Extra Questions for Class 10 Sparsh Chapter 13 तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र Hindi

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Extra Questions for Class 10 Sparsh Chapter 13 तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र Hindi

Chapter 13 तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र Sparsh Extra Questions for Class 10 Hindi


अत्ति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. राजकपूर द्वारा निर्देशित कुछ फ़िल्मों के नाम लिखिए ?

उत्तर

राजकपूर द्वारा निर्देशित फिल्में हैं- संगम, मेरा नाम जोकर, सत्यम् शिवम् सुंदरम् आदि।


प्रश्न 2. शैलेंद्र के गीत कैसे होते थे?

उत्तर

शैलेंद्र के गीत भाव-प्रवण होते थे- दुरूह नहीं। भावनाओं से ओत-प्रोत उनके गीतों की भाषा सहज एवं सरल होती थी।


प्रश्न 3. 'तीसरी कसम' फ़िल्म के नायक कौन हैं तथा सामान्य रूप से वे किस प्रकार के कलाकार रहे हैं? स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर

'तीसरी कसम' फ़िल्म के नायक राजकपूर हैं। सामान्य रूप में वे ऐसे कलाकार रहे हैं जो आँखों से ही अपनी बात करते हैं और भावों को मूर्त (साकार) रूप दे देते हैं।


प्रश्न 4. फ़िल्म समीक्षक राजकपूर को किस तरह का कलाकार मानते थे? और क्यों?

उत्तर

फ़िल्म समीक्षक राजकपूर को आँखों से बात करने वाला कलाकार मानते थे क्योंकि राजकपूर अभिनय ही नहीं करते थे, परंतु चरित्र के अनुसार उसकी आत्मा में उतर जाते थे, उससे एकाकार हो जाते थे।


लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. शैलेन्द्र का चेहरा कब और क्यों मुरझा गया था? पठित पाठ के आधार पर लिखिए ।

उत्तर

शैलेन्द्र का चेहरा तब मुरझा गया जब उनके अभिन्न मित्र राजकपूर ने उनकी फ़िल्म में काम करने के लिए अपना पारिश्रमिक माँगा और वह भी एडवांस । उन्हें लगा कि राजकपूर तो उनकी सही आर्थिक स्थिति के विषय में जानते ही हैं, तब भी उन्होंने ऐसी बात क्यों कही ? यह सोचकर उनका मुख मुरझा गया।

 

प्रश्न 2. संगम की सफलता से उत्साहित राजकपूर ने कन-सा कदम उठाया?

उत्तर

राजकपूर को संगम फ़िल्म से अद्भुत सफलता मिली। इससे उत्साहित होकर उन्होंने एक साथ चार फ़िल्मों के निर्माण की घोषणा की। ये फ़िल्में थीं- अजंता, मेरा नाम जोकर, मैं और मेरा दोस्त, सत्यम् शिवम् सुंदरम्।

 

प्रश्न 3. राजकपूर ने शैलेंद्र के साथ अपनी मित्रता ? निर्वाह कैसे किया?

उत्तर

राजकपूर ने अपने मित्र शैलेंद्र की फ़िल्म 'तीसरी कसम' में पूरी तन्मयता से काम किया। इस काम के बदले उन्होंने किसी प्रकार के पारिश्रमिक की अपेक्षा नहीं की। उन्होंने मात्र एक रुपया एडवांस लेकर काम किया और मित्रता का निर्वाह किया ।


प्रश्न 4. एक निर्माता के रूप में बड़े व्यावसायिक सा- युवा भी चकर क्यों खा जाते हैं?

उत्तर

एक निर्माता जब फ़िल्म बनाता है तो उसका लक्ष्य होता है फ़िल्म अधिकाधिक लोगों को पसंद आए और लोग उसे बार बार देखें, तभी उसे अच्छी आय होगी। इसके लिए वे हर तरह के हथकंडे अपनाते हैं फिर भी फ़िल्म नहीं चलती और वे चक्कर खा जाते हैं ।

 

प्रश्न 5. राजकपूर ने शैलेंद्र के साथ किस तरह यारउन्ना मस्ती की ?

उत्तर

गीतकार शैलेंद्र जब अपने मित्र राजकपूर के पास फ़िल्म में काम करने का अनुरोध करने गए तो राजकपूर ने हाँ कह दिया, परंतु साथ ही यह भी कह दिया कि 'निकालो मेरा पूरा एडवांस ।' फिर उन्होंने हँसते हुए एक रुपया एडवांस माँगा। एडवांस माँग कर राजकपूर ने शैलेंद्र के साथ याराना मस्ती की।

 

प्रश्न 5. शैलेंद्र ने अच्छी फ़िल्म बनाने के लिए दवा किया?

