Extra Questions for Class 9 कृतिका Chapter 4 माटी वाली - विद्यासागर नौटियाल Hindi

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Extra Questions for Class 9 कृतिका Chapter 4 माटी वाली - विद्यासागर नौटियाल Hindi

Chapter 4 माटी वाली Kritika Extra Questions for Class 9 Hindi

अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. आजकल घरों में से कौन बरतन दिखाई नहीं देते हैं और उनकी जगह किस धातु के बरतन आ गए हैं ?

उत्तर

आजकल घरों में पीतल, काँसे और ताँबे के बरतन दिखाई नहीं देते हैं। किसी-किसी के घर में सजावट के रूप में यह बरतन दिखाई देते हैं। आजकल अधिकतर घरों में स्टील, काँच और ऐल्युमीनियम ने बरतन दिखाई देते हैं।


प्रश्न 2. टिहरी शहर में आपाधापी कब मची थी ?

उत्तर

जब टिहरी बाँध की दो सुरंगों को बंद कर दिया गया तो शहर में पानी भरने लगा। शहरवासी अपने घरों को छोड़कर वहाँ से भागने लगे। इस कारण सारे शहर में आपाधापी मच गई थी।


प्रश्न 3. ठकुराइन ने बुढ़िया को भाग्यवान क्यों कहा था ?

उत्तर

जब ठकुराइन के घर ‘माटी वाली’ मिट्टी का कनस्तर लेकर पहुँची तब चाय का समय हो चुका था। भारतीय संस्कृति में मेहमान को भगवान का ही रूप मानते हैं। इसलिए उसने कहा था, ” तू बहुत भाग्यवान है। चाय के टैम पर आई है हमारे घर। भाग्यवान आए खाते वक्त।”


लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. टिहरी शहर के पास गाँव में रहने वाली बुढ़िया को विस्थापित क्यों होना पड़ा ?

उत्तर

भागीरथी और भीलांगना नदियों के तटों पर टिहरी शहर बसा हुआ था। बिजली उत्पादन के लिए जब वहाँ बाँध बनाया गया तो टिहरी शहर को मानव निर्मित झील में समा जाना था। जिन लोगों की जमीन थी, उन्हें तो उनकी संपत्ति के आधार पर सरकार ने पुनर्वास दे दिया, पर बुढ़िया के पास तो कुछ भी नहीं था इसलिए उसे विस्थापित होना पड़ा।


प्रश्न 2. शहर वालों को लाल मिट्टी की जरूरत क्यों होती थी ?

उत्तर

दो नदियों के बीच बसे टिहरी शहर की ज़मीन रेतीली थी। वे लोग खाना पकाने के लिए चूल्हा जलाते थे और हर बार उन्हें चूल्हों की लाल मिट्टी से पुताई करनी पड़ती थी क्योंकि रेतीली मिट्टी से पुताई नहीं हो सकती। साथ ही वे कमरों और दीवारों की गोबरी- लिपाई करने के लिए भी लाल मिट्टी का प्रयोग करते थे।


प्रश्न 3. नगर वालों के लिए माटी वाली क्या महत्व रखती थी ?

उत्तर

नगर वालों के लिए माटी वाली बहुत महत्व रखती थी। माटी वाली की मिट्टी से नगर वालों के चूल्हे जलते थे। लोगों को रसोई के चूल्हे-चौकों की लिपाई के लिए मिट्टी की आवश्यकता होती थी। इसलिए घर में साफ़ लाल मिट्टी का होना जरूरी थी। साल दो साल में मकान की दीवारों को गोबरी- लिपाई करने के लिए मिट्टी की आवश्यकता होती थी। इसलिए नगर वालों के लिए माटी वाली उनके जीवन में बहुत महत्व रखती थी।


प्रश्न 4. माटी वाली ने मालकिन द्वारा दी गई दो रोटियों का क्या किया ?

