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MCQ and Summary for अति सूधो सनेह को मारग है, मो अँसुवानिहिं लै बरसौ (Ati Sadho Sneh Ko Marag Hai, Mo Asuvanihi Lai Barso) Class 10 Hindi Godhuli Part 2 Bihar Board

अति सूधो सनेह को मारग है, मो अँसुवानिहिं लै बरसौ - घनानंद MCQ and सारांश

Multiple Choice Question Solutions (बहुविकल्पी प्रश्न)


1. 'अति सूधो सनेह को भारग है' के कवि कौन हैं ?
(A) गुरु नानक
(B) घनानंद
(C) रामधारी सिंह 'दिनकर'
(D) सुमित्रानंदन पंत
उत्तर
(B) घनानंद

2. 'घनानंद' किस काल के कवि थे ?
(A) आदिकाल
(B) भक्तिकाल
(C) रीतिकाल
(D) छायावादी युग
उत्तर
(C) रीतिकाल

3. घनानंद किस भाषा के अच्छे जानकार थे?
(A) उर्दू
(B) अंग्रेजी
(C) संस्कृत
(D) फारसी
उत्तर
(D) फारसी

4. घनानंद किस भाषा के कवि है ?
(A) मगही
(B) ब्रज
(C) खड़ी
(D) संस्कृत
उत्तर
(A) मगही

5. घनानंद का जन्म हुआ था
(A) 1689 ई० में
(B) 1589 ई. में
(C) 1789 ई० में
(D) 1989 ई. में
उत्तर
(A) 1689 ई० में

6. घनानंद की हत्या कब कर दी गई?
(A) 1539 ई० में
(B) 1639 ई. में
(C) 1739 ई० में
(D) 1839 ई. में
उत्तर
(C) 1739 ई० में

7. घनानंद किस चीज की पीर के गायक थे।
(A) विरह
(B) दु:ख
(C) प्रेम
(D) वात्सल्य
उत्तर
(C) प्रेम

8. घनानंद के अनुसार प्रेम का मार्ग कैसा है?
(A) अत्यंत सीधा
(B) सरल
(C) अत्यंत सीधा एवं सरल
(D) सभी गलत हैं
उत्तर
(C) अत्यंत सीधा एवं सरल

9. सवैया आर घनाक्षरी के लिए प्रसिद्ध रचनाकार निम्नलिखित में कौन है?
(A) मीरा बाई
(B) तुलसी दास
(C) कबीर दास
(D) घनानंद
उत्तर
(A) मीरा बाई

10. सुजान कौन थी ?
(A) कवि
(B) रंगकर्मी
(C) नर्तकी
(D) रानी
उत्तर
(C) नर्तकी

11. प्रेम मार्ग के पथिक को प्रेम मार्ग पर चलते समय किस चीज का भावश्यकता नहीं रहती है ?
(A) लाठी की
(B) भाले की
(C) जूते की
(D) चतुराई की
उत्तर
(D) चतुराई की

12. कवि ने 'परजन्य' किसे कहा है ?
(A) कृष्ण
(B) सुजान
(C) बादल
(D) हवा
उत्तर
(C) बादल


अति सूधो सनेह को मारग है, मो अँसुवानिहिं लै बरसौ- लेखक परिचय

रीतियुगीन काव्य में घनानंद रीतिमुक्त काव्यधारा के सिरमौर कवि हैं । इनका जन्म 1689 ई० के आस-पास हुआ और 1739 ई० में वे नादिरशाह के सैनिकों द्वारा मारे गये । ये तत्कालीन मुगल बादशाह मोहम्मद शाह रंगीले के यहां मीरमुंशी का काम करते थे। ये अच्छे गायक और श्रेष्ठ कवि थे । किवदंती है कि सुजान नामक नर्तकी को वे प्यार करते थे । विराग होने पर ये वृंदावन चले गये और वैष्णव होकर काव्य रचना करने लगे । सन् 1939 में जब नादिरशाह ने दिल्ली पर आक्रमण किया तब उसके सिपाहियों ने मथुरा और वृंदावन पर भी धावा बोला । बादशाह का मीरमुंशी जानकर घनानंद को भी उन्होंने पकड़ा और इनसे जर, जर, जर (तीन बार सोना, सोना, सोना) माँगा । घनानंद ने तीन मुट्ठी धूल उन्हें यह कहते हुए दी, ‘रज, रज, रज’ (धूल, धूल, धूल) । इस पर क्रुद्ध होकर सिपाहियों ने इनका वध कर दिया।

