Study Material of Ch 1 The Portrait of a lady (Summary, Character Sketch and Word Meanings) in Hindi

Summary of the Chapter The Portrait of a Lady in Hindi

कथाकार खुशवंत सिंह ने इस कथा में एक महिला का चित्रण किया है। ये महिला और कोई नहीं बल्कि उनकी दादी है. कथाकार जब एक अबोध बालक थे तब उनके माता -पिता उन्हें दादी के पास छोड़ कर शहर चले गए। कथाकार ने दादी का वर्णन करते हुए कहा की वो एक वृद्ध महिला थीं जिनकी मुख पर अनेक झुर्रिया थीं। वो मोटी और थोड़ी से झुकी हुई थीं। कथाकार केलिए ये मानना कठिन था की एक समय उनकी दादी एक जवान और खूबसूरत युवती रहीं होंगी, जैसा की उनके आसपास के लोगों का कहना था। कथाकार फिर अपनी दादी के साथ अपने सम्बन्ध के विषय में बताते हैं। कथाकार का अपने दादी का सम्बन्ध मैत्रीपूर्ण था। उनकी दादी उन्हें विद्यालय केलए प्रत्येक दिन तैयार करती थीं। उसके बाद उन्हें विद्यालय छोड़ने जाती थीं। विद्यालय के समीप एक मंदिर था जंहा वो धार्मिक पुस्तकों का अध्यन करती थीं। फिर दोनों घर चले जाते और गली के कुत्तों को रोटियां खिलाते थैं।

फिर एक दिन कथाकार के माता -पिता ने उन्हें और उनकी दादी को शहर बुला लिया। कथाकार ने इस घटना को अपने और दादी के मैत्रीपूर्ण सम्बंधों केलए मोड बिंदु कहा है। अब भी उनका और दादी का कमरा एक ही था पर अब दोनों मे बातें काम होती थीं। दादी जब कथाकार से उनके शहर के नए विद्यालय के पाठ्यक्रम बारे मे पूछते तो वे कहते आधुनिक विज्ञानं और अंग्रेज़ी साहित्य , जिसपे उनकी दादी दुखी होती की उन्है धार्मिक ग्रंथों की शिक्षा नहीं दी जाती थी | उन्हें इस बात पर भी आपत्ति होती की उन्हें संगीत की भी शिक्षा दी जाती है जिसे वो सभ्य पुरुष केलए उचित नहीं मानती थीं। अब दादी का समय पूजा पाठ मे बीतने लगा। वो पंछियों को दाना खिलाया करती थीं। ये समय उनके लिए दिन का सबसे पंसंदीदा समय हुआ करता था। जब कथाकार विश्यविद्यालय मे पढ़ने लगे तब उनका कमरा अलग हो गया और उनकी अपनी दादी से दोस्ती का नाता तटूट सा गया। उन्होंने हालात से समझौता कर लिया।

जब कथाकार ने विश्यविद्यालय की पढाई पूरी कर ली तब उन्होंने आगे की पढाई केलए विदेश जाने का निर्णय लिया। उनकी दादी इस बात से उदास थीं पैर उन्होंने अपनी भावनायों को नहीं दर्शया। वे उन्हें छोड़ने स्टेशन पर गयीं और कथाकार के माथे पर चुम्बन देके विदा किया। कथाकार ने इस स्पर्श को उनका अंतिम स्पर्श समझा। पर जब कथाकार घर वापस ए तो उनकी दादी उनका इंताजर कर रही थीं। उस दिन भी दादी ने अपना सबसे अच्छा वक़्त पंछियों के साथ बिताया। एक दिन के बात है, जब उन्होंने पूजा पाठ नहीं की बल्कि आस पडोश की महिलाओं के साथ एक फटा हुआ ढोल लेके भजन कृतं करने लगीं अर कई समय तक गाने गाये। एक दिन वो बीमार पड़ीं अर अपने अंतिम समय को अपने पास पाया। इस दौरान घरवलों के मना करने पर भी वो मन ही मन प्रार्थना करने लगीं जबकि घरवाले चाहते थे की वो उनसे बात करे। फिर उन्होंने शांतिपूर्ण तरीके से इस दुनिया से विदा लिया। उनका अंतिम संस्कार हुआ। घर वालों के अलावा वे पंछि भी उनके जाने से दुखी थीं। जब कथाकार की माता ने उन पंछियों को खाना दिया तो उन्होंने उसे स्वीकार नहीं किया।

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