BSEB Solutions for प्रेम-अयनि श्री राधिका, करील के कुंजन ऊपर वारौं (Prem-Ayani Shree Radhika, karil ke Kunjan Upar Vaaro) Class 10 Hindi Godhuli Part 2 Bihar Board

प्रेम-अयनि श्री राधिका, करील के कुंजन ऊपर वारौं - रसखान प्रश्नोत्तर

Very Short Questions Answers (अतिलघु उत्तरीय प्रश्न)

प्रश्न 1. रसखान किस भक्ति-धारा के कवि थे?
उत्तर
रसखान सगुण भक्ति-धारा के कवि थे।


प्रश्न 2. रसखान ने किस भाषा में काव्य-रचना की है ?
उत्तर

रसखान ने ब्रजभाषा में अपनी काव्य-रचना की है।


प्रश्न 3. दिल्ली के अतिरिक्त रसखान कहाँ रहे?
उत्तर

दिल्ली छोड़ने के बाद रसखान ने ब्रजभूमि में अपना जीवन व्यतीत किया।


Short Question Answers (लघु उत्तरीय प्रश्न)

प्रश्न 1. द्वितीय दोहे का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट करें।
उत्तर
दूसरा दोहा (सवैये) में कवि रसखान की अनुपम भक्ति देखन को मिलती है जिसमें कवि श्रीकृष्ण की भक्ति पर अपना सर्वस्व न्योछावर करने को तैयार हैं। सौन्दर्य की दृष्टि से भी यह सवैये अनुपम हैं। शब्दालंकार के प्रयोग से यह दोहा आकर्षक बन गया है।

प्रश्न 2. सवैये में कवि की कैसी आकांक्षा प्रकट होती है ? भावार्थ बताते हुए स्पष्ट करें।
उत्तर
द्वितीय दोहे में कवि ने सवैये का प्रयोग किया है जिसमें कवि रसखान ने आकांक्षा व्यक्त की है कि अगर श्रीकृष्ण की भक्ति के लिए मुझे करोड़ों स्वर्ग-सुख को त्यागना पड़े तो त्याग सकता हूँ।

Long Question Answer (दीर्घ उत्तरीय प्रश्न)


प्रश्न 1. कवि ने माली-मालिन किन्हें और क्यों कहा है ?
उत्तर
कवि रसखान ने प्रेमवाटिका के माली श्रीकृष्ण को तथा मालिन राधिका रानी को कहा है। क्योंकि दोनों प्रेम रूपी वाटिका के संरक्षक हैं। जैसेमाली-मालिन मिलकर फूल के बगीचा को सींचते हैं जिससे फूल खिलते हैं उसी प्रकार भगवान श्री कृष्ण और राधिका प्रेमरूपी वाटिका को सींचकर प्रेम को पुष्ट (विकसित) करते हैं।

प्रश्न 2. कृष्ण को चोर क्यों कहा गया है ? कवि का अभिप्राय स्पष्ट करें।
उत्तर
चित्तचोर कहलाने वाले भगवान श्रीकृष्ण अपने भक्तों के मन को शीघ्र ही अपनी ओर आकृष्ट कर लेते हैं इसलिए कवि ने उन्हें चोर कहा है। अभिप्राय यह है कि मनुष्य जब श्रीकृष्ण की भक्ति की ओर मुखरित होता है तो उसका मन श्रीकृष्ण की ओर स्वयं खिंच जाता है इसलिए वे चित्तचोर कहलाते हैं।

प्रश्न 3. 'करील के....... सबैये में कवि की कैसी आकांक्षा प्रकट होती है ? भावार्थ बताते हुए स्पष्ट करें।
उत्तर
रसखान पुष्टि मार्ग में दीक्षित कृष्ण-भक्त कवि हैं। कृष्ण पर वे फिदा हैं। कृष्ण के साथ-साथ उनकी एक-एक वस्तु कवि को सर्वाधिक प्यारी है। वे केवल कृष्ण ही नहीं उनकी हर वस्तु की महिमा और उससे जुड़ी अपनी आकांक्षा का वर्णन करते हुए नहीं थकते। वे प्रस्तुत सबैये में अपनी ऐसी ही आकांक्षाएँ व्यक्त करते हुए कहते हैं, मुझे अगर कृष्ण की लकुटी और कंबली मिल जाए तो तीनों लोक उन पर न्योछावर कर दूँ। अगर केवल नंद बाबा की वे गौएँ चराने को मिल जाएँ जिन्हें कृष्ण चराते थे तो आठों सिद्धियाँ और नौ निधियों के सुख को भी भूल जाऊँ तो उनके लिए, और तो और अगर इन आँखों से कृष्ण के लीला-केन्द्र ब्रजभूमि के बनबाग और तालाबों देखने को मिल जाएँ तो सैकड़ों इन्द्रलोक उन पर कुर्बान कर दूँ।

