Extra Questions for Class 10 कृतिका Chapter 2 जॉर्ज पंचम की नाक - कमलेश्वर Hindi

This website provide Important Questions for Class 10 Kritika Chapter 2 George Pancham ki Naak by Kamleshwar Hindi with answers on this page which will increase concentration among students and have edge over classmates. A student should revise on a regular basis so they can retain more information and recall during the precious time. These extra questions for Class 10 Hindi Kritika play a very important role in a student's life and developing their performance.

Extra Questions for Class 10 कृतिका Chapter 2 जॉर्ज पंचम की नाक - कमलेश्वर Hindi

Chapter 2 जॉर्ज पंचम की नाक Kritika Extra Questions for Class 10 Hindi

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. दिल्ली की कायापलट क्यों होने लगी?

उत्तर

दिल्ली की कायापलट होने लगी थी क्योंकि इग्लैंड की रानी एलिज़ाबेथ द्वितीय अपने पति के साथ हिन्दुस्तान पधारने वाली थीं। अखबारों में उनकी चर्चा हो रही थी। रोज़ लंदन के अखबारों में खबरें आ रही थीं कि शाही दौरे के लिए कैसी-कैसी तैयारियाँ हो रही हैं । नई दिल्ली की कायापलट हो रही थी । सड़कों को साफ़ किया जा रहा था, इमारतों का शृंगार हो रहा था । रानी एलिज़ाबेथ के भव्य स्वागत के लिए ब्रिटिश शासन जुट गया था।


प्रश्न 2. रानी एलिज़ाबेथ के दरज़ी की परेशानी का क्या कारण था? उसकी परेशानी को आप किस तरह तर्कसंगत ठहराएंगे?

उत्तर

इंग्लैड की महारानी एलिज़ाबेथ को अपने पति के साथ भारत आना था । यह एक विशिष्ट बात थी। ब्रिटिश शासन उनके भव्य स्वागत की तैयारी में जुट गया था । ऐसे समय में एक ओर नई दिल्ली की कायापलट हो रही थी, तो दूसरी तरफ़ रानी की वेशभूषा को लेकर दर्ज़ी की परेशानी बनी हुई थी। वह इस बात से परेशान था कि भारत, पाकिस्तान और नेपाल यात्रा के समय रानी किस अवसर पर क्या पहनेगी? उसकी परेशानी तर्कसंगत थी क्योंकि रानी इस यात्रा में अपने देश का प्रतिनिधित्व कर रही थीं और उनके कपड़ों का उनकी मर्यादा के अनुकूल होना ज़रूरी था।


प्रश्न 3. जॉर्ज पंचम की नाक लगने वाली ख़बर के दिन अखबार चुप क्यों थे?

उत्तर

जॉर्ज पंचम के बुत पर जिस दिन जिंदा नाक लगाई गई उस दिन अखबार वाले चुप थे । वास्तव में वे लज्जित थे क्योंकि जिस जॉर्ज पंचम की तुलना छोटे बच्चे से भी न की जा सके और जिसके अत्याचार का इतिहास भी अभी तक भूले नहीं थे, उस जॉर्ज पंचम की लाट पर अपने सम्मान की नाक कटवा कर जिंदा नाक फिट की गई। यह कृत्य बहुत ही शर्मिंदगी से परिपूर्ण था। यह दिन भारतीयों के आत्मसम्मान पर चोट पहुँचाने वाला था, इसलिए सभी अखबार चुप थे।


प्रश्न 4. मूर्तिकार अपने सुझावों को अखबारों तक जाने से क्यों रोकना चाहता था ?

उत्तर

मूर्तिकार वास्तव में कलाकार नहीं पैसों का लालची व्यक्ति था । उसमें देश के मान-सम्मान व प्रेम की भावना बिलकुल नहीं थी । वह पैसों के लिए कुछ भी करने को तैयार था । उसने जॉर्ज पंचम की नाक लगाने के लिए अपने देश के नेताओं की नाक को उतारने का सुझाव दिया। जब वह इस कार्य में असफल रहा, तब उसने सन् 1942 में शहीद हुए बच्चों की मूर्तियों की नाक उतारने और अन्ततः जिंदा नाक काट कर लगाने का सुझाव दिया। वह अपने सुझावों को अखबार वालों तक जाने से इसलिए रोकना चाहता था क्योंकि अगर यह बात जनता तक पहुँच जाती, तो सरकारी तंत्र की नाक तो कटती ही, हो सकता है लोग भी इसके विरोध में उठ खड़े होते । क्योंकि यह कृत्य भारतीय शान के खिलाफ था ।


प्रश्न 5. जॉर्ज पंचम की लाट पर किसी भी भारतीय नेता यहाँ तक कि भारतीय बच्चों की नाक फिट न बैठने की बात से लेखक किस ओर संकेत करना चाहता है ?

