Summary of सपनों के से दिन Class 10th Sanchyan Notes

'सपनों के-से दिन' पाठ के लेखक 'गुरदयाल सिंह' हैं  जिसमें लेखक ने अपने स्कूल के दिनों का वर्णन किया है।

लेखक अपनी आत्मकथा के इस अंश में बताते हैं कि बचपन में जब वह और मेरे साथी खेला करते थे तो सभी एक जैसे लगते थे। नंगे पाँव, फटी मैली सी-कच्छी आरै टूटे बटनों वाले कई जगह से फटे उनके कुर्ते और बिखरे बाल। खेलते हुए इधर-उधर भागते-भागते वे गिर पड़ते जिससे पाँव छिल जाते थे। उनकी चोट देखकर माँ, बहनें तथा पिता उनकी पिटाई किया करते थे। इसके बावजदू भी वे बच्चे अगले दिन फिर खेलने निकल पड़ते । लेखक बचपन में यह सब नहीं समझ पाए था।

जब अध्यापक की ट्रैनिग में उन्होंने बाल-मनोविज्ञान विषय पढ़ा, तब उन्हें यह बात समझ में आई। सभी बच्चों की आदतें मिलती-जलुती थीं। उनमें से अधिकतर स्कूल नहीं जाते थे या फिर पढ़ने में रुचि न लेते थे। पढ़ाई का महत्व नहीं समझा जाता था। स्वयं माता-पिता भी पढ़ाने में रुचि नहीं लेते थे। वे उन्हें पंडित घनश्याम दास से लंडे पढ़वाकर हिसाब-किताब सिखा देना आवश्यक समझते थे। लेखक के आधे से ज़्यादा साथी राजस्थान या हरियाणा से आकर मंडी में व्यापार या दुकानदारी करने आए परिवारों से थे। उनकी बोली कम समझ में आती थी। उनकी बोली पर हँसी भी आती थी पर खेलते समय कभी-कभी ये बोली समझ में आ जाती थी।

बचपन में बच्चों को सबकुछ अच्छा लगता था, केवल उन्हें स्कूल जाना अच्छा नहीं लगता था। लेखक को अपने स्कूल जाने का रास्ता याद था, जिसके दोनों ओर काँटेदार झाड़ियाँ थीं। उनके पत्तों की महक नीम जैसी थी, जिसे लेखक आज भी अपनी साँसों में अनुभव करता है। स्कूल की क्यारियों में कई तरह के फूल लगे हुए थे, जिन्हें वे लोग चपरासी की नज़र बचाकर तोड़ लेते थे।

नई कक्षा में जाना अच्छा लगता था, परंतु साथ में डर भी लगता था कि मास्टरों से पहले से अधिक मार पड़ेगी। उन दिनों स्कूल में डेढ़ महीना पढ़ाई होने के बाद डेढ़-दो महीने की छुट्टियाँ होती थीं। छुट्टियों के शुरू के दो-तीन सप्ताह खेलने में बीत जाते थे। वे अपनी माँ के साथ नाना के घर जाकर छुट्टियों का भरपूर आनंद लेते थे। यदि किसी कारण नाना के घर नहीं जाते थे, तो घर के पास बने तालाब में सारा दिन खेलते थे। तालाब में नहाकर गीले बदन ही पास में पड़ी रेत में खेलते और फिर से तालाब में कूद जाते। ऐसा वे एक बार नहीं, न जाने कितनी बार करते थे। उनमें कोई भी अच्छा तैराक नहीं था। यदि कोई बच्चा गहरे पानी में चला जाता था, तो दूसरे बच्चे उसे भैंस के सींग या पूंछ पकड़कर बाहर आने की सलाह देते थे। इसी तरह छुट्टियों का एक महीना बीत जाता था।

एक महीना शेष रहने पर स्कूल से मिले काम की याद आने लगती थी। हिसाब के अध्यापक दो सौ सवाल करके लाने के लिए कहते थे। बच्चे अपने मन में हिसाब लगाते थे कि यदि दस सवाल भी प्रतिदिन किए जाएँ, तो बीस दिन में काम समाप्त हो जाएगा। इसलिए दस दिन और खेला जा सकता है। दस की बजाय पंद्रह दिन खेल में निकल जाते थे। पंद्रह सवाल प्रतिदिन करने की सोचकर एक-दो दिन और खेल में निकल जाते थे। ऐसे ही हिसाब लगाते-लगाते छुट्टियाँ कम होती जाती थीं और स्कूल जाने का भय सताने लगता था। कुछ सहपाठी ऐसे भी थे जो काम करने से अच्छा मास्टर की पिटाई खाना उचित समझते थे। उनका नेता ओमा हुआ करता। उसके जैसा लड़का कोई नहीं था। उसका सिर हाँड़ी जितना बड़ा था। उसका सिर ऐसे लगता मानों बिल्ली के बच्चे के माथे पर तरबूज़ रखा हो। वह हाथ-पाँव से नहीं अपितु सिर से लड़ाई करता था। वह अपना सिर दूसरे के पेट या छाती में मारा करता था। सहपाठियों ने उसके सिर की टक्कर का नाम ‘रेल-बम्बा’ रखा हुआ था।

लेखक का स्कूल बहुत छोटा था। उसमें केवल नौ कमरे थे, जो अंग्रेज़ी के अक्षर एच की भाँति बने थे। पहला कमरा हेडमास्टर श्री मदनमोहन शर्मा जी का था। वे स्कूल की प्रेयर के समय बाहर आते थे। पी.टी. अध्यापक प्रीतम चंद लड़कों की कतारों का ध्यान रखते थे। वे बहुत कठोर थे और छात्रों की खाल खींचा करते थे। परंतु हेडमास्टर उसके बिल्कुल उलटे स्वभाव के थे। वे पाँचवीं और आठवीं कक्षा को अंग्रेज़ी पढ़ाते थे। वे कभी भी किसी छात्रा को मारते नहीं थे। केवल गुस्से में कभी-कभी गाल पर हलकी चपत