काव्यांशों पर आधारित प्रश्नोत्तर

1. प्रेम अवनि श्री साधिका, क-बान नैदलंदा
केन-बाटिका के दोऊ, माली मनिला
मोहन छवि स्लखन लखि अब तुम अपने नाहित
अंचे आवत धनुष से बटे सर से जाहिक
में मन मानिक लै मयको चितचोर नंदनंदा
आब बेबन का कसरी फेर के कंदा
प्रीतम नन्दकिशोर, जादिन ते नैनति लम्बी
मन पावन चितचोर, पालक ओट नहिं करि सको

प्रश्न.
(क) कविता एवं कवि का नाम लिखिए।
(ख) पद का प्रसंग लिखें।
(ग) पद का सरलार्थ लिखें।
(घ) भाव सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) काव्य सौंदर्य स्पष्ट करें।

उत्तर

(क) कवि- रसखाना कविता प्रेम अयनि श्री राधिका।

(ख) प्रस्तुत कविता में हिंदी काव्य धारा के सुप्रसिद्ध कवि रसखान श्री कृष्ण भक्ति में अपनी तल्लीनता का मार्मिक वर्णन किया है। श्री कृष्ण भक्ति में कवि आनंद विभोर होकर राधा-कृष्ण के युगल रूप को अपनी भक्ति भावना का आधार बताया है। राधा-कृष्ण की सुंदरता समस्त रसिक हृदय को आकर्षित करती है।

(ग) सरलाई प्रस्तुत कविता में राधा-श्री कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति भावना की मार्मिकता को तथा राधा-कृष्ण के युगल सौंदर्य रूप का वर्णन करते हुए रसखान कहते हैं कि श्री राधिका प्रेम का खजाना है और श्री कृष्ण प्रेम के रंग हैं तथा प्रेम वाटिका का श्री कृष्ण और राधा दोनों माली और मालिन है। कवि रसखान श्री कृष्ण के मोहनी-सूरत को देख-देख कर उनके प्रति आकर्षित हो रहे हैं। प्रयत्न करने पर भी उनका नेत्र श्री कृष्ण की ओर ही बार-बार आकर्षित हो जाता है। जैसे धनुष से छूटा हुआ वाण वापस नहीं आ सकता है उसी प्रकार उनका हृदय से निकला हुआ प्रेम श्री कृष्ण भक्ति की ओर ही आकर्षित है। रसखान कहते हैं कि जो मेरे पास मनरूपी रत्न था उसे तो नन्दलाल ने ही चुरा लिया। अब तो मैं बेमन हो गया हूँ। मैं श्री कृष्ण के प्रेम फंदे में फसकर छटपटा रहा हूँ। जबतक मेरे पवित्र मन को चुराने वाले उस चित्तचोर कृष्ण के आने की राह में अपनी पलक को यहाँ से नहीं हटाऊँगा।

(घ) भाव सौंदर्य प्रस्तुत कविता में रसखान कवि राधा-कृष्ण के प्रेममय युगल रूप पर रीझ गये हैं। राधा-कृष्ण की सुंदरता में अपने आप को समर्पित कर देना चाहते हैं। उन दोनों के प्रति अपनी भक्ति भावना की मार्मिकता को स्पष्ट रूप से रखते हैं।

