Extra Questions for Class 9 स्पर्श Chapter 1 धूल - रामविलास शर्मा Hindi

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Extra Questions for Class 9 स्पर्श Chapter 1 धूल - रामविलास शर्मा Hindi

Chapter 1 धूल Sparsh Extra Questions for Class 9 Hindi

 अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1: हीरे के प्रेमी उसे किस रूप में पसंद करते हैं?

उत्तर

हीरे के प्रेमी हीरे को चमचमाता, चिकना और साफ़-सुथरा देखना पसंद करते हैं।


प्रश्न 2: लेखक ने संसार में किस प्रकार के सुख को दुर्लभ माना है ?

उत्तर

तेल और मट्ठा डालकर सिझाई गई अखाड़े की मिट्टी में सनने के सुख को लेखक ने दुर्लभ माना है।


प्रश्न 3: मिट्टी की आभा क्या है? उसकी पहचान किससे होती है?

उत्तर

मिट्टी की आभा धूल है। धूल से ही मिट्टी के रंग-रूप की पहचान होती है।


प्रश्न 4: हमारी सभ्यता धूल से क्यों बचना चाहती है?

उत्तर

हमारी शहरी सभ्यता को लगता है कि धूल से उसके श्रृंगार के साधन धुँधले पड़ जाएँगे।


प्रश्न 5: अखाड़े की मिट्टी की क्या विशेषता होती है?

उत्तर

अखाड़े की मिट्टी साधारण मिट्टी से बिलकुल अलग होती है। इसे तेल और मट्ठे से सिझाया जाता है।


प्रश्न 6: श्रद्धा, भक्ति, स्नेह की व्यंजना के लिए धूल सर्वोत्तम साधन किस प्रकार है?

उत्तर

मंदिर या मसजिद में जाकर जब हम श्रद्धा से अपना सिर झुकाते हैं तो धूल हमारे माथे पर लगती है।


प्रश्न 7: अखाड़े की मिट्टी साधारण नहीं है। क्यों?

उत्तर

क्योंकि वह तेल और मठ्ठे से सिझाई हुई वह मिट्टी है जो देवता पर चढ़ाई जाती है।


प्रश्न 8: दुर्लभ का क्या अर्थ है ?

उत्तर

मुश्किल से मिलने वाला।


प्रश्न 9: जिन फूलों को हम अपनी प्रिय वस्तुओं का उपमान बनाते हैं, वे सब किसकी उपज हैं?

उत्तर

मिट्टी की।


प्रश्न 10: लेखक ने मिट्टी को इतना महत्त्वपूर्ण क्यों कहा है?

उत्तर

लेखक ने मिट्टी को महत्त्वपूर्ण कहा है क्योंकि जीवन के लिए अनिवार्य सारतत्त्व मिट्टी की ही उपज है।


प्रश्न 11: रात में धूल किसके समान उड़ती है?

उत्तर

रात में धूल कवि की कल्पना के समान उड़ती है।


प्रश्न 12: 'नयन' - तारे' से लेखक का क्या अभिप्राय है?

उत्तर

'नयन-तारे' से लेखक का अभिप्राय प्रिय पुत्र/पुत्री से है।


प्रश्न 13: शिशु के मुख पर लगकर धूल क्या करती है?

उत्तर

शिशु के मुख पर लगकर धूल उसकी सहज पार्थिवता अर्थात् सौंदर्य को निखार देती है।


प्रश्न 14: लेखक ने अखाड़े की मिट्टी की महिमा कैसे बढ़ाई है?

उत्तर

तेल और मट्ठे से देवता पर चढ़ाई जाने वाली कहकर लेखक ने अखाड़े की मिट्टी की महिमा बढ़ाई है।


प्रश्न 15: संसार में मिट्टी का क्या महत्त्व है?

उत्तर

संसार की हर वस्तु मिट्टी में ही पैदा होती है और अंत में मिट्टी में ही मिल जाती है।


प्रश्न 16: धूल का महत्त्व कब बढ़ जाता है?

उत्तर

श्रद्धा, भक्ति और स्नेह से माथे पर लगाने पर धूल का महत्त्व बढ़ जाता है।


प्रश्न 17: मिट्टी और धूल में कितना अंतर है?

उत्तर

लेखक के अनुसार मिट्टी और धूल में उतना ही अंतर है जितना शब्द और रस में, देह और प्राण में तथा चाँद और चाँदनी में।



लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1: लेखक 'बालकृष्ण' के मुँह पर लगी गोधूलि को श्रेष्ठ क्यों मानता है?