उत्तर

माटी वाली जिस घर में मिट्टी डालने गई थी, उस घर की मालकिन ने उसे रोटी खाने के लिए दी। मालकिन के घर के अंदर जाते ही उसने अपने सिर पर रखने वाला कपड़ा निकाला, उसमें से एक रोटी मोड़ कर अपने पति के लिए उस कपड़े में रख लिया। मालकिन के आने पर वह ऐसे मुँह चलाने लगी जैसे उसने एक रोटी समाप्त कर ली है। दूसरी रोटी उसने चाय के साथ खाई।


प्रश्न 5. घर की मालकिन ने यह क्यों कहा कि अपनी चीज का मोह बहुत बुरा होता है ?

उत्तर

घर की मालकिन दूर की बात सोचने वाली महिला थी। उसके घर में पीतल के बरतन थे। वह सोचती थी कि उसके पूर्वजों ने यह बरतन पता नहीं किस प्रकार पेट काट-काट कर इकट्ठे किए होंगे। उसे इन बरतनों से बहुत लगाव था। वह उसके पुरखों की गाढ़ी कमाई के थे। अब टिहरी पर बाँध बन रहा था जिस कारण उसे मकान छोड़ना पड़ेगा। वह इस उम्र में दूसरी नई जगह जाने को तैयार नहीं है। इसलिए वह माटी वाली से कहती है कि अपनी चीज़ का मोह बहुत बुरा होता है।


प्रश्न 6. माटी वाली चाय किस ढंग से पी रही थी ?

उत्तर

घर की मालकिन माटी वाली के लिए पीतल के गिलास में चाय लेकर आई थी। माटी वाली ने खुले कपड़े से पूरी गोलाई में गरम चाय का गिलास पकड़ लिया। गरम चाय पीने से पहले, वह गिलास के अंदर रखी चाय को ठंडा करने के लिए सू-सू करके, उस पर लंबी-लंबी फूकें मारने लगी। फिर धीरे-धीरे रोटी के साथ चाय सुड़कने लगी।


प्रश्न 7. मादी वाली की आर्थिक स्थिति कैसी थी ?

उत्तर

माटी वाली की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। उसका पति बीमार तथा कमज़ोर था। उससे कोई काम नहीं होता था। माटी वाली मिट्टी ढोकर घर का गुजारा चलाती थी। उसके पास अपना कोई खेत भी नहीं था। जिस जमीन पर उसकी झोंपड़ी थी वह गाँव के ठाकुर की थी। ठाकुर ज़मीन के एवज में उससे कई तरह के काम करवा लेता था। उसके पैसे भी नहीं देता था। इस प्रकार माटी वाली बड़ी तंगी से अपने घर का निर्वाह करती थी।


प्रश्न 8. माटी वाली के बुड्ढे को अब रोटी की ज़रूरत क्यों नहीं थी ?

उत्तर 

माटी वाली रोटियों का हिसाब लगाते हुए घर पहुँची। उसने सोचा था कि आज वह बुड्ढे को सूखी रोटी नहीं देगी। उसने एक पाव प्याज खरीद लिए। उसने सोचा कि वह प्याज की सब्ज़ी बनाकर अपने पति को रोटी के साथ देगी। परंतु घर पहुँचकर प्रतिदिन की तरह बुड्ढे ने उसकी आहट सुनकर अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई। माटी वाली ने उसका बदन छूकर देखा तो उसका पति अपनी मिट्टी छोड़कर जा चुका था अर्थात् मर गया था। इसलिए, अब उसके बुड्ढे को रोटी की ज़रूरत नहीं थी।


प्रश्न 9. टिहरी बाँध पुनर्वास वाले साहब किन लोगों को मुआवजा दे रहे थे ?