उत्तर

शैलेंद्र ने अच्छी फ़िल्म बनाने के लिए राजकपूर और वहीदा रहमान जैसे श्रेष्ठ कलाकारों को लिया। इसके अलावा उन्होंने फणीश्वर नाथ 'रेणु' की मार्मिक कृति 'तीसरी कसम उर्फ मारे गए गुलफाम' की कहानी को पटकथा बनाकर सैल्यूलाइड पर पूरी सार्थकता से उतारा।


प्रश्न 6. शैलेन्द्र के गीत भाव - प्रवण थे- दुरूह नहीं । आशय स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर

शैलेंद्र के गीतों में भावनाओं की प्रधानता होती है। इनके गीतों में प्रयुक्त शब्द सरल होते हैं, कठिन नहीं होते। ये शब्द हमारे दिलों को छू लेते हैं। अपनी भावप्रवणता के कारण ही वे गीत देश-विदेश में आज भी लोकप्रिय हैं। 'प्यार हुआ, इकरार हुआ' और 'मेरा जूता है जापानी' जैसे गीतों में भावप्रवणता और अर्थ की गंभीरता व सरलता देखते ही बनती है।


प्रश्न 7. दरअसल तीसरी कसम फ़िल्म की संवेदना दो से चार बनाने वाले की समझ से परे है- कैसे? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

इस फ़िल्म में हर स्थिति को सहज रूप में प्रकट किया गया। किसी भी दृश्य को इस प्रकार ग्लोरीफाई नहीं किया गया जैसे व्यावसायिक वितरक चाहते थे । पैसा कमाने के लिए व्यावसायिक लोग दर्शकों की भावनाओं का शोषण करने से पीछे नहीं हटते। इस फ़िल्म को उनके विचारों से विपरीत कलात्मक एवम् संवेदनशील बनाया गया । अतः यह फ़िल्म दो से चार बनाने वालों की समझ से परे थी।


प्रश्न 8. 'तीसरी कसम' फिल्म नहीं सैल्यूलाइड पर लिखी कविता थी- इस कथन पर टिप्पणी कीजिए ।

उत्तर

'सैल्यूलाइड' का अर्थ है- फ़िल्म को कैमरे की रील में उतार चित्र प्रस्तुत करना । 'तीसरी कसम' फ़िल्म

की पटकथा फणीश्वर नाथ रेणु की अत्यंत मार्मिक साहित्यिक रचना को आधार बनाकर लिखी गई है। इस फ़िल्म में कविता की भाँति कोमल भावनाओं को बखूबी उकेरा गया है। भावनाओं की सटीक एवं ईमानदार अभिव्यक्ति के कारण इसे फ़िल्म न कहकर सैल्यूलाइड पर लिखी कविता कहा गया है।


प्रश्न 9. 'तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र' पाठ के आधार पर लिखिए कि कलाकार के क्या कर्तव्य हैं ।

उत्तर

शैलेंद्र के अनुसार कलाकार का कर्तव्य है कि वह दर्शकों की रुचियों में परिष्कार करने का प्रयत्न करें। उनके मानसिक स्तर को ऊपर उठाए । वह लोगों में जागृति लाए और उनमें अच्छे-बुरे की समझ विकसित करें। वह दर्शकों पर उनकी रुचि आड़ में उथलापन न थोपे।


प्रश्न 10. 'तीसरी कसम' जैसी फ़िल्म बनाने के पीछे शैलेंद्र की मंशा क्या थी?

उत्तर

शैलेंद्र कवि हृदय रखने वाले गीतकार थे। तीसरी कसम बनाने के पीछे उनकी मंशा यश या धनलिप्सा न थी। आत्म संतुष्टि के लिए ही उन्होंने फ़िल्म बनाई ।

 

प्रश्न 11. 'तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेन्द्र' पाठ में राजकपूर के सर्वोत्कृष्ट अभिनय का श्रेय किसे दिया गया और क्यों ?