उत्तर

बालकृष्ण के चेहरे पर गोधूलि लगने का अर्थ है कि वे बालसुलभ क्रीड़ाएँ करते हैं । नटखट हैं, जो स्वस्थ बच्चे की निशानी है। इसलिए लेखक उसे श्रेष्ठ मानता है। लेखक कृष्ण के बालस्वरूप पर केंद्रित प्राचीन कवियों के साहित्य पर मोहित लगते हैं। सूरदास, रसखान आदि द्वारा किया गया कृष्ण का बाल वर्णन भी तो इतना मोहक है।


प्रश्न 2: धूल के बिना किसी शिशु की कल्पना क्यों नहीं की जा सकती?

उत्तर

धूल के बिना किसी शिशु की कल्पना इसलिए नहीं की जा सकती क्योंकि धूल ही शिशु के मुँह पर लगकर उसकी सहज पार्थिवता अर्थात सुंदरता को निखारती है।


प्रश्न 3: इस पाठ में लेखक ने नगरीय सभ्यता पर क्या व्यंग्य किया है?

उत्तर

नगरीय सभ्यता बाहरी चमक-दमक और टीम-टाम पर विश्वास रखती है, वह धूल से दूर रहना चाहती है ताकि उसका शरीर मैला न हो। वह काँच के हीरों को प्यार करती है असली हीरों को नहीं।


प्रश्न 4: लेखक ने हीरे से भी कीमती किसे कहा है और क्यों?

    उत्तर

    लेखक ने हीरे से भी कीमती 'धूल भरे हीरे' को कहा है। धूल भरे हीरे का अर्थ है- गाँव की मिट्टी में खेल - कूदकर पला हुआ ग्रामीण बालक। लेखक ने धूल भरे हीरे को मूल्यवान इसलिए बताया है, क्योंकि ग्रामीण बालक गाँव की धूल-मिट्टी में पलकर बड़े होते हैं। वे उसी में जीवन के सब सुख लेते हैं। अतः धूल उनका शृंगार बन जाती है।


    प्रश्न 5: ‘फूल के ऊपर जो रेणु उसका श्रृंगार बनती है, वही धूल शिशु के मुँह पर उसकी सहज पार्थिवता को निखार देती है । ' - आशय स्पष्ट कीजिए ।

      उत्तर

      उपर्युक्त पंक्ति में कवि ने धूल की महत्ता का बखान किया है। कवि-कल्पना की भाँति गाड़ियों के पीछे उड़ती चलती धूल जो शिशु के मुँह पर फूल की पंखुड़ियों पर साकार सौंदर्य बनकर छा जाती है इसी का नाम धूल है। गोधूलि के सौंदर्य की तुलना किसी भी प्रसाधन सामग्री से नहीं की जा सकती।


      प्रश्न 6: गोधूलि क्या है? वह किसकी संपत्ति है ?

      उत्तर

      गोधूलि गाँव में गो-गौपालों के पग-संचालन से उत्पन्न होने वाली धूल है। यह गाँव की संपत्ति है जो शहरों में रहने वालों को नहीं मिलती।


      प्रश्न 7: लेखक के अनुसार किस धूलि को कवियों ने अमर किया है? धूल के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है ?

      उत्तर

      लेखक धूल के नन्हे कणों के वर्णन के माध्यम से देश प्रेम की पावन शिक्षा देना चाहता है। जिस धूलि को कवियों ने अमर किया है, वह हाथी-घोड़ों के पग संचालन से उत्पन्न धूलि नहीं वरन गो- गोपालों के पदों की धूलि है।


      प्रश्न 8: किसान के हाथ-पैर और मुँह पर छाई हुई धूल हमारी सभ्यता से क्या अपेक्षा करती है ?

        उत्तर

        किसान के हाथ-पैर और मुँह पर छाई हुई धूल हमारी सभ्यता से यह अपेक्षा करती है कि हम मिट्टी के महत्त्व को जानकर उससे प्यार करें। कृत्रिमता को त्यागकर असलियत को अपनाएँ । काँच को छोड़कर धूलि भरे हीरों को अपनाएँ, क्योंकि इन्हीं के भीतर कांति छिपी है तथा ये हीरे अमर हैं।


        प्रश्न 9: 'धन्य-धन्य वे हैं नर मैले जो करत गात कनिया लगाय धूरि ऐसे लरिकान की । ' - आशय स्पष्ट कीजिए ।

        उत्तर

        इस पंक्ति का आशय यह है कि वे लोग वास्तव में महान हैं, जो धूल भरे बच्चों को गोद में उठाकर प्यार करते हैं । इस पंक्ति के माध्यम से जहाँ लेखक ने शहरी तथा ग्रामीण बालकों में भेद दिखाया है, वहाँ 'मैले' विशेषण से धूल की महानता को हानि पहुँचाई है।

        प्रश्न 10: इस पाठ के माध्यम से लेखक ने देशभक्ति का पाठ किस प्रकार पढ़ाया है?

