NCERT Solutions for Chapter 17 श्वसन और गैसों का विनिमय Class 11 Biology

Chapter 17 श्वसन और गैसों का विनिमय NCERT Solutions for Class 11 Biology are prepared by our expert teachers. By studying this chapter, students will be to learn the questions answers of the chapter. They will be able to solve the exercise given in the chapter and learn the basics. It is very helpful for the examination.

एन.सी.आर.टी. सॉलूशन्स for Chapter 17 श्वसन और गैसों का विनिमय Class 11 Biology

प्रश्न 1. जैव क्षमता की परिभाषा दीजिए और इसका महत्त्व बताइए ।

उत्तर

अन्तः श्वास आरक्षित वायु (Inspiratory Reserve Air Volume, IRV), प्रवाही वायु (Tidal Air Volume, TV) तथा उच्छ्वास आरक्षित वायु (Expiratory Reserve Air Volume, ERV) का योग (IRV + TV + ERV-3000 + 500 + 1100 = 4600 मिली) फेफड़ों की जैव क्षमता होती है। यह वायु की वह कुल मात्रा होती है जिसे हम पहले पूरी चेष्टा द्वारा फेफड़ों में भरकर पूरी चेष्टा द्वारा शरीर से बाहर निकाल सकते हैं।

जिस व्यक्ति की जैव क्षमता जितनी अधिक होती है, उसे शरीर की जैविक क्रियाओं के लिए उतनी ही अधिक ऊर्जा प्राप्त होती है। खिलाड़ियों, पर्वतारोही, तैराक आदि की जैव क्षमता अधिक होती है। युवक की जैव क्षमता प्रौढ़ की अपेक्षा अधिक होती है। पुरुषों की जैव क्षमता स्त्रियों की अपेक्षा अधिक होती है। यह उनकी कार्य क्षमता को प्रभावित करती है।


प्रश्न 2. सामान्य निःश्वसन के उपरान्त फेफड़ों में शेष वायु के आयतन को बताएँ । उत्तर - वायु की वह मात्रा जो सामान्य निःश्वसन (उच्छ्वास) के उपरान्त फेफड़ों में शेष रहती है, कार्यात्मक अवशेष सामर्थ्य ( Functional Residual Capacity, FRC) कहलाती है। यह उच्छ्वास आरक्षित वायु (Expiratory Reserve Air Volume, ERV) तथा अवशेष वायु (Residual Air Volume, RV) के योग के बराबर होती है। इसकी सामान्यतया मात्रा 2300 मिली होती है।

FRC = ERV + RV

= 1100 + 1200 मिली

= 2300 मिली।


प्रश्न 3. गैसों का विसरण केवल कूपकीय क्षेत्र में होता है, श्वसन तन्त्र के किसी अन्य भाग में नहीं, क्यों?

उत्तर

मनुष्य के फेफड़ों में लगभग 30 करोड़ वायु कोष्ठक या कूपिकाएँ (alveoli) होते हैं। इनकी पतली भित्ति में रक्त केशिकाओं का घना जाल फैला होता है। श्वासनाल (trachea ), श्वसनी (bronchus), श्वसनिका (bronchiole), कूपिका नलिकाओं (alveolar duct) आदि में रक्त केशिकाओं का जाल फैला हुआ नहीं होता। इनकी भित्ति मोटी होती है। अत: कूपिकाओं (alveoli) को छोड़कर अन्य श्वसन भागों में गैसीय विनिमय नहीं होता। सामान्यतया ग्रहण की गई 500 मिली प्रवाही वायु में से लगभग 350 मिली कूपिकाओं में पहुँचती है, शेष श्वास मार्ग में ही रह जाती है।

वायु कोष्ठकों की भित्ति तथा रक्त केशिकाओं की भित्ति मिलकर श्वसन कला (respiratory membrane) बनाती हैं। इससे O2 तथा CO2 का विनिमय सुगमता से हो जाता है। गैसीय विनिमय सामान्य विसरण द्वारा होता है। इसमें गैसें उच्च आंशिक दबाव से कम आंशिक दबाव की ओर विसरित होती हैं।

वायुकोष्ठकों में O2 का आंशिक दबाव 100-104mm Hg और CO2 का आंशिक दबाव 40mm Hg होता है। फेफड़ों में रक्त केशिकाओं में आए अशुद्ध रुधिर में O2 का आंशिक दबाव 40mm Hg और CO2 का आंशिक दबाव 45-46mm Hg होता है।

