BSEB Solutions for स्वेदशी (Swadeshi) Class 10 Hindi Godhuli Part 2 Bihar Board

स्वेदशी - प्रेमघन प्रश्नोत्तर

Very Short Questions Answers (अतिलघु उत्तरीय प्रश्न)

प्रश्न 1. ‘प्रेमघन’ के आदर्श-पुरुष कौन थे ?
उत्तर

‘प्रेमघन’ के आदर्श-पुरूष भारतेन्दु हरिश्चन्द्र थे।


प्रश्न 2. ‘प्रेमघन’ का गा-लेखन कैसा था?
उत्तर

प्रेमघन के गद्य-लेखन अत्यंत आलंकारिक थे।


प्रश्न 3. किन-किन पत्रिकाओं का सम्पादन ‘प्रेमघन’ ने किया?
उत्तर
‘कादंबिनी’ मासिक और ‘नागरी नीरद’ साप्ताहिक का सम्पादन प्रेमघन ने किया।


प्रश्न 4. साहित्य-सम्मेलन के किस अधिवेशन का सभापतित्व ‘प्रेमघन’ ने किया?
उत्तर

साहित्य-सम्मेलन के कलकत्ता अधिवेशन का सभापतित्व प्रेमघन ने किया।


प्रश्न 5. ‘स्वदेशी’ कविता में किस बात पर दुख व्यक्त किया गया है ?

उत्तर

स्वदेशी कविता में भारत में भारतीयता की कमी पर दुख व्यक्त किया गया है।


Short Question Answers (लघु उत्तरीय प्रश्न)

प्रश्न 1. कविता के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
"स्वदेशी" शीर्षक सार्थक है क्योंकि इस कविता में स्वदेशी लोगों को स्वदेशी वस्तुओं से नफरत जैसी हो गयी है। अपने देश के नाम सुनकर यहाँ के लोग लज्जा अनुभव करते हैं। सम्पूर्ण कविता में स्वदेशी वस्तु से अलग भारतीयों को दिखाया गया है। अत: "स्वदेशी" शीर्षक यथार्थ है।

प्रश्न 2. कवि को भारत में भारतीयता क्यों नहीं दिखाई पड़ती ?
उत्तर
भारत के लोगों का स्वभाव, रीति-रिवाज, लगाव सब अंग्रेजी जैसा हो गया है। हिन्दू हो या मुसलमान सभी अंग्रेज जैसे दिखाई पड़ते हैं। भारतीयों को पहचान पाना भी मुश्किल हो गया है। विदेशी पढ़ाई, विदेशी बुद्धि विदेशी चाल-चलन ही सर्वत्र दिखाई पड़ता है। बाजार में भी सब जगह विदेशी वस्तु ही पसरे दिखते हैं। इस प्रकार कवि को भारत में भारतीयता कहीं नजर नहीं आती है।

प्रश्न 3. कवि समाज के किस वर्ग की आलोचना करता है और क्यों?
उत्तर
कवि समाज के प्रबुद्ध वर्ग की आलोचना करता है क्योंकि प्रबुद्ध वर्ग कहलाने वाले भारतीय लोग विदेशी विद्या पढ़कर, विदेशी बुद्धि पाकर अपने चाल-चलन को भी छोड दिये हैं। उनको विदेशी चाल-चलन ही अच्छा लगने लगा । अर्थात् प्रबुद्ध वर्गीय लोगों में भारतीयता नाम की चीज कहीं नहीं दिखाई पड़ती है।

प्रश्न 4. कवि नगर, बाजार और अर्थव्यवस्था पर क्या टिप्पणी करता है?
उत्तर
कवि भारत के नगर, बाजार और अर्थव्यवस्था पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि सब पर विदेशी वस्तु हावी हो गया है। सब जगह विदेशी वस्तु ही बिक है। स्वदेशी वस्तु नगर, बाजार, कहीं भी नहीं दिखने के कारण अर्थव्यवस्था ही बिगड़ गयी है।

प्रश्न 5, नेताओं के बारे में कवि की क्या राय है ?
उत्तर
भारतीय नेताओं के बारे में कवि की राय है कि जब इन नेताओं को भारतीय ढीली-ढाली धोती नहीं सँभलता है तो फिर ये लोग देश की बागडोर को कैसे संभाल पाएँगे।

प्रश्न 6. कवि ने 'इफाली' किसे कहा है और क्यों ?
उत्तर
कवि ने भारतीय उन लोगों को "डफाली" कहा है जो भारतीय वर्ण वस्था को मानते हैं। क्योंकि ये लोग गुलामी करके ही जीना चाहते हैं। अंग्रेजों खुशामद करते हैं तथा अपने स्वदेशी वस्तुओं की झूठी प्रशंसा करते हैं।