उत्तर

टिहरी बाँध बनने से नीचे के शहरों में पानी भर गया था, इसलिए वहाँ के लोगों को दूसरी जगह विस्थापित किया गया। टिहरी बाँध वाले साहब उन लोगों का मुआवजा दे रहे थे जिनके पास जमीन, घर और दुकान संबंधी कागज थे। जिन लोगों के पास कुछ नहीं था उनके लिए सरकार कुछ नहीं कर रही थी। माटी वाली के पास भी किसी प्रकार की संपत्ति नहीं थी, इसलिए बाँध बनने के बाद वह अपना गुजारा कैसे करे, उसे इस बात की चिंता सताने लगी।


प्रश्न 10. टिहरी की महिलाएँ माटी वाली से अपनी सहानुभूति तथा दया किस प्रकार प्रकट करती थीं?

उत्तर

माटी वाली अत्यंत गरीब महिला थी, जिसकी आजीविका का साधन माटाखान से लाई मिट्टी घरों तक पहुँचाना था। घर पर उसका बीमार पति अकेला रहता था। माटी वाली अपना काम अत्यंत तन्मयता से करती थी। वह सभी के घर बिना भेदभाव के लाल मिट्टी दिया करती थी।
माटी वाली की स्थिति का अनुमान कर महिलाएँ कुछ पैसों के साथ ही उसे चाय या शाम की बासी एक-दो रोटियाँ भी दे दिया करती थीं। कभी-कभी कोई महिला रोटी के साथ कुछ साग आदि देकर अपनी सहानुभूति तथा दया प्रकट कर दिया करती थी।


प्रश्न 11. टिहरी की ठकुराइन जो माटी वाली की ग्राहक थी, ने अपने पूर्वजों की विरासत को किस प्रकार सहेजकर रखा था? सप्रमाण स्पष्ट कीजिए।

उत्तर 

माटी वाली की ग्राहक टिहरी की ठकुराइन को पूर्वजों की विरासत से विशेष लगाव था। वे उनकी विरासत की प्रत्येक वस्तु को बहुत सँभालकर रखती थी। आम मनुष्य पूर्वजों की वस्तुओं को कबाड़ या पुराने फैशन की कहकर उन्हें कबाड़ी के हाथों औने-पौने दामों में बेच देता है, पर इसके विपरीत ठकुराइन ने पूर्वजों की विरासत भले ही वह पीतल का साधारण गिलास ही क्यों न हो सँभाल रखा है। वे उसे पुरखों की गाढ़ी कमाई से अर्जित किया हुआ मानती है, जिसमें पुरखों की मेहनत और यादें समाई हैं।


प्रश्न 12. माटी वाली के बुड्ढे को अब रोटियों की आवश्यकता क्यों नहीं रह गई थी?

उत्तर 

माटी वाली घर की मालकिन से मिली तीन रोटियाँ लेकर जा रही थी। वह मन-ही-मन आज बहुत खुश थी। घर पहुँचने पर कदमों की आहट सुनकर भी जब बुड्ढे के शरीर में हलचल न हुई तो बुढ़िया का माथा ठनका, उसने देखा कि बुड्ढा मर चुका था। उसे अब और रोटियों की जरूरत न थी।


प्रश्न 13. माटी वाली का रोटियों का इस तरह हिसाब लगाना उसकी किस मजबूरी को प्रकट करता है?

उत्तर 

माटी वाली की वृद्धावस्था तथा गरीबी पर तरस खाकर घर की मालकिनें बची हुई एक-दो रोटियाँ, ताजा-बासी साग, तथा बची-खुची चाय दे दिया करती थीं, वह उनमें से एकाध रोटी अपने पेट के हवाले कर लेती थी तथा बाकी बची रोटियाँ कपड़े में बाँधकर रख लेती थी, ताकि वह इसे ले जाकर अपने वृद्ध, बीमार एवं अशक्त पति को खिला सके। माटी वाली को जैसे ही दो या उससे अधिक रोटियाँ मिलती थीं वह तुरंत सोचने लगती थी कि इतनी रोटी मैं स्वयं खाऊँगी तथा इतनी बची रोटियाँ अपने पति के लिए ले जाऊँगी। उसके द्वारा रोटियों का यूँ हिसाब लगाना उसकी गरीबी, मजबूरी तथा विवशता को प्रकट करता है।