उत्तर

जॉर्ज पंचम की लाट पर किसी भी भारतीय नेता, यहाँ तक कि भारतीय बच्चों की नाक फिट न होने की बात से लेखक इस ओर संकेत करना चाहता है कि भारतीय नेता और बलिदान भारतीय बच्चों का सम्मान जॉर्ज पंचम से कई गुना बढ़ा है। जिस जॉर्ज पंचम की नाक के लिए सरकारी तंत्र के हुक्काम चिंतित थे, उसकी नाक तो अपने देश के लिए शहीद हुए बच्चों से भी छोटी थी । हमारे देश में ऊँची नाक अर्थात् सम्मान के हकदार त्याग और बलिदान की मूर्ति स्वरूप हैं। जॉर्ज पंचम की नाक उसका मुकाबला कैसे कर सकती है। एक निर्दयी शासक का सम्मान कैसा?


प्रश्न 6. महारानी एलिज़ाबेथ के भारत आगमन के समय अखबारों में क्या छप रहा था ?

उत्तर

महारानी एलिज़ाबेथ के भारत आगमन के समय अखबारों में यहाँ की जाने वाली शाही तैयारियों की चर्चा हो रही थी। रानी द्वारा पहने जाने वाली पोशाकों की चर्चा भी उसमें हो रही थी । यहाँ तक कि रानी एलिज़ाबेथ की जन्मपत्री भी अखबारों में छपी थी। प्रिंस फिलिप के कारनामे, शाही नौकरों, बावरचियों, खानसामों, अंगरक्षकों की पूरी की पूरी जीवनियाँ अखबारों में देखने में आईं। शाही महल में रहने और पलने वाले कुत्तों तक की तस्वीरों को अखबारों में छापा गया।


प्रश्न 7. नाक लगाने को लेकर जो चिंता या बदहवासी सरकारी तंत्र में दिखाई देती है, वह उनकी किस मानसिकता को दर्शाती है?

उत्तर

सरकारी तंत्र में जॉर्ज पंचम की नाक लगाने को लेकर जो चिंता या बदहवासी दिखाई देती है, वह उनकी गुलाम और औपनिवेशिक मानसिकता को दर्शाती है। सरकारी तंत्र जॉर्ज पंचम की नाक को लेकर चिंतित है, जिसने न जाने कितने कहर ढहाए । सरकारी तंत्र उसके अत्याचारों को याद न कर उसके सम्मान में जुट जाता है। भारत को गुलाम बनाकर रखने वाले राजा के सम्मान और रानी को प्रसन्न करने के लिए पेरशान हमारा प्रशासन मानसिक रूप से गुलाम लगता है। जिसे राष्ट्र के सम्मान की थोड़ी भी चिंता नहीं है । इस तरह सरकारी तंत्र अपनी अयोग्यता, अदूरदर्शिता, और मूर्खता को दर्शाता है।

 

प्रश्न 8. सरकारी तंत्र में जॉर्ज पंचम की नाक लगाने को लेकर जो चिंता या बदहवासी दिखाई देती है वह उसकी कैसी मानसिकता को दर्शाती है? तर्क सहित स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर

सरकारी तंत्र में जॉर्ज पंचम की नाक लगाने को लेकर जो चिंता या बदहवासी दिखाई देती है वह उनकी गुलामी और औपनिवेशिक मानसिकता को प्रकट करती है। भारत को गुलाम बनाकर रखने वाले राजा के सम्मान और रानी को प्रसन्न करने के लिए परेशान हमारा प्रशासन स्वतंत्र होकर भी मानसिक रूप से गुलाम लगता है, जिसे राष्ट्र के सम्मान की ज़रा भी चिंता नहीं है।


प्रश्न 9. जॉर्ज पंचम की लाट की नाक पुनः लगाने के लिए मूर्तिकार ने क्या-क्या यत्न किए?