        उत्तर

        लेखक ने कहा है कि आधुनिक सभ्यता धूल को तुच्छ जानकर उसके संसर्ग में नहीं आती। वह स्वयं को उससे बचाकर आसमान में ही अपना घर बनाना चाहती है। यदि उनमें देशभक्ति की प्रबल भावना तथा अपनी मातृभूमि की मिट्टी से जुड़ाव नहीं है, तो भी उन्हें कम-से-कम यह प्रयास तो करना ही चाहिए कि वे स्वदेश में ही रहकर कोई कार्य करें, विदेश जाने की बात न करें।

        प्रश्न 11: धूल के बिना किसी शिशु की कल्पना क्यों नहीं की जा सकती ?
        उत्तर
        धूल के बिना किसी शिशु की कल्पना नहीं की जा सकती, क्योंकि गाँव के गलियारे की धूल में ही बचपन बीतता है। शिशु के मुख पर छाई धूल उसकी सहज पार्थिवता को और भी निखार देती है । वह धूल के सान्निध्य में पलकर ही बड़ा होता है। हमारी ग्रामीण संस्कृति में धूल को पावन मानकर इसे विशिष्ट स्थान दिया गया है।

        प्रश्न 12: लेखक ने धूल और मिट्टी में क्या अंतर बताया है?
        उत्तर

        मिट्टी और धूल में बहुत अधिक अंतर नहीं है। मिट्टी कारण है तो धूल उसका कार्य। मिट्टी की ऊपरी परत ही धूल है। ठोस मिट्टी की उपज ही धूल की तरलता है। मिट्टी और धूल को अलग करके नहीं देखा जा सकता। धूल और मिट्टी में उतना ही अंतर है जितना शब्द और रस में, देह और प्राण में, चाँद और चाँदनी में।

        प्रश्न 13: 'हीरा वही घन चोट न टूटे' - का संदर्भ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
        उत्तर

        हीरे को बहुत कठोर और मज़बूत माना जाता है जो घन (भारी हथौड़ा) की चोट से भी नहीं टूटता। इस पाठ में गाँव के मेहनतकश लोगों और किसानों की तुलना हीरे से की गई है। किसानों पर प्रकृति और समाज की मार हमेशा पड़ती है। गाँव में ज़मींदार उनका शोषण और दमन करते हैं और प्रकृति उनकी फसल को नष्ट कर देती है। इतना होने पर भी वे भीतर से हीरे की भाँति मज़बूत और दृढ़ रहते हैं - इस पाठ में इसी सत्यता को उकेरा गया है।

        प्रश्न 14: कविता को विडंबना मानते हुए लेखक ने क्या कहा है ?
        उत्तर

        लेखक ने अपने एक व्यक्तिगत उदाहरण का उल्लेख करते हुए 'गोधूलि ' शब्द को कविता की विडंबना माना है। यह एक सामान्य रीति अथवा परंपरा है कि निमंत्रण-पत्र पर 'शाम' या 'संध्या' शब्दों के स्थान पर 'गोधूलि की बेला' लिखा जाता है। परंतु शहरों में गोधूलि होती ही नहीं, अतः इस शब्द का प्रयोग कविता की विडंबना ही है।


        निबंधात्मक प्रश्नोत्तर

        प्रश्न 1: “हमारी सभ्यता इस धूल के संसर्ग से बचना चाहती है।" आप इस कथन से कहाँ तक सहमत हैं? इस विषय में अपने विचार लिखिए।

