Chapter 5 लोकतांत्रिक अधिकार Revision Notes Class 9 राजनीति विज्ञान

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Chapter 5 लोकतांत्रिक अधिकार Revision Notes Class 9 राजनीति विज्ञान

Chapter 5 लोकतांत्रिक अधिकार Notes Class 9 Loktantrik Rajniti

Topics in the Chapter

  • अमेरिका द्वारा मानवाधिकारों का उल्लंघन
  • सऊदी अरब में मानवाधिकारों का उल्लंघन
  • यूगोस्लाविया (कोसोवो) में नागरिक मानवाधिकारों का उल्लंघन
  • लोकतंत्र में अधिकार
  • भारतीय संविधान में अधिकार
  • समानता का अधिकार
  • स्वतंत्रता का अधिकार
  • शोषण के खिलाफ अधिकार
  • धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
  • सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार
  • संवैधानिक उपचार का अधिकार
  • अधिकारों का बढ़ता दायरा
  • दक्षिण अफ्रीका के संविधान में नागरिकों को दिये गये कई तरह के नए अधिकार

अधिकारों के बिना जीवन

अमेरिका द्वारा मानवाधिकारों का उल्लंघन

  • अमेरिकी फौज ने दुनिया भर के विभिन्न स्थानों से 600 लोगों को चुपचाप पकड़ लिया। इन लोगों को गुआंतानामो बे स्थित एक जेल में डाल दिया । क्यूबा के निकट स्थित इस टापू पर अमेरिकी नौ सेना का कब्जा है।
  • अमेरिकी सरकार कहती है कि ये लोग अमेरिका के दुश्मन हैं और न्यूयार्क सितम्बर 2001 के हमलों से इनका सम्बन्ध है।
  • इन कैदियों के परिवारवालों, मीडिया के लोगों और यहाँ तक कि संयुक्त राष्ट्र के प्रतिनिधियों को भी उनसे मिलने की इजाजत नहीं दी जाती। अमेरिकी सेना ने उन्हें गिरफ्तार किया, उनसे पूछताछ की और उसी ने फैसला किया कि किसे जेल में डालना है किसे नहीं। न तो किसी भी जज के सामने मुकदमा चला और ना ही ये कैदी अपने देश की अदालतों का दरवाजा खटखटा सके।
  • एक अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन 'एमनेस्टी इण्टरनेशनल' ने गुआंतानामो बे के कैदियों की स्थिति के बारे में सूचनाएँ इकट्ठी कीं और बताया कि उनके साथ ज्यादती की जा रही है । उनके साथ अमेरिकी कानूनों के अनुसार भी व्यवहार नहीं किया जा रहा है।
  • जिन कैदियों को अधिकारिक रूप से निर्दोष करार दिया गया था उनको भी छोड़ा नहीं गया। संयुक्त राष्ट्र द्वारा करायी गयी एक स्वतंत्र जाँच से भी इन बातों की पुष्टि हुई। संयुक्त राष्ट्रसंघ के महासचिव ने कहा कि गुआंतानामो बे जेल को बन्द कर देना चाहिए। अमेरिकी सरकार ने इन अपीलों को मानने से इंकार कर दिया ।


सऊदी अरब में मानवाधिकारों का उल्लंघन

  • देश में एक वंश का शासन चलता है और राजा या शाह को चुनने या बदलने में लोगों की कोई भूमिका नहीं होती। 
  • शाह ही विधायिका और कार्यपालिका के लोगों का चुनाव करते हैं। जजों की नियुक्ति भी शाह करते हैं और वे उनके फैसलों को पलट भी सकते हैं।
  • लोग कोई राजनैतिक दल या संगठन नहीं बना सकते, मीडिया शाह के खिलाफ कोई खबर नहीं दे सकती।
  • कोई धार्मिक आजादी नहीं है। सिर्फ मुसलमान ही यहाँ के नागरिक हो सकते हैं। यहाँ रहने वाले दूसरे धर्मों के लोग घर के अन्दर ही पूजा-पाठ कर सकते हैं। उनके सार्वजनिक/धार्मिक अनुष्ठानों पर रोक है।
  • औरतों को वैधानिक रूप से मर्दों से कमतर का दर्जा मिला हुआ है और उन पर कई तरह की सार्वजनिक पाबंदियां लगी है। मर्दों को जल्दी ही स्थानीय निकाय के चुनावों के लिए मताधिकार मिलने वाला है  जबकि औरतों को यह अधिकार नहीं मिलेगा।


