पठन सामग्री और नोट्स (Notes)| पाठ 2 - संघवाद (Sanghvad) Loktantrik Rajniti Class 10th

संघवाद क्या है?

संघीय शासन व्यवस्था में सर्वोच्च सत्ता केंद्रीय प्राधिकार और उसकी विभिन्न आनुषंगिक इकाइयों के बीच बँट जाती है।

संघवाद की विशेषताएं

1. यहाँ सरकार दो या अधिक स्तरों वाली होती है।

2. अलग-अलग स्तर की सरकारें एक ही नागरिक समूह पर शासन करती हैं पर कानून बनाने, कर वसूलने और प्रशासन का उनका अपना-अपना अधिकार-क्षेत्र होता है। 

3. संविधान के मौलिक प्रावधानों को किसी एक स्तर की सरकार अकेले नहीं बदल सकती। ऐसे बदलाव दोनों स्तर की सरकारों की सहमति से ही हो सकते हैं। 

4. अदालतों को संविधान और विभिन्न स्तर की सरकारों के अधिकारों की व्याख्या करने का अधिकार है।

5. वित्तीय स्वायत्तता निश्चित करने के लिए विभिन्न स्तर की सरकारों के लिए राजस्व के अलग-अलग स्रोत निर्धारित हैं।

संघों के प्रकार

• दो या अधिक स्वतंत्र राष्ट्रों को साथ लाकर एक बड़ी इकाई गठित करने का| साथ आकर संघ बनाने के उदाहरण हैं-संयुक्त राज्य अमरीका, स्विट्जरलैंड और ऑस्ट्रेलिया वगैरह।

• बड़े देश द्वारा अपनी आंतरिक विविधता को ध्यान में रखते हुए राज्यों का गठन करना और फिर राज्य और राष्ट्रीय सरकार के बीच सत्ता का बँटवारा कर देना। भारत, बेल्जियम और स्पेन इसके उदाहरण हैं। 

भारत में संघीय व्यवस्था

• संविधान ने मैलिक रूप से दो स्तरीय शासन व्यवस्था का प्रावधान किया था-संघ सरकार (या हम जिसे केंद्र सरकार कहते हैं) और राज्य सरकारें।

• बाद में पंचायतों और नगरपालिकाओं के रूप में संघीय शासन का एक तीसरा स्तर भी जोड़ा गया।

संविधान में स्पष्ट रूप से केंद्र और राज्य सरकारों के बीच विधायी अधिकारों को तीन हिस्से में बाँटा गया हैं। ये तीन सूचियाँ इस प्रकार हैं:

• संघ सूची में राष्ट्रीय महत्व के विषय शामिल हैं।

• राज्य सूची में राज्य और स्थानीय महत्व के विषय शामिल हैं।

• समवर्ती सूची में शिक्षा, वन, मज़दूरसंघ, विवाह, गोद लेना और उत्तराधिकार जैसे वे विषय हैं जो केंद्र के साथ राज्य सरकारों की साझी दिलचस्पी में आते हैं।

•  हमारे संविधान के अनुसार 'बाकी बचे' विषय केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में चले जाते हैं।

भारतीय संघ की विशेषताएं

• भारत के सभी राज्यों के पास समान शक्तियां नहीं हैं।

• संसद अपने स्वयं के शक्ति साझाकरण में परिवर्तन नहीं कर सकती है। इन परिवर्तनों के लिए कम से कम दो तिहाई बहुमत के साथ संसद के दोनों सदनों की मंजूरी की आवश्यकता है।

• न्यायपालिका संवैधानिक प्रावधानों और प्रक्रियाओं के कार्यान्वयन की देखरेख करती है।

संघीय व्यवस्था कैसे चलती है?