Long Question Answer (दीर्घ उत्तरीय प्रश्न)


प्रश्न 1. व्याख्या करें
(क) मनुज भारती देखि कोउ, सकत नहीं पहिचान।
(ख) अंग्रेजी रूचि, गृह, सकल वस्तु देस विपरीत।
उत्तर

(क) प्रस्तुत पंक्ति हिन्दी साहित्य की पाठ्य-पुस्तक के ‘स्वदेशी’ शीर्षक पद से उद्धत है। इसकी रचना देशभक्त कति बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’ द्वारा की गई है। इसमें कवि ने देश-प्रेम की भाव को जगाने का प्रयास किया है। कवि ने स्वदेशी भावना को जगाने की आवश्यकता पर बल दिया है। पाश्चात्य रंग में रंग जाना कवि के विचार से दासता की निशानी है।
प्रस्तुत व्याख्येय में कवि ने कहा है कि आज भारतीय लोग अर्थात् भारत में निवास करने वाले मनुष्य इस तरह से अंग्रेजीयत को अपना लिये हैं कि वे पहचान में ही नहीं आते कि भारतीय हैं। आज भारतीय वेश-भूषा, भाषा-शैली, खान-पान सब त्याग दिया गया है और विदेशी संस्कृति को सहजता से अपना लिया गया है। मुसलमान, हिन्दु सभी अपना भारतीय पहचान छोड़कर अंग्रेजी की अहमियत देने लगे हैं। पाश्चात्य का अनुकरण करने में लोग गौरवान्वित हो रहे हैं।

(ख) प्रस्तुत पंक्ति हिन्दी साहित्य की पाठ्य पुस्तक के कवि ‘प्रेमघन’ जी द्वारा रचित ‘स्वदेशी’ पाठ से उद्धत है। इसमें कवि ने कहा है कि भारत के लोगों से स्वदेशी भावना लुप्त हो गई है। विदेशी भाषा, रीति-रिवाज से इतना स्नेह हो गया है कि भारतीय लोगों का रुझान स्वदेशी के प्रति बिल्कुल नहीं है। सभी ओर मात्र अंग्रेजी का बोलबाला है।


प्रश्न 2. आपके मत से स्वदेशी की भावना किस दोहे में सबसे अधिक प्रभावशाली है ? स्पष्ट करें।
उत्तर

मेरे विचार से दोहे संख्या 9 (नौ) में स्वदेशी की भावना सबसे अधिक प्रभावशाली है। स्पष्ट है कि भारतीय संस्कृति सभ्यता में जितनी अधिक सरलता, स्वाभाविकता एवं पवित्रता है उतनी विदेशी संस्कृति सभ्यता में नहीं है। आज ऐसा समय आ गया है कि यहाँ के लोगों से जब पवित्र भारतीय संस्कृति का प्रबंधन कार्य ही नहीं संभल रहा है तो जटिलता से भरी हुई विदेशी संस्कृति का निर्वाह कहाँ तक कर सकेंगे। अतः हर स्थिति में पूर्ण बौधिकता का परिचय देते हुए भारतीय संस्कृति, मूल वंश-भूषा का निर्वहन किया जाना चाहिए।


प्रश्न 3. स्वदेशी कविता का सारांश अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर
प्रेमधन सर्वस्व’ से संकलित प्रस्तुत दोहा में प्रेमघन ने देश-दशा का उल्लेख करते हुए नव जागरण का शंख फूंका है। वे कहते हैं- देश के सभी लोगों में विदेशी रीति, स्वभाव और लगाव दिखाई पड़ रहा है। भारतीयता तो अब भारत में दिखाई ही नहीं पड़ती। आज भारत के लोगों को देखकर पहचान करना कठिन है कि कौन हिन्दू है, कौन मुसलमान और कौन ईसाई।
विदेशी भाषा पढ़कर लोगों की बुद्धि विदेशी हो गई है। अब इन लोगों को विदेशी चाल-चलन भाने लगी है। लोग विदेशी ठाट-बाट से रहने लगे हैं अपना देश विदेश बन गया है। कहीं भी नाममात्र को भारतीयता दृष्टिगोचर नहीं होती।
अब तो हिन्दू लोग हिन्दी नहीं बोलते। वे अंग्रेजी का ही प्रयोग करते हैं, अंग्रेजी में ही भाषण देते हैं। वे अंग्रेजी भाषा का इस्तेमाल करतं, अंग्रेजी कपड़े पहनते हैं। उनकी रीति और नीति भी अंग्रेजी जैसी है। घर और सारी चीजें देशी नहीं हैं। ये देश के विपरीत हैं।
सम्प्रति, हिन्दुस्तानी नाम से भी ये शर्मिंदा होते और सकुचाने लगते हैं। इन्हें हर भारतीय वस्तु से घृणा है। इनके उदाहरण हैं देश के नगर। सर्वत्र अंग्रेजी चाल-चलन है। बाजारों में देखिए अंग्रेजी माल भरा है।
देखिए, जो लोग अपनी ढीली-ढाली धोती नहीं सँभाल सकते, वे लोग देश को क्या सँभालेंगे? यह सोचना ही कल्पनालोक में विचरण करना है। चारों ओर चाकरी की प्रवृत्ति बढ़ रही है। ये लोग झूठी प्रशंसा, खुशामद कर डफली अर्थात् ढिंढोर भी बन गए हैं।


