NCERT Solutions for Class 11th: पाठ 14 -सुमित्रानंदन पंत

प्रश्न-अभ्यास

1. संध्या के समय प्रकृति में क्या-क्या परिवर्तन होते हैं, कविता के आधार पर लिखिए।

उत्तर

संध्या के समय सूर्य का प्रकाश लाल आभा लिए हो जाता है और झरनों से बहनेवाले जल का वर्ण स्वर्णिम हो जाता है। ये किरणें गंगाजल को स्वर्णिम करती हुई उसके किनारे की रेत पर धूपछाँही बना देती है। जैसे-जैसे सूर्य डूबता जाता है वैसे-वैसे प्राकृतिक परिवेश बदलता रहता है। तांबाई से स्वर्णिम, फिर सुरमई और सूर्य के डूबते ही अँधेरा छा जाता है।

2. पंत जी ने नदी के तट का जो वर्णन किया है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर

नदी के तट पर ध्यान में मगन वृद्ध औरतें ऐसे प्रतीत हो रही हैं, मानो शिकार करने के लिए नदी किनारे खड़े बगुलें हों। पंत जी ने कविता में वृद्ध औरतों की बहुत सुंदर उपमा दी है। उनके दुख को भी बहुत सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है। नदी की मंथर धारा को वृद्ध औरतों के मन में बहने वाले दुख के समान बताया गया है। इस तरह से वृद्ध औरतें और बगुले दोनों ही नदी किनारे में मिलते हैं। उनके सफेद रंग के कारण कवि ने बहुत सुंदर उपमा देकर दोनों को एक कर दिया है।

3. बस्ती के छोटे से गाँव के अवसाद को किन-किन उपकरणों द्वारा अभिव्यक्त किया गया है?

उत्तर

शाम होते ही कृषक, उनकी गाएँ तथा पक्षी घर की और लौट पड़ते हैं।

4. लाला के मन में उठनेवाली दुविधा को अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर

लाला अपनी छोटी एवं संकुचित दुकान को देखकर वह स्वयं को दयनीय, दुखी और अपमानित अनुभव करता है। जीवन-भर अपनी दुकान की गद्दी पर बैठा हुआ उसे ऐसा लगता है जैसे किसी निर्जीव और बेकार अनाज का ढेर हो। वह सोचता था कि शहर में रहने वाले बनियों के समान वह उठ क्यों नहीं पाता? वह थोड़ी-सी आय के लिए बात-बात में झूठ बोलता है तथा अपने ही वर्ग के साथ प्रतिस्पर्धा के कारण अपने जीवन को तबाह कर रहा है।

5. सामाजिक समानता की छवि की कल्पना किस तरह अभिव्यक्त हुई है?

उत्तर

सामाजिक समानता की छवि की कल्पना इस प्रकार अभिव्यक्त हुई है-
• कर्म तथा गुण के समान ही सकल आय-व्यय का वितरण होना चाहिए।
• सामूहिक जीवन का निर्माण किया जाए।
• सब मिलकर नए संसार का निर्माण करें।
• सब मिलकर सभी प्रकार की सुख-सुविधाओं का भोग करें।
• समाज को धन का उत्तराधिकारी बनाया जाए।
• सभी व्याप्त वस्त्र, भोजन तथा आवास के अधिकारी हों।
• श्रम सबमें समान रूप से बँटें।

6. 'कर्म और गुण के समान.."हो वितरण' पंक्ति के माध्यम से कवि कैसे समाज की ओर संकेत कर रहा है?

उत्तर

इस पंक्ति में कवि ऐसे समाज की कल्पना कर रहा है, जहाँ का वितरण मनुष्य के कर्म और गुणों के आधार पर होना चाहिए। ऐसे में प्रत्येक मनुष्य को उसके गुणों और कार्य करने की क्षमता के आधार पर कार्य मिलेगा, इससे आय का सही प्रकार से बँटवारा हो सकेगा। ये समाजवाद के गुण हैं, जिसमें किसी एक वर्ग का आय-व्यय पर अधिकार नहीं होता है। सबको समान अधिकार प्राप्त होते हैं।

7. निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-
(क) तट पर बगुलों-सी वृद्धाएँ
विधवाएँ जप ध्यान में मगन, मंथर धारा में बहता
जिनका अदृश्य, गति अंतर-रोदन!