घनानंद ‘प्रेम की पीर’ के कवि हैं। उनकी कविताओं में प्रेम की पीड़ा, मस्ती और वियोग सबकुछ है । आचार्य शुक्ल के अनुसार, “प्रेम मार्ग का ऐसा प्रवीण और धीर पथिक तथा जबाँदानी का ऐसा दावा रखने वाला ब्रजभाषा का दूसरा कवि नहीं हुआ है।” वियोग में सच्चा प्रेमी जो वेदना सहता है, उसके चित्त में जो विभिन्न तरंगे उठती हैं, उनका चित्रण घनानंद ने किया है। घनानंद वियोग दशा का चित्रण करते समय अलंकारों, रूढ़ियों का सहारा लेने नहीं दौड़ते, वे बाह्य चेष्टाओं पर भी कम ध्यान देते हैं । वे वेदना के ताप से मनोविकारों या वस्तुओं का नया आयाम, अर्थात् पहले न देखा गया उनका कोई नया रूप-पक्ष देख लेते हैं। इसे ही ध्यान में रखकर शुक्ल जी ने इन्हें ‘लाक्षणिक मूर्तिमत्ता और प्रयोग वैचित्र्य’ का ऐसा कवि कहा जैसे कवि उनके पौने दो सौ वर्ष बाद छायावाद काल में प्रकट हुए।

घनानंद की भाषा परिष्कृत और शुद्ध ब्रजभाषा है । इनके सवैया और घनाक्षरी अत्यंत प्रसिद्ध हैं । घनानंद के प्रमुख ग्रंथ हैं – ‘सुजानसागर’, ‘विरहलीला’, ‘रसकेलि बल्ली’ आदि।

रीतिकाल के शास्त्रीय युग में उन्मुक्त प्रेम के स्वच्छंद पथ पर चलने वाले महान प्रेमी कवि घनानंद के दो सवैये यहाँ प्रस्तुत हैं । ये छंद उनकी रचनावली ‘घनआनंद’ से लिए गए हैं। प्रथम छंद में कवि जहाँ प्रेम के सीधे, सरल और निश्छल मार्ग की प्रस्तावना करता है, वहीं द्वितीय छंद में मेघ की अन्योक्ति के माध्यम से विरह-वेदना से भरे अपने हृदय की पीड़ा को अत्यंत कलात्मक रूप में अभिव्यक्ति देता है । घनानंद के इन छंदों से भाषा और अभिव्यक्ति कौशल पर उनके असाधारण अधिकार को भी अभिव्यक्ति होती है।


अति सूधो सनेह को मारग है, मो अँसुवानिहिं लै बरसौ का सारांश (Summary)

प्रस्तुत पाठ में घनानंद के दो छंद संकलित है। प्रथम छंद में कवि ने प्रेम के सीधे, सरल और निश्छल मार्ग के विषय में बताया है। तो द्वितीय छंद में विरह वेदना से व्यथित अपने हृदय की पीड़ा को कलात्मक रंग से अभिव्यंजित किया है।


अति सूधो सनेह को मारग है
अति सूधो सनेह का मारग है जहाँ नेकु सयानप बाँक नहीं।
तहाँ साँचे चलैं तजि आपनपौ झुझुकैं कपटी जे निसाँक नहीं।।

कवि घनानंद कहते हैं कि प्रेम का मार्ग अति सीधा और सुगम होता है जिसमें थोड़ा भी टेढ़ापन या धूर्तता नहीं होती है। उस पथ पर वहीं व्यक्ति चल सकता है जिसका हृदय निर्मल है तथा अपने आप को पूर्णतः समर्पित कर दिया है।


‘घनआनँद‘ प्यारे सुजान सुनौ यहाँ एक तैं दूसरो आँक नहीं।
तुम कौन धौं पाटी पढ़े हौ कहौ मन लेहु पै देहु छटाँक नहीं।।

कवि घनानंद कहते हैं- हे सज्जन लोगों ! सुनो, सगुण और निर्गुण से कोई तुलना नहीं है। तुमने तो ऐसा पाठ पढ़ा है कि मन भर लेते हो किन्तु छटाँक भर नहीं देते हो। अतः कवि का कहना है कि गोपियाँ कृष्ण-प्रेम में मस्त होने के कारण उधो की बातों पर ध्यान नहीं देती, बल्कि प्रेम की विशेषता पर प्रकाश डालती हुई कहती है कि भक्ति का मार्ग सुगम होता है, ज्ञान का मार्ग कठिन होता है।


मो अँसुवानिहिं लै बरसौ
परकाजहि देह को धारि फिरौ परजन्य जथारथ ह्वै दरसौ।
निधि-नीर सुधा की समान करौ सबही बिधि सज्जनता सरसौ।।
कवि घनांनद कहते हैं कि दूसरे के उपकार के लिए शरीर धारण करके बादल के समान फिरा करो और दर्शन दो। समुद्र के जल को अमृत के समान बना दो तथा सब प्रकार से अपनी सज्जनता का परिचय दो।


‘घनआनँद‘ जीवनदायक हौ कछू मेरियौ पीर हिएँ परसौ।
कबहूँ वा बिसासी सुजान के आँगन मो अँसुवानिहिं लै बरसौ।।
कवि घनानंद का आग्रह है कि उनकी हार्दिक पीड़ा का अनुभव करते हुए उन्हें जीवन रस प्रदान करो, ताकि वह कभी भी अपनी प्रेमिका सुजान के आँगन में उपस्थित हो कर अपने प्रेमरूपी आँसु की वर्षा करें।

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