ऑक्सीजन वायुकोष्ठकों की वायु से विसरित होकर रक्त में जाती है और रक्त से CO2 विसरि होकर वायुकोष्ठकों की वायु में जाती है। इस प्रकार वायुकोष्ठकों से रक्त ले जाने वाली रक्त केशिकाओं में रक्त ऑक्सीजनयुक्त (oxygenated) होता है। फेफड़ों से निष्कासित वायु में O2 लगभग 15.7% और CO2 लगभग 3.6% होती है ।


प्रश्न 4. CO2 के परिवहन (ट्रांसपोर्ट) की मुख्य क्रियाविधि क्या है? व्याख्या कीजिए।

उत्तर

ऊतकों में संचित खाद्य पदार्थों के ऑक्सीकरण से उत्पन्न कार्बन डाइऑक्साइड विसरण द्वारा रुधिर केशिकाओं में चली जाती है।

रुधिर केशिकाओं द्वारा इसका परिवहन श्वसनांगों तक निम्नलिखित तीन प्रकार से होता है—

(1) प्लाज्मा में घुलकर (Dissolved in Plasma): लगभग 7% कार्बन डाइऑक्साइड का परिवहन प्लाज्मा में घुलकर कार्बोनिक अम्ल (H2CO3) के रूप में होता है।

(2) बाइकार्बोनेट्स के रूप में (In the form of Bicarbonates): लगभग 70% कार्बन डाइऑक्साइड का परिवहन बाइकार्बोनेट्स के रूप में होता है।

प्लाज्मा के अन्दर कार्बोनिक अम्ल का निर्माण धीमी गति से होता है। अतः कार्बन डाइऑक्साइड का अधिकांश भाग (93%) लाल रुधिराणुओं में विसरित हो जाता है। इसमें से 70% कार्बन डाइऑक्साइड से कार्बोनिक अम्ल व अन्त में बाइकार्बोनेट्स का निर्माण हो जाता है। लाल रुधिराणुओं में कार्बोनिक एनहाइड्रेज एन्जाइम की उपस्थिति में कार्बोनिक अम्ल का निर्माण होता है।

प्लाज्मा में, कार्बोनिक एनहाइड्रेज एन्जाइम अनुपस्थित होता है; अत: प्लाज्मा में बाइकार्बोनेट कम मात्रा में बनता है। बाइकार्बोनेट आयन (HCO3-) लाल रुधिराणुओं के पोटैशियम आयन (K+) तथा लामा के सोडियम आयन (Na+) से क्रिया करके क्रमशः पोटैशियम तथा सोडियम बाइकार्बोनिट बनाता है।

क्लोराइड शिफ्ट या हैम्बर्गर परिघटना (Chloride Shift or Hambergur Phenomenon): सामान्य pH तथा विद्युत तटस्थता (electric neutrality) बनाए रखने के लिए जितने बाइकार्बोनेट आयन रुधिर कणिकाओं से प्लाज्मा में आते हैं, उतने ही क्लोराइड आयन (CI) रुधिर कणिकाओं में जाकर उसकी पूर्ति करते हैं। इस क्रिया के फलस्वरूप प्लाज्मा में बाइकार्बोनेट तथा लाल रुधिर कणिकाओं में क्लोराइड आयनों का जमाव हो जाता है। इस क्रिया को क्लोराइड शिफ्ट (chloride shift) कहते हैं। श्वसन तल पर प्रक्रियाएँ विपरीत दिशा में होती हैं जिससे CO2 मुक्त होकर वायुमण्डल में चली जाती है।

(3) कार्बोक्सीहीमोग्लोबिन के रूप में (In the form of Carboxyhaemoglobin): कार्बन डाइऑक्साइड का लगभग 23% भाग लाल रुधिर कणिकाओं के हीमोग्लोबिन से मिलकर अस्थायी यौगिक बनाता है—

हीमोग्लोबिन + CO2 → काबोक्सी हीमोग्लोबिन

सोडियम तथा पोटैशियम के बाइकार्बोनेट्स तथा कार्बोक्सीहीमोग्लोबिन आदि पदार्थों से युक्त रुधिर अशुद्ध होता है। यह रुधिर ऊतकों और अंगों से शिराओं द्वारा हृदय में पहुँचता है। हृदय से यह रुधिर फुफ्फुस धमनियों द्वारा फेफड़ों में शुद्ध होने के लिए जाता है।

