पठन सामग्री और नोट्स (Notes)| पाठ 6 - विनिर्माण उद्योग भूगोल (Vinirman Udhyog) Bhugol Class 10th

इस अध्याय में-

• परिचय
• विनिर्माण का महत्व
→ कृषि और उद्योग
• राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में उद्योग का योगदान
• औद्योगिक अवस्थिति
• उद्योग का वर्गीकरण
→ कृषि आधारित उद्योग
♠ वस्त्र उद्योग
♠ सूती वस्त्र
♠ पटसन उद्योग
♠ चीनी उद्योग
→ खनिज आधारित उद्योग
♠ लौह और इस्पात उद्योग
♠ एल्यूमिनियम प्रगलन (Smelting)
♠ रासायनिक उद्योग
♠ उर्वरक उद्योग
♠ सीमेंट उद्योग
♠ ऑटोमोबाइल उद्योग
♠ सूचना प्रौद्योगिकी और इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग
• औद्योगिक प्रदूषण और पर्यावरणीय गिरावट
• पर्यावरण में गिरावट का नियंत्रण

परिचय

• कच्चे पदार्थ को मूल्यवान उत्पाद में परिवर्तित कर अधिक मात्रा में वस्तुओं के उत्पादन को विनिर्माण या वस्तु निर्माण कहा जाता है।

• विनिर्माण उद्योग द्वितीयक क्षेत्र में आता है।
→ विनिर्माण उद्योगों के विकास से किसी देश की आर्थिक ताकत को मापा जाता है।

विनिर्माण का महत्व

• विनिर्माण क्षेत्र को सामान्य और आर्थिक विकास में विकास की रीढ़ माना जाता है क्योंकि:
→ यह कृषि को आधुनिक बनाने में मदद करता है, जो हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। इसके अलावा, कृषि आय पर लोगों की भारी निर्भरता को कम करके उन्हें द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रों में रोजगार प्रदान करने का काम करता है।
→ यह देश से बेरोजगारी और गरीबी उन्मूलन में मदद करता है।
→ निर्मित वस्तुओं के निर्यात से विदेशी मुद्रा आती है।
→ यह कच्चे माल को उच्च मूल्य के सुसज्जित सामानों की एक विस्तृत विविधता में बदलने में मदद करता है।

कृषि और उद्योग

• कृषि और उद्योग एक दूसरे पर निर्भर हैं।
→ उद्योग अपने उपकरण और उत्पाद जैसे उर्वरक आदि प्रदान करके अपनी उत्पादकता को बढ़ाकर कृषि को एक बड़ा बढ़ावा देते हैं।
→ उद्योग कच्चे माल के लिए कृषि पर निर्भर करता है और अपने उत्पादों जैसे सिंचाई पंप, उर्वरक, कीटनाशक, कीटनाशक, प्लास्टिक और पीवीसी पाइप, मशीन और उपकरण, आदि किसानों को बेचता है।

राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में उद्योग का योगदान

• पूर्वी एशियाई अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में भारत में जीडीपी में उद्योग का योगदान बहुत कम है।

• विनिर्माण क्षेत्र की उत्पादकता में सुधार के लिए उचित नीतिगत उपाय करने के लिए सरकार द्वारा राष्ट्रीय विनिर्माण प्रतिस्पर्धा परिषद (NMCC) की स्थापना की गई है।

औद्योगिक अवस्थिति

• उद्योगों की स्थापना के लिए कच्चे माल की उपलब्धता, श्रमिक, पूँजी, शक्ति के साधन तथा बाजार आदि की उपलब्धता उद्योगों के लिए आदर्श स्थिति है।
→ इसलिए विनिर्माण उद्योग की स्थापना के लिए वही स्थान उपयुक्त है जहाँ ये कारक उपलब्ध हों अथवा जहाँ इन्हें कम कीमत पर उपलब्ध कराया जा सके।

• औद्योगिक प्रक्रिया के प्रारंभ होने के साथ-साथ नगरीकरण प्रारंभ होता है।

• नगर उद्योगों को बाजार तथा सेवाएँ जैसे-बैंकिग, बीमा, परिवहन, श्रमिक तथा वित्तीय सलाह आदि उपलब्ध कराते हैं।

