NCERT Solutions for Chapter 2 जीव जगत का वर्गीकरण Class 11 Biology

Chapter 2 जीव जगत का वर्गीकरण NCERT Solutions for Class 11 Biology are prepared by our expert teachers. By studying this chapter, students will be to learn the questions answers of the chapter. They will be able to solve the exercise given in the chapter and learn the basics. It is very helpful for the examination.

एन.सी.आर.टी. सॉलूशन्स for Chapter 2 जीव जगत का वर्गीकरण Class 11 Biology

प्रश्न 1. वर्गीकरण की पद्धतियों में समय के साथ आए परिवर्तनों की व्याख्या कीजिए।

उत्तर

वर्गीकरण पद्धति (classification system) जीवों को उनके लक्षणों की समानता और असमानता के आधार पर समूह तथा उपसमूहों में व्यवस्थित करने की प्रक्रिया है। प्रारम्भिक पद्धतियाँ कृत्रिम थीं। उसके पश्चात् प्राकृतिक तथा जातिवृतीय वर्गीकरण पद्धतियों का विकास हुआ।

  1. कृत्रिम वर्गीकरण पद्धति (Artificial Classification System): इस प्रकार के वर्गीकरण में वर्धी लक्षणों (vegetative characters) या पुमंग (androecium) के आधार पर पुष्पी पौधों का वर्गीकरण किया गया है। कैरोलस लीनियस (Carolus Linnaeus) ने पुमंग के आधार पर वर्गीकरण प्रस्तुत किया था। परन्तु, कृत्रिम लक्षणों के आधार पर किए गए वर्गीकरण में जिन पौधों के समान लक्षण थे उन्हें अलग-अलग तथा जिनके लक्षण असमान थे उन्हें एक ही समूह में रखा गया था। यह वर्गीकरण की दृष्टि से सही नहीं था। ये वर्गीकरण आजकल प्रयोग नहीं होते।
  2. प्राकृतिक वर्गीकरण पद्धति (Natural Classification System): प्राकृतिक वर्गीकरण पद्धति में पौधों के सम्पूर्ण प्राकृतिक लक्षणों को ध्यान में रखकर उनका वर्गीकरण किया जाता है। पौधों की समानता निश्चित करने के लिए उनके सभी लक्षणों - विशेषतया पुष्प के लक्षणों का अध्ययन किया जाता है। इसके अतिरिक्त पौधों की आंतरिक संरचना, जैसे शारीरिकी, श्रौणिकी एवं फाइटोकेमेस्ट्री (phytochemistry) आदि को भी वर्गीकरण करने में सहायक माना जाता है। आवृतबीजियों का प्राकृतिक लक्षणों पर आधारित वर्गीकरण जॉर्ज बेन्थम (George Bentham) तथा जोसेफ डाल्टन हूकर (Joseph Dalton Hooker) द्वारा सम्मिलित रूप में प्रस्तुत किया गया जिसे उन्होंने जेनेरा प्लेंटेरम (Genera Plantarum) नामक पुस्तक में प्रकाशित किया। यह वर्गीकरण प्रायोगिक (practical) कार्यों के लिए अत्यन्त सुगम तथा प्रचलित वर्गीकरण है।
  3. जातिवृत्तीय वर्गीकरण पद्धति (Phylogenetic Classification System): इस प्रकार के वर्गीकरण में पौधों को उनके विकास और आनुवंशिक लक्षणों को ध्यान में रखकर वर्गीकृत किया गया है। विभिन्न कुलों एवं वर्गों को इस प्रकार व्यवस्थित किया गया है जिससे उनके वंशानुक्रम का ज्ञान हो। इस प्रकार के वर्गीकरण में यह माना जाता है कि एक प्रकार के टैक्सा (taxa) का विकास एक ही पूर्वजों (ancestors) से हुआ है। वर्तमान में हम अन्य स्रोतों से प्राप्त सूचना को वर्गीकरण की समस्याओं को सुलझाने में प्रयुक्त करते हैं। जैसे कम्प्यूटर द्वारा अंक और कोड का प्रयोग, क्रोमोसोम्स का आधार, रासायनिक अवयवों का भी उपयोग पादप वर्गीकरण के लिए किया गया है।