फेफड़ों में ऑक्सीजन की अधिक मात्रा होने के कारण रुधिर की हीमोग्लोबिन ऑक्सीजन से मिलकर ऑक्सीहीमोग्लोबिन बनाती है। ऑक्सीहीमोग्लोबिन, हीमोग्लोबिन की अपेक्षा अधिक अम्लीय होता है। ऑक्सीहीमोग्लोबिन के अम्लीय होने के कारण श्वसन सतह पर कार्बोनेट्स तथा कार्बोनिक अम्ल का विखण्डन (decomposition) होता है—

कार्बोक्सीहीमोग्लोबिन तथा प्लाज्मा प्रोटीन के रूप में बने अस्थायी यौगिक भी ऑक्सीजन से संयोजित होकर कार्बन डाइऑक्साइड को मुक्त कर देते हैं-

(घ) कार्बोक्सीहीमोग्लोबिन → हीमोग्लोबिन + CO2

उपर्युक्त प्रकार से मुक्त हुई कार्बन डाइऑक्साइड रुधिर केशिकाओं तथा फेंफड़ों की पतली दीवारों से विसरित होकर फेफड़ों में पहुँचती है जहाँ से यह उच्छ्वास द्वारा बाहर निकाल दी जाती है।

 

प्रश्न 5. कूपिका वायु की तुलना में वायुमण्डलीय वायु में pO2 तथा pCO2 कितनी होगी? मिलान कीजिए।

(i) pO2 न्यून, pCO2 उच्च

(ii) pO2 उच्च, pCO2 न्यून

(iii) pO2 उच्च, pCO2 उच्च

(iv) pO2 न्यून, pCO2 न्यून

उत्तर

(ii) pO2 उच्च, pCO2 न्यून

(वायुमण्डलीय वायु में O2 का आंशिक दाब 159 तथा CO2 का आंशिक दाब 0.3 होता है, जबकि कूपिका वायु में O2 का आंशिक दाब 104 तथा CO2 का आंशिक दाब 40 होता है।)

 

प्रश्न 6. सामान्य स्थिति में अन्तःश्वसन प्रक्रिया की व्याख्या कीजिए।

उत्तर

सामान्य श्वासोच्छ्वास (breathing) या श्वासन अनैच्छिक होता है। इसमें पसलियों की गति की भूमिका 25% और डायफ्राम की भूमिका 75% होती है।

अन्तःश्वास या प्रश्वसन (Inspiration): सामान्य स्थिति में अन्तःश्वास में गुम्बदनुमा डायफ्राम पेशियों में संकुचन के कारण चपटा सा हो जाता है। डायफ्राम की गति के साथ बाह्य अन्तरापर्शक पेशियों (external intercostal muscles) में संकुचन से पसलियाँ सीधी होकर ग्रीवा की तथा बाहर की तरफ खिंचती है। इससे उरोस्थि (sternum) ऊपर और आगे की ओर उठ जाती है। इन गतियों के कारण वक्षगुहा का आयतन बढ़ जाता है और फेफड़े फूल जाते हैं। वक्ष गुहा और फेफड़ों में वृद्धि के कारण वायुकोष्ठकों या कूपिकाओं (alveoli) में वायुदाब लगभग 1 से 3 mm Hg कम हो जाता है। इसकी पूर्ति के लिए वायुमण्डलीय वायु श्वास मार्ग से कूपिकाओं में पहुँच जाती है। इस क्रिया को अन्तःश्वास कहते हैं। इसके द्वारा मनुष्य (अन्य स्तनी) वायु ग्रहण करते हैं।


प्रश्न 7. श्वसन का नियमन कैसे होता है?