• नगर केन्द्रों द्वारा दी गई सुविधाओं से लाभांवित, कई बार बहुत से उद्योग नगरों के आस पास ही केन्द्रित हो जाते हैं जिसे "समूहन बचत" कहा जाता है। ऐसे स्थानों पर धीरे-धीरे बड़ा औद्योगिक समूहन स्थापित हो जाता है।

उद्योग का वर्गीकरण

उद्योगों का वर्गीकरण निम्न प्रकार से किया जा सकता है:

• प्रयुक्त कच्चे माल के स्रोत के आधार पर -
→ कृषि आधारित – सूती वस्त्र, ऊनी वस्त्र, पटसन, रेशम वस्त्र, रबर, चीनी, चाय, काफी तथा वनस्पति तेल उद्योग।
→ खनिज आधारित – लोहा तथा इस्पात, सीमेंट, एल्यूमिनियम, मशीन, औज़ार तथा पेट्रोरासायन उद्योग।  

• प्रमुख भूमिका के आधार पर -
→ आधारभूत उद्योग – जिनके उत्पादन या कच्चे माल पर दूसरे उद्योग निर्भर हैं जैसे-लोहा इस्पात, ताँबा प्रगलन व एल्यूमिनियम प्रगलन उद्योग।
→ उपभोक्ता उद्योग - जो उत्पादन उपभोक्ताओं के सीधे उपयोग हेतु करते हैं जैसे - चीनी, दंतमंजन, कागज, पंखे, सिलाई मशीन आदि।

• पूँजी निवेश के आधार पर -
→ लघु उद्योग: ऐसा उद्योग जिसमें एक करोड़ रुपये तक के अधिकतम निवेश तक की सीमा होती है। इसमें कम संख्या में मजदूर काम करते हैं।
→ बड़े पैमाने पर उद्योग: यदि किसी उद्योग पर निवेश एक करोड़ से अधिक है तो इसे बड़े पैमाने पर उद्योग के रूप में जाना जाता है।

• स्वामित्व के आधार पर - 
→ सार्वजनिक क्षेत्र: सरकारी एजेंसियों द्वारा प्रबंधित तथा सरकार द्वारा संचालित उद्योग - जैसे भारत हैवी इलैक्ट्रिकल लिमिटेड (BHEL) तथा स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (SAIL) आदि।
→ निजी क्षेत्र के उद्योग जिनका एक व्यक्ति के स्वामित्व में और उसके द्वारा संचालित अथवा लोगों के स्वामित्व में या उनके द्वारा संचालित है। टिस्को, बजाज ऑटो लिमिटेड, डाबर उद्योग आदि।
→ संयुक्त उद्योग: वैसे उद्योग जो राज्य सरकार और निजी क्षेत्र के संयुक्त प्रयास से चलाये जाते हैं। जैसे - ऑयल इंडिया लिमिटेड (OIL)।

• कच्चे तथा तैयार माल की मात्रा व भार के आधार पर -
→ भारी उद्योग जैसे लोहा तथा इस्पात आदि।
→ हल्के उद्योग जो कम भार वाले कच्चे माल का प्रयोग कर हल्के तैयार माल का उत्पादन करते हैं जैसे - विद्युतीय उद्योग।

कृषि आधारित उद्योग

सूती वस्त्र, पटसन, रेशम, ऊनी वस्त्र, चीनी तथा वनस्पति तेल आदि उद्योग कृषि से प्राप्त कच्चे माल पर आधारित हैं।

वस्त्र उद्योग

• वस्त्र उद्योग का औद्योगिक उत्पादन में महत्त्वपूर्ण योगदान है।
• देश का यह अकेला उद्योग है जो कच्चे माल से उच्चतम अतिरिक्त मूल्य उत्पाद तक की श्रृंखला में परिपूर्ण तथा आत्मनिर्भर है।

सूती वस्त्र उद्योग

• प्राचीन भारत में सूती वस्त्र हाथ से कताई और हथकरघा बुनाई तकनीकों से बनाये जाते थे। अठारहवीं शताब्दी के बाद विद्युतीय करघों का उपयोग होने लगा।

