ‘ साशिशों ‘ का मुँहतोड़ जवाब देगा।

नात्सियों ने जनता पर पूरा नियंत्रण करने के तरीके

  • हिटलर ने राजनीति की एक नई शैली रची थी। वह लोगों को गोलबंद करने के लिए आडंबर और प्रदर्शन की अहमियत समझता था।
  • हिटलर के प्रति भारी समर्थन दर्शाने और लोगों में परस्पर एकता का भाव पैदा करने के लिए नात्सियों ने बड़ी – बड़ी रैलियाँ और जनसभाएँ आयोजित कीं।
  • स्वस्तिक छपे लाल झंडे, नात्सी सैल्यूट और भाषणों के बाद खास अंदाज में तालियों की गड़गड़ाहट।ये सारी चीजे शक्ति प्रदर्शन का हिस्सा थीं।
  • नात्सियों ने अपने धूआँधार प्रचार के जरिये हिटलर को एक मसीहा, एक रक्षक, एक ऐसे व्यक्ति के रूप में पेश किया, जिसने मानो जनता को तबाही से उबारने के लिए ही अवतार लिया था।
  • एक ऐसे समाज को यह छवि बेहद आकर्षक दिखाई देती थी जिसकी प्रतिष्ठा और गर्व का अहसास चकनाचूर हो चुका था और जो एक भीषण आर्थिक एवं राजनीतिक संकट से गुजर रहा था।

 

लोकतंत्र का ध्वंस

  • 30 जनवरी 1933 को राष्ट्रपति हिंडनबर्ग ने हिटलर को चांसलर का पदभार संभालने का न्योता दिया यह मंत्रिमंडल में सबसे शक्तिशाली पद था सत्ता हासिल करने के बाद हिटलर ने लोकतांत्रिक शासन की संरचना और संस्थाओं को भंग करना शुरू कर दिया।
  • फरवरी महीने में जर्मन संसद भवन में हुए रहस्यमय अग्निकांड से उसका रास्ता और आसान हो गया। इसके बाद हिटलर ने अपने कट्टर शत्रु कम्युनिस्टो पर निशाना साधा ज्यादातर कम्युनिस्टों को रातो रात कंस्ट्रक्शन कैंपों में बंद कर दिया गया।
  • मार्च 1933 को प्रसिद्ध विशेषाधिकार अधिनियम (इनेबलिंग एक्ट) पारित किया गया। इस कानून के जरिए जर्मनी में बाकायदा तानाशाह स्थापित कर दी गई। नात्सी पार्टी और उससे जुड़े संगठनों के अलावा सभी राजनीतिक पार्टियों और ट्रेड यूनियनों पर पाबंदी लगा दी गई।
  • किसी को भी बिना कानूनी कार्रवाई के देश से निकाला जा सकता था या गिरफ्तार किया जा सकता था।

 

द्वितीय विश्व युद्ध का अंत

  • द्वितीय विश्व युद्ध वर्ष 1939-45 के बीच होने वाला एक सशस्त्र विश्वव्यापी संघर्ष था।
  • इस युद्ध में दो प्रमुख प्रतिद्वंद्वी गुट धुरी शक्तियाँ (जर्मनी, इटली और जापान) तथा मित्र राष्ट्र (फ्राँस, ग्रेट ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका, सोवियत संघ और कुछ हद तक चीन) शामिल थे।
  • यह इतिहास का सबसे बड़ा संघर्ष था जो लगभग छह साल तक चला था।
  • इसमें लगभग 100 मिलियन लोग शामिल हुए थे और 50 मिलियन लोग (दुनिया की आबादी का लगभग 3%) मारे गए थे।
  • जब द्वितीय विश्व युद्ध में अमेरिका कूद पड़ा। तो धूरी राष्ट्रों को घुटने टेकने पड़े, इसके साथ ही हिटलर की पराजय हुआ और जापान के हिरोशिमा और नागासाकी शहर पर अमेरिका के बम गिराने के साथ द्वितीय विश्व युद्ध का अंत हो गया।

 

नात्सी जर्मनी में युवाओं की स्थिति

  • जर्मन और यहूदियों के बच्चे एक साथ बैठ नहीं सकते थे।
  • जिप्सयों, शारीरिक रूप से अक्षम तथा यहूदियों को स्कूल से निकाल दिया गया।
  • स्कूली पाठ्य पुस्तक को फिर से लिखा गया जहाँ 'नस्लीय भेदभाव' को बढ़ावा दिया गया।
  • 10 साल की उम्र के बच्चों को 'युगफोंक' में दाखिल करा दिया जाता था जो एक युवा संगठन था।
  • 14 साल की उम्र में सभी लड़कों को 'हिटलर यूथ' की सदस्यता अनिवार्य कर दी गई।

 

महिलाओं की स्थिति

  • लड़कियों को अच्छी माँ और शुद्ध रक्त वाले बच्चों को जन्म देना उनका प्रथम कर्तव्य बताया जाता था।
  • नस्ल की शुद्धता बनाए रखना, यहूदियों से दूर रहना और बच्चों का नात्सी, मूल्य मान्यताओं की शिक्षा देने का दायित्व उन्हें सौंपा गया।
  • 1933 में हिटलर ने कहा: मेरे राज्य की सबसे महत्वपूर्ण नागरिक माँ है।
  • नस्ली तौर पर वांछित बच्चों को जन्म देने वाली माताओं को अस्पताल में विशेष सुविधाएँ, दुकानों में ज्यादा छूट थियेटर और रेलगाड़ी के सस्ते टिकट और ज्यादा बच्चे पैदा करने वाली माताओं को कांसे, चाँदी और सोने के लगाये दिए जाते थे।
  • लेकिन अवांछित बच्चों को जन्म देने वाली माताओं को दंडित किया जाता था। आचार संहिता का उल्लंघन करने पर उन्हें गंजा कर मुँह पर कालिख पोत पूरे समाज में घुमाया जाता था। न केवल जेल बल्कि उनसे तमाम नागरिक सम्मान और उनके पति व परिवार भी छीन लिए जाते थे।
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