उत्तर

'तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र' पाठ में राजकपूर के सर्वोत्कृष्ट अभिनय का श्रेय फ़िल्म की पटकथा को दिया गया है । 'तीसरी कसम' फ़िल्म नहीं, सैल्यूलाइड पर लिखी कविता है जिसमें एक मार्मिक कृति को पूरी तरह से रील पर उतार दिया गया था। स्वयं राजकपूर भी अपनी अपार प्रसिद्धि को पीछे छोड़ 'हीरामन ' की आत्मा में उतर गए है जो अपने आप में उनकी अभिनय कला का चरमोत्कर्ष है।


प्रश्न 12. 'तीसरी कसम' के आलोक में कलाकार के दायित्व को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

शैलेंद्र के अनुसार, कलाकार का यह कर्तव्य है कि वह दर्शकों की रुचियों का परिष्कार करे, वह दर्शकों के ज्ञान की वृद्धि में सहायक हो । सच्चा कलाकार दर्शकों के मानसिक स्तर का विकास करता है। वह दर्शकों के मन में जागरूकता को जन्म देता है और दर्शकों में अच्छे-बुरे की समझ को बढ़ाता है। सच्चे कलाकार का दायित्व है कि वह उपभोक्ता की रुचियों में सुधार लाने का प्रयत्न करे। उसके मन में धन कमाने की ही लिप्सा न हो।


प्रश्न 13. शैलेंद्र द्वारा बनाई गई फ़िल्म चल रहीं, इसके कारण क्या थे?

उत्तर

तीसरी कसम संवेदनापूर्ण भाव- प्रणव फ़िल्म थी। संवेदना और भावों की यह समझ पैसा कमाने वालों की समझ से बाहर होती है। ऐसे लोगों का उद्देश्य अधिकाधिक लाभ कमाना होता है। तीसरी कसम फ़िल्म में रची-बसी करुणा अनुभूति की । चीज़ थी । ऐसी फ़िल्म के खरीददार और वितरक कम मिलने से यह फ़िल्म चले न सकी ।

 

प्रश्न 14. 'शैलेंद्र के गीत भारतीय जनमानस की आवाज़ बन गए।' इस कथन को पाठ 'तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र' के आधार पर सिद्ध कीजिए ।

उत्तर

'तीसरी कसम' फ़िल्म के गीत सहज और भावपूर्ण थे। वे गीत कठिन या दुरूह नहीं थे। इन गीतों को शंकर-जयकिशन ने अपना संगीत देकर उसे लोकप्रिय बना दिया था। वे गीत अत्यंत कोमल थे। उन गीतों में सरलता व भावुकता का संगम था। उन गीतों की भाषा इतनी सरल थी कि उन्हें समझना सरल था। चलत मुसाफ़िर मोह लियो रे पिंजड़े वाली मुनियाँ और लाली लाली डोलिया में “गीत ने आम लोगों के दिलों को जीत लिया था।


प्रश्न 15. 'रातें दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी नयाँ' इस पंक्ति के रेखांकित अंश पर किसे आपत्ति थी और क्यों?

उत्तर

रातें दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी कहानियाँ' पंक्ति के दसों दिशाओं पर संगीतकार शंकर जयकिशन को आपत्ति थी। उनका मानना था कि जन साधारण तो चार दिशाएँ ही जानता- समझता है, दस दिशाएँ नहीं । इसका असर फ़िल्म और गीत की लोकप्रियता पर पड़ने की आशंका से उन्होंने ऐसा किया।


दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. 'तीसरी कसम' में राजकपूर और वहीदा रहमान का अभिनय लाजवाब था । स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर

जिस समय फ़िल्म 'तीसरी कसम' के लिए राजकपूर ने काम करने के लिए हामी भरी वे अभिनय के लिए प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय हो गए थे। इस फ़िल्म में राजकपूर ने 'हीरामन ' नामक देहाती गाड़ीवान की भूमिका निभाई थी। फ़िल्म में राजकपूर का अभिनय इतना सशक्त था कि हीरामन में कहीं भी राजकपूर नज़र नहीं आए। इसी प्रकार छींट की सस्ती साड़ी में लिपटी हीराबाई' का किरदार निभा रही वहीदा रहमान का अभिनय भी लाजवाब था जो हीरामन की बातों का जवाब जुबान से । नहीं आँखों से देकर वह सशक्त अभिव्यक्ति प्रदान की जिसे शब्द नहीं कह सकते थे। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि फ़िल्म 'तीसरी कसम' में राजकपूर और वहीदा रहमान का अभिनय लाजवाब था।


प्रश्न 2. हिंदी फ़िल्म जगत में एक सार्थक और उद्देश्यपरक फ़िल्म बनाना कठिन और जोखिम का काम है ।' स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर

हिंदी फ़िल्म जगत की एक सार्थक और उद्देश्यपरक फ़िल्म है तीसरी कसम, जिसका निर्माण प्रसिद्ध गीतकार शैलेंद्र ने किया । इस फ़िल्म में राजकपूर और वहीदा रहमान जैसे प्रसिद्ध सितारों का सशक्त अभिनय था । अपने जमाने के मशहूर संगीतकार शंकर जयकिशन का संगीत था जिनकी लोकप्रियता उस समय सातवें आसमान पर थी । फ़िल्म के प्रदर्शन के पहले ही इसके सभी गीत लोकप्रिय हो चुके थे। इसके बाद भी इस महान फ़िल्म को कोई न तो खरीदने वाला था और न इसके वितरक मिले। यह फ़िल्म कब आई और कब चली गई मालूम ही न पड़ा, इसलिए ऐसी फ़िल्में बनाना जोखिमपूर्ण काम है।


प्रश्न 3. 'राजकपूर जिन्हें समीक्षक और कलामर्मज्ञ आँखों से बात करने वाला मानते हैं' के आधार पर राजकपूर के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिए ।

उत्तर

राजकपूर हिंदी फ़िल्म जगत के सशक्त अभिनेता थे। अभिनय की दुनिया में आने के बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वे उत्तरोत्तर सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ते गए और अपने अभिनय से नित नई ऊचाईयाँ छूते रहे । संगम फ़िल्म की अद्भुत सफलता से उत्साहित होकर उन्होंने एक साथ चार फ़िल्मों के निर्माण की घोषणा की। ये फ़िल्में सफल भी रही। इसी बीच राजकपूर अभिनीत फ़िल्म 'तीसरी कसम' के बाद उन्हें एशिया के शोमैन के रूप 'जाना जाने लगा। इनका अपना व्यक्तित्व लोगों के लिए किंवदंती बन चुका था । वे आँखों से बात करने वाले कलाकार जो हर भूमिका में जान फेंक देते थे । वे अपने रोल में इतना खो जाते थे कि उनमें राजकपूर कहीं नज़र नहीं आता था । वे सच्चे इंसान और मित्र भी थे, जिन्होंने अपने मित्र शैलेंद्र की फ़िल्म में मात्र एक रुपया पारिश्रमिक लेकर काम किया और मित्रता का आदर्श प्रस्तुत किया।


प्रश्न 4. एक निर्माता के रूप में बड़े व्यावसायिक सूझबूझ वाले व्यक्ति भी चक्कर खा जाते हैं। फिर भी शैलेंद्र फ़िल्म क्यों बनाई ? तर्क सहित उत्तर दीजिए ।

उत्तर

एक फ़िल्म निर्माता के रूप में बड़े व्यावसायिक सूझ-बूझ वाले व्यक्ति भी चक्कर खा जाते हैं क्योंकि उन्हें बहुत सोच समझकर फ़िल्म का निर्माण करना पड़ता है। उनका उद्देश्य 'लाभ कमाना' होता है। ‘धन-लिप्सा’ ही उनकी मनोवृत्ति होती है । शैलेंद्र ने 'आत्म संतुष्टि' व 'सुख' के लिए फ़िल्म का निर्माण किया था। व्यावसायिक सूझ-बूझ वाले लोग पैसा कमाने के लिए सस्ती लोकप्रियता को अधिक महत्त्व देते हैं, परंतु शैलेंद्र ने अपनी फ़िल्म में सस्ती लोकप्रियता के तत्त्वों को कोई महत्त्व नहीं दिया। शैलेंद्र अच्छी फ़िल्म बनाने की कला तो जानते थे, किंतु वे जनता को लुभाने की कला नहीं जानते थे । यद्यपि फ़िल्म-निर्माता के रूप में शैलेंद्र सर्वथा अयोग्य थे, फिर भी उन्होंने आत्मिक संतुष्ट व 'आत्मिक सुख' के लिए फ़िल्म का निर्माण किया।


प्रश्न 5. 'तीसरी कसम' फ़िल्म की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए ।

उत्तर

'तीसरी कसम' फ़िल्म सैल्यूलाइड पर लिखी कविता थी । इस फ़िल्म की कहानी मार्मिकता एक कविता के समान है। इस फ़िल्म में मूल साहित्यिक रचना को उसी रूप में प्रस्तुत किया गया। इस फ़िल्म के गीत बहुत लोकप्रिय हुए। इसके गीत दुरूह नहीं थे। ये सभी गीत सहज व भाव-प्रवण थे, वे संदेशप्रद थे। इस फ़िल्म में राजकपूर व वहीदा रहमान जैसे महान कलाकारों ने अभिनय किया है। इस फ़िल्म तथा गीतों को शंकर-जयकिशन जैसे महान संगीतकार ने संगीत दिया जो प्रसारण से पूर्व ही अत्यंत लोकप्रिय हो गए । 'तीसरी कसम' फ़िल्म में अन्य फ़िल्मों की तरह चकाचौंध के बजाए, सहज लोकशैली को अपनाया गया। इस फ़िल्म ने अपने गीत-संगीत, कहानी आदि के लिए प्रसिद्धि प्राप्त की । इस फ़िल्म में अपने ज़माने के सबसे बड़े शोमैन राजकपूर ने अपने जीवन का सबसे बेहतरीन अभिनय कर सबको हैरान कर दिया। इस फ़िल्म को उनके अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया । यह फ़िल्म जिंदगी से जुड़ी हुई है। फ़िल्मी सफर में इसे मील का पत्थर माना गया है। आज भी इस फ़िल्म की गणना हिंदी की अमर फ़िल्मों में की जाती है। प्रश्न 11.