• औपनिवेशिक काल के दौरान हमारे परंपरागत उद्योगों को बहुत हानि हुई क्योंकि हमारे उद्योग इंग्लैंड के मशीन निर्मित वस्त्रों से स्पर्धा नहीं कर पाये।

• आरंभिक वर्षों में सूती वस्त्र उद्योग महाराष्ट्र तथा गुजरात के कपास उत्पादन क्षेत्रों तक ही सीमित थे।
→ कपास की उपलब्धता, बाज़ार, परिवहन, पत्तनों की समीपता, श्रम, नमीयुक्त जलवायु आदि कारकों ने इसके स्थानीयकरण को बढ़ावा दिया।

• इस उद्योग का कृषि से निकट का संबंध है और कृषकों, कपास चुनने वालों, गाँठ बनाने वालों, कताई करने वालों, रंगाई करने वालों, डिजाइन बनाने वालों, पैकेट बनाने वालों और सिलाई करने वालों को यह जीविका प्रदान करता है।

• यद्यपि कताई कार्य महाराष्ट्र, गुजरात तथा तमिलनाडु में केंद्रित है लेकिन सूती, रेशम, ज़री कशीदाकारी आदि में बुनाई के परंपरागत कौशल और डिजाइन देने के लिए बुनाई अत्यधिक विकेंद्रीकृत है।
→ भारत में कताई उत्पादन विश्व स्तर का है लेकिन बुना वस्त्र कम गुणवत्ता वाला है क्योंकि यह देश में उत्पादित उच्च स्तरीय धागे का अधिक प्रयोग नहीं कर पाता।

• हाथ से बुनी खादी कुटीर उद्योग के रूप में बुनकरों को उनके घरों में बड़े पैमाने पर रोजगार प्रदान कराता है।

• भारत जापान को सूत का निर्यात करता है।
→ भारत में बने सूती वस्त्र के अन्य आयातक देश संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैंड, रूस, फ्रांस, पूर्वी यूरोपीय देश, नेपाल, सिंगापुर, श्रीलंका तथा अफ्रीका के देश हैं।

• सूती रेशे के विश्व व्यापार में हमारे देश की भागीदारी काफी महत्त्वपूर्ण है। यह कुल अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का लगभग एक चौथाई भाग है।

• हमारे कताई कारखाने विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं और हम जो सूत पैदा करते हैं उसका उपभोग करने में सक्षम हैं।
→ लेकिन बुनाई और कताई तथा प्रक्रमण इकाईयाँ देश में उत्पन्न किये गये उच्च कोटि के धागे का उपयोग नहीं कर पाती है।
→ यह इस उद्योग की एक बड़ी कमी है जिसके परिणामस्वरूप हमारे बहुत से कताई करने वाले सूती धागे का निर्यात करते हैं जबकि परिधान निर्माताओं को कपड़ा आयात करना पड़ता है।

आजकल सूती वस्त्र उद्योग के सामने जो समस्याएँ हैं:
→ अनियमित विद्युत आपूर्ति
→ पुरानी मशीनरी
→ कम श्रमिक उत्पादकता
→ कृत्रिम वस्त्र उद्योग से प्रतिस्पर्धा

पटसन उद्योग
• भारत पटसन व पटसन निर्मित समान का सबसे बड़ा उत्पादक है तथा बांग्लादेश के पश्चात् दूसरा बड़ा निर्यातक भी है।

• वर्ष 2010-11 में भारत में लगभग 80 पटसन उद्योग थे।
→ इनमें अधिकांश पश्चिम बंगाल में हुगली नदी तट पर 98 किमी. लंबी तथा 3 किमी. चौड़ी एक सँकरी मेखला में स्थित है।
→ पहला पटसन उद्योग कोलकाता के निकट रिशरा में 1855 में लगाया गया।

• हुगली नदी तट पर इनके स्थित होने के निम्न कारण हैं-
→ पटसन उत्पादक क्षेत्रों की निकटता
→ सस्ता जल परिवहन
→ सड़क, रेल व जल परिवहन का जाल
→ कच्चे माल का मिलों तक ले जाने में सहायक होना
→ कच्चे पटसन को संसाधित करने में प्रचुर जल
→ पश्चिम बंगाल तथा समीपवर्ती राज्य उड़ीसा, बिहार व उत्तर प्रदेश से सस्ता श्रमिक उपलब्ध होना
→ कोलकाता का एक बड़े नगरीय केंद्र के रूप बैंकिंग
→ बीमा और जूट के सामान के निर्यात के लिए पत्तन की सुविधाएँ प्रदान करना|