प्रश्न 4. ‘स्वदेशी’ के दोहे राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत हैं। कैसे ? स्पष्ट कीजिये।
उत्तर

बदरी नारायण चौधरी ‘प्रेमघन’ कृत ‘स्वदेशी’ के दोहे राष्ट्र की सभ्यता, संस्कृति और राष्ट्रीयता के शनैः-शनैः होते विलोपन से व्याकुल मन के चीत्कार हैं। पराधीन काल में जब लोगों की वेश-भूषा, चाल-ढाल, को अंग्रेजीयत के रंग में रंगता दिखलाई पड़ता है तो उसे पीड़ा होती है। अब तो भारतीयों की पहचान मुश्किल हो रही है-‘मनुज भारतीय कोऊ सकत नहीं पहिचान, मुसलमान, हिन्दू किंधौं, के ये हैं ये क्रिस्ताना’
कवि यह देख भी दुखी होता है कि विदेशी विद्या ने देश के लोगों की सोच ही बदल दी है-

पढ़ि विद्या परदेश की बुद्धि विदेशी पाया
चाल चलन परदेस की, गई इन्हें अति भाय।।

लोगों में तो लगता है कि भारतीयता लेशमात्र को नहीं बची। लोग अंग्रेजी बोल रहे हैं, अंग्रेजी ढंग से रह रहे हैं। हिन्दुस्तानी नाम से ही लज्जा महसूस करते हैं और भारतीय वस्तुओं से घृणा करते हैं –

हिन्दुस्तानी नाम सुनि, अब ये सकुचित लजात।
भारतीय सब वस्तु ही, सों ये हाथ घिनात।

कवि की राष्ट्रीय भावना पर कहर चोट तब पड़ती है जब सभी वर्ग के लेकर आत्म-सम्मान छोड़कर चाकरी के लिए ललायित हो रहे हैं, अंग्रेज हाकिमों की इन प्रशंसा कर रहे हैं। सबसे बड़ी हताशा उसे अपने नेताओं की हालत पर हो रही है वे देश के नहीं, अपने कल्याण में लगे
हैं। स्वार्थपरता ने उन्हें इतना घेर लिया कि उनकी संतानों ही हाथ से निकल रही है। जब ये अपना घर ही नहीं सँभाल सकते तो देश क्या सँभालेंगे-

जिनसों सम्हल सकत नहिं तनकी धोती ढीली ढाली।
देस प्रबंध करिहिंगे यह, कैसी खाम ख्याली।

इस प्रकार हम देखते हैं कि ‘स्वदेशी’ के दोहों में देश की दशा के वक्त के माध्यम से कवि ने लोगों में राष्ट्रीय भावना भरने की चेष्टा की है। अतएव, दोहे निश्चित तौर पर राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत हैं। इनसे राष्ट्रभक्ति को प्रेरक मिलती है।


काव्यांशों पर आधारित संबंधी प्रश्नोत्तर

सवै बिदेसी वस्तु नर, गति रति रीत लखात।
भारतीयता कछु न अब, भारत म दरसात।।
मनुज भारती देखि कोउ, सकत नहीं पहिचान।
मुसलमान, हिंदू किधौं, के हैं ये क्रिस्तान।
पढ़ि विद्या परदेस की, बुद्धि विदेसी पाय।
चाल-चलन परदेस की, गई इन्हें अति भाय।।

प्रश्न.
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) पद का प्रसंग लिखें।
(ग) पद का सरलार्थ लिखें।
(घ) भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) काव्य-सौंदर्य स्पष्ट करें।

