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पांडवों और कौरवों के सेनापति Class 7 Hindi Summary Bal Mahabharat

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पांडवों और कौरवों के सेनापति Class 7 Hindi Summary Bal Mahabharat

पांडवों और कौरवों के सेनापति Class 7 Hindi Summary Bal Mahabharat


हस्तिनापुर से उपप्लव्य लौटकर श्रीकृष्ण ने वहाँ का सारा हाल पांडवों को सुनाया| युधिष्ठिर ने अपने भाइयों से युद्ध की तैयारी के लिए कह दिया। पांडवों ने अपनी सेना को सात हिस्सों में बाँटकर द्रुपद, विराट, धृष्टद्युम्न, शिखंडी, सात्यकि, चेकितान और भीम को इन सात दलों का नायक बनाया। उन्होंने धृष्टद्युम्न को सेनापति बनाया।

कौरव पक्ष में भीष्म ने कहा कि लड़ाई की घोषणा करते समय मेरी राय नहीं ली गई है। इसलिए मैं पांडु-पुत्रों का वध नहीं करूँगा। उन्होंने कर्ण को सेनापति बनाए जाने की माँग की लेकिन दुर्योधन ने पितामह भीष्म को ही सेनापति बनाया। कर्ण ने निश्चय किया कि जब तक भीष्म जीवित रहेंगे वह युद्ध-भूमि में प्रवेश नहीं करेगा। भीष्म के मारे जाने के बाद ही वह युद्ध में भाग लेगा और केवल अर्जुन को ही मारेगा।

युद्ध की दोनों ओर से तैयारियों के बीच एक दिन बलराम पांडवों की छावनी में आए| उन्होंने कहा कि कृष्ण को भी बीच में नहीं पड़ना चाहिए था क्योंकि हमारे लिए दोनों ही समान हैं। कृष्ण की अर्जुन के प्रति ममता ने उसे पांडवों का पक्ष लेने पर विवश किया। दुर्योधन व भीम दोनों मेरे शिष्य हैं इसलिए दोनों मुझे प्रिय हैं। मैं इन दोनों को लड़ते-मरते नहीं देख सकता, इसलिए मैं यहाँ से जा रहा हूँ। महाभारत युद्ध में बलराम और भोजकट के राजा रुक्मी दो ही तटस्थ रहे थे। रुक्मी की छोटी बहन रुक्मिणी श्रीकृष्ण की पत्नी थी। युद्ध का समाचार सुनकर रुक्मी पांडवों की सहायता के लिए एक अक्षौहिणी सेना लेकर आया था पर उसकी सशर्त सहायता उन्हें स्वीकार नहीं की। वह जब कौरवों के पास गया तो कौरवों ने भी उसकी सहायता इसलिए स्वीकार नहीं की थी क्योंकि पांडवों ने उसे मना कर दिया था।

कुरुक्षेत्र के मैदान में दोनों सेनाएँ लड़ने के लिए तैयार खड़ी थीं। सबने प्रचलित युद्ध नीति के अनुसार युद्ध करने की प्रतिज्ञा की। युधिष्ठिर ने कौरवों की सेना की व्यूह-रचना देखकर अर्जुन की सेना सूई की नोक के समान व्यूह में सजाने का आदेश दिया। युद्ध के लिए जब दोनों ओर की सेनाएँ व्यूहाकार तैयार खड़ी थीं, तब अर्जुन को मोह हो गया। श्रीकृष्ण ने गीता के उपदेश से अर्जुन का भ्रम दूर किया।

युद्ध शुरु होने वाला ही था कि युधिष्ठिर अपना कवच उतारकर, धनुषबाण रखकर, रथ से उतरकर पैदल ही कौरव सेना को चीरते हुए भीष्म की ओर चल दिए। यह देखकर श्रीकृष्ण और शेष पांडव उनके पीछे-पीछे हो लिए। युधिष्ठिर ने पितामह के चरण छूकर आशीर्वाद लिया| भीष्म उन्हें आशीर्वाद देते हुए अपनी विवशता के कारण उनसे लड़ने की बात कही। इसके बाद युधिष्ठिर द्रोणाचार्य, कृपाचार्य तथा मद्रराज शल्य से आशीर्वाद लेने के बाद अपनी सेना की ओर आ जाते हैं।

युद्ध प्रारंभ हुआ। अर्जुन भीष्म के साथ, सात्यकि कृतवर्मा के साथ, अभिमन्यु बृहत्पाल के साथ, भीम दुर्योधन के साथ, युधिष्ठिर शल्य के साथ और धृष्टद्युम्न द्रोणाचार्य के साथ भिड़ गए। भीष्म के नेतृत्व में कौरव सेना दस दिन तक युद्ध करती है। भीष्म के आहत होने पर द्रोणाचार्य सेनापति बनते हैं। उनकी मृत्यु के बाद कर्ण सेनापति बनता है। सत्रहवें दिन के युद्ध में उसकी मृत्यु हो जाती है। उसके बाद शल्य सेनापति बनते हैं। इस प्रकार महाभारत का युद्ध अठारह दिन चलता है।

शब्दार्थ -

• सुचारू - ठीक प्रकार से
• प्रतीत होना - महसूस होना
• सम्मति - विचार
• नायकत्व - नेतृत्व
• आपत्ति - परेशानी
• विराग - सांसारिक लगाव से मुक्ति
• उदंड - असभ्य
• कर्मयोग - कर्म करने के लिए मन को मजबूत बनाना
• अचंभा - आश्चर्य
• खेत रहना - मृत्यु को प्राप्त होना
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