• इस उद्योग की चुनौतियों में अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कृत्रिम वस्त्रों से और बांग्लादेश, ब्राजील फिलीपीन्स, मिश्र तथा थाईलैंड जैसे अन्य देशों से कड़ी प्रतिस्पर्धा शामिल है।

• पटसन के प्रमुख खरीददार-अमेरिका, कनाडा, घाना, सऊदी अरब, यूनाइटेड किंगडम और आस्ट्रेलिया हैं।

• बढ़ते वैश्विक पर्यावरण अनुकूलन, जैवनिम्नीकरणीय पदार्थों के लिए विश्व की बढ़ती जागरूकता ने पुनः जूट उत्पादों के लिए अवसर प्रदान किया है।

चीनी उद्योग
• भारत का चीनी उत्पादन में विश्व में दूसरा स्थान है लेकिन गुड़ व खांडसारी के उत्पादन में इसका प्रथम स्थान है।

• चीनी मिलें उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, गुजरात, पंजाब, हरियाणा तथा मध्य प्रदेश राज्यों में फैली हैं।

• चीनी मिलों का 60 प्रतिशत उत्तर प्रदेश तथा बिहार में है।

• पिछले कुछ वर्षों से इन मिलों की संख्या दक्षिणी और पश्चिमी राज्यों में विशेषकर महाराष्ट्र में बढ़ी है।
→ इसका मुख्य कारण यहाँ के गन्ने में अधिक सूक्रोस की मात्रा है।
→ अपेक्षाकृत ठंडी जलवायु भी गुणकारी है।
→ इसके अतिरिक्त इन राज्यों में सहकारी समितियाँ भी सफल रही हैं।

• इस उद्योग की प्रमुख चुनौतियाँ इस प्रकार हैं– 
→ इस उद्योग का अल्पकालिक होना
→ पुरानी व असक्षम तकनीक का इस्तेमाल
→ परिवहन असक्षमता से गन्ने का समय पर कारखानों में न पहुँचना तथा खोई (Baggasse) का अधिकतम इस्तेमाल न कर पाना।

खनिज आधारित उद्योग
• वे उद्योग जो खनिज व धातुओं को कच्चे माल के रूप में प्रयोग करते हैं, खनिज आधारित उद्योग कहलाते हैं।

लोहा तथा इस्पात उद्योग
• लोहा तथा इस्पात उद्योग एक आधारभूत (basic) उद्योग है क्योंकि अन्य सभी भारी, हल्के और मध्यम उद्योग इनसे बनी मशीनरी पर निर्भर हैं।

• विविध प्रकार के इंजीनियरिंग सामान, निर्माण सामग्री, रक्षा, चिकित्सा, टेलीफोन वैज्ञानिक उपकरण और विभिन्न प्रकार की उपभोक्ता वस्तुओं के निर्माण के लिए इस्पात की आवश्यकता होती है।
→ इस्पात के उत्पादन तथा खपत को प्रायः एक देश के विकास का पैमाना माना जाता है।

• वर्ष 2018 में भारत 106.5 मिलियन टन इस्पात का विनिर्माण कर संसार में कच्चा इस्पात उत्पादकों में दूसरे स्थान पर था।
→ यह स्पंज (Sponge) लौह का सबसे बड़ा उत्पादक है।

• सार्वजनिक क्षेत्र के लगभग सभी उपक्रम अपने इस्पात को स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया (SAIL) के माध्यम से बेचते हैं।

• 1950 के दशक में भारत तथा चीन ने लगभग एक समान मात्रा में इस्पात उत्पादित किया था। आज चीन इस्पात का सबसे बड़ा उत्पादक है। इस्पात की सर्वाधिक खपत वाला देश भी चीन है।

• भारत में छोटानागपुर के पठारी क्षेत्र में अधिकांश लोहा तथा इस्पात उद्योग संकेंद्रित हैं।