उत्तर

प्रस्तुत पंक्तियां कविवर सुमित्रानंदन की कविता 'संध्या के बाद' से ली गयी हैं जिसमें कवि ने बहुत ही सुंदर और मार्मिक रूप में प्रकृति का चित्रण किया है। कवि ने सांध्यकालीन वातावरण में नदी के तट पर बैठी बूढ़ी स्त्रियों और विधवाओं की दशा का वर्णन किया है जो ऐसे ध्यान मग्न होकर परमात्मा का नाम जप रही हैं जैसे बगुले ध्यानपूर्वक पानी देख रहे हों| उनके हृदय में दुख की मंथन धारा बह रही है। इस काव्यांश की प्रत्येक पंक्ति में काव्य सौंदर्य अद्भुत जान पड़ता है। पहली पंक्ति में ‘बगुलों-सी वृद्धाएँ’ में उपमा अलंकार है। कवि ने तत्सम शब्दों का प्रयोग करके अपनी बात को बहुत सुंदर रूप में चित्रित किया है।

8. आशय स्पष्ट कीजिए-

(क) ताम्रपर्ण, पीपल से, शतमुख/ झरते चंचल स्वर्णिम निर्झर!

उत्तर

पीपल के सूखे पत्ते ऐसे लग रहे हैं मानो ताँबे धातु से बने हों। वह पेड़ से गिरते हुए ऐसे लग रहे हैं मानो सैंकड़ों मुँह वाले झरनों से सुनहरे रंग की धाराएँ गिर रही हों।

(ख) दीप शिखा-सा ज्वलित कलश/नभ में उठकर करता नीराजन!

उत्तर

मंदिर के शिखर पर लगा कलश सूर्य की रोशनी के प्रभाव से दीपक की जलती लौ के समान लग रहा है। ऐसा लग रहा है मानो संध्या आरती में वह भी लोगों के समान आरती कर रहा है।

(ग) सोन खगों की पाँति/आर्द्र ध्वनि से नीरव नभ करती मुखरित!

उत्तर

आकाश में व्याप्त खग नामक पक्षी पंक्ति में उड़ रहे हैं। उनकी गुंजार शांत आकाश को गुंजार से भर देती है।

(घ) मन से कढ़ अवसाद श्राति / आँखों के आगे बुनती जाला!

उत्तर

मनुष्य के मन में व्याप्त दुख तथा कष्ट उसकी आँखों में यादों के रूप में उभर आते हैं।

(ङ) क्षीण ज्योति ने चुपके ज्यों / गोपन मन को दे दी हो भाषा!

उत्तर

घरों में विद्यमान दीपक जल उठे हैं। इस अंधकार में उसकी रोशनी अवश्य कमज़ोर है। उस कमज़ोर ज्योति ने लगता है गोपों के मन को एक आशा दे दी है।

(च) बिना आय की क्लाति बन रही/ उसके जीवन की परिभाषा!

उत्तर

गाँव में लोगों के पास आय का साधन विद्यमान नहीं है। अतः उसके जीवन में बहुत दुख विद्यमान हैं। ऐसा लगता है कि मानो यह अभाव उसकी कहानी बनकर रह जाएँगे।

(छ) व्यक्ति नहीं, जग की परिपाटी/ दोषी जन के दुःख क्लेश की।

उत्तर

दोष से युक्त सामाजिक व्यवस्था ही मनुष्य के दुख का कारण है। धन के असमान बँटवारे के कारण ही समाज में अंतर व्याप्त है।
Previous Post Next Post