उत्तर

मस्तिष्क के मेड्यूला (medulla) एवं पोन्स वैरोलाइ (Pons varolii) में स्थित श्वास केन्द्र (respiratory centre) पसलियों तथा डायफ्राम से सम्बन्धित पेशियों की क्रिया का नियमन करके श्वासोच्छ्वास (breathing) या श्वसन ( respiration) का नियमन करता है। श्वास क्रिया तन्त्रिकीय नियन्त्रण में होती है। यही कारण है कि हम अधिक देर तक श्वास नहीं रोक पाते हैं।

फेफड़ों की भित्ति में 'स्ट्रेच संवेदांग' (stretch receptors) होते हैं। फेफड़ों के आवश्यकता से अधिक फूल जाने पर ये संवेदांग पुनर्निवेशन नियन्त्रण (feedback control) के अन्तर्गत निःश्वसन को तुरन्त रोकने के लिए हेरिंग बुएर रिफ्लेक्स चाप (Hering Bruer Reflex Arch) की स्थापना करके श्वास केन्द्र को उद्दीपित करते हैं, जिससे श्वास दर बढ़ जाती है। यह नियन्त्रण प्रतिवर्ती क्रिया के अन्तर्गत होता है।

शरीर के अन्तः वातावरण में CO2 की सान्द्रता के कम या अधिक हो जाने से श्वास केन्द्र स्वतः उद्दीपित होकर श्वास दर को बढ़ाता या घटाता है। O2 की अधिकता कैरोटिको सिस्टैमिक चाप (Carotico systemic arch) में उपस्थित सूक्ष्म रासायनिक संवेदांगों को प्रभावित करती है। ये संवेदांग श्वास केन्द्र को प्रेरित करके श्वास दर को घटा या बढ़ा देते हैं।

 

प्रश्न 8. pCO2 का ऑक्सीजन के परिवहन पर क्या प्रभाव पड़ता है?

उत्तर

कूपिकाओं में जहाँ pO2 उच्च तथा pCO2 न्यून होता है H+ सांद्रता कम तथा ताप कम होने पर ऑक्सीहीमोग्लोबिन बनता है। ऊतकों में जहाँ pO2 न्यून तथा PCO2 उच्च होता है H+ सांद्रता अधिक तथा ताप अधिक होता है। ऑक्सीहीमोग्लोबिन का विघटन होता है तथा O2 मुक्त हो जाती है। इसका अर्थ है O2 फेफड़े की सतह पर हीमोग्लोबिन के साथ मिलती है तथा ऊतकों में अलग हो जाती है। सामान्य परिस्थिति में 5 मिली O2 ऊतकों को प्रति 100 मिली ऑक्सीजनित रक्त से मिलता है।

 

प्रश्न 9. पहाड़ पर चढ़ने वाले व्यक्ति की श्वसन प्रक्रिया में क्या प्रभाव पड़ता है?

उत्तर

पहाड़ पर ऊँचाई बढ़ने के साथ-साथ वायु में O2 का आंशिक दाब कम हो जाता है; अतः मैदान की अपेक्षा ऊँचाई पर श्वासोच्छ्वास क्रिया अधिक तीव्र गति से होगी। इसके निम्नलिखित कारण होते हैं-

  1. (रुधिर में घुली हुई ऑक्सीजन का आंशिक दाब कम हो जाता है। O2 रक्त में सुगमता से विसरित होती है। अतः शरीर में ऑक्सीजन परिसंचरण कम हो जाता है। इसके फलस्वरूप सिरदर्द तथा उल्टी (वमन) का आभास होता है।
  2. अधिक ऊँचाई पर वायु में ऑक्सीजन की मात्रा अपेक्षाकृत कम होती है; अतः वायु से अधिक O2 प्राप्त करने के लिए श्वासोच्छ्वास क्रिया तीव्र हो जाती है ।
  3. कुछ दिनों तक ऊँचाई पर रहने से रुधिर में लाल रुधिराणुओं की संख्या बढ़ जाती है और श्वास क्रिया सामान्य जाती है।

 

प्रश्न 10. कीटों में श्वास क्रियाविधि कैसे होती है?