• यद्यपि भारत संसार का एक महत्त्वपूर्ण लौह-इस्पात उत्पादक देश है तथापि हम इनके पूर्ण संभाव्य का विकास नहीं कर पाए हैं। इसके निम्न कारण हैं -
→ उच्च लागत तथा कोकिंग कोयले की सीमित उपलब्धता
→ कम श्रमिक उत्पादकता
→ ऊर्जा की अनियमित पूर्ति
→ अविकसित अवसंरचना आदि।

• इस्पात उद्योग को अधिक स्पर्धावान बनाने के लिए अनुसंधान और विकास के संसाधनों को नियत करने की आवश्यकता है।

एल्यूमिनियम प्रगलन (Smelting)
• भारत में एल्यूमिनियम प्रगलन दूसरा सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण धातु शोधन उद्योग है।
→ यह हल्का, जंग अवरोधी, ऊष्मा का सुचालक, लचीला तथा अन्य धातुओं के मिश्रण से अधिक कठोर बनाया जा सकता है। 

• हवाई जहाज बनाने में, बर्तन तथा तार बनाने में इसका प्रयोग किया जाता है। कई उद्योगों में इसका महत्त्व इस्पात, ताँबा, जस्ता व सीसे के विकल्प के रूप में प्रयुक्त होने से बढ़ा है।

• देश के एल्यूमिनियम प्रगलन संयंत्र ओडिशा, पश्चिम बंगाल, केरल, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र व तमिलनाडु राज्यों में स्थित हैं।

• प्रगालकों (smelters) में बॉक्साइट का कच्चे पदार्थ के रूप में (जो भारी, गहरे लाल रंग की चट्टान जैसा होता है) प्रयोग किया जाता है।

• इस उद्योग की स्थापना की दो महत्त्वपूर्ण आवश्यकताएँ हैं-
→ नियमित ऊर्जा की पूर्ति
→ कम कीमत पर कच्चे माल की सुनिश्चित उपलब्धता

रसायन उद्योग
• भारत में रसायन उद्योग की भागीदारी सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 3 प्रतिशत है।
• यह उद्योग एशिया का तीसरा बड़ा तथा विश्व में आकार की दृष्टि से 12वें स्थान पर है।
→ इसमें लघु तथा बृहत् दोनों प्रकार की विनिर्माण इकाइयाँ सम्मिलित हैं।

• अकार्बनिक और कार्बनिक दोनों क्षेत्रों में तीव्र वृद्धि दर्ज की गई है।
→ अकार्बनिक रसायनों में सलफ्यूरिक अम्ल (उर्वरक, कृत्रिम वस्त्र, प्लास्टिक, गोंद, रंग-रोगन, डाई आदि के निर्माण में प्रयुक्त), नाइट्रिक अम्ल, क्षार, सोडा ऐश (soda ash), (काँच, साबुन, शोधक या अपमार्जक, कागज़ में प्रयुक्त होने वाले रसायन) तथा कास्टिक सोडा आदि शामिल हैं।
→ कार्बनिक रसायनों में पेट्रोरसायन शामिल हैं जो कृत्रिम वस्त्र, कृत्रिम रबर, प्लास्टिक, रंजक पदार्थ, दवाईयाँ, औषध रसायनों के बनाने में प्रयोग किये जाते हैं। ये उद्योग तेल शोधन शालाओं या पेट्रोरसायन संयंत्रों के समीप स्थापित हैं।

उर्वरक उद्योग
• उर्वरक उद्योग नाइट्रोजनी उर्वरक (मुख्यतः यूरिया), फास्फेटिक उर्वरक (D.A.P) तथा अमोनियम फास्फेट
और मिश्रित उर्वरक जिसमें तीन मुख्य पोषक उर्वरक - नाइट्रोजन, फास्फेट व पोटाश शामिल हैं, के उत्पादन क्षेत्रों के इर्द-गिर्द केंद्रित हैं।
→ तीसरा अर्थात् - पोटाश पूर्णत: आयात किया जाता है क्योंकि हमारे देश में वाणिज्यिक रूप से या किसी भी रूप में प्रयुक्त होने वाला पोटाश या पोटाशियम यौगिकों के भंडार नहीं है।