प्रश्न 2. निम्नलिखित के बारे में आर्थिक दृष्टि से दो महत्वपूर्ण उपयोगों को लिखिए-

(a) परपोषी बैक्टीरिया,

(b) आद्य बैक्टीरिया

उत्तर

(a) परपोषी बैक्टीरिया (Heterotrophic Bacteria): परपोषी बैक्टीरिया का उपयोग दूध से दही बनाने, प्रतिजीवी (antibiotic) उत्पादन में तथा लेग्युमीनेसी कुल के पौधों की जड़ों में नाइट्रोजन स्थिरीकरण (nitrogen fixation) में किया जाता है।

(b) आद्य बैक्टीरिया (Archaebacteria): आद्य बैक्टीरिया का उपयोग गोबर गैस (biogas) निर्माण तथा खानों (mines) में किया जाता है।


प्रश्न 3. डाइएटम की कोशिका भित्ति के क्या लक्षण है?

उत्तर

डाइएटम की कोशिका भित्ति में सिलिका (silica) पाई जाती है। कोशिका भित्ति दो भागों में. विभाजित होती है। ऊपर की एपिथीका (epitheca) तथा नीचे की हाइपोथीका (hypotheca)। ये दोनों साबुनदानी की तरह लगे होते हैं। डाइएटम की कोशिका भित्तियाँ एकत्र होकर डाइएटोमेसियस अर्थ (diatomaceous earth) बनाती हैं।


प्रश्न 4. शैवाल पुष्पन (algal bloom) तथा 'लाल तरंगें (red tides) क्या दर्शाती हैं?

उत्तर

शैवालों की प्रदूषित जल में अत्यधिक वृद्धि शैवाल पुष्पन (algal bloom) कहलाती है। यह मुख्य रूप से नीली - हरी शैवाल द्वारा होती है। डायनोफ्लैजीलेट्स जैसे गोनेयूलैक्स के तीव्र समुद्र के जल का लाल होना लाल तरंगें (red tide) कहलाता है।


प्रश्न 5. वाइरस से वाइरॉयड कैसे भिन्न होते हैं?

उत्तर

वाइरस तथा वाइरॉयड में निम्नलिखित अन्तर पाए जाते हैं—

वाइरस

वाइरॉयड

यह न्यूक्लियोप्रोटीन (nucleoprotein) का बना होता है।

यह RNA ( राइबोन्यूक्लिक एसिड) का बना होता है।

इसमें न्यूक्लिक अम्ल DNA अथवा RNA हो सकता है।

इसमें केवल RNA पाया जाता हैं।

प्रोटीन का कवच (capsid) पाया जाता है।

प्रोटीन का कवच (capsid) अनुपस्थित होता है।

इसका आकार बड़ा होता है।

इसका आकार छोटा होता है।

वाइरस सभी जीवों को संक्रमित कर सकते हैं।

वाइरॉयड केवल पौधों को संक्रमित करते हैं।

 

प्रश्न 6. प्रोटोजोआ के चार प्रमुख समूहों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।

उत्तर

प्रोटोजोआ जन्तु

जगत प्रोटिस्टा (protista) के अन्तर्गत आने वाले यूकैरियोटिक, सूक्ष्मदर्शीय, परपोषी सरलतम जन्तु हैं। ये एककोशिकीय होते हैं। कोशिका में समस्त जैविक क्रियाएँ सम्पन्न होती हैं। ये परपोषी होते हैं। कुछ प्रोटोजोआ परजीवी होते हैं।