उत्तर

कीटों में श्वसन हेतु ट्रैकिया (trachea) पाए जाते हैं। कीटों के शरीर में ट्रैकिया का जाल फैला होता है। ट्रैकिया पारदर्शी, शाखामय, चमकीली नलिकाएँ होती हैं। ये श्वास रन्ध्रों (spiracles) द्वारा वायुमण्डल से सम्बन्धित रहती हैं। श्वास रन्ध्र छोटे वेश्म ( atrium) में खुलते हैं। श्वास रन्ध्रों पर रोमा सदृश शूक तथा कपाट पाए जाते हैं। कुछ श्वास रन्ध्र सदैव खुले रहते हैं। शेष अन्तःश्वसन (inspiration) के समय खुलते हैं और उच्छ्वसन (expiration) के समय बन्द रहते हैं ।

ट्रैकियल वेश्म (atrium) से शाखाएँ निकलकर एक पृष्ठ तथा अधर तल पर ट्रैकिया का जाल बना लेती हैं। ट्रैकिया से निकलने वाली ट्रैकिओल्स (tracheoles) ऊतक या कोशिकाओं तक पहुँचती हैं। कीटों में गैसों का विनिमय बहुत ही प्रभावशाली होता है और O2 सीधे कोशिकाओं तक पहुँचती है। इसी कारण कीट सर्वाधिक क्रियाशील होते हैं।


प्रश्न 11. ऑक्सीजन वियोजन वक्र की परिभाषा दीजिए। क्या आप इसकी सिग्माभ आकृति का कोई कारण बता सकते हैं?

उत्तर

'हीमोग्लोबिन द्वारा ऑक्सीजन ग्रहण करने की क्षमता ऑक्सीजन के आंशिक दबाव (partial pressure) अर्थात् pO2 पर निर्भर करती है। हीमोग्लोबिन की वह प्रतिशत मात्रा जो ऑक्सीजन ग्रहण करती है, इसकी प्रतिशत संतृप्ति (percentage saturation of haemoglobin) कहलाती है; जैसे-

फेफड़ों में रक्त के ऑक्सीजनीकृत होने पर O2 का आंशिक दबाव pO2 लगभग 97mm Hg होता है। इस pO2 पर हीमोग्लोबिन की प्रतिशत संतृप्ति लगभग 98% होती है।

ऊतकों से वापस आने वाले रक्त में O2 का आंशिक दबाव pO2 लगभग 40mm Hg होता है, इस pO2 पर हीमोग्लोबिन की प्रतिशत संतृप्ति लगभग 75% होती है। pO2 तथा हीमोग्लोबिन की प्रतिशत संतृप्ति के सम्बन्धको ग्राफ पर अंकित करने पर एक सिग्माम वक्र (sigmoid curve) प्राप्त होता है। इसे ऑक्सीजन वियोजन वक्र कहते हैं।

ऑक्सीजन हीमोग्लोबिन वियोजन वक्र पर शरीर ताप एवं रक्त के pH का प्रभाव पड़ता है। ताप के बढ़ने या pH के कम होने पर यह वक्र दाहिनी ओर खिसकता है। इसके विपरीत ताप के कम होने या PH के अधिक होने से ऑक्सीजन हीमोग्लोबिन वक्र बाईं ओर खिसकता है।

रक्त में CO2 की मात्रा बढ़ने या इसका pH घटने (H+ आयन की संख्या बढ़ने से) पर O2 के प्रति हीमोग्लोबिन की आकर्षण शक्ति कम हो जाती है। इसी को बोहर प्रभाव (Bohr effect) कहते हैं। यह क्रिया ऊतकों में होती है। इस प्रकार बोहर प्रभाव का योगदान हीमोग्लोबिन को फेंफड़ों से ऊतकों तक ऑक्सीजन के परिवहन को प्रोत्साहित करता है।

फेफड़ों में हीमोग्लोबिन को O2 मिलते ही CO2 के प्रति इसका आकर्षण कम हो जाता है और कार्बोमिनोहीमोग्लोबिन CO2 त्यागकर सामान्य हीमोग्लोबिन बन जाता है। अम्लीय हीमोग्लोबिन H+ आयन मुक्त करता है जो बाइकार्बोनेट (HCO3 ) से मिलकर कार्बोनिक अम्ल बनाते हैं। यह शीघ्र CO2 तथा H2O में टूटकर CO2 को मुक्त कर देता है। इसे हैल्डेन प्रभाव (Haldane effect) कहते हैं। हैल्डेन प्रभाव फेफड़ों में CO2 के बहिष्कार को और ऊतकों में O2 के बहिष्कार को प्रेरित करता है।

 

प्रश्न 12. क्या आपने अव-ऑक्सीयता (हाइपोक्सिया) (न्यून ऑक्सीजन) के बारे में सुना है। इस सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करने की कोशिश कीजिए व साथियों के बीच चर्चा कीजिए।