• गुजरात, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, पंजाब और केरल राज्य कुल उर्वरक उत्पादन का लगभग 50 प्रतिशत उत्पादन करते हैं।
→ अन्य महत्त्वपूर्ण उत्पादक राज्य आंध्र प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान, बिहार, महाराष्ट्र, असम, पश्चिम बंगाल, गोआ, दिल्ली, मध्य प्रदेश तथा कर्नाटक हैं।

• सीमेंट उद्योग निर्माण कार्यों जैसे - घर, कारखाने, पुल, सड़कें, हवाई अड्डा, बाँध तथा अन्य व्यापारिक प्रतिष्ठानों के निर्माण में सीमेंट आवश्यक है।

• इस उद्योग को भारी व स्थूल कच्चे माल जैसे - चूना पत्थर, सिलिका और जिप्सम की आवश्यकता होती है।
→ रेल परिवहन के अतिरिक्त इसमें कोयला तथा विद्युत ऊर्जा भी आवश्यक है।

• पहला सीमेंट उद्योग सन् 1904 में चेन्नई में लगाया गया था।

• गुणवत्ता में सुधार के कारण, भारत की बड़ी घरेलू माँग के अतिरिक्त, पूर्वी. एशिया, मध्यपूर्व, अफ्रीका तथा दक्षिण एशिया के बाजारों में माँग बढ़ी है।

मोटरगाड़ी उद्योग
• मोटरगाड़ी यात्रियों तथा सामान के तीव्र परिवहन के साधन हैं|

• भारत में विभिन्न केंद्रों पर ट्रक, बसें, कारें, मोटर साइकिल, स्कूटर, तिपहिया तथा बहुउपयोगी वाहन निर्मित किये जाते हैं।

• यह उद्योग दिल्ली, गुड़गाँव, मुंबई, पुणे, चेन्नई, कोलकाता, लखनऊ, इंदौर, हैदराबाद, जमशेदपुर तथा बेंगलूरु के आस पास स्थित हैं।

सूचना प्रौद्योगिकी तथा इलैक्ट्रोनिक उद्योग
• इलैक्ट्रोनिक उद्योग के अंतर्गत आने वाले उत्पादों में ट्रॉजिस्टर से लेकर टेलीविज़न, टेलीफ़ोन, सेल्यूलर टेलीकॉम, टेलीफ़ोन एक्सचेंज, राडार, कंप्यूटर तथा दूरसंचार उद्योग के लिए उपयोगी अनेक अन्य उपकरण तक बनाये जाते हैं।

• बेंगलुरु भारत की इलैक्ट्रॉनिक राजधानी के रूप में उभरा है।

• इलैक्ट्रोनिक सामान के अन्य महत्त्वपूर्ण उत्पादक केंद्र मुंबई, दिल्ली, हैदराबाद, पुणे, चेन्नई, कोलकाता तथा लखनऊ हैं।
→ इस उद्योग का सर्वाधिक संकेंद्रण बेंगलुरु, नोएडा, मुम्बई, चेन्नई, हैदराबाद और पुणे में है।

औद्योगिक प्रदूषण तथा पर्यावरण निम्नीकरण

• उद्योगों की भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि व विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका है, तथापि इनके द्वारा बढ़ते भूमि, वायु, जल तथा पर्यावरण प्रदूषण को भी नकारा नहीं जा सकता।

• उद्योग चार प्रकार के प्रदूषण के लिए उत्तरदायी हैं - 
→ वायु
→ जल
→ भूमि
→ ध्वनि

• प्रदूषण करने वाले उद्योगों में ताप विद्युतगृह भी सम्मिलित हैं।

वायु प्रदूषण

• अधिक अनुपात में अनचाही गैसों की उपस्थिति जैसे सल्फर हाई ऑक्साइड, तथा कार्बन मोनो ऑक्साइड वायु प्रदूषण का कारण है।

• वायु में निलंबित कणनुमा पदार्थों में ठोस व द्रवीय दोनों ही प्रकार के कण होते हैं जैसे- धूलि, स्प्रे, कुहासा तथा धुंआ।

