Extra Questions for Class 10 कृतिका Chapter 1 माता का आँचल - शिवपूजन सहाय Hindi

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Extra Questions for Class 10 कृतिका Chapter 1 माता का आँचल - शिवपूजन सहाय Hindi

Chapter 1 माता का आँचल Kritika Extra Questions for Class 10 Hindi

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. 'शिवपूजन सहाय' जी को अपने अध्यापक से खरी-खोटी क्यों सुननी पड़ी?

उत्तर

लेखक के बचपन में अपने अध्यापक से खरी-खोटी इसलिए सुननी पड़ी क्योंकि उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर गाँव के एक वृद्ध व्यक्ति मूसन तिवारी को चिढ़ाया था। बैजू नामक लड़के ने मस्ती में आकर मूसन तिवारी को चिढ़ाया - 'बुढ़वा बेईमान माँगे करैला का चोखा'। अन्य बच्चे भी इस बात में सुर-से-सुर मिलाकर चिल्लाने लगे। परिणाम यह हुआ कि मसून तिवारी अपमान का बदला लेने के लिए उनके स्कूल पहुँच गए। बैजू तो नौ-दो ग्यारह हो गया लेखक पकड़े गए। तब उनके गुरु जी ने उनकी खूब खबर ली।


प्रश्न 2. साँप को देखते ही बच्चों ने क्या किया?

उत्तर

एक बार बच्चे टीले पर जाकर चूहों के बिल में पानी डालने लगे। उससे चूहा तो नहीं निकला पर साँप निकल आया । साँप को देखकर बच्चे बहुत अधिक डर गए। रोते-चिल्लाते बेतहाशा भागने लगे। कोई सीधा गिरा, तो कोई औंधा । किसी का सिर फूट गया तो किसी के दाँत टूट गए। सभी गिरते पड़ते भाग रहे थे। स्वयं लेखक की देह भी लहूलुहान हो गई थी और वह एक ही सुर में दौड़ते हुए घर के भीतर पहुँचकर सीधे अपनी माता की गोद की शरण में चले गए।


प्रश्न 3. आपके विचार से भोलानाथ अपने साथियों को देखकर सिसकना क्यों भूल जाता है?

उत्तर

गुरुजी की मार - फटाकर से रोता हुआ बालक भोलानाथ पिता जी का कंधा आँसुओं से तर कर देता है । घर जाते समय रास्ते में साथियों का झुंड मिल जाता है। जो ज़ोर-ज़ोर से नाच - गा रहे थे । भोलानाथ उन्हें देखकर अचानक रोना भूल जाता है और हठ करके बाबू जी की गोद से उतर कर लड़कों की मंडली में मिलकर नाचना-गाना शुरू कर देता है। बच्चे स्वभाव से बहुत ही निश्छल, कोमल एवं चंचल होते हैं । बालक भोलानाथ भी रोना छोड़कर खेलना शुरू कर देता है यह बाल मनोविज्ञान की स्वाभाविक मनोवृत्ति को दर्शाता है। बच्चों की खेलने में बहुत रूचि होती है। भोलानाथ भी अपने साथियों को खेलते देख सिसकना भूल जाता हैं। और खेल में मग्न हो जाता है


प्रश्न 3. 'माता का अँचल' पाठ में भोलानाथ अपने साथियों को देखकर सिसकना क्यों भूल जाता है?

उत्तर

भोलानाथ अपने साथियों को देखकर रोना इसलिए भूल गए क्योंकि उन्हें सम्मुख पाकर उनका मन प्रसन्न हो गया। बच्चों की यह स्वाभाविक प्रवृत्ति है कि उन्हें अपनी उम्र के बच्चों का साथ अच्छा लगता है। वे उनसे खेलना पसंद करते हैं। बड़ों का साथ उन्हें इतनी खुशी नहीं दे पाता जितना हम उम्र साथी खुशी देते हैं।


प्रश्न 4. आपको बच्चों का कौन सा खेल पसंद नहीं आया और क्यों ?