इन्हें चार प्रमुख समूहों में बाँटा जाता है—

(क) अमीबीय प्रोटोजोआ (Amoebic Protozoa): ये स्वच्छ जलीय या समुद्री होते हैं। कुछ नम मृदा में भी पाए जाते हैं। समुद्री प्रकार के अमीबीय प्रोटोजोआ की सतह पर सिलिका का कवच होता है। ये कूटपाद (pseudopodia) की सहायता से प्रचलन तथा पोषण करते हैं। एण्टअमीबा जैसे कुछ अमीबीय प्रोटोजोआ परजीवी होते हैं। मनुष्य में एण्टअमीबा हिस्टोलाइटिका के कारण अमीबीय पेचिश रोग होता है।

(ख) कशाभी प्रोटोजोआ (Flagellate Protozoa): इस समूह के सदस्य स्वतन्त्र अथवा परजीवी होते हैं। इनके शरीर पर रक्षात्मक आवरण पेलिकल होता है। प्रचलन तथा पोषण में कशाभ (flagella) सहायक होता है। ट्रिपैनोसोमा (Trypanosoma) परजीवी से निद्रा रोग, लीशमानिया कालाजार रोग होता है।

(ग) पक्ष्माभी प्रोटोजोआ (Ciliate Protozoa): इस समूह के सदस्य जलीय होते हैं एवं इनमें अत्यधिक पक्ष्माभ (cilia) पाए जाते हैं। शरीर दृढ़ पेलिकल से घिरा होता है। इनमें स्थायी कोशिकामुख (cytostome) व कोशिकाद (cytopyge) पाई जाती है। पक्ष्माभों में लयबद्ध गति के कारण भोजन कोशिकामुख में पहुँचता है।

उदाहरण– पैरामीशियम (Paramecium)।

(घ) स्पोरोजोआ प्रोटोजोआ (Sporo zoans): ये अन्तःपरजीवी होते हैं। इनमें प्रचलनांग का अभाव होता है। कोशिका पर पेलिकल का आवरण होता है। इनके जीवन चक्र में संक्रमण करने योग्य बीजाणुओं का निर्माण होता है। मलेरिया परजीवी — प्लाज्मोडियम (Plasmodium) के कारण कुछ दशक पूर्व होने वाले मलेरिया रोग से मानव आबादी पर कुप्रभाव पड़ता था।


प्रश्न 7. पादप स्वपोषी हैं। क्या आप ऐसे कुछ पादपों को बता सकते हैं जो आंशिक रूप से परपोषित हैं?

उत्तर

कीटभक्षी पौधे (insectivorous plants) जैसे—यूट्रीकुलेरिया (Utricularia), ड्रोसेरा (Drosera), नेपेन्थीस (Nepenthes) आदि आंशिक परपोषी (partially heterotrophic) हैं। ये पौधे हरे तथा स्वपोषी हैं परन्तु नाइट्रोजन के लिए कीटों (insects) पर निर्भर रहते हैं।


प्रश्न 8. शैवालांश (phycobiont) तथा कवकांश (mycobionts) शब्दों से क्या पता लगता है?

उत्तर

लाइकेन (lichen) में शैवाल व कवक सहजीवी रूप में रहते हैं। इसमें शैवाल वाले भाग को शैवालांश (phycobiont) तथा कवक वाले भाग को कवकांश (mycobiont) कहते हैं। शैवालांश भोजन निर्माण करता है जबकि कवकांश सुरक्षा एवं जनन में सहायता करता है।


प्रश्न 9. कवक (Fungi) जगत के वर्गों का तुलनात्मक विवरण निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत कीजिए-

(a) पोषण की विधि

(b) जनन की विधि

उत्तर

(a) पोषण की विधि

फाइकोमाइसीटीज

एस्कोमाइसीटीज

बेसीडीयोमाइसीटीज

ड्यूटीरोमाइसीटीज

मृतोपजीवी या पूर्ण परजीवी

मृतोपजीवी, परजीवी, डीकम्पोजर्स या कोपरोफिलस

मृतोपजीवी या परजीवी

मृतोपजीवी, परजीवी या डीकम्पोजर्स

 