उत्तर

जॉर्ज पंचम की लाट की नाक पुनः लगाने के लिए मूर्तिकार ने निम्नलिखित प्रयत्न किए - सर्वप्रथम उसने जॉर्ज पंचम की नाक के निर्माण में प्रयुक्त पत्थर को खोजने का प्रयास किया। इसके लिए उसने देश भर में जा-जाकर खोज की, पर असफल रहा। वह पत्थर विदेशी था । उसने देश भर में घूम-घूमकर शहीद हुए नेताओं की मूर्तियों की नाक का नाप लिया, ताकि उन मूर्तियों में से किसी की नाक को जॉर्ज पंचम की लाट पर लगाया जा सके, किंतु सभी नाकें आकार में बड़ी निकलीं । इसके पश्चात् उसने 1942 में बिहार सेक्रेटरिएट के सामने शहीद हुए बच्चों की मूर्ति की नाक का नाप लिया, किंतु वे भी बड़ी निकली। अंत में उसने ज़िंदा नाक काटकर लगाने के लिए कमेटी को सुझाव दिया।


प्रश्न 10. 'जार्ज पंचम की नाक' पाठ को दृष्टि में रखकर बताइए कि लेखक ने ऐसा क्यों कहा है कि 'नई दिल्ली में सब था... सिर्फ नाक नहीं थीं।

उत्तर

इस कथन के द्वारा यह भाव प्रकट किया है कि भारतीयों ने स्वतंत्रता तो प्राप्त कर ली, लेकिन मानसिक रूप से पराधीन बने रहे। अंग्रेज़ व अंग्रेज़ी भाषा के आगे वे स्वयं को निम्न समझतें । उनमें वह आत्मसम्मान, निर्भरता, स्वाभिमान, निर्भयता नहीं थी जो एक स्वतंत्र देश के नागरिक में होती है। वे अब भी हीनता के शिकार थे।


प्रश्न 11. 'जॉर्ज पंचम की नाक' पाठ को दृष्टि में रखते हुए लिखिए कि अख़बारों ने ज़िंदा नाक लगने की ख़बर को किस तरह से प्रस्तुत किया।

उत्तर

अख़बारों में केवल यह ख़बर छपी - 'जॉर्ज पंचम के ज़िंदा नाक लगाई गई है'- यानी ऐसी नाक जो कतई पत्थर की नहीं लगती। उस दिन किसी समाचार पत्र में किसी संस्था के उद्घाटन की ख़बर नहीं छपी । किसी सार्वजनिक सभा के संपन्न होने के समाचार को नहीं छापा गया। किसी व्यक्ति को किसी विशेष कार्य के लिए सम्मानित नहीं किया गया।


प्रश्न 12. “ नई दिल्ली में सब था- सिर्फ नाक नहीं थी।" कथन के माध्यम से 'जॉर्ज पंचम की नाक' पाठ का लेखक क्या कहना चाहता है?

उत्तर

'नई दिल्ली में सब था - सिर्फ़ नाक न थी'। नाक व्यक्ति के सम्मान की प्रतीक है। लेखक ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि स्वतंत्रता के बाद देश सर्वथा संपन्न था, लेकिन भारतीय शारीरिक रूप से स्वतंत्र होने के बाद भी मानसिक रूप से परतंत्र थे। अंग्रेज़ों को देखकर, उनकी भाषा को सुनकर, उनकी जीवन-शैली को देखकर वह हीन भावना के शिकार हो जाते थे । उनमें आत्मसम्मान व स्वाभिमान की कमी थी। भारतीयों के अचेतन मन पर गुलामी की छाया का प्रभाव था।


प्रश्न 13. 'जॉर्ज पंचम की नाक' पाठ के आधार पर लिखिए कि रानी एलिज़ाबेथ के दरजी की परेशानी का क्या कारण था।

उत्तर

रानी एलिज़ाबेथ दौरे पर जा रही थीं। उनकी आदत थी कि वह जिस देश में जाती थीं उसी के अनुकूल वेशभूषा धारण करती थीं। दरजी को यह तो पता था कि रानी एलिज़ाबेथ दौरे पर जा रही हैं, लेकिन किस देश का दौरा करेंगी यह उसे ज्ञात नहीं था। वह किस तरह की ड्रेस तैयार करे- ऐसा उसे कोई निर्देश नहीं दिया गया था। इस वजह से वह परेशान था।


प्रश्न 14. 'जॉर्ज पंचम की नाक' पाठ में 'कोई भी नाक फ़िट होने क़ाबिल नहीं निकली' यह कह कर लेखक किस ओर संकेत करता है?