उत्तर

हमें बच्चों का चूहे के बिल में पानी उछाल कर डालने का खेल पसंद नहीं आया। क्योंकि बच्चे चूहे के बिल में पानी डाल रहे थे कि चूहा बाहर आएगा, परंतु चूहे के स्थान पर साँप बाहर निकल आया। बच्चे डर कर रोते-चिल्लाते इधर-उधर भागते चले गए। लेखक भोलानाथ का सारा शरीर लहूलुहान हो गया । पैरों के तलवे काँटों से छलनी हो गए। वास्तव में ऐसे खेल से कोई दुर्घटना हो सकती थी। किसी को साँप काट भी सकता था। ऐसा खेल खेलना बच्चों के लिए उपयुक्त नहीं है ।


प्रश्न 5. माँ को बाबूजी के खिलाने का ढंग पसंद क्यों नहीं था ?

उत्तर

माँ को बाबूजी के खिलाने का ढंग पसंद इसलिए नहीं था क्योंकि वह चार चार दाने के कौर भोलानाथ (लेखक) के मुँह में देते थे, इससे वह थोड़ा खाने पर भी समझ लेता था कि बहुत खा लिया। माँ भर - मुँह कौर खिलाती थी । थाली में दही-भात सानती थी और तरह-तरह के पक्षियों के बनावटी नामों के कौर बनाकर खिलाती जाती थी। तभी उसे संतुष्टि का अनुभव होता था।


प्रश्न 6. 'माता का अँचल' पाठ में बच्चों की जो दुनिया रची गई है वह आपके बचपन की दुनिया से किस तरह भिन्न है?

उत्तर

'माता का आँचल' पाठ में बच्चों की जो दुनिया रची गई है वह 1930 के आस-पास की है। उसकी पृष्ठभूमि पूर्णतया ग्रामीण जीवन पर आधारित है। ग्रामीण परिवेश में चारों और उगी फसलें, उनके दूध भरे दाने चुगती हुई चिड़ियाँ, बच्चों के द्वारा उन्हें पकड़ने का प्रयास करना, उन्हें उड़ाना, बच्चों का मस्तीपूर्वक खेलना, वर्षा में भीगना, घर के सामान से, साधारण चीजों से खेलना, चूहे के बिल मे पानी डालना इत्यादि सब कुछ हमारे बचपन से पूर्णतया भिन्न हैं। आज हमें ढेर सारी चीज़े चाहिए। खेल सामग्री में भी बदलाव आया है- फुटबॉल, क्रिकेट, बॉलीबॉल आज महत्त्वपूर्ण हो गए हैं। खाने-पीने की चीज़ों में बदलाव आया है। आज हमारी दुनिया टी०वी०, इंटरनेट, मोबाइल, कोल्डड्रिंक, पीज़ा, चॉकलेट के ईद-गिर्द ही घूमती है ।


प्रश्न 7. 'माता का अँचल' शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर

'माता का अँचल' शीर्षक की सार्थकता उसकी संक्षिप्तता और विषय वस्तु के साथ उसके संबंध पर निर्भर करती है। इन दोनों की दृष्टि से माता का आँचल' एक सार्थक शीर्षक है। यह संक्षिप्त भी है और पाठ की विषय-वस्तु, माँ के आँचल के महत्त्व को रोचक तरीके से प्रस्तुत करता है। बच्चे माँ के आँचल में छिपकर अपने आपको सुरक्षित महसूस करते हैं । भोलानाथ का अधिकांश समय पिता के साथ में बीतता था। भोलानाथ का माँ के साथ संबंध बहुत सीमित रहता था। अंत में साँप से डरा हुआ बालक भोलानाथ पिता को हुक्का गुड़गुड़ाते देखकर भी माता की ही शरण में जाता है और अद्भुत रक्षा और शांति का अनुभव करता है। वह इस स्थिति में अपने पिता को भी अनदेखा कर देता है। वह माँ के आँचल में दुबक कर राहत महसूस करता है । इस प्रकार 'माता का आँचल' शीर्षक पूर्णतया सार्थक है।


प्रश्न 8. मूसन तिवारी कौन था? उसे किसने चिड़ाया और दंड किसे मिला ?

