Notes of Science in Hindi for Class 9th: Ch 6 ऊतक विज्ञान 

विषय-वस्तु


  • पादप ऊतक 
  • विभज्योतक
  • स्थायी ऊतक
  • सरल स्थायी ऊतक
  • जटिल स्थायी ऊतक
  • जंतु ऊतक
  • ऐपिथीलियमी ऊतक
  • संयोजी ऊतक
  • पेशीय ऊतक
  • तंत्रिका ऊतक

ऊतक 

• बहुकोशिकीय जीवों में सभी महत्वपूर्ण कार्य कोशिकाओं के विभिन्न समूहों द्वारा की जाती है|

• कोशिकाओं का विशेष समूह जो संरचनात्मक कार्यात्मक व उत्पत्ति में समान होते हैं, ऊतक कहलाते हैं|

पादप ऊतक तथा जंतु ऊतक में अंतर

पादप ऊतक
जंतु ऊतक
स्थिरगतिमान
वृद्धि सीमित भाग मेंवृद्धि सभी भागों में
वृद्धि जीवन पर्यंतवृद्धि निश्चित अवधि तक
विशिष्ट अंग अनुपस्थितविशिष्ट अंग उपस्थित

पादप ऊतक के प्रकार

(i) विभज्योतक

पौधों में वृद्धि कुछ निश्चित क्षेत्रों में ही होती है| ऐसा विभाजित ऊतकों के उन भागों में पाए जाने के कारण होता है| ऐसे ऊतकों को विभज्योतक भी कहा जाता है| तने व जड़ों के शीर्ष और कैम्बियम स्थिति के आधार पर

विभज्योतक तीन प्रकार के होते हैं

(i)शीर्षस्थ विभज्योतक- शीर्षस्थ विभेद तने व जड़ के शीर्ष पर स्थित होता है और उनकी लंबाई में वृद्धि करता है|

(ii)पार्श्वीय विभज्योतक- पार्श्वीय विभज्योतक या कैम्बियम तने व जड़ की परिधि में स्थित होता है और उनकी मोटाई में वृद्धि करता है|

(iii)अंतर्विष्ट विभज्योतक- अंतर्विष्ट विभज्योतक पत्तियों के आधार या टहनियों के पर्व के दोनों ओर स्थित होता है| यह इन भागों की वृद्धि करता है|


विभज्योतक ऊतक की विशेषताएँ

सेलुलोज की बनी कोशिका भित्ति

कोशिकाओं के बीच में स्थान अनुपस्थित, सटकर जुड़ी कोशिकाएँ

कोशिकाएँ गोल, अंडाकार या आयताकार

कोशिका द्रव्य सघन, काफी मात्रा में

नाभिक एक व बड़ा

संचित भोजन अनुपस्थित

(ii) स्थायी ऊतक

• ये उन विभज्योतकी ऊतक से उत्पन्न होते हैं जो कि लगातार विभाजित होकर विभाजन की क्षमता खो देते हैं|

• इनका आकार, आकृति व मोटाई निश्चित होती है| ये जीवित या मृत दोनों हो सकते हैं| स्थायी ऊतक की कोशिकाओं के कोशिका द्रव्य में रिक्तिकाएँ होती हैं|

आकृति व संरचना के आधार पर स्थायी ऊतक दो प्रकार के होते हैं

(i) सरल स्थायी ऊतक
(ii) जटिल स्थायी ऊतक 

(i) सरल स्थायी ऊतक

• यह केवल एक ही प्रकार की कोशिकाओं का समूह होता है| 

ये दो प्रकार के होते हैं:
(a) संरक्षी ऊतक
(b) संभरण उत्तक

(a) संरक्षी ऊतक

• संरक्षी ऊतक का मुख्य कार्य सुरक्षा करना होता है|

(i) एपीडर्मिस

• पौधे के सभी भाग जैसे पत्तियाँ, फूल, जड़ व तने की सबसे बाहरी परत एपीडर्मिस कहलाती है जो क्यूटिकल से ढकी होती है| 

• क्यूटिकल एक जल सह मोम के समान पदार्थ होता है, जो कि एपीडर्मिस कोशिकाओं द्वारा स्रावित किया जाता है| अधिकतर पौधों में एपीडर्मिस के साथ-साथ सूक्ष्म छिद्र स्टोमेटा पाए जाते हैं|

एपीडर्मिस के कार्य

पौधे को सुरक्षा प्रदान करना|
वाष्पोत्सर्जन को रोकती है जिससे पौधा झुलसने से बच जाता है|
स्टोमेटा द्वारा गैसों के आदान-प्रदान में सहायता व वाष्पोत्सर्जन|

(b) संभरण ऊतक

• ये तीन प्रकार के होते हैं :
(i) पैरेन्काइमा 
(ii) कोलेन्काइमा
(iii) स्कलेरेन्काइमा

(i) पैरेन्काइमा की विशेषताएँ

समान व्यास वाली जीवित कोशिकाएँ
गोल, अंडाकार, बहुभुजीय या लंबी
कोशिका भित्ति पतली व कोशिका द्रव्य सघन
कोशिका के मध्य में केंद्रीय रिक्तिका