यूगोस्लाविया (कोसोवो) में नागरिक मानवाधिकारों का उल्लंघन

  • कोसोवो पुराने यूगोस्लाविया का एक प्रान्त था जो अब टूटकर अलग हो गया है। इस प्रदेश में अल्बानियाई लोगों की संख्या बहुत ज्यादा थी पर पूरे देश के लिहाज से सर्ब लोग बहुसंख्यक थे ।
  • उग्र सर्ब राष्ट्रवाद के भक्त मिलोशेविक ने यहाँ के चुनावों में जीत हासिल की। उनकी सरकार ने कोसोवो के अल्बानियाई लोगों के प्रति बहुत ही कठोर व्यवहार किया। उनकी इच्छा थी कि देश पर सर्ब लोगों का ही पूरा नियंत्रण हो। अनेक सर्ब नेताओं का मानना था कि अल्बानियाई लोग जैसे अल्पसंख्यक या तो देश छोड़ कर चले जायें या सर्बों का प्रभुत्व स्वीकार कर लें ।
  • 74 वर्षीय बतीशा होक्सा अपनी रसोई में अपने 77 वर्षीय पति इजेत के साथ बैठी आग ताप रही थी तभी उनका दरवाजा खोलकर पाँच-छह सैनिक दनदनाते हुए अंदर आए और पूछा, "बच्चे कहाँ हैं?" उन्होंने इजेत की छाती में तीन गोलियां दाग दीं। जब उसका पति मर गया, सैनिकों ने उसकी अंगुली से शादी की अँगूठी उतार ली और उसे भाग जाने को कहा। बतीशा अभी दरवाजे से बाहर भी नहीं निकली थी कि उन्होंने घर में आग लगा दी।
  • उन हजारों अल्बानियाई लोगों के साथ हुए बर्ताव में से एक की सच्चाई है । जातीय पूर्वाग्रहों के चलते हाल के वर्षों में जो सबसे बड़ नरसंहार हुए हैं, उनमें यह सम्भवतः सबसे भयंकर था ।
  • आखिरकार मिलोशेविक की सत्ता गयी और बाद में अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय में उन पर मानवता के खिलाफ अपराध का मुकदमा चला।


लोकतंत्र में अधिकार

हम जो दावे करते है वे तार्किक भी होने चाहिए। इसे उस पूरे समाज से भी स्वीकृति मिलनी चाहिए जिसमें हम रहते हैं। समाज जिस चीज को सही मानता है वही हमारे अधिकार होते हैं।

  • लोकतंत्र में भरण-पोषण का अधिकार अनिवार्य है।
  • लोकतंत्र में प्रत्येक नागरिक को वोट देने और चुनाव लड़ कर प्रतिनिधि चुने जाने का अधिकार है।
  • लोकतांत्रिक चुनाव हों इसके लिए लोगों को अपने विचारों को व्यक्त करने की, राजनैतिक पार्टी बनाने और राजनैतिक गतिविधियों की आजादी होना जरूरी है।
  • किसी अधिकार बहुसंख्यकों के दमन से अल्पसंख्यकों की रक्षा करते हैं। ये इस बात की व्यवस्था करते हैं कि बहुसंख्यक लोकतांत्रिक व्यवस्था में मनमानी न करें। अधिकार स्थितियों के बिगड़ने पर एक तरह की गारण्टी जैसे है।
  • सरकार को नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए लेकिन कई बार चुनी हुई सरकार भी अपने ही नागरिकों के अधिकारों पर हमला करती है या सम्भव है , वह नागरिक के अधिकारों की रक्षा न करे ।
इसलिए कुछ अधिकरों को सरकार से भी ऊँचा दर्जा दिए जाने की जरूरत है ताकि सरकार भी उनका उल्लंघन न कर सके। अधिकांश लोकतांत्रिक शासन व्यवस्थाओं में नागरिकों के अधिकार संविधान में लिखित रूप में दर्ज होते हैं।


भारतीय संविधान में अधिकार

भारतीय संविधान हमें 6 मौलिक अधिकार प्रदान करता है। ये अधिकार भारत के संविधान की महत्वपूर्ण बुनियादी विशेषता है।

भारतीय संविधान द्वारा दिये गये मौलिक अधिकार हैं:

  1. समानता का अधिकार,
  2. स्वतंत्रता का अधिकार,
  3. शोषण के खिलाफ अधिकार,
  4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार,
  5. सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार,
  6. संवैधानिक उपचार का अधिकार


समानता का अधिकार

समानता के अधिकार का अर्थ है सब पर कानून समान रूप से लागू होता है । किसी व्यक्ति का दर्जा या पद, चाहे जो हो सरकार कानून से संरक्षण के मामले में समानता के अधिकार से वंचित नहीं कर सकती। इसे कानून का राज भी कहते है।