उत्तर

मूसन तिवारी गाँव का ही एक बूढ़ा व्यक्ति था, जिसे कम दिखाई देता था। बैजू ने उन्हें चिढ़ाया - 'बुढ़वा बेईमान माँगे करेला का चोखा ।' बैजू के सुर में सभी बच्चों ने सुर मिलाया और चिल्लाना शुरू कर दिया। मूसन तिवारी बच्चों को मारने उनके पीछे दौड़े, परंतु बच्चे भाग गए। वे बच्चों की शिकायत करने उनके स्कूल जाते हैं। लेखक (भोलानाथ) जैसे ही घर पहुँचता है, गुरु जी द्वारा भेजे गए लड़कों द्वारा भोलानाथ पकड़ा जाता है। भोलानाथ यानि लेखक को इस अनुपयुक्त व्यवहार के लिए गुरु जी द्वारा दिया गया दंड भोगना पड़ा।


प्रश्न 9. 'माता का अँचल' में बालक का वास्तविक नाम क्या था? उसका नाम भोलानाथ क्यों पड़ा ?

उत्तर

'माता का आँचल' में बालक का वास्तविक नाम तारकेश्वर नाथ था। उनके पिता उन्हें सुबह नहला-धुलाकर अपने साथ पूजा में बिठा लेते थे । उनके ललाट पर भभूत एवं त्रिपुंड लगा देते थे। सिर पर लंबी जटाएँ होने के कारण भभूत के साथ वह 'बम - भोला' बन जाते थे। पिता जी उन्हें इस रूप में देखकर बड़े प्यार से 'भोलानाथ' कहकर पुकारते थे और फिर इस तरह उसका नाम भोलेनाथ पड़ गया।


प्रश्न 10. भोलानाथ माँ के साथ कितना नाता रखता था?

उत्तर

भोलानाथ का अपनी माता के साथ दूध पीने तक का नाता था । परंतु भोलानाथ के लाख मना करने पर भी उसकी माँ, उनके सिर में कड़वा तेल लगाकर छोड़ती थी । माथे पर काजल की बिंदी लगाती थी, चोटी गूँथती थी, कुर्ता - टोपी पहनाती थी, गोरस-भात खिलाती थी । वास्तव में भोलानाथ जितनी भी देर माता के संपर्क में रहता था, जबर्दस्ती ही रहता था। कहानी के अंत में साँप से डरा हुआ भोलानाथ सीधा माता की ही शरण में जाता है और स्वयं को सुरक्षित महसूस करता है। इससे पता चलता है कि भोलानाथ का अपनी माता से गहरा नाता था।


प्रश्न 11. भोलानाथ और उसके साथियों के खेल और खेलने की सामग्री आपके खेल और खेलने की सामग्री से किस प्रकार भिन्न है?

उत्तर

भोलानाथ और उसके साथियों के खेल और खेल की सामग्री निम्न हैं- दुकानों का खेलः मिठाई की दुकान, लड्डू, पत्तों की पूरी, कचौरियाँ, गीली मिट्टी की जलेबियाँ। फूटे घड़े के बर्तन, दियासलाई की पेटियाँ, पानी का घी, धूल के पिसान, बालू की चीनी और भोजन-सामग्री । बारात का खेलः कनस्तर का तंबरा, आम के पौधे की शहनाई, चूहेदानी की पालकी, खटोली की डोली। भोलानाथ और उसके साथियों के खेल दैनिक जीवन की घटनाओं से जुड़े होते थे तथा उनकी खेल - सामग्री सामान्य चीज़े हुआ करती थीं । हमारे खेल और खेल सामग्री निम्न हैं।