उत्तर

जॉर्ज पंचम की नाक को पुनः लगाने के लिए भारत देश के सभी नेताओं की नाकें नापी गईं। सन् बयालीस में बिहार के सेक्रेटरिएट के सामने शहीद हुए बच्चों की स्थापित मूर्तियों की नाकों को भी नापा गया, परंतु सभी बड़ी थीं। इस कथन का अभिप्राय यह है कि जॉर्ज पंचम - गांधी, पटेल, गुरुदेव रवींद्र नाथ, सुभाष चंद्र बोस, आज़ाद, बिस्मिल, नेहरू, लाला लाजपतराय, भगत सिंह की तुलना में नगण्य था।


प्रश्न 15. सरकारी तंत्र में जॉर्ज पंचम की नाक को लेकर जो चिंता या बदहवासी दिखाई देती है वह उनकी किस मानसिकता को दर्शाती है? विस्तार से समझाइए।

उत्तर

सरकारी तंत्र में जार्ज पंचम की नाक लगाने को लेकर जो चिंता या बदहवासी दिखाई देती है वह भारतीयों की मानसिक परतंत्रता की परिचायक है । उन्होंने शारीरिक स्वतंत्रता तो प्राप्त कर ली है लेकिन वे आज भी स्वयं को अंग्रेज़ों से कम समझते हैं। उनकी जीवन शैली व भाषा को सुनकर हीन भावना के शिकार हो जाते हैं। जिस जार्ज पंचम ने भारतीयों को अनेक कष्ट दिए व क्रूरता पूर्ण व्यवहार किया उसी के सम्मान की रक्षा के लिए सरकारी तंत्र चिंता ग्रस्त है। अपने आत्मसम्मान को खोकर रानी एलिज़ाबेथ को प्रसन्न करने का प्रयास कर रहा है। इससे सरकारी तंत्र की अव्यवस्था व अयोग्यता का पता चलता है।


प्रश्न 16. 'जार्ज पंचम की नाक' लगाने को लेकर जो चिन्ता और बदहवासी देखने को मिलती है, वह सरकारी तंत्र की किस मानसिकता को दर्शाती है? क्या आप उसे तर्कसंगत ठहराएँगे?

उत्तर

सरकारी तंत्र में जार्ज पंचम की नाक लगाने को लेकर जो चिंता या बदहवासी दिखाई देती है उसका मूल कारण सदियों तक अंग्रेज़ों के पराधीन रहना है। आत्मसम्मान व स्वावलंबन का भाव भारतीयों में लुप्त हो चुका है। सरकारी तंत्र के सभी सदस्य रानी एलिज़ाबेथ को चापलूसी द्वारा प्रसन्न कर अपना-अपना स्वार्थ सिद्ध करने में लगे हैं। जिस जॉर्ज पंचम ने भारतीयों को अनेक यातनाएँ दीं, उसी के सम्मान की रक्षा में वे जी-जान से लगे हैं। सरकारी तंत्र अपनी अव्यवस्था, अयोग्यता, स्वार्थ सिद्धि के भाव को छिपाने हेतु चाटुकारिता के भाव को अपनाता है।


निबंधात्मक प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. नाक मान-सम्मान व प्रतिष्ठा का द्योतक है। यह बात पूरी व्यंग्य रचना में किस तरह उभरकर आई है?

उत्तर

नाक मान-सम्मान एवं प्रतिष्ठा का द्योतक है। नाक का स्थान सर्वोपरि माना जाता है। नाक को विषय बनाकर लेखक ने स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् हमारी सरकारी व्यवस्था एवं हुक्मरानों की औपनिवेशिक एवं गुलाम मानसिकता पर व्यंग्य किया है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी भारत में जगह-जगह अंग्रेज़ी शासकों की मूर्तियाँ विद्यमान हैं जो हमारी गुलामी या परतंत्र मानसिकता को दर्शाती हैं। आज भी जॉर्ज पंचम जैसे अंग्रेज़ों की मूर्ति की नाक रहने दी जाए या हटा दी जाए- का मसला सरकारी महकमों की रातों की नींद उड़ा सकता है। इसी प्रकार देश के शहीदों के सम्मान के लिए 'नाक' शब्द का प्रयोग हुआ है। उनकी नाक को जॉर्ज पंचम की नाक से बड़ा बताया गया है लेकिन अंत में जॉर्ज पंचम की नाक स्थापित करने के लिए एक जिंदा नाक लगा दी जाती है यानि ऐसी नाक जो कतई पत्थर की नहीं लगती। अर्थात् देश के सम्मान की बलि दे दी जाती है। इस प्रकार पूरी व्यंग्य रचना में नाक मान-सम्मान एवं प्रतिष्ठा का द्योतक है।