(ङ) काव्य-सौंदर्भ

(i) यहाँ भाव के अनुसार भाषा का वर्णन है।
(ii) ब्रजभाषा की प्राथमिकता होते हुए भी ब्रजभाषा का देशज रूप तो कहीं-कहीं तत्सम रूप भी दिखाई पड़ते हैं।
(iii) यह कविता दोहे छंद में ली गई है। इसलिए भाषा सरस, सहज और प्रवाहमय हो गई है।
(iv) यहाँ शृंगार रस के साथ माधुर्यगुण की छटा देखने को मिलती है।
(v) राधा-कृष्ण के सौंदर्य का वर्णन भावमयी है।
(vi) अलंकार की योजना से अनुप्राण की छटा एवं रूपक की आवृत्ति कविता के भाव में सहायक है।


2. या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूंपुर की तजिडारौं।
आठहुँ सिद्धि नवोनिधि को सुख नंद की गाइ चराइ बिसा ।।
रसखानि कबौं इन आँखिन सौं ब्रज के बनबाग तड़ाग निहारौं।
कोटिक रौ कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं।

प्रश्न.
(क) कविता एवं कार का नाम लिखें।
(ख) पद का प्रसंग लिखें।
(ग) पद का सरलार्थ लिखें।
(घ) भाव सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) काव्य सौंदर्य स्पष्ट करें।

उत्तर

(क) कविता- करील के कुंजन ऊपर वारौं।
कवि – रसखान।

(ख) प्रस्तुत कविता में भक्ति भावना के रसिक कवि रसखान श्री कृष्ण के भक्ति के प्रति अपने आप को तो समर्पित कर देना ही चाहते हैं, साथ ही जीवन के संपूर्ण सुख-सुविधाओं को कृष्ण और उनके ब्रज पर न्योछावर कर देना चाहते हैं।

(ग) प्रस्तुत सवैया में कवि रसखान का हृदय, कृष्ण और ब्रज की सुन्दरता पर समर्पित है। अत: कवि अपनी आकांक्षा प्रकट करते हुये कहते हैं कि ब्रज के बगीचे के ऊपर अपनी सारी सुख-सुविधायें न्योछावर कर देना चाहता हूँ। लाठी और कंबल धारण कर उस नंदलाल के रूप सौंदर्य पर तीनों लोक के राज तथा सुख-सुविधा को मैं समर्पित कर देना चाहता हूँ। यहाँ तक कि आठों सिद्धियों और नवा सिधि के द्वारा जो सुख मुझे प्राप्त है उन सभी सुखों के नन्द की गाय चराने वाले श्री कृष्ण की भक्ति भावना में भुला देना चाहता हूँ। पुनः रसखान कहते हैं कि ब्रज के इन सुन्दर बगीचों एवं सुन्दर तालाबों को जैसे लगता है कि मैं अपने दोनों आँखों से हमेशा देखता रहूँ। ब्रज के सभी चीजों में श्री कृष्ण के सभी रूपों में आनंद की अनुभूति होती है। करोड़ों इंद्र के भवन-रूपी सुख-सुविधा को ब्रज के बगीचों पर जहाँ श्री कृष्ण मधुर बाँसुरी बजाते हैं
और गायें चराते हैं उसपर न्योछावर कर देना चाहता हूँ।

(घ) भाव सौंदर्य प्रस्तुत सवैया में कवि के रसिक मन कृष्ण और उनके ब्रज-पर अपना जीवन सर्वस्व न्योछावर कर देने की भावमयी विदग्धता मुखरित है। इसमें कवि अपनी संपूर्ण सुख-सुविधा को ब्रज के बगीचे एवं श्री कृष्ण की भक्ति भावना पर समर्पित कर अपने जीवन को सार्थक बनाता है।

(ङ) काव्य सौंदर्य

(i) यहाँ सवैया, छंद में भाव के अनुसार भाषा का प्रयोग अत्यंत मार्मिक है।
(ii) संपूर्ण छंद में ब्रजभाषा की सरलता, सहजता और मोहकता देखी जा रही है।
(iii) कहीं-कहीं तद्भव के और तत्सम के सामासिक रचना भी मिल रहे हैं।
(iv) कविता में संगीतमयता की धारा फूट पड़ी है।
(v) अलंकार योजना से दृष्टांत अलंकार के साथ अनुप्रास एवं रूपक का समागम प्रशंसनीय है।
(vi) माधुर्यगुण के साथ वैराग रस का मनोभावन चित्रण हुआ है।

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