  • क्रिकेटः क्रिकेट का बैट, गेंद, विकेट आदि।
  • फुटबॉलः नेट, बॉल आदि ।

दोनों प्रकार की सामग्री में पर्याप्त भिन्नता है।


प्रश्न 12. 'माता का अँचल' पाठ के आधार पर बताइए कि बच्चे माता-पिता के प्रति अपने प्रेम की अभिव्यक्ति कैसे करते हैं।

उत्तर

बच्चे माता-पिता के प्रति अपने प्रेम को उनके साथ रहकर अभिव्यक्त करते हैं उनके लिए माता-पिता की उपस्थिति बहुत मायने रखती है । वे अपना प्रेम प्रकट करने के लिए उनकी सिखाई गईं बातों में रुचि लेते हैं, उनके साथ खेलते हैं। कभी उनको चूमकर, कभी उनकी गोद या कंधे पर बैठकर प्रकट करते हैं । कभी बनावटी रोना रोकर या कोई शरारत करके उनका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हैं। माता-पिता की आज्ञा का पालन करके, उनके प्रति आदर-सम्मान प्रकट करके उनके प्रति प्रेम प्रकट करते हैं । वे अपने विविध मनोरंजक कृत्यों के द्वारा अपने माता-पिता के प्रति प्रेम अभिव्यक्त करते हैं।


प्रश्न 13. 'माता का अँचल' पाठ में बच्चे बारात का जुलूस कैसे निकालते थे?

उत्तर

बच्चे जब बारात निकालते तो कनस्तरों का तबूरा बजाते, आम की उगी हुई गुठली को घिसकर शहनाई बनाई जाती। बच्चों में से कोई दूल्हा बन जाता और कोई समधी । बारात चबूतरे के एक कोने से जाती और दूसरे कोने से वापिस आ जाती। बारात जिस कोने तक जाती; उस कोने को आम व केले के पत्तों से सजाया जाता। एक पालकी को लाल कपड़े से ढ़का जाता और उसमें दुलहन बिठा कर लाई जाती। बारात के वापिस आने पर पिताजी पालकी के कपड़े को ऊपर उठाकर देखते थे ।


प्रश्न 14. लेखक भोलानाथ को उनके पिताजी अपने साथ पूजा में क्यों बैठाते थे?

उत्तर

लेखक के पिता धार्मिक प्रवृत्ति के थे। पूजा-अर्चना करना, रामायण पढ़ना उनके नियम थे। वे अपने बेटे भोलानाथ में भी यह संस्कार डालना चाहते थे इसलिए जब वह पूजा करते थे तब उन्हें भी नहला-धुलाकर पूजा में अपने साथ बिठा लेते थे। पवित्रता का भाव, ईश्वर के प्रति आस्था और विश्वास की भावना वे अपने बेटे में बचपन से ही पैदा कर देना चाहते थे।


प्रश्न 15. 'माता का अँचल' पाठ में बच्चे का अपने पिता से अधिक लगाव है किंतु विपदा के समय वह पिता के पास न जाकर माँ की शरण में ही जाता है। इसका कारण स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर

प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में माता-पिता का अपना-अपना महत्त्व है। दोनों ही संतान से स्नेह करते हैं और उसके प्रति अपने-अपने दायित्व का पालन करते हैं। बच्चे के पिता अपने पुत्र के प्रत्येक खेल में सम्मिलित होते हैं। अपना अधिकांश समय उसके साथ बिताते हैं लेकिन बच्चा विपदा के समय में अपनी माँ के ममतापूर्ण आँचल में स्वयं को सुरक्षित महसूस करता है। माँ की वह कोख जो नौ महीने उसे आत्मीयता देती है, उसी का स्पर्श उसे विपत्तियों से बचाता है।


