BSEB Solutions for लौटकर आऊँगा फिर (Laut aaunga Fir) Class 10 Hindi Godhuli Part 2 Bihar Board

लौटकर आऊँगा फिर - जीवनानंद दास प्रश्नोत्तर

Very Short Questions Answers (अतिलघु उत्तरीय प्रश्न)

प्रश्न 1. जीवनानंद दास ने जिस समय बाँग्ला काला-जगत में प्रवेश किया, उस समय क्या स्थिति थी?
उत्तर

जिस समय जीवनानंद दास ने बांग्ला काव्य-जगत में प्रवेश किया, उस समय रवीन्द्रनाथ ठाकुर शिखर पर विराजमान थे।


प्रश्न 2. बाँग्ला काव्य को जीवनानंद दास की देन क्या है ?
उत्तर

बाँग्ला काव्य को जीवनानंद दास की देन हैं-नयी भावभूमि, नयी दृष्टि और नयी शैली।


प्रश्न 3. ‘वनलता सेन’ को कब और क्यों पुरस्कृत किया गया?
उत्तर
जीवनानंद दास की काव्य-कृति ‘वनलता सन्’ को श्रेष्ठ काव्य-ग्रंथ के रूप में सन् 1952 ई. में निखिल बंग रवीन्द्र साहित्य सम्मेलन द्वारा पुरस्कार दिया गया।


प्रश्न 4. जीवनानंद दास के कुल कितने उपन्यास उपलब्ध हैं ?
उत्तर

जीवनानंद दास के लिखे कुल तेरह उपन्यास उपलब्ध हैं।


प्रश्न 5. बाँग्ला साहित्य में जीवनानंद दास की ‘वनलता सेन’ किस रूप में समाहित है ?
उत्तर

बाँग्ला साहित्य में जीवनानंद दास की कृति रवीन्द्रोत्तर युग की श्रेष्ठतम प्रेम-कविता के रूप में समाहित हैं। यह कविता बहुआयामी भाव-व्यंजना का उत्कृष्ट उदाहरण है।


प्रश्न 6. जीवनानंद दास ने कुल कितनी कहानियाँ लिखीं?
उत्तर

जीवनानंद दास ने कुल सौ कहानियां लिखीं।


Short Question Answers (लघु उत्तरीय प्रश्न)

प्रश्न 1. कवि किस तरह के बंगाल में एक दिन लौटकर आने की बात करता है?
उत्तर

धान की फसल से युक्त और बहती नदी से युक्त बंगाल में कवि एक दिन लौटकर आने की बात करता है।

प्रश्न 2. कवि अगले जीवन में क्या-क्या बनने की संभावना व्यक्त करता है और क्यों?
उत्तर

कवि अगले जीवन में मनुष्य, अबावील (भांड की) पक्षी, कौवा, हंस, ल्ल सारस पक्षी आदि बनने की संभावना व्यक्त करता है क्योंकि कवि को बंगाल की भमि और वहाँ का पर्यावरण से अत्यधिक प्रेम है।


प्रश्न 3. अगले जन्मों में बंगाल में आने की क्या सिर्फ कवि की इच्छा है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर

अगले जन्मों में बंगाल में आने की इच्छा केवल कवि की ही नहीं बल्कि कवित में कवि ने किसी किशोरी की भी चर्चा की है जो उसको जल-क्रीड़ा में आनन्द दें अथवा बंगाल की किसी किशोरी को जल-क्रीड़ा में वह (कवि) आनन्द दे हंस बनकर।

प्रश्न 4. कविता के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर

कविता का शीर्षक है-"लौटकर आऊँगा फिर" जो सार्थक है क्योंकि सम्पूर्ण कविता में बंगाल भूमि और पर्यावरण के प्रति अटूट श्रद्धा और लगाव कवि को दिखाई पड़ता है। भला इतनी मनोरम भूमि को छोड़कर अन्यत्र जन्म लेने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। सम्पूर्ण कविता में विश्वास के साथ सम्भावना व्यक्त है कि “लौटकर आऊँगा फिर" जो यथार्थ है।

प्रश्न 5. कवि अगले जन्म में अपने मनुष्य होने में क्यों संदेह करता है ? क्या कारण हो सकता है ?
उत्तर

कवि अगले जन्म में अपने मनुष्य होने में संदेह करता है क्योंकि मनुष्य पुनर्जन्म में मनुष्य ही हो यह कोई जरूरी नहीं। दूसरी बात यह भी है कि कवि को पर्यावरण से अत्यन्त लगाव है। पक्षी भी पर्यावरण से सीधे जुड़े रहते हैं। अर्थात् पक्षी का लगाव पर्यावरण से ही होता है। अत: कवि सम्भावना व्यक्त करता है कि पक्षी में मेरा जन्म हो। जिससे हम पर्यावरण से जुड़े रहें।