निबंधात्मक प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. ‘माटी वाली’ के आधार पर मुख्य पात्रा की चरित्रगत विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर

‘माटी वाली’ कहानी की मुख्य पात्रा है-बुढ़िया। कहानीकार ने पूरी कहानी में उसका नाम नहीं लिया है। मुख्य पात्रा होकर भी वह नाम-रहित है। उसकी चरित्रगत प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

  1. बाह्य व्यक्तित्व-बुढ़िया मैली- कुचैली छोटे कद की महिला थी जो अति साधारण व्यक्तित्व की स्वामिनी थी। सारे नगरवासियों को उसकी अच्छी पहचान है क्योंकि वह टिहरी नगर के हर घर में जाती थी। उसका जन्म हरिजन परिवार में हुआ था।
  2. परिश्रमी – माटी वाली बहुत परिश्रमी औरत थी। वृद्धावस्था में भी वह दिन-भर कठोर परिश्रम करती थी। माटाखान से मिट्टी खोदना और सिर पर कनस्तर रख शहर में जगह-जगह जाना उसका कार्य था।
  3. अभावग्रस्त और असहाय- माटी वाली पूर्ण रूप से अभावग्रस्त थी। उसके पास धन के नाम पर कुछ नहीं था। वह जिस झोंपड़ी में रहती थी वह ठाकुर की ज़मीन पर बनी थी। उसके लिए भी उसे बेगार करनी पड़ती थी। अपनी असहायावस्था के कारण ही वह कहती है- “गरीब, आदमी का श्मशान नहीं उजड़ना चाहिए।”
  4. डरपोक माटी वाली स्वभाव से डरपोक थी। जब वह ठकुराइन के घर मिट्टी देने के लिए गई तो उसे वहाँ दो रोटियाँ दी गईं और ठकुराइन उसके लिए चाय लेने गई। माटी वाली ने एक रोटी झट से छिपाकर अपने डिल्ले में बाँध ली और झूठ-मूठ ही मुँह हिलाने लगी जैसे वह रोटी को चबा-चबाकर खा रही हो। जब गृहस्वामिनी ने स्वयं ही उसे रोटी दी थी, तो उसे रोटी छिपाने और डरने की क्या बात थी।
  5. पति के प्रति लगाव – बुढ़िया का बुड्ढा पति बहुत कमज़ोर था। वह अपनी झोंपड़ी में पड़ा रहता था पर बुढ़िया का मन उसके आस-पास मँडराता रहता था। वह स्वयं रोटी न खा उसके लिए रोटी लाने का प्रयत्न करती थी। उसके प्रति उसके हृदय में अगाध लगाव था। तभी तो वह उसके लिए एक पाव प्याज खरीदती है ताकि वह कोरी रोटी न खाए। उसकी बात ‘भूख मीठी कि भोजन मीठा ?’ उसके कानों में गूँजता रहता है। वास्तव में बुढ़िया गरीबी, असहायावस्था और पीड़ा की प्रतीक है जिसके जीवन में दुख ही दुख हैं।


प्रश्न 2. कहानी के आधार पर बुड्ढे की विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर

  1. बीमार और अशक्त – माटी वाली का पति बहुत अशक्त और बीमार था। वह चलने-फिरने के योग्य नहीं था। इसलिए ठाकुर की ज़मीन पर बनी झोंपड़ी में दिन-रात पड़ा रहता था।
  2. सचेत – बुड्ढा चाहे कमज़ोर और विवश था, पर सचेत था। जब माटी वाली बुढ़िया वापिस झोंपड़ी में पहुँचती तो आहट होते ही वह चौंक जाया करता था और नारें उठाकर उसकी तरफ देखा करता था।
  3. भूख से त्रस्त – बुड्ढा भूख से त्रस्त रहता था। जब बुढ़िया उसके लिए रोटी लेकर पहुँचती थी तो वह खिल उठता था। सब्ज़ी न मिलने पर भी वह संतुष्ट रहता था और कहता था- 'भूख मीठी कि भोजन मीठा।'

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