प्रश्न 16. बच्चे माता-पिता के प्रति अपने प्रेम को कैसे अभिव्यक्ति करते हैं। अपने जीवन से सम्बन्धित कोई घटना लिखिए, जिसमें आपने अपने माता-पिता के प्रति प्रेम अभिव्यक्त किया हो ।

उत्तर

बच्चे माता-पिता के प्रति अपने प्रेम को उनके समीप रहकर, उनके द्वारा सिखाई बातों को अपना कर, उनकी बातों में रुचि लेकर, उनके साथ खेलकर, उन्हें चूमकर, उनकी गोद या कंधे पर बैठकर प्रकट करते हैं। मेरे माता-पिता जी की बीसवीं वर्षगाँठ थी । मेरे पास उन्हें उपहार में देने के लिए बहुत कम पैसे थे। मैंने उनके साथ खिंची हुई बचपन की एक सुंदर तस्वीर को स्वनिर्मित फोटोफ्रेम में लगाकर भेंट किया तथा साथ ही गुलाब के फूलों का गुच्छा भी उन्हें भेंट में दिया । आदर और प्रेम से दिए गए इस उपहार को पाकर मेरे माता-पिता बहुत प्रसन्न हुए ।


निबंधात्मक प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. 'माता का आँचल' पाठ के आधार पर ऐसे दो प्रसंगों का वर्णन कीजिए जो आपके दिल को छू गए हों ।

उत्तर

‘माता का आँचल’ पाठ में वैसे तो कई प्रसंग हैं जो दिल को छू गए हैं, परंतु मुख्य दो प्रसंग इस प्रकार हैं । (क) पहला प्रसंग - जब माँ अचानक भोलानाथ को पकड़ लेती है । उसके सिर में तेल लगाकर मालिश करती है। भोलानाथ छटपटाने और रोने लगता है, परंतु माँ फिर भी उसकी चोटी गूँथती है, माथे पर काजल की बिंदी लगाती है, रंगीन कुरता - टोपी पहनाकर कन्हैया बनाकर तैयार करती है और भोलानाथ सिसकता रहता है। पिता जी उसे गोद में उठाकर बाहर ले जाते हैं और बाहर बालकों का झुंड देखकर वह सिसकना भूल जाता है और खेलने लगता है । यह प्रसंग बहुत ही दिल को छू लेने वाला है। (ख) दूसरा प्रसंग - भोलानाथ अपने साथियों के संग टीले पर चूहे के बिल में पानी उलीचता है और उस बिल से साँप निकल आता है । साँप को देखकर सभी बच्चे डरकर भागने लगते हैं । भोलानाथ भागते-भागते अपनी माँ के आँचल में जाकर छिप जाता है। वह लगातार सिसकता जाता है। माँ उसे इस तरह से देखकर बहुत परेशान होती है । उसे हल्दी लगाती है । उस समय बाबू जी के गोद में लेने पर भी वह माँ की गोद नहीं छोड़ता। यह प्रसंग बहुत ही मर्मस्पशी एवं हृदय को छू लेने वाला है ।


प्रश्न 2. मूसन तिवारी द्वारा बाल मंडली की शिकायत के बाद पाठशाला में भोलानाथ के साथ कैसा व्यवहार हुआ और उन्हें उनके पिता जी के द्वारा किस प्रकार घर लाया गया? इस घटना से बच्चों की किस मनोवृत्ति का पता चलता है ? 'माता के अँचल' पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर

मूसन तिवारी द्वारा बाल मंडली की शिकायत के बाद पाठशाला से चार लड़के भोलानाथ और बैजू की गिरफ्तारी का वारंट लेकर निकले। भोलानाथ जैसे ही घर पहुँचा, वैसे ही वे चारों लड़के उस पर टूट पड़े और उसे लेकर मूसन तिवारी के पास गए। उन्होंने भोलानाथ की खूब खबर ली । भोलानाथ का रोते-रोते बुरा हाल था। जब भोलानाथ के बाबूजी ने यह सुना तो वे दौड़ते हुए पाठशाला पहुँचे और गोद में उठाकर उसे पुचकारने एवं फुसलाने लगे। फिर उन्होंने गुरू जी से विनती करके गोदी में भोलानाथ को घर ले चले। इस घटना से यह स्पष्ट होता है कि बच्चों मे चिढ़ाने एवं तंग करने की प्रवृत्ति बहुत होती है । वे परिणाम के बारे में बिना सोचे ही अपने मन की इच्छा पूरी करने लगते हैं। संभवतः नटखट होना इसी को कहा जाता है। इसके अलावा, यह भी स्पष्ट होता है कि खेल के चक्कर में वे सारी बातें भूल जाते हैं । जब साथ में दोस्तों का समूह मिल जाता है तो फिर उनकी प्रवृत्ति मनमानी करने की हो जाती है। यही बचपना है, यही बच्चों की मानसिकता है।


प्रश्न 3. माता का अँचल पाठ के आधार पर यह कहा जा सकता है कि बच्चे का अपने पिता से अधिक जुड़ाव था, फिर भी विपदा के समय पिता के पास न जाकर माँ की शरण लेता है। आपकी समझ में इसकी क्या वजह हो सकती है?

उत्तर

‘माता का अँचल' पाठ के आधार पर यह कहा जा सकता है कि बच्चे को अपने पिता से अधिक जुड़ाव था। वह अधिकांश समय अपने पिता के साथ ही व्यतीत करता था । उसके पिता उसका लालन-पालन करते थे। उनका बच्चे (लेखक) के प्रति दोस्तों जैसा व्यवहार था । माँ के साथ उसका संबंध दूध पीने तक ही सीमित था। अंत में साँप से डरा हुआ बालक पिता को हुक्का गुड़गुड़ाता हुआ देखकर भी माता की शरण में जाता है और अद्भुत रक्षा और शांति का अनुभव करता है । इस स्थिति में वह अपने पिता को भी अनदेखा कर देता है, जबकि अधिकांश समय वह पिता के सानिध्य में रहता है । विपदा के समय जो लाड, स्नेह, ममता, सुरक्षा और कोमलता उसे माँ से मिल सकती है, वह पिता से नहीं । यही कारण है कि संकट में बच्चे को माँ की याद आती है, पिता की नहीं। माँ की ममता व स्नेह घाव को भरने वाले मरहम का काम करता है, जिस की शीतल छाया में वह सुरक्षित महसूस करता है ।


प्रश्न 4. 'माता का अंचल' शीर्षक की उपयुक्तता बताते हुए कोई अन्य शीर्षक सुझाइए ।

उत्तर

'माता का अँचल' शीर्षक की सार्थकता उसकी संक्षिप्तता और विषय वस्तु के साथ उसके संबंध पर निर्भर करती है। इन दोनों की दृष्टि से 'माता का आँचल' एक सार्थक शीर्षक है। यह संक्षिप्त भी है और पाठ की विषय-वस्तु, माँ के आँचल के महत्त्व को रोचक तरीके से प्रस्तुत करता है। बच्चे माँ के आँचल में छिपकर अपने आपको सुरक्षित महसूस करते हैं । भोलानाथ का अधिकांश समय पिता के साथ में बीतता था। भोलानाथ का माँ के साथ संबंध बहुत सीमित रहता था। अंत में साँप से डरा हुआ बालक भोलानाथ पिता को हुक्का गुड़गुड़ाते देखकर भी माता की ही शरण में जाता है और अद्भुत रक्षा और शांति का अनुभव करता है। वह इस स्थिति में अपने पिता को भी अनदेखा कर देता है। वह माँ के आँचल में दुबक कर राहत महसूस करता है। इस प्रकार 'माता का आँचल' शीर्षक पूर्णतया सार्थक है।