प्रश्न 2. 'जॉर्ज पंचम की नाक' पाठ के आधार पर सरकारी तंत्र की कार्यप्रणाली पर प्रकाश डालिए ।

उत्तर

'जार्ज पंचम की नाक' पाठ में उस समय की संकीर्ण सरकारी तंत्र की कार्यप्रणाली को दर्शाया गया है, जो परतंत्र मानसिकता से ग्रस्त है । किसी भी कार्य के प्रति सरकारी तंत्र जागरूक नहीं है । जब अवसर आता है, तब उनकी निद्रा खुलती है। सरकारी कार्यप्रणाली में मीटिंगें प्रमुख हैं। हर छोटी-से-छोटी बात पर मीटिंग बुलाई जाती है जिसमें परामर्श तो होता है, परंतु क्रियाशीलता नहीं। सभी विभाग एक-दूसरे पर कार्य आरोपण करते रहते हैं। व्यर्थ का दिखावटीपन, चिंता, चापलूसी की प्रवृत्ति पूरी कार्यप्रणाली में भरी हुई है । पाठ में रानी एलिज़ाबेथ के भारत आने पर सभी अपना काम-काज छोड़कर उनकी तैयारी और स्वागत में संपूर्ण सरकारी तंत्र लग जाता है और जॉर्ज पंचम की नाक लगाने को लेकर चिंता और बदहवासी दिखाई देती है। संपूर्ण पाठ में सरकारी तंत्र अपनी अयोग्यता, अदूरदर्शिता, चाटुकारिता और मूर्खता को दर्शाता रहता है।


प्रश्न 3. आज की पत्रकारिता में चर्चित हस्तियों के पहनावे और खान-पान संबंधी आदतों आदि के वर्णन का दौर चल पड़ा है। इस तरह की पत्रकारिता आम जनता विशेषकर युवा पीढ़ी पर क्या प्रभाव डालती है। पाठ के आधार पर लिखिए।

उत्तर

आज की पत्रकारिता में चर्चित हस्तियों के पहनावे और खान-पान संबंधी आदतों आदि के वर्णन का दौर चल पड़ा है। इसमें मीडिया बहुत अधिक रुचि ले रहा है। चौबीसों घंटे मीडिया को ऐसी सामग्री की तलाश रहती है, जिससे वह लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर सके। इस प्रकार की पत्रकारिता धन और समय अपव्यय कर युवा पीढ़ी को विशेष रूप से प्रभावित कर रही है। युवा वर्ग इन चर्चित हस्तियों की तरह वेशभूषा अपनाना चाहता है, वैसा ही अपना खान-पान रखना चाहता है। वैसा ही बनावटी और दिखावटी जीवन जीना चाहता है । चर्चित व्यक्तियों की कथाएँ युवा पीढ़ी को बुरी तरह से प्रभावित करती हैं और इस प्रभाव में गुमराह की स्थिति तक पहुँच जाती है। युवा उनकी हर प्रकार की नकल करना चाहता है, उन्हीं की संस्कृति में जीने की आकांक्षा उसे बुरे रास्ते एवं भटकाव की ओर ले जाती है और इस आकर्षण में पड़कर वह अपने वास्तविक सामाजिक व्यवहार और लक्ष्य को भूल जाता है।


प्रश्न 4. समाचार-पत्रों की जन-जागरण में क्या भूमिका होती है? 'जॉर्ज पंचम की नाक' पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