(b) जनन की विधि

फाइकोमाइसीटीज

एस्कोमाइसीटीज

बेसीडीयोमाइसीटीज

ड्यूटीरोमाइसीटीज

अलैंगिक जनन (asexual reproduction) जूस्पोर (zoospores) या अचल एप्लैनेस्पोर द्वारा होता है।

लैंगिक जनन (sexual reproduction) युग्मकधानीय सम्पर्क (gametangial contact), युग्मकधानीय संयुग्मन (gametangial copulation) द्वारा होता है।

 

अलैंगिक जनन कोनिडिया (conidia) द्वारा होता है तथा लैंगिक जनन एसाई (asci) के अन्दर बनने वाले एस्कोस्पोर (ascospore) द्वारा होता है।

अलैंगिक स्पोर नहीं बनते। लैंगिक जनन प्लाज्मोगैमी (plasmogamy) द्वारा होता है जिससे बेसिडीया (basidia) पर बाह्य रूप में बेसीडियोस्पोर (basidiospore) बनते हैं।

अलैंगिक जनन मुख्य रूप से पाया जाता है। यह कोनिडीया (conidia) द्वारा होता है। लैंगिक जनन अनुपस्थित होता है।


प्रश्न 10. यूग्लीनॉइड के विशिष्ट चारित्रिक लक्षण कौन-कौन से है?

उत्तर

यूग्लीनॉइड के चारित्रिक लक्षण:

  1. अधिकांश स्वच्छ, स्थिर जल (stagnant fresh water) में पाए जाते हैं।
  2. इनमें कोशिका भित्ति का अभाव होता है।
  3. कोशिका भित्ति के स्थान पर रक्षात्मक प्रोटीनयुक्त लचीला आवरण - पेलिकल (pellicle) पाया जाता है।
  4. इनमें 2 कशाभ (flagella) होते हैं, एक छोटा तथा दूसरा बड़ा कशा|
  5. इनमें क्लोरोप्लास्ट पाया जाता है।
  6. सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में ये प्रकाश संश्लेषण क्रिया द्वारा भोजन निर्माण कर लेते हैं और प्रकाश के अभाव में जन्तुओं की भाँति सूक्ष्मजीवों का भक्षण करते हैं अर्थात् परपोषी की तरह व्यवहार करते हैं। उदाहरण- यूग्लीना (Euglena)।

 

प्रश्न 11. संरचना तथा आनुवंशिक पदार्थ की प्रकृति के सन्दर्भ में वाइरस का संक्षिप्त विवरण दीजिए। वाइरस से होने वाले चार रोगों के नाम भी लिखिए।

उत्तर

वाइरस दो प्रकार के पदार्थों के बने होते हैं- प्रोटीन (protein) और न्यूक्लिक एसिड (nucleic acid)।

प्रोटीन का खोल (shell), जो न्यूक्लिक एसिड के चारों ओर रहता है, उसे कैप्सिड (capsid) कहते हैं। प्रत्येक कैप्सिड छोटी-छोटी इकाइयों का बना होता है, जिन्हें कैप्सोमियर्स (capsomeres) कहा जाता है। ये कैप्सोमियर्स न्यूक्लिक एसिड कोर के चारों ओर एक जिओमेट्रिकल फैशन (geometrical fashion) में होते हैं। न्यूक्लिक एसिड या तो RNA या DNA के रूप में होता है।

पौधों तथा कुछ जन्तुओं के वाइरस का न्यूक्लिक एसिड RNA (ribonucleic acid) होता है, जबकि अन्य जन्तु वाइरसों में यह DNA (deoxyribonucleic acid) के रूप में होता है।

वाइरस का संक्रमण करने वाला भाग आनुवंशिक पदार्थ (genetic material) है। वाइरस आनुवंशिक पदार्थ निम्न प्रकार का हो सकता है-