Long Question Answer (दीर्घ उत्तरीय प्रश्न)

प्रश्न 1. कवि किनके बीच अँधेरे में होने की बात करता है ? आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर

कवि सारसों के बीच अँधेरे में होने की बात करता है सारस पक्षा (क्रौच पक्षी) बहुत सुन्दर होता है जो प्रायः शाम के वक्त सूर्यास्त के बाद अपन निवास स्थल की ओर लौटते हुए झुण्ड में दिखाई पड़ते हैं। कवि सम्भावना व्यक्त करता है कि मैं उसे सारसों के बीच भी हो सकता हूँ।


प्रश्न 2. कविता की चित्रात्मकता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर

सम्पूर्ण कविता चित्रात्मक है। धान का खेत, बहती नदी, भांड का, पक्षी का सुबह में फुदकना, कौवा का धान खेत से कटहल पेड़ तथा पेंग भरना किशोरी के साथ हंस का जल-क्रीड़ा, शामा के समय कपास के पेड़ पर उल्लू का बोलना। घासीली जमीन पर भात फेंकते बच्चा, नदी में पाल उड़ाते नावों को लड़कों दारा चलाना सायंकालीन रंगीन बादलों के बीच सारस का उड़ना इत्यादि दृश्य का बड़ा ही सुन्दर चित्रात्मक है।

प्रश्न 3. कविता में आए बिंबों का सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर

कविता में अनेक बिंबों को चित्रित कर कविता के सौंदर्य में चार चाँद लगा दिया गया है। जैसे-धान का खेत, बहती नदी, भांड की पक्षी का फुदकना, सबह के समय में कौवा का धान के खेत से कटहल के पेड़ तक पेंग भरना, किशोरी के साथ हंस का जल-क्रीड़ा कपास के पेड़ पर सायंकाल में उल्लू का बोलना नदी में पाल युक्त नाव का चलना, सायंकाल में सारस पक्षी का समूह में उड़ना इत्यादि।

प्रश्न 4. जीवनंदन दास द्वारा लिखित लौटकर आऊँगा फिर काव्य का सारांश अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर

यह कविता हिन्दी कवि प्रयाग शुक्ल द्वारा भाषांतरित कविता है। जीवनानंद की यह कविता अत्यन्त लोकप्रिय कविता है जिसमें मातृभूमि प्रेम की भावना उत्कृष्ट रूप में दिखाई पड़ता है। कवि मरने के बाद पुनः बंगाल में ही जन्म लेने की अभिलाषा करता है।
मरने के बाद पुनः मैं बंगाल की धरती पर जन्म लूँ। जहाँ धान के खेत हों बहती हुई नदियाँ हों उसी नदी के किनारे मेरा पुनर्जन्म हो।
यदि मेरा जन्म मनुष्य में नहीं हो तो सुन्दर अबाबील (एक छोटी कहाली चिडिया) या कौवा में ही जन्म हो। जब धान की नई बाली लगेगी, तो वहाँ के कटहल की छाया तक कुहरे के झूले पर पेंग भरता (दोलन करता) आऊँगा एक दिन। अथवा लाल पैरों में घुघरू बाँध हंस बनकर दिन भर पानी में तैरता रहूँगा और किसी किशोरी के जल-क्रीड़ा में मैं मदद करूँगा।
जहाँ हरी-हरी घास की गंध होगी मैं वहाँ फिर आऊँगा। यदि बंगाल की नदियाँ, मैदान मुझे बुलाएँगे तो मैं आऊँगा जिस किनारे को नदियाँ धोती है अपने पानी से उस किनारे पर मैं फिर आऊँगा| सम्भवतः तुम देखना शाम में उड़ते हुए उल्लू को और सुनना कपास के पेड़ पर उसकी बोली को वह मैं ही होऊँगा।
सम्भवतः कोई बच्चा दिखेगा मुट्ठी भर भरकर भात घास पर फेंकते हुए वह भी मैं हो सकता हूँ। या रूप सा नदी के गंदे पानी में फटे-उड़ते पाल युक्त नाव चलाते दिखाई पड़ेगा, वह भी मैं हो सकता हूँ। जब सायंकालीन रंगीन बादलों के बीच सारस (क्रौच पक्षी) लौटते दिखाई पड़ेंगे उसके बीच में भी मैं हो सकता हूँ।