समाचार-पत्र केवल सूचनाएँ या देश-विदेश के समाचार ही नहीं देते। जन-जागरण उत्पन्न करने में, लोगों को चेतना सम्पन्न बनाने में, प्रत्येक क्षेत्र में हलचल मचाने में समाचार-पत्र विशिष्ट भूमिका रखते हैं। 'जॉर्ज पंचक की नाक' पाठ में रानी एलिज़ाबेथ की भारत आगमन की सूचना ही न केवल अखबारों द्वारा मिलती है, अपितु उनकी शाही तैयारियों की विस्तृत चर्चा भी मिलती है । रानी एलिज़ाबेथ के नौकरों, बावर्चियों, खान- सामों, अंगरक्षकों की पूरी की पूरी जीवनियाँ अखबारों में देखने को मिलती हैं। अखबार वाले सरकारी तंत्र के अनुकूल भी लिखते हैं और ऐसे कार्यों को छापने से भी बचते हैं, जिन कार्यों से सरकार की पोल खुलती हो । जिंदा नाक लगाने के शर्मनाक दिन कोई अखबार इस घटना को यथार्थ में छापकर अपनी साहसिक और ईमानदार छवि को प्रस्तुत न कर सका। अखबारों में केवल इतना छपा कि नाक का मसला हल हो गया है और राजपथ पर इंडिया गेट के पास वाली जॉर्ज पंचम की लाट के नाक लग गई उस दिन सभी अखबार खाली थे क्योंकि या तो उनके अंदर सरकार के कुकृत्यों को उजागर करने का साहस नहीं था या फिर जिंदा नाक लगाने का अखबार वालों ने मौन विरोध किया था। इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि जन-जागरण में समाचार-पत्रों की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।


प्रश्न 5. 'और देखते ही देखते नई दिल्ली का कायापलट होने लगा' - नई दिल्ली के कायापलट के लिए क्या-क्या प्रयत्न किए गए होंगे? 'जॉर्ज पंचम की नाक' पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर

'और देखते-ही-देखते नई दिल्ली का कायापलट होने लगा' 'जॉर्ज पंचम की नाक' पाठ के आधार पर - यह अनुमान लगाया जा सकता है कि रानी एलिज़ाबेथ के स्वागत के लिए नई दिल्ली की कायापलट हुई होगी। और इस हेतु निम्नलिखित प्रयत्न किए गए होंगे- सड़कों को साफ-सुथरा बनाने के लिए कूड़ा-करकट उठवाया गया होगा । सड़कों को धुलवाया गया होगा।

  • जगह-जगह पर रंग-बिरंगी झंडियाँ लगवाई होंगी ।
  • बैनर एवं तोरणों की व्यवस्था की होगी ।
  • सरकारी इमारतों, भवनों पर रंग-रोगन कराया होगा ।
  • सुरक्षा के कड़े प्रबंध किए होंगे।
  • सरकारी भवनों पर झंडे लगाए होंगे।
  • बड़ी-बड़ी इमारतों पर रंगीन रोशनी का प्रबंध किया गया होगा ।
  • राजकीय मार्ग को पुष्प सज्जा से सुशोभित किया गया होगा ।
  • राजकीय सम्मान और राजकीय भोज की बढ़-चढ़कर तैयारी की होगी ।


प्रश्न 6. 'जॉर्ज पंचम की नाक' पाठ में सरकारी तंत्र का मज़ाक उड़ाया गया है- कैसे ?

उत्तर

'जॉर्ज पंचम की नामक' पाठ में सरकारी तंत्र का मज़ाक उड़ाया गया है । पाठ में सरकारी तंत्र में जॉर्ज पंचम की नामक को लेकर जो चिंता दर्शाई गई है, वह उनकी गुलाम और औपनिवेशिक मानसिकता को दर्शाती है। भारत को गुलाम बनाकर रखने वाले राजा का सम्मान और रानी को प्रसन्न करने के लिए परेशान सरकारी तंत्र स्वतंत्र होकर भी मानसिक रूप से गुलाम दिखाई देता है, जिसे राष्ट्र के सम्मान की थोड़ी भी चिंता नहीं है । इतनी ही नहीं सरकारी तंत्र किसी भी कार्य के पहले से जागरूक नहीं है । वह मौका आने पर जागृत होता है। मीटिंग बुलाना, मशवरा करना, ज़िम्मेदारी एक-दूसरे पर डालना, दिखावटी चिंता करना, चापलूसी करना - ये सब सरकारी तंत्र का मज़ाक ही है।