  • कानून का राज किसी भी लोकतंत्र की बुनियाद है। इसका अर्थ हुआ कि कोई भी व्यक्ति कानून के ऊपर नहीं है । किसी राजनेता, सरकारी अधिकारी या सामान्य नागरिक में कोई अन्तर नहीं किया जा सकता है।
  • सरकार किसी से भी केवल उसके धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकती।
  • दुकान, होटल और सिनेमाघरों जैसे सार्वजनिक स्थल में किसी के प्रवेश को रोका नहीं जा सकता। इसी प्रकार सार्वजनिक कुएँ, तालाब, स्नानघाट, सड़क, खेल के मैदान और सार्वजनिक भवनों के इस्तेमाल से किसी को वंचित नहीं किया जा सकता ।
  • सरकारी नौकरियों पर भी यही सिद्धान्त लागू होता है । सरकार में किसी पद पर नियुक्ति या रोजगार के मामले में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समानता है। उपरोक्त आधारों पर किसी नागरिक को रोजगार के अयोग्य नहीं करार दिया जा सकता या उसके साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता।
  • संविधान सामाजिक भेदभाव के एक बहुत प्रबल रूप, छुआछूत का जिक्र करता है और सरकार को निर्देश देता है कि वह इसे समाप्त करे। किसी भी तरह के छुआछूत को कानूनी रूप से गलत करार दिया गया है।


स्वतंत्रता का अधिकार

स्वतंत्रता का अधिकार का मतलब है, हमारे मामलों में किसी किस्म का दखल न होना । न सरकार का, न व्यक्तियों का। 

भारतीय संविधान ने प्रत्येक नागरिक को कई स्वतंत्रताएँ दी हैं:

  1. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
  2. संगठन और संघ बनाने की स्वतंत्रता
  3. शांतिपूर्ण ढंग से जमा होने की स्वतंत्रता
  4. देश में कहीं भी आने-जाने की स्वतंत्रता
  5.  कोई भी काम करने, धंधा चुनने या पेशा करने की स्वतंत्रता
  6. देश के किसी भी भाग में रहने-बसने की स्वतंत्रता


शोषण के खिलाफ अधिकार

  • भारतीय संविधान मनुष्य जाति के अवैध व्यापार, किसी किस्म के 'बेगार' या जबरन काम लेने का और बाल मजदूरी का निषेध करता है।


धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार

  • हर किसी को अपना धर्म मानने, उस पर आचरण करने और उसका प्रचार करने का अधिकार है।


सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार

भारतीय संविधान ने अल्पसंख्यकों को सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार उपलब्ध कराये हैं जो इस प्रकार हैं:

  1. सभी अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद का शैक्षिक संस्थान स्थापित करने और चलाने का अधिकार है।
  2. किसी भी सरकारी या सरकारी अनुदान पाने वाले शैक्षिक संस्थान में किसी नागरिक को धर्म या भाषा के आधार पर दाखिला लेने से नहीं रोका जा सकता।
  3. नागरिकों मे विशिष्ट भाषा या संस्कृति वाले किसी भी समूह को अपनी भाषा और संस्कृति को बचाने का अधिकार है।


संवैधानिक उपचार का अधिकार

संविधान में दिये गये मौलिक अधिकार महत्वपूर्ण है, इसलिए इन्हें लागू किया जा सकता है। हमें उपर्युक्त अधिकारों को लागू कराने की माँग करने का अधिकार है, हमारे पास उन्हें लागू कराने के उपाय हैं। इसे संवैधानिक उपचार का अधिकार कहा जाता है ।

यह अधिकार अन्य अधिकारों को प्रभावी बनाता है। सम्भव है कि कई बार हमारे अधिकारों का उल्लंघन कोई और नागरिक या कोई संस्था या फिर स्वयं सरकार ही कर रही हो। पर जब इनमें से हमारे किसी भी अधिकार का उल्लंघन हो रहा हो तो हम अदालत के जरिए उसे रोक सकते हैं, इस समस्या का निदान पा सकते हैं। अगर मौलिक अधिकारों का मामला हो तो हम सीधे सर्वोच्च न्यायालय या किसी राज्य के उच्च न्यायालय में जा सकते हैं। इसी कारण डॉ. अम्बेडकर ने संवैधानिक उपचार के अधिकार को हमारे संविधान की 'आत्मा और हृदय' कहा था ।

न्यायालय भी व्यक्तियों या निजी संस्थाओं के खिलाफ मौलिक अधिकार के मामले में दखल दे सकती है। सर्वोच्च या उच्च न्यायालयों को मौलिक अधिकार लागू कराने के मामले में निर्देश देने, आदेश या रिट जारी करने का अधिकार है।