काव्यांशों पर आधारित प्रश्नोत्तर

1. खेत हैं जहाँ धान के, बहती नदी
के किनारे फिर आऊँगा लौट कर
एक दिन-बंगाल में; नहीं शायद
होऊँगा मनुष्य तब, होऊँगा अबाबील
या फिर कौवा उस भोर का-फूटेगा नयी
धान की फसल पर जो
कुहरे के पालने से कटहल की छाया तक ।
भरता पेंग, आऊँगा एक दिन !
बन कर शायद हंस मैं किसी किशोरी का;
घुघरू लाल पैरों में;
तैरता रहूँगा बस दिन-दिन भर पानी में
गंध जहाँ होगी ही भरी, घास की।
आऊँगा मैं। नदियाँ, मैदान बंगाल के बुलायेंगे
मैं आऊँगा। जिसे नदी धोती ही रहती है पानी
से-इसी हरे सजल किनारे पर।

प्रश्न.
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख)कविता का प्रसंग लिखें।
(ग) सरलार्थ लिखें।
(घ) भाव-सौंदर्य लिखें।
(ङ) काव्य-सौंदर्य लिखें।

उत्तर

(क) कविता – लौटकर आऊंगा फिर।
कवि – जीवनानंद दास।

(ख) प्रसंग-प्रस्तुत कविता में बँगला साहित्य के सुप्रसिद्ध दास का प्रकृति के प्रति उत्कृष्ट प्रेम का वर्णन किया है। इस कविता से कवि की नैसर्गिक प्राकृतिक प्रेम और देश भक्ति प्रेम के चित्र स्पष्ट झलक पड़े हैं। स्वछंदतावादी विचारधारा के महान कवि ने अपनी भूमि बंगाल में फिर लौटकर आने की बात कहकर अपने आपको मातृभूमि के प्रति अगाध प्रेम दर्शा रहे हैं।

(ग) प्रस्तुत कविता में बँगला साहित्य के सर्वाधिक सम्मानित कवि जीवनानंद दास ने अपनी मातृभूमि तथा परिवेश से उत्कट प्रेम का वर्णन किया है। यहाँ पर बंगाल के स्वाभाविक सम्मोहन प्राकृतिक वातावरण का सजीव चित्र खींचा गया है। कवि कहते हैं कि देश या विदेश के किसी कोने में रहूँ लेकिन एक बार मैं अपनी बंगाल की भूमि पर जरूर आऊँगा जहाँ हरे-भर धान के खेत हैं, उफनती हुई नदियाँ हैं तो उस नदी के किनारे फिर मैं लौटकर आऊँगा।

एक दिन ऐसा भी होगा कि बंगाल में कोई नहीं होगा सिर्फ एक छोटी चिड़िया रहेगी जो उजड़े और सुनसान मकानों को पसंद करती है या फिर सुबह में काँव-काँव करने वाला कौवा रहेगा तब पर भी मैं अपनी मातृभूमि को देखने के लिए जरूर आऊँगा। बंगाल की उपजाऊ मिट्टी पर जब धान की फसलों के ऊपर महीन-महीन कुहरे की बूंदें रहेंगी, कुहरे के पालने से कटहल की छाया तक आनंद की झूला झूलते हुए मैं जरूर इस सुन्दर प्रकृति को देखने के लिए आऊँगा। कवि की इच्छा है कि जब भी मैं जन्म लूँ तो अपने बंगाल में ही, इसलिए बार-बार यहाँ जन्म लेना चाहते हैं।

शायद यह भी इच्छा है कि मैं हंस बनकर और किसी किशोरी के पैरों की सुन्दर घुघरू बनकर उसके पैरों की सुन्दरता में चार चाँद लगा दूँ जहाँ दिन-दिन भर मैं पानी में तैरता रहूँगा, जहाँ की प्रकृति में हरी-भरी घास होगी और गंध ही गंध होगी वहाँ मैं जरूर आऊँगा। मुझे विश्वास है कि अगले जन्म में भी बंगाल की नदियाँ और मैदान मुझे जरूर बुलाएँगे। मैं उस नदी पर आऊँगा जो अपने पवित्र जल से हमेशा अपने तटों को धोती रहती हैं।

(घ) भाव-सौंदर्य–प्रस्तुत कविता में कवि अपनी मातृभूमि के प्रति असीम आस्था एवं प्रेम का भाव बोधन किये हैं। कवि की इच्छा है कि अगले जन्म में भी मैं इसी मातृभूमि पर उत्पन्न लूँ और यहाँ के खेतों, खलिहानों, नदियों, सभ्यताओं और संस्कृतियों की धारा में उसी प्रकार समाहृत हो जाऊँ जहाँ आज हूँ।