उत्तर

अव-ऑक्सीयता (Hypoxia): इस स्थिति का सम्बन्ध शरीर की कोशिकाओं/ ऊतकों में ऑक्सीजन के आंशिक दबाव में कमी से होता है। यह ऑक्सीजन की कम आपूर्ति के कारण होता है। वायुमण्डल में पहाड़ों पर 8000 फुट से अधिक ऊँचाई पर वायु में O2 का दबाव कम हो जाता है। इससे सिरदर्द, वमन, चक्कर आना, मानसिक थकान, श्वास लेने में कठिनाई आदि लक्षण प्रदर्शित होते हैं। इसे कृत्रिम हाइपोक्सिया (artificial hypoxia) कहते हैं। यह रोग प्रायः पर्वतारोहियों को हो जाता है। शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी के कारण रक्त की ऑक्सीजन ग्रहण करने की क्षमता प्रभावित होती है। इसे एनीमिया हाइपोक्सिया (anaemia hypoxia) कहते हैं।

 

प्रश्न 13. निम्न के बीच अन्तर करें-

(क) IRV, ERV

(ख) अन्तः श्वसन क्षमता और निःश्वसन क्षमता

(ग) जैव क्षमता तथा फेफड़ों की कुल धारिता

उत्तर

(क) IRV व ERV में अन्तर

IRV

ERV

अन्तःश्वसन सुरक्षित आयतन (inspiratory reserve volume) वायु आयतन की वह अतिरिक्त मात्रा है जो एक व्यक्ति बलपूर्वक अन्तःश्वासित कर सकता है।

निःश्वसन सुरक्षित आयतन (expiratory reserve volume) वायु आयतन की वह अतिरिक्त मात्रा है जो एक व्यक्ति बलपूर्वक निःश्वासित कर सकता है।

यह औसतन 2500 मिली से 3000 मिली होती है।

यह औसतन 1000 मिली से 1100 मिली होता है।

 

(ख) अन्तःश्वसन क्षमता व निःश्वसन क्षमता में अन्तर

अन्तःश्वसन क्षमता (Inspiratory Capacity, IC)

निःश्वसन क्षमता (Expiratory Capacity, EC)

सामान्यत: निःश्वसन उपरान्त वायु की कुल मात्रा (आयतन) जिसे एक व्यक्ति अन्तःश्वासित कर सकता है।

सामान्यतः अन्त: श्वसन उपरान्त वायु की कुल मात्रा (आयतन) जिसे एक व्यक्ति निःश्वासित कर सकता है।

इसमें ज्वारीय आयतन तथा अन्तः श्वसन सुरक्षित आयतन सम्मिलत होते हैं (TV + IRV)।

इसमें ज्वारीय आयतन और निःश्वसन सुरक्षित आयतन सम्मिलित होते हैं (TV + ERV)।

 

(ग) जैव क्षमता तथा फेफड़ों की कुल धारिता में अन्तर

जैव क्षमता (Vital Capacity)

फेफड़ों की कुल धारिता (Total Lung Capacity)

बलपूर्वक निःश्वसन के बाद वायु की वह अधिकतम मात्रा जो एक व्यक्ति अन्तःश्वासित कर सकता है अथवा वायु की वह अधिकतम मात्रा जो एक व्यक्ति बलपूर्वक अन्तःश्वसन के पश्चात् निःश्वासित कर सकता है।

बलपूर्वक निःश्वसन के पश्चात् फेफड़ों में समायोजित (उपस्थित) वायु की कुल मात्रा। इसमें RV, ERV, TV तथा IRV सम्मिलित हैं। यानि जैव क्षमता + अवशिष्ट आयतन (VC + RV)।


प्रश्न 14. ज्वारीय आयतन क्या है? एक स्वस्थ मनुष्य के लिए एक घण्टे के ज्वारीय आयतन (लगभग मात्रा) को आकलित करें।

उत्तर

ज्वारीय आयतन (Tidal Volume, TV): सामान्य श्वसन क्रिया के समय प्रति अन्तःश्वासित या निःश्वासित वायु का आयतन ज्वारीय आयतन कहलाता है। यह लगभग 500 मिली होता है अर्थात् स्वस्थ मनुष्य लगभग 6000 से 8000 मिली वायु प्रति मिनट की दर से अन्तःश्वासित/निःश्वासित कर सकता है।

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