उत्तर

(क) कवि-बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन कविता- स्वदेशी।

(ख)प्रस्तुत दोहे में कवि भारत से भारतीयता का लोप होने की बात कहता है। वे आज के यथार्थ को उजागर करने का पूर्ण प्रयास किये हैं। वर्तमान समय में विदेशी विधा, रहन-सहन, चाल-चलन सब भारतीय लोगों पर हावी है। लोग विदेशी रंग में रंगकर अपनी असलियत भूल गये हैं। इन्हीं तथ्यों को इन दोहों के माध्यम से कवि उजागर करने का प्रयास करते हैं।

(ग) सरलाई कवि भारतीय सभ्यता और संस्कृति की धूमिलता पर आक्षेपित स्वर में कहते हैं कि सभी जगह से भारतीयता समाप्त हो गई है। यहाँ के लोग विदेशी वस्तुओं पर रीझे हुए हैं। यहाँ तक कि विदेशी संस्कृति सभ्यता अपनाकर स्वदेशी संस्कृति सभ्यता को धूमिल कर दिये हैं। सभी जगह विदेशी स्वभाव, लगाव एवं नियम देखने को मिल रहे हैं। भारतीयता कुछ नहीं है, जो भारत में दर्शन हो। यहाँ तक कि यहाँ के लोग अपनी संस्कृति को देखकर भी पहचान नहीं रहे हैं। यहाँ के मुसलमान और हिन्दू किधर गए हैं। इसकी तो बात ही नहीं है। जैसे लगता है कि संपूर्ण देश अंग्रेजीमय हो गया है। विदेशी विद्या पढ़ कर बुद्धि भी विदेशी पा गये हैं। यहाँ तक की विदेशी चाल-चलन यहाँ के लोगों को बहुत आकर्षित कर रही है।

(घ) भाव-सौंदर्य प्रस्तुत कविता में भारतीय सभ्यता और संस्कृति की वर्तमान स्थिति कितनी बदतर हो गई है यह जग-जाहिर है। स्वदेशी वस्तु को अपनाना घृणा की बात और विदेशी वस्तु को अपनाना गर्व की बात समझ रहे है। हिन्दू और मुसलमान सभी अंग्रेजीमय वातावरण
को स्वीकार कर लिये हैं।

(ङ) काव्य-सौंदर्य-

  • प्रस्तुत कविता स्वदेशी में हिन्दी खड़ी बोली का व्यवहार स्पष्ट दिखाई पड़ता है।
  • यहाँ खड़ी बोली के साथ-साथ ब्रजभाषा की पुट एवं तत्सम्-तद्भव की झलक भाव की कोमलता में सहायक हुए हैं।
  • भाव के अनुसार भाषा का प्रयोग सार्थक बन पड़ा है।
  • दोहे छंद के सभी लक्षण यहाँ उपस्थित हैं।
  • अलंकार की दृष्टि से अनुप्रास की प्राथमिकता देखी जा रही है। कहीं-कहीं पुनरुक्ति प्रकाश का अंश है।


ठटे बिदेसी ठाट सब, बन्यो देस बिदेस।
सपनेहूं जिनमें न कहुँ, भारतीयता लेस।।
बोलि सकत हिंदी नहीं, अब मिलित हिंदू लोग।
अंगरेजी भाखन करत, अंगरेजी उपभोग।
अंगरेजी बाहन, बसन, वेष रीति और नीति।
अंगरेजी रुचि, गृह, सकल, बस्तु देस विपरीत॥

प्रश्न.
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखें।
(ख) पद का प्रसंग लिखें। ।
(ग) सरलार्थ लिखें।
(घ) भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) काव्य-सौंदर्य स्पष्ट करें।

उत्तर

(क) कविता- स्वदेशी।
कवि बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’।

(ख) प्रसंग-प्रस्तुत कविता में देश भक्ति की भावना ओत-प्रोत है। भारत में विदेशी सभ्यता और संस्कृति का जो पदार्पण हो गया है उसी पर कवि यथार्थ शैली में लिखकर लोगों को नव-जागरण की ओर ले जाना चाहते हैं|

(ग) गोमालाई प्रस्तुत कविता में कवि कहते हैं कि सभी जगह हमारे देश में विदेशी ठाट-बाट ही देखने को मिल रहे हैं। लगता है कि स्वप्न में भी लेश मात्र भारतीय सभ्यता नहीं है। यहाँ के हिंदू लोग भी हिन्दी बोलने में असमर्थ हो रहे हैं। हिन्दी बोलने में उन्हें तौहिनी महसूस होती है। अंग्रेजी बोलकर गौरवान्वित होते हैं और अंग्रेजी वस्तु का उपभोग करना प्रसन्नता की बात समझते हैं अंग्रेजी वाहन, वस्त्र, वेश-भूषा, नियम और नीति, रुचि और अभिलाषा, घर और वस्तु सभी अपनाकर अपने देश के विपरीत कार्य कर रहे हैं।