पैरेन्काइमा ऊतक के कार्य :
भोजन को संचित कर इकट्ठा करना
यांत्रिक मजबूती प्रदान करना
भोजन को एकत्रित करना
पौधे के अपशिष्ट पदार्थ गोंद, रेजिन, क्रिस्टल, टेनिन इकट्ठा करना|

(ii) कोलेन्काइमा ऊतक की विशेषताएँ

पैरेन्काइमा के समान जीवित कोशिकाएँ, कुछ क्लोरोफिल युक्त
पतली कोशिका भित्ति
लम्बी, स्थूल कोने वाली स्थूलता सेलुलोज व पेक्टिन का जमाव
अंत कोशिकीय स्थान अनुपस्थित
बाह्य त्वचा के नीचे उपस्थित

कोलेन्काइमा ऊतक के कार्य

यांत्रिक शक्ति प्रदान करना तथा क्लोरोफिल के कारण शर्करा व स्टार्च का निर्माण करना|

(iii) स्कलेरेन्काइमा ऊतक की विशेषताएँ

कोशिकाएँ लम्बी सकरी व मोटी
अंतःकोशिकीय स्थान अनुपस्थित
सामान्यतः दोनों सिरों पर पैनी
जीव द्रव्य रहित व मृत

स्कलेरेन्काइमा ऊतक के कार्य

यह ऊतक पौधे को कठोर एवं मजबूत बनाता है|

(ii) जटिल स्थायी ऊतक

• वे ऊतक जो दो या दो से अधिक प्रकार की कोशिकाओं से मिलकर बने होते हैं जटिल स्थायी ऊतक कहलाते हैं| 

ये दो प्रकार के होते हैं:

जाइलम- यह चार प्रकार की कोशिकाओं से मिलकर बना है-

वाहिनिका : काष्ठीय कोशिका भित्ति एकल कोशिकाएँ लंबी नली के रूप में व मृत|
वाहिका : एक-दूसरे से जुड़ी लम्बी कोशिकाएँ जड़ से जल व खनिज का पौधे के भागों में संवहन|
जाइलम पैरेन्काइमा : पार्श्वीय संवहन में सहायता, भोजन को इकट्ठा करना|
जाइलम फाइबर : पौधे को दृढ़ता प्रदान करना| 

फ्लोएम- चार प्रकार की कोशिकाओं से मिलकर बना होता है-

चालनी कोशिकाएँ : कोशिकाएँ नलिकाकार, लम्बी व छिद्रितभित्ति कोशिका द्रव्य चालनी प्लेट के छिद्रों द्वारा अन्य चालनी नलिका कोशिका के संपर्क में|
सहचरी कोशिकाएँ : विशेष पैरेन्काइमा कोशिकाएँ, लम्बी, संकरी सघन जीव द्रव्य व बड़े केंद्रक वाली|
फ्लोएम-पैरेन्काइमा : सरल पैरेन्काइमा कोशिकाएँ, भोजन का संग्रहण एवं धीमी गति से उनका संवहन|


जंतु ऊतक

ये चार प्रकार के होते हैं :
(i) एपिथीलियमी ऊतक
(ii) संयोजी ऊतक
(iii) पेशीय ऊतक
(iv) तंत्रिका ऊतक

(i) एपिथीलियमी ऊतक

• जंतु के शरीर को ढकने या बाह्य रक्षा प्रदान करने वाले ऊतक एपिथीलियमी ऊतक हैं| 

त्वचा, मुँह, आहारनली, रक्त वाहिनी, नली का अस्तर, फेफड़ों की कूपिका, वृक्कीय नली आदि सभी एपिथीलियमी ऊतक से बने होते हैं| 

• इस ऊतक की कोशिकाएँ एक-दूसरे से सटी होती हैं और ये एक अनवरत परत का निर्माण करती हैं|

एपिथीलियमी ऊतक के कार्य

ये शरीर के अंदर स्थित बहुत से अंगों और गुहिकाओं को ढकते हैं|
ये भिन्न-भिन्न प्रकार के शारीरिक तंत्रों को एक-दूसरे से अलग करने के लिए अवरोध का निर्माण करते हैं|

• ये चार प्रकार की होती हैं

(a) साधारण एपिथीलियम- पतली एककोशिकीय स्तर, ये सामान्यतः रक्त वाहिकाएँ व फेफड़ों की कूपिकाओं को बनाती है| पारगम्य झिल्ली द्वारा पदार्थों का संवहन|

(b) घनाकार एपिथीलियम- घनाकार एपिथीलियम वृक्क की सतह व वृक्कीय नली व लार ग्रन्थि की नली के अस्तर का निर्माण|

(c) स्तम्भी एपिथीलियम- कोशिकाएँ स्तम्भाकार होती हैं| ये आंतों की सतह पर पाई जाती है| कुछ अंगों में कोशिकाओं की सतह पर पाए जाते हैं, जैसे- श्वास नली|

(d) ग्रन्थियल एपिथीलियम- ये एपिथीलियम कोशिकाएँ आंतों की सतह, त्वचा आदि में पाई जाती है| ये पाचक एंजाइम व रसों का स्राव करती है|