(ङ) काव्य-सौंदर्य-
(i) यह बैंग्ला भाषा की भाषांतरित कविता होने के कारण खड़ी बोली की समस्त रूप रेखा देखने को मिल रही है।
(ii) मूल रूप से तद्भव के प्रयोग के साथ देशज एवं विदेशज शब्दों का भी अच्छा प्रयोग है।
(ii) भाषा सरल, सुबोध एवं स्वाभाविक है।
(iv) कविता मुक्तक होते हुए भी कहीं-कहीं संगीतमयता का रूप धारण कर लिया है।
(v) भक्ति भावना की उत्कटता के कारण प्रसादगुण की अपेक्षा की गई है। कहीं-कहीं माधुर्य गुण की झलक प्रकृति प्रेम में दिखाई पड़ जाती है।


2. शायद तुम देखोगे शाम की हवा के साथ उड़ते एक उल्लू को
शायद तुम सुनोगे कपास के पेड़ पर उसकी बोली
घासीली जमीन पर फेंकेगा मुट्ठी भर-भर चावल
शायद कोई बच्चा – उबले हुए !
देखोगे, रूपसा के गंदले-से पानी में
नाव लिए जाते एक लड़के को-उड़ते फटे
पाल की नाव !
लौटते होंगे रंगीन बादलों के बीच, सारस
अँधेरे में होऊँगा मैं उनहीं के बीच में
देखना !

प्रश्न.
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखें।
(ख) पद का प्रसंग लिखें।
(ग) सरलार्थ लिखें।
(घ) भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) काव्य-सौंदर्य स्पष्ट करें।

उत्तर

(क) कविता-लौटकर आऊँगा फिर।
कवि-जीवनानंद दास।

(ख) प्रसंग प्रस्तुत पद्यांश में बांग्ला साहित्य के सुप्रसिद्ध कवि जीवनानंद दास ने अपनी बंगाल भूमि के प्रति अंगाध प्रेम का वर्णन किया है। कवि की उत्कट इच्छा है कि इस जीवन के बाद जब भी जन्म लूँ तो इसी मातृभूमि की गोद में, क्योंकि यहाँ की संस्कृति सभ्यता प्राकृतिक सौंदर्य के एक-एक अंश कवि के हृदय में समाहृत है। अतः अपनी मातृभूमि का वर्णन चित्रात्मक
शैली में किया गया है।

(ग) सरलार्थ पुनः कवि अपनी मातृभूमि के प्रति अपनी जिज्ञासां व्यक्त करते हुए कहते हैं कि मैं उस मातृभूमि पर पुन: लौटकर आऊँगा, हे मानव जहाँ प्रकृति के अनुपम सौंदर्यमयी वस्तु हवा के साथ शाम के एक उल्लू के उड़ते हुए देखते हो। शायद कपास के पेड़ पर उसकी मधुर आवाज भी सुनोगे। हरी-भरी लहलहाती हुई घास की जमीन पर जब कोई बच्चा एक मुट्ठी चावल फेंकेगा तो उसे चुगने के लिए रंग-बिरंग के पक्षी वहाँ आएंगे, उबले हुए चावल भी वहाँ फेंके हुए मिल सकते हैं। जब तुम भी इस बंगाल की धरती पर पहँचोगे तो रूका गंदे पानी में नाव लिये जाते हुए उसी प्रकार देखोगे जैसे फटे हुए नाव की पाल उड़ते हुए जाते हैं। आकाश के स्थल पर रंगीन बादलों के बीच अनेक सारस संध्याकालीन लौटते हुए नजर आएंगे और उस समय आनंदमय अवस्था में अंधेरे में भी उनके साथ होऊँगा।

(घ) भाव-सौंदर्य प्रस्तुत अंश में मातृभूमि की सुंदरता एवं संभावना कवि के हृदय के कोने-कोने में समाहृत है। रंगीन बादलों की छटा स्वेत कपास की सुन्दरता, उफनती नदी की मोहकता का वर्णन बिम्ब-प्रतिबिम्बों के रूप में मुखरित हुआ है।

(ङ) काव्य-सौंदर्य बांग्ला भाषा से खड़ी बोली में भाषांतरित होकर कविता पूर्ण । योग्यता में आ गई है। यहाँ सरल, सुबोध और नपे-तुले तद्भव शब्दों का प्रयोग मिल रहे हैं। कहीं-कहीं बांग्ला तद्भव के प्रयोग से भाव में सौंदर्य बोध स्पष्ट है। यहाँ चित्रमयी शैली का प्रयोग भावानुसार पूर्ण सार्थक है।
कविता में बिम्ब-प्रतिबिम्बों का सौंदर्य अनायास ही पाठक को आकर्षित करता है और कविता मुक्तक होकर भी संगीतमयी है।

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