प्रश्न 6. 'तीसरी कसम' फ़िल्म में दुख के भाव को किस प्रकार प्रस्तुत किया गया है? दुख के वीभत्स रूप से यह दुख किस प्रकार भिन्न है? लिखिए ।

उत्तर

'तीसरी कसम' फिल्म में दुख के भाव को सहज स्थिति में प्रकट किया गया है। इस फ़िल्म में दुखों को जीवन के सापेक्ष रूप में प्रस्तुत किया है। दुख के वीभत्स रूप से यह सर्वथा भिन्न है क्योंकि यहाँ दुखों से घबराकर लोग पीठ नहीं दिखाते। दुखों से हमें घबराना नहीं चाहिए। दुखों का साहसपूर्वक सामना करना चाहिए। दुख के इस रूप को देखकर मनुष्य 'व्यथा' व 'करुणा' को सकारात्मक ढंग से स्वीकार करता है । वह दुखों से परास्त नहीं होता, निराश नहीं होता। इस फ़िल्म में दुख की सहज स्थिति लोगों को आशावादी बनाती है ।


प्रश्न 7. 'तीसरी कसम' सभी गुणों से पूर्ण होने के बाद भी जनता की भीड़ क्यों नहीं जुटा पाई? तर्क संगत उत्तर दीजिए ।

उत्तर

'तीसरी कसम' फ़िल्म एक महान फ़िल्म थी, परंतु इस फ़िल्म को अधिक वितरक नहीं मिल सके । यद्यपि इस फ़िल्म में नामज़द सितारों ने काम किया था फिर भी इस फ़िल्म को खरीदने वाला कोई नहीं था। दरअसल, इस फ़िल्म की संवेदना दो से चार बनाने का गणित जानने वालों की समझ से परे थी। इस फ़िल्म में दुखों को ग्लोरीफाई करके नहीं दिखाया गया। इस फ़िल्म में दर्शकों की भावनाओं का शोषण नहीं किया गया। इस फ़िल्म में किसी भी प्रकार के अनावश्यक मसाले नहीं डाले गए थे इसलिए इस फ़िल्म के लिए भीड़ जुट नहीं पाई। यही अनावश्यक मसाले जो फ़िल्म के पैसे वसूल करने के लिए आवश्यक होते हैं, इस फ़िल्म में डाले नहीं गए थे। यह एक शुद्ध साहित्यिक फ़िल्म थी जिसमें लोकप्रियता के तत्वों का अभाव होने के कारण वितरकों ने इस फ़िल्म को खरीदने में रुचि नहीं दिखाई। वस्तुतः वितरक पैसा कमाने को महत्त्व देते थे। वे अच्छी फ़िल्म को महत्त्व नहीं देते थे। मुख्यतः 'तीसरी कसम' फ़िल्म में जनरुचि और लोकप्रियता के तत्वों का ध्यान नहीं रखा गया था क्योंकि शैलेंद्र को फ़िल्म निर्माण करने की कला का अनुभव नहीं था। शैलेंद्र ने फ़िल्म में 'करुणा' व संवेदना की गहराई पर तो ध्यान दिया, परंतु इसे अधिक आकर्षक बनाने के लिए उन्होंने किसी झूठ का सहारा नहीं लिया। इस फ़िल्म की करुणा किसी तराजू पर तौली जा सकने वाली चीज़ नहीं थी। इसीलिए गीत इस फ़िल्म के प्रदर्शित होने से पहले लोकप्रिय हो गए, फिर भी यह फ़िल्म लोगों की भीड़ जुटा नहीं पाई । उत्कृष्ट कलात्मकता अत्यंत लोकप्रिय संगीत, प्रसिद्ध अभिनेता व अत्यंत नामज़द अभिनेत्री के बावजूद ये फ़िल्म लोगों की भीड़ नहीं जुटा पाई।

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