(ii) संयोजी ऊतक

संयोजी ऊतक शरीर के विभिन्न अंगों को वापस में जोड़ने या आधार देने का कार्य करते हैं| ये अंतरकोशिकीय आधात्री में धँसी होती है| 

• रक्त: लाल रक्त कोशिकाएँ, श्वेत रक्त कोशिकाएँ तथा प्लेटलेट्स प्लाज्मा में निलंबित रहते हैं| 

इसमें प्रोटीन, नमक व हॉर्मोन भी होते हैं| रक्त पचे हुए भोजन, हॉर्मोन, गैसों तथा उत्सर्जी पदार्थों को शरीर के एक भाग से दूसरे भाग में संवहन करता है| 

• अस्थि: इसमें अंतःकोशिकीय स्थान में Ca व फास्फोरस के लवण भरे होते हैं, जो अस्थि को कठोरता प्रदान करते हैं| अस्थियाँ शरीर को निश्चित आकार प्रदान करती हैं|

• उपास्थि: इसमें अंतःकोशिकीय स्थान पर प्रोटीन व शर्करा होती है जिससे यह लचीला व मुलायम होता है यह अस्थियों के जोड़ों को चिकना बनाता है, नाक, कान, कंठ, नाखून आदि में पाई जाती है| 

(iii) पेशीय ऊतक

• पेशीय ऊतक लंबी कोशिकाओं का बना होता है जिसे पेशीय रेशा भी कहा जाता है| यह हमारे शरीर में गति के लिए उत्तरदायी है| 

• पेशियों में एक विशेष प्रकार की प्रोटीन होती है, जिसे सिकुड़ने वाला प्रोटीन कहते हैं, जिसके संकुचन एवं प्रसार के कारण गति होती है| 

• कुछ पेशियों को हम इच्छानुसार गति करा सकते हैं, इस तरह पेशियों को ऐच्छिक पेशी कहा जाता है| उदाहरण के लिए, हाथ और पैर में विद्यमान पेशियों को हम अपनी इच्छानुसार गति करा सकते हैं या उनकी गति को रोक सकते हैं| इस ऊतक की कोशिकाएँ लम्बी, बेलनाकार, शाखारहित और बहुनाभीय होती हैं|  

अहारनली में भोजन का प्रवाह या रक्त नलिका का प्रसार व संकुचन जैसी गतियाँ ऐच्छिक नहीं हैं| इन गतिविधियों को हम स्वयं संचालित नहीं कर सकते हैं, अर्थात हम इन गतियों को इच्छानुसार प्रारंभ या बंद नहीं कर सकते हैं| इन पेशियों को अनैच्छिक पेशी कहा जाता है| ये आँख की पलक, मूत्रवाहिनी और फेफड़ों की श्वसनी में पाया जाता है|

अरेखित पेशी- ये अमाशय छोटी आंत, मूत्रवाहिनी और फेफड़ों की श्वसनी में पाया जाता है| ये लम्बी तथा श्क्वाकार सिरों वाली होती हैं|

हृदयक पेशी- हृदय की पेशियाँ जीवन भर लयबद्ध होकर प्रसार व संकुचन करती रहती हैं| इन अनैच्छिक पेशियों को हृदयक पेशी कहा जाता है| ये पेशियाँ बेलनाकार, शाखाओं वाली और एक-केन्द्रकीय होती हैं|

(iv) तंत्रिका ऊतक

• तंत्रिका ऊतक की विशेषताएँ

तंत्रिका ऊतक की कोशिकाएँ बहुत शीघ्र उत्तेजित होती हैं और इस उत्तेजना को बहुत ही शीघ्र पूरे शरीर में एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाती है|

मस्तिष्क, मेरुरज्जु तथा तंत्रिकाएँ सभी तंत्रिका ऊतकों की बनी होती है|

तंत्रिका ऊतक की कोशिकाओं को तंत्रिका कोशिका या न्यूरॉन कहा जाता है| 

तंत्रिका कोशिका में केंद्रक तथा कोशिका द्रव्य होता है|

• तंत्रिका ऊतक के तीन भाग होते हैं

(a) प्रवर्ध या डेंड्राइट: धागे जैसी रचना जो साइटोन से जुड़ी रहती है|

(b) साइटोन: कोशिका जैसी संरचना जिसमें केंद्रक व कोशिका द्रव्य पाया जाता है| यह संवेग को विद्युत आवेग में बदलती है|

(c) एक्सॉन: पतले धागे जैसी रचनाएँ जो एक सिरे पर साइटोन व दूसरे सिरे पर संवेगी अंग से जुड़ी रहती है|


तंत्रिका ऊतक के कार्य :

तंत्रिका का स्पंदन हमें इच्छानुसार अपनी पेशियों को गति करने में सहायता करता है|

तंत्रिका तथा पेशीय ऊतकों का कार्यात्मक संयोजन प्रायः सभी जीवों में मौलिक है| यह संयोजन उत्तेजना के अनुसार जंतुओं को तेज गति प्रदान करता है|

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