(घ) भाव-सौंदर्य प्रस्तुत अंश में विदेशी ठाट-बाट पर कटाक्ष करते हुए भारतीयता पर सवाल उठाया गया है। कवि की दृष्टि में आज भारत की सम्पूर्ण भारतीयता विदेशी संस्कृति सभ्यता में समाहृत हो गई है। यहाँ की रहन-सहन, खान-पान, वेश-भूषा ये सभी अंग्रेजीमय हो गये हैं।

(ङ) काव्य-सौंदर्य

  • सम्पूर्ण कविता दोहे छंद में लिखी हुई है।
  • दोहे का सम्पूर्ण लक्षण उपस्थित होने के कारण कविता गेय हो गई है। खड़ी बोली के साथ-साथ ब्रजभाषा की प्राथमिकता है।
  • अलंकार की दृष्टि से अनुप्रास की प्राथमिकता है। प्रसाद गुण अपने पूर्ण वातावरण में उपस्थित है।


हिन्दुस्तानी नाम सुनि, अब ये सकुचि लजाता
भारतीय सब वस्तु ही, सों ये हाय धिनात॥
देस नगर बानक बनो, सब अंगरेजी चाल।
हाटन मैं देखहु भरा, बसे अंगरेजी माल।।
जिनसों सम्हल सकत नहिं तनकी, धोती ढीली-ढाली।
देस प्रबंध करिहिंगे वे यह, कैसी खाम खयाली॥
दास-वृत्ति की चाह चहूँ दिसि चारह बरन बढ़ाली।
करत खुशामद झूठ प्रशंसा मानहुँ बने डफाली।

प्रश्न.
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) पद का प्रसंग लिखिए।
(ग) सरलार्थ लिखिए।
(घ) भव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) काव्य-सौंदर्य स्पष्ट करें।

उत्तर

(क)कविता-स्वदेशी।
कवि-बदरीनारायण चौधरी प्रेमघन।

(ख) प्रसंग-प्रस्तुत कविता देशभक्ति की भावना से परिपूर्ण है। इन दोहों में राष्ट्रीय स्वाधीनता की चेतनो को सहचर बनाया गया है। साथ ही नव-जागरण का स्वर मुखरित किया गया है। विदेशी वस्तु का भारत में स्वीकार एवं स्वदेशी वस्तु के तिरस्कार पर यथार्थ चित्रण किया गया है।

(ग) सरलार्थ-कवि कहते हैं कि भारत के लोग हिन्दुस्तानी शब्द से अपने आपको सम्बोधित करते हुए भी संकोच करते हैं। सभी भारतीय वस्तुओं का प्रयोग करते हुए घृणा करते हैं।
देश, नगर सभी जगह अंग्रेजी वेश-भूषा और चाल-ढाल देखी जा रही है। यहाँ के बाजारों ‘ में भी अंग्रेजी माल भरे पड़े है। जबकि यहाँ के लोग अपनी वेश-भूषा भी नहीं संभाल रहे हैं तो विदेशी प्रबंध को, जो पूर्ण जटिल हैं, उन्हें संभालने की यहाँ के लोग केवल कोरी कल्पना ही करते हैं। देखा जा रहा है कि यहाँ के लोगों में गुलामी के वातावरण में जीवन-यापन करने की आदत हो गई है। चारों ओर इसी का भाव मिल रहा है। खुशामद करना तथा झूठी प्रशंसा करना, झूठे राग की डफली बजाना यहाँ के लोगों की संस्कृति बन गई है।

(घ) भाव-सौंदर्य-कविता में पूर्ण रूप से लाक्षणिकतावादी स्वर मुखरित हुआ है। यहाँ विदेशी संस्कृति सभ्यता पर जमकर प्रहार किया गया है और विदेशी संस्कृति सभ्यता अपनाने वालों के प्रति भी कवि का एकमुख संदेश है।

(ङ) काव्य-सौंदर्य

  • यहाँ दोहे छंद हैं। अलंकार का समायोजन स्पष्ट रूप में नहीं है।
  • देशभक्ति की भावना से ओत-प्रोत रहने के कारण प्रसाद गुण की प्राथमिकता है।
  • भाषीय व्याकरण की दृष्टि से विशेषण लिंग, संज्ञा कारक की उपस्थिति सम्यक् भाषा की अपेक्षा है। भाव के अनुसार भाषा का प्रयोग पूर्ण सार्थक है।
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