अन्य शीर्षक - (क) मेरा बचपन,

(ख) बचपन के सुनहरे पल

(ग) माँ की ममता,

(घ) बच्चों की दुनिया


प्रश्न 5. 'माता का अँचल' पाठ में ग्राम्य संस्कृति के जिस रूप का चित्रण है- वह आधुनिक युग में पर्याप्त अंशों में परिवर्तित हो चुका है। परिवर्तित रूप से कुछ उदाहरण देते हुए इस कथन के समर्थन में अपने विचार लिखिए ।

उत्तर

'माता का अँचल' पाठ में ग्राम्य संस्कृति के जिस रूप का चित्रण है वह आधुनिक युग में परिवर्तित हो चुकी है। संचार माध्यम व शहरी संस्कृति के कारण वहाँ के लोगों में जीवन शैली बदल चुकी है। वहाँ के लोग भी उन आधुनिक भौतिक साधनों से संपन्न हैं। जैसे शहर के लोग संपन्न हैं। संयुक्त परिवारों का स्थान एकल परिवारों ने ले लिया है। मकान सिमट गए हैं। बच्चे मोबाइल, लैपटॉप आइपैड का प्रयोग करने लगे हैं। खेल व खेलने की सामग्री बदल गई है। खेल मंहगें हो गए है। जिस से वहाँ के नागरिक हर क्षेत्र की जानकारी रखते है, वे परिवेश के प्रति जागरूक हैं। बैंक की सुविध उन्हें प्राप्त है। उत्तम खाद बीज व कृषि-साधनो का प्रयोग करते है।


प्रश्न 6. 'माता का अँचल' पाठ में चित्रित ग्राम्य संस्कृति और आज की ग्रामीण संस्कृति में क्या भिन्नता है?

उत्तर

'माता का आँचल' पाठ में चित्रित ग्राम्य संस्कृति और आज की ग्रामीण संस्कृति में पर्याप्त भिन्नता है । पहले के ग्रामीण जीवन में रिश्तों में बनावटीपन या दिखावा नहीं था । परिवार से लेकर दूर पड़ोस तक आत्मीय संबंध थे। जीवन सरल, सादा और सहज था। मिलजुल कर रहने और जीने की प्रवृत्ति थी । लोगों का पूजा-पाठ में रुझान था । बच्चों के पालन-पोषण के घरेलू तरीके थे। बच्चों को खेलने की स्वच्छंदता थी। बाहरी घटनाओं अपहरण इत्यादि की चिंता नहीं थी । बच्चे घर की सामान्य वस्तुओं से खेल की सामग्री बनाते थे। किसी प्रकार का भय, रोक-टोक नहीं थी । सामूहिक संस्कृति थी, जो आत्मीयता के स्नेह-सूत्र से बँधी हुई थी। आज ग्रामीण जीवन में आधुनिकता अपने पाँव पसार चुकी है। लोग, रिश्ते, जीवन, व्यवहार सब सिमट चुका है। गाँवों में आधुनिक तकनीकें पहुँच चुकी हैं। वहाँ टी०वी०, कम्प्यूटर, इंटरनेट आधुनिक शिक्षा संबंधी सुविधाएँ भी पहुँच चुकी हैं। जीवन-शैली में बदलाव आ गया है। लोग स्वास्थ्य और स्वच्छता के प्रति जागरूक हो गए हैं। बच्चों के खेल और खेल सामग्री बदल गईं हैं। एक नई संस्कृति गाँवों में पनप चुकी है जो आधुनिकता और विकास की ओर अग्रसर है। 


प्रश्न 7. 'माता का अँचल' पाठ में लेखक का अपने माता-पिता से बहुत लगाव है, माता पिता भी उनका बहुत ध्यान रखते हैं। आपके विचार से लेखक को अपने माता-पिता के लिए क्या-क्या करना चाहिए?