भाषायी राज्य

1947 में, नए राज्य बनाने के लिए भारत के कई पुराने राज्यों की सीमाएं बदल गए हैं:
• भाषा के आधार पर।
• संस्कृति के आधार पर।

भाषा नीति

•  हमारे संविधान में किसी एक भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं दिया गया है दिया गया|

•  हिंदी को अनुसूचित भाषा के रूप में पहचाना गया है।

• हिंदी के अलावा, संविधान द्वारा अनुसूचित भाषाओं के रूप में मान्यता प्राप्त 21 अन्य भाषाएं हैं।

• राज्यों की भी अपनी राजकीय भाषाएँ हैं।

• हिंदी के साथ अंग्रेजी का भी प्रयोग राजकीय उद्देश्यों के लिए किया जाता है।

केंद्र-राज्य सम्बन्ध

• संविधान द्वारा केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों के साझाकरण ने भारत में संघवाद को भी मजबूत किया है।

• 1990 के बाद से की अवधि में देश के अनेक राज्यों में क्षेत्रीय दलों का उदय हुआ। यही दौर केंद्र में गठबंधन सरकार की शुरुआत का भी था। चूंकि किसी एक दल को लोकसभा में स्पष्ट बहुमत नहीं मिला इसलिए प्रमुख राष्ट्रीय पार्टियों को क्षेत्रीय दलों समेत अनेक पार्टियों का गठबंधन बनाकर सरकार बनानी पड़ी।

• इससे सत्ता में साझेदारी और राज्य सरकारों की स्वायत्तता का आदर करने की नई संस्कृति पनपी। इस प्रवृत्ति को सुप्रीम कोर्ट के एक बड़े फैसले से भी बल मिला। इस फैसले के कारण राज्य सरकार को मनमाने ढंग से भंग करना केंद्र सरकार के लिए मुश्किल हो गया।

भारत में विकेंद्रीकरण

• जब केंद्र और राज्य सरकार से शक्तियां लेकर स्थानीय सरकारों को दी जाती हैं तो इसे सत्ता का विकेंद्रीकरण कहते हैं।

• 1992 से पहले, स्थानीय सरकारें सीधे राज्य सरकारों के अधीन थे।
→  नियमित चुनाव नहीं होते थे।
→ स्थानीय सरकारों के पास अपने स्वयं के संसाधन या शक्तियां नहीं थीं।

• वास्तविक विकेंद्रीकरण की दिशा में एक बड़ा कदम 1992 में उठाया गया। संविधान में संशोधन करके लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था के इस तीसरे स्तर को ज्यादा शक्तिशाली और प्रभावी बनाया गया।
→ अब स्थानीय स्वशासी निकायों के चुनाव नियमित रूप से कराना संवैधानिक बाध्यता है।
→ निर्वाचित स्वशासी निकायों के सदस्य तथा पदाधिकारियों के पदों में अनूसचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और पिछड़ी जातियों के लिए सीटें आरक्षित हैं।
→ कम से कम एक तिहाई पद महिलाओं के लिए आरक्षित हैं।
→ हर राज्य में पंचायत और नगरपालिका चुनाव कराने के लिए राज्य चुनाव आयोग नामक स्वतंत्र संस्था का गठन किया गया है।
→ राज्य सरकारों को अपने राजस्व और अधिकारों का कुछ हिस्सा इन स्थानीय स्वशासी निकायों को देना पड़ता है। सत्ता में भागीदारी की प्रकृति हर राज्य में अलग-अलग है।

गाँव की स्थानीय सरकार

 पंचायती राज नाम से लोकप्रिय रूप से जाना जाता है।

→ ग्राम पंचायत: यह पूरे गांव के लिए निर्णय लेने वाला परिषद है।

→ पंचायत समिति: कई ग्राम पंचायतों को मिलाकर पंचायत समिति का गठन होता है|

→ जिला परिषद: किसी जिले की सभी पंचायत समितियों को मिलाकर जिला परिषद् का गठन होता है।

शहरों की स्थानीय सरकार

• शहरों में नगर पालिका होती है। बड़े शहरों में नगरनिगम का गठन होता है।

• नगरपालिका प्रमुख नगरपालिका के राजनीतिक प्रधान होते हैं। नगरनिगम के ऐसे पदाधिकारी को मेयर कहते हैं।

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Extra Questions of पाठ 2 - संघवाद

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