प्रश्न 7. 'जॉर्ज पंचम की नाक' पाठ में देश की किन स्थितियों पर व्यंग्य किया गया है? पाठ के कथानक के आधार पर लिखिए। इस पाठ को पढ़कर आपको क्या प्रेरणा मिलती है? बताइए ।

उत्तर

'जॉर्ज पंचम की नाक' पाठ के माध्यम से देश की बदहाल विभिन्न स्थितियों पर व्यंग्य किया गया है। इसमें दर्शाया गया है कि अंग्रेजी हुकूमत से आज़ादी प्राप्त करने के बाद भी सत्ता से जुड़े लोग औपनिवेशिक दौर की मानसिकता के शिकार हैं। 'नाक' मान-सम्मान व प्रतिष्ठा का प्रतीक है, जबकि 'कटी हुई नाक' अपमान का प्रतीक है। जॉर्ज पंचम की नाक अर्थात् सम्मान एक साधारण भारतीय की नाक से भी छोटी (कम) है, फिर भी सरकारी अधिकारी उनकी नाक बचाने के लिए जी-जान से लगे रहे। अंत में किसी जीवित व्यक्ति की नाक काटकर जॉर्ज पंचम की नाक पर लगा दी गई। केवल दिखावे के लिए या दूसरों को खुश करने के लिए अपनों की इज्जत के साथ खिलवाड़ की जाती है। यह पूरी प्रक्रिया भारतीय जनता के आत्मसम्मान पर प्रहार दर्शाती है। इसमें सत्ता से जुड़े लोगों की मानसिकता पर व्यंग्य है। इस पाठ से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि अपने राष्ट्र एवं समाज को भ्रष्टाचार मुक्त तथा तार्किक बनाना चाहिए । सरकारी प्रक्रियाओं को और अधिक पारदर्शी एवं ईमानदार बनाना चाहिए। किसी की भावनाओं को ठेस नहीं पहुँचानी चाहिए। अपने देश एवं देशवासियों के सम्मान की हमेशा रक्षा करनी चाहिए।


प्रश्न 8. मूर्तिकार ने नाक लगाने के लिए क्या-क्या प्रयास किए? क्या आपकी दृष्टि से उसके द्वारा किए गए प्रयास उचित थे? यदि आप होते, तो क्या करते?

उत्तर

जॉर्ज पंचम की पर नाक पुनः लगाने के लिए मूर्तिकार ने निम्नलिखित प्रयत्न किए - सर्वप्रथम उसने जॉर्ज पंचम की नाक के निर्माण में प्रयुक्त पत्थर को खोजने का प्रयास किया, परंतु इस प्रयास में वह असफल रहा क्योंकि वह पत्थर विदेशी था । फिर उसने देशभर में घूम-घूम कर शहीद नेताओं की मूर्तियों की नाकों का नाप लिया, ताकि उन मूर्तियों में से किसी एक की नाक को जॉर्ज पंचम की लाट पर लगाया जा सके, परंतु उसका यह प्रयास भी असफल रहा क्योंकि सभी मूर्तियों की नाकें आकार में बड़ी निकलीं। इसके पश्चात् उसने 1942 में बिहार सैक्रेटरियट के सामने शहीद हुए बच्चों की मूर्तियों की नाकों का नाप लिया, किंतु वे भी बड़ी निकलीं । अंत में उसने ज़िंदा नाक लगाने का निर्णय किया और जॉर्ज पंचम को ज़िंदा नाक लगा दी गई । हमारी दृष्टि में मूर्तिकार के प्रयास उचित नहीं थे । वह कलाकार तो था, परंतु सही मायनों में पैसों का लालची था। वह सरकारी धन का भरपूर दुरुपयोग करना चाहता था। अंत में जिंदा नाक काट कर लगा देने की राय देकर वह कला के नाम का सरकार का जमकर शोषण करता है। यदि हम मूर्तिकार की जगह होते तो ऐसा कभी न करते । भारत के महान नेताओं एवं बालकों का सम्मान जॉर्ज पंचम से बढ़कर नहीं था, अतः उनकी नाक ऊँची है। जॉर्ज पंचम उनके समक्ष कहीं नहीं ठहरते । ज़िंदा नाक का महत्त्व तो और भी ज़्यादा है। हम मूर्तिकार की तरह जॉर्ज पंचम को नाक लगाने का किसी भी प्रकार का कोई प्रयास न करते ।

Previous Post Next Post