उत्तर

'माता का अँचल' पाठ में लेखक का अपने माता-पिता से बहुत लगाव है, माता पिता भी उनका बहुत ध्यान रखते हैं। लेखक को अपने पिता से अधिक ही जुड़ाव था। वह अपने पिता के साथ बाहर बैठक में सोया करता था। पिता ही उसे नहलाया - धुलाया करते थे तथा उसे तैयार कर अपने पास पूजा में बिठाते थे। माँ लेखक को दूध पिलाती थी, ठीक प्रकार खाना खिलाती थी। उसके सिर पर तेल लगाती, चोटी बनाती, माथे पर काजल की बिंदी लगाकर नज़र से बचाने का उपक्रम करती थी। लेखक पिता के कँ पर विराजमान रहता था, लाड़ में वह पिता की मूँछे उखाड़ता था । मुसीबत के समय वह माता के आँचल की शरण लेता था । इस प्रकार माता-पिता दोनों लेखक को सुख पहुँचाने का प्रयास करते थे। मेरे विचार से लेखक को अपने माता-पिता का कहना मानना चाहिए। उन्हें किसी भी प्रकार तंग नहीं करना चाहिए। शरारतें नहीं करनी चाहिए और न ही माता-पिता को शिकायत का मौका देना चाहिए। उनका आदर और सम्मान करना चाहिए।


प्रश्न 8. 'माता का अँचल' पाठ में भोलाराम एक स्थान पर, दूसरे बच्चों की कुसंगति में एक वृद्ध व्यक्ति को चिढ़ाता है व मज़ाक उड़ाता है। इस अनुपयुक्त व्यवहार के लिए उसे क्या दंड भोगना पड़ता है? आप इस घटना से क्या शिक्षा ग्रहण करते हैं।

उत्तर

लेखक के गाँव में एक बूढ़ा व्यक्ति था जिसका नाम मूसन तिवारी था। उसे दिखाई कम देता था। भोलानाथ दूसरे बच्चों की कुसंगति में पड़कर उसने सबके साथ मिलकर उन्हें यह कहकर चिढ़ाता है - 'बुढ़वा बेईमान माँगे करैला का चोखा।' इससे मूसन तिवारी चिढ़ जाते हैं । वे बच्चों को मारने के लिए उनके पीछे भागते हैं। बच्चे भाग जाते हैं और उनके हाथ नहीं आते। वे बच्चों की शिकायत करने स्कूल तक पहुँच जाते हैं । भोलानाथ जैसे ही घर पहुँचता है, वैसे ही उनके गुरुजी द्वारा भेजे गए लड़के उन्हें पकड़ लेते हैं। अपने इस अनुपयुक्त व्यवहार के लिए उन्हें गुरुजी द्वारा दिया गया दंड भोगना पड़ता है । गुरुजी भोलानाथ की खूब खबर लेते हैं और अन्ततः यह बात उनके पिताजी तक पहुँच जाती है। इस घटना से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी किसी भी बूढ़े व्यक्ति को तंग नहीं करना चाहिए । हमें बुर्जुग व्यक्तियों का आदर और सम्मान करना चाहिए। उनकी हर प्रकार से मदद करनी चाहिए एवं उनके जीवन को सुविधाजनक बनाने का प्रयास करना चाहिए। वृद्ध व्यक्ति हमारे समाज के वरिष्ठ नागरिक हैं। उनकी सहायता करना हमारा परम कर्तव्य होना चाहिए । उन्हें कभी भी अकेला या असहाय महसूस नहीं होने देना चाहिए। उनको अपना सहयोग देना चाहिए एवं उनकी सेवा करनी चाहिए। उनका आशीर्वाद मिलना ही हमारे लिए बहुत बड़ी एवं महत्त्वपूर्ण बात है।

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