मौलिक अधिकारों के हनन के मामले में कोई भी पीड़ित व्यक्ति न्याय पाने के लिए तुरन्त अदालत में जा सकता है । पर अब, अगर मामला सामाजिक या सार्वजनिक हित का हो तो ऐसे मामलों में मौलिक अधिकारों के उल्लंघन को लेकर कोई भी व्यक्ति अदालत में जा सकता है । ऐसे मामलों को 'जनहित याचिका' के माध्यम से उठाया जाता है । इसमें कोई भी व्यक्ति या समूह सरकार के किसी कानून या काम के खिलाफ सार्वजनिक हितों की रक्षा के लिए सर्वोच्च न्यायालय या किसी उच्च न्यायालय में जा सकता है । ऐसे मामले जज के नाम पोस्टकार्ड पर लिखी अर्जी के माध्यम से भी उठाए जा सकते हैं। अगर न्यायाधीशों को लगे कि सचमुच इस मामले में सार्वजनिक हितों पर चोट पहुँच रही है तो मामले को विचार के लिए स्वीकार कर सकते हैं।


अधिकारों का बढ़ता दायरा

मौलिक अधिकार बाकी सारे अधिकारों के स्रोत है। हमारा संविधान और हमारे कानून हमें और बहुत सारे अधिकार देते हैं।

साल-दर-साल अधिकारों का दायरा बढ़ता गया है। समय-समय पर अदालतों ने ऐसे फैसले दिए हैं जिनसे अधिकारों का दायरा बढ़ता गया है।

  • अब स्कूली शिक्षा हर भारतीय का अधिकार बन चुकी है। 14 वर्ष तक के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा दिलाना सरकार की जिम्मेदारी है।
  • संसद ने नागरिकों को सूचना का अधिकार देने वाला कानून भी पास कर दिया है। हमें सरकारी दफ्तरों से सूचना माँगने और पाने का अधिकार है।
  • हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने जीवन के अधिकार को नया विस्तार देते हुए उसमें भोजन के अधिकार को भी शामिल कर दिया है।
  • सम्पत्ति रखने का अधिकार और चुनाव में वोट देने का अधिकार एक महत्वपूर्ण संवै धानिक अधिकार है।


दक्षिण अफ्रीका के संविधान में नागरिकों को दिये गये कई तरह के नए अधिकार

निजता का अधिकार: इसके कारण नागरिकों और उनके घरों की तलाशी नहीं ली जा सकती, उनके फोन टेप नहीं किये जा सकते, उनकी चिट्ठी-पत्री को खोलकर पढ़ा नहीं जा सकता ।

पर्यावरण का अधिकार: ऐसा पर्यावरण पाने का अधिकार जो नागरिकों के स्वास्थ्य या कुशलक्षेम के प्रतिकूल न हो।

पर्याप्त आवास पाने का अधिकार ।

स्वास्थ्य सेवाओं, पर्याप्त भोजन और पानी तक पहुँच का अधिकार; किसी को भी आपात चिकित्सा देने से मना नहीं किया जा सकता।

दुनिया भर के मानवाधिकार कार्यकर्ता अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिज्ञा पत्र को एक मानक मानवाधिकार के रूप में देखते हैं। इनमें शामिल हैं:

  • काम करने का अधिकार: हर किसी को काम करने, अपनी जीवका का उपार्जन करने का अवसर। काम करने के सुरक्षित और स्वास्थ्यप्रद माहौ ल का अधिकार तथा मजदूरों और उनके परिवारों के लिए सम्मानजनक जीवन-स्तर लायक उचित मजदूरी का अधिकार।
  • समुचित जीवन: स्तर जीने का अधिकार में पर्याप्त भोजन, कपड़ा और मकान का अधिकार शामिल है । 
  • सामाजिक सुरक्षा और बीमा अधिकार ।
  • स्वास्थ्य का अधिकार: बीमारी के समय इलाज, प्रजनन काल में महिलाओं का खास ख्याल और महामारियों से रोकथाम ।
  • शिक्षा का अधिकार: मुफ्त एवं अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा, उच्चतर शिक्षा तक समान पहुँच।

महत्वपूर्ण शब्द:

  • एमनेस्टी इण्टरनेशनल: वह संगठन जो विश्व में मौलिक अधिकारों के हनन से जुड़ी खबरें और प्रतिवेदन उजागर करता है।
  • सजातीय समूह: एक ही पूर्वज की सन्तान, जो खुद को एक ही पूर्वजों का कहकर पुकारते है ।
  • सम्मन: न्यायालय का वह आज्ञा - पत्र जिसमें किसी को न्यायालय में उपस्थित होने की आज्ञा दी जाती है।
  • याचिका: वह पत्र जिसमें किसी से कुछ याचना की गई हो।
  • दलित: जो दबाकर बहुत हीन कर दिया गया हो।

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