        उत्तर

        लेखक का यह कथन है कि, “हमारी सभ्यता इस धूल के संसर्ग से बचना चाहती है।" पूर्णतः सत्य है। इसका कारण यह है कि आज प्रत्येक व्यक्ति अपनी मूल संस्कृति व सभ्यता को उस रूप में स्वीकार नहीं करना चाहता जिस रूप में उसे स्वीकार किया जाना चाहिए। हमें पाश्चात्य सभ्यता-संस्कृति अपनाने में विशेष संतुष्टि की अनुभूति होती है, जबकि वास्तविकता यह है कि हमारा जीवन यथार्थवादी एवं आदर्शवादी चिंतन एवं कार्यों से प्रभावित होता है। अत्यधिक सुख-सुविधा प्राप्त करने के लिए हम बिना सोचे-समझे अपनी संस्कृति व आदर्श नैतिक मूल्यों को त्याग देते हैं। इधर कुछ वर्षों से यह प्रवृत्ति पीढ़ी-दर-पीढ़ी बढ़ती जा रही है, जो कि भावी समाज एवं राष्ट्र के लिए उचित नहीं है।


        प्रश्न 2: "हमारी देशभक्ति धूल को माथे से न लगाए तो कम से कम उस पर पैर तो न रखे" - आशय स्पष्ट कीजिए ।

        उत्तर

        'हमारी देशभक्ति धूल को माथे से न लगाए तो कम से कम इस पर पैर तो न रखे', लेखक के इस कथन का आशय यह है कि भारतवासी अपनी सांस्कृतिक व इसके मूल्यों को पहचानें तथा उसके अनुसार आचरण करें। ऐसा कहने का एक कारण यह भी है कि हम वास्तविकता से काफ़ी दूर होते जा रहे हैं परिणामत: हमारा सांस्कृतिक आधार कमज़ोर होता जा रहा है। हम यह भूल जाते हैं कि वास्तविक धरातल पर रहकर ही हम किसी उपलब्धि को प्राप्त कर सकते हैं। वस्तुतः धूल ही जीवन का वह यथार्थवादी गद्य है जिसमें हमें वे सभी आवश्यक वस्तुएँ मिल सकती हैं जिनकी हमें आवश्यकता होती है।

        प्रश्न 3: लेखक ने धूल की महिमा का बखान करने के लिए कौन-कौन से रूपक बाँधे हैं?

          उत्तर

          लेखक ने धूल की महिमा का बखान करने के लिए निम्नलिखित रूपक बाँधे हैं:

          • अमराइयों के पीछे छिपे सूर्य की किरणों में आलोकित धूलि सोने को मिट्टी कर देती है।
          • सूर्यास्त के उपरांत लीक पर गाड़ी के निकल जाने के बाद जो रूई के बादल की तरह या ऐरावत हाथी के नक्षत्र पथ की भाँति जहाँ की तहाँ स्थिर रह जाती है।
          • चाँदनी रात में मेले जाने वाली गाड़ियों के पीछे जो कवि की कल्पना की भाँति उड़ती चलती है।
          • जो शिशु के मुँह पर फूल की पंखुड़ियों पर साकार सौंदर्य बनकर छा जाती हैं।


          प्रश्न 4: इस पाठ के माध्यम से लेखक ने क्या संदेश दिया है?

            उत्तर

            इस पाठ के माध्यम से लेखक ने धूल की महिमा तथा उसकी उपयोगिता का बखान किया है। ग्रामीण - संस्कृति में धूल को पावन मानकर विशिष्ट स्थान दिया गया है। धूल के बिना ग्रामीण संस्कृति की कल्पना भी नहीं की जा सकती, जबकि शहरी-संस्कृति में इसे हेय माना जाता है, जिस पर लेखक ने व्यंग्य किया है। बालकृष्ण तथा फूल का सौंदर्य धूल के कारण और भी बढ़ जाता है। श्रद्धा, भक्ति तथा स्नेह आदि भावों की व्यंजनाओं की अभिव्यक्ति के लिए धूल से बढ़कर अन्य कोई माध्यम नहीं है।


            प्रश्न 5: ग्रामीण परिवेश में प्रकृति धूल के कौन-कौन से सुंदर चित्र प्रस्तुत करती है?

            उत्तर

            धूल का वास्तविक रूप तो ग्रामीण परिवेश में ही नज़र आता है। धूल भिन्न-भिन्न रूपों में अनेक दृश्य प्रस्तुत करती है। शिशु के मुँह पर लगी धूल फूल की पंखुड़ियों का आभास देती है, अमराइयों की ओट में जब सूरज छिप जाता है तो उसकी सुनहरी किरणें धूल-कणों पर नहीं पड़तीं और वे धूल-कण मिट्टी लगने लगते हैं। सूरज छिपने के बाद लीक से गुज़री गाड़ी के पीछे धूल रूई के बादलों के समान स्थिर हो जाती है और चाँदनी रात में मेले जानेवाली बैलगाड़ियों के पीछे धूल ऐसे उड़ती है जैसे कवि की कल्पना।

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