  1. द्विरज्जुकीय DNA (double stranded DNA); जैसे – T2, T4, बैक्टीरियोफेज, हरपिस वाइरस, हिपेटाइटिस-B I
  2. एक रज्जुकी DNA (single stranded DNA) जैसे - कोलीफेज ф× 174.
  3. द्विरज्जुकीय RNA (double stranded RNA) जैसे – रियोवाइरस, ट्यूमर वाइरस ।
  4. एक रज्जुकीय RNA (single stranded RNA) जैसे – TMV, खुरपका - मुँहपका वाइरस, पोलियो वाइरस, रिट्रोवाइरस।

वाइरस से होने वाले रोग

एड्स (AIDS), सार्स, (SARS), बर्ड फ्लू, डेंगू, पोटेटो मोजेक।

 

प्रश्न 12. अपनी कक्षा में इस शीर्षक "क्या वाइरस सजीव हैं अथवा निर्जीव", पर चर्चा करें।

उत्तर

वाइरस (Virus) - इनकी खोज सर्वप्रथम इवानोवस्की (Iwanovsky, 1892), ने की थी। ये प्रूफ फिल्टर से भी छन जाते हैं। एम०डब्ल्यू० बीजेरिन्क (M. W. Beijerinck, 1898) ने पाया कि संक्रमित (रोगग्रस्त) पौधे के रस को स्वस्थ पौधो की पत्तियों पर रगड़ने से स्वस्थ पौधे भी रोगग्रस्त हो जाते हैं। इसी आधार पर इन्हें तरल विष या संक्रामक जीवित तरल कहा गया। डब्ल्यू०एम० स्टैनले (W.M. Stanley, 1935) ने वाइरस को क्रिस्टलीय अवस्था में अलग किया। डार्लिंगटन (Darlington, 1944) ने खोज की कि वाइरस न्यूक्लियोप्रोटीन्स से बने होते हैं। वाइरस को सजीव तथा निर्जीव के मध्य की कड़ी (connecting link) मानते हैं।

वाइरस के सजीव लक्षण

  1. वाइरस प्रोटीन तथा न्यूक्लिक अम्ल (DNA या RNA) से बने होते हैं।
  2. जीवित कोशिका के सम्पर्क में आने पर ये सक्रिय हो जाते हैं। वाइरस का न्यूक्लिक अम्ल पोषक कोशिका में पहुँचकर कोशिका की उपापचयी क्रियाओं पर नियन्त्रण स्थापित करके स्वद्विगुणन करने लगता है और अपने लिए आवश्यक प्रोटीन का संश्लेषण भी कर लेता है। इसके फलस्वरूप विषाणु की संख्या की वृद्धि अर्थात् जनन होता है।
  3. वाइरस में प्रवर्धन केवल जीवित कोशिकाओं में ही होता है।
  4. इनमें उत्परिवर्तन (mutation) के कारण आनुवंशिक विभिन्नताएँ उत्पन्न होती हैं।
  5. वाइरस ताप, रासायनिक पदार्थ, विकिरण तथा अन्य उद्दीपनों के प्रति अनुक्रिया दर्शाते हैं।

वाइरस के निर्जीव लक्षण

  1. इनमें एन्जाइम्स के अभाव में कोई उपापचयी क्रिया स्वतन्त्र रूप से नहीं होती।
  2. वाइरस केवल जीवित कोशिकाओं में पहुँचकर ही सक्रिय होते हैं। जीवित कोशिका के बाहर ये निर्जीव रहते हैं।
  3. वाइरस में कोशा अंगक तथा दोनों प्रकार के न्यूक्लिक अम्ल (DNA और RNA) नहीं पाए जाते।
  4. वाइरस को रवों (crystals) के रूप में निर्जीवों की भाँति सुरक्षित रखा जा सकता है। रवे (crystal) की अवस्था में भी इनकी संक्रमण शक्ति कम नहीं होती ।
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