• वायु प्रदूषण, मानव स्वास्थय, पशुओं, पौधों, इमारतों तथा पूरे पर्यावरण पर दुष्प्रभाव डालते हैं।

जल प्रदूषण

• उद्योगों द्वारा कार्बनिक तथा अकार्बनिक अपशिष्ट पदार्थों के नदी में छोड़ने से जल प्रदूषण फैलता है।

• जल प्रदूषण के प्रमुख कारक कागज, लुग्दी, रसायन, वस्त्र तथा रंगाई उद्योग, तेल शोधन शालाएँ, चमड़ा उद्योग तथा इलैक्ट्रोप्लेटिंग उद्योग है जो रंग, अपमार्जक, अम्ल, लवण तथा भारी धातुएँ जैसे- सीसा, पारा, कीटनाशक, उर्वरक, कार्बन, प्लास्टिक और रबर सहित कृत्रिम रसायन आदि जल में, वाहित करते है।

• मुख्य अपशिष्ट पदार्थों में फ्लाई एश, फोस्फो जिप्सम तथा लोहा-इस्पात की अशुद्धियाँ (Slog) है। » जल प्रदूषण का प्रमुख कारण उद्योग है जैसे- कागज उद्योग, तेल शोधन शालाएँ, टेनरीज व इलैक्ट्रोप्लेटिंग उद्योग आदि है। 

तापीय प्रदूषण

• कारखानों तथा तापघरों से गर्म जल को बिना ठंडा किए ही नदियों तथा तालाबों में छोड़ दिया जाता है, तो जल में तापीय प्रदूषण होता है। जलीय जीवन पर इसका प्रभाव पड़ता है।

• परमाणु ऊर्जा संयंत्रो के अपशिष्ट व परमाणु शस्त्र उत्पादक कारखानों से कैंसर, जन्मजात विकार तथा अकाल प्रसव जैसी बीमारियाँ होती है।

• मृदा व जल प्रदूषण आपस में संबंधित है।
→ मलबे का ढेर विशेषकर काँच, हानिकारक रसायन, औद्योगिक बहाव, पैकिंग, लवण तथा कूड़ा-कर्कट, मृदा को अनुपजाऊ बनाता है। वर्षा जल के साथ ये प्रदूषक जमीन से रिसते हुए भूमिगत जल तक पहुँचकर उसे भी प्रदूषित कर देते हैं।

ध्वनि प्रदूषण

• ध्वनि प्रदूषण से खिन्नता तथा उत्तेजना ही नही वरन् श्रवण असक्षमता दृश्यगति, रक्त चाप तथा अन्य कायिक व्यथाएँ भी बढ़ती हैं। 

• अनचाही ध्वनि, उत्तेजना मानसिक चिंता का स्रोत है।

• औद्योगिक मशीनरी, निर्माण कार्य, कारखानों के उपकरण, जेनरेटर, लकड़ी काटने के कारखाने, गैस यांत्रिकी, विद्युत ड्रिल आदि ध्वनि प्रदूषण के उत्तरदायी कारक है।

पर्यावरणीय निम्नीकरण की रोकथाम

• पर्यावरणीय निम्नीकरण की रोकथाम के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण कदम है कि औद्योगिक अपशिष्ट व गर्म पानी को नदी व झीलों में प्रवाहित करने से पहले उसका उचित शोधन किया जाना चाहिए।

• वायु में निलंबित प्रदूषण को कम करने के लिए कारखानों में ऊँची चिमनियाँ, चिमनियों में एलेक्ट्रोस्टैटिक अवक्षेपण (eletrostatic precipitators), स्क्रबर उपकरण तथा गैसीय प्रदूषक पदार्थों को जड़त्वीय रूप से पृथक करने के लिए उपकरण होना चाहिये।

• कारखानों में कोयले की अपेक्षा तेल व गैस के प्रयोग से धुएँ के निष्कासन में कमी लायी जा सकती है।

• मशीनों व उपकरणों का उपयोग किया जा सकता है तथा जेनरेटरों में साइलेंसर (silencers) लगाया जा सकता है।
→ ऐसी मशीनरी का प्रयोग किया जाए जो ऊर्जा सक्षम हों तथा कम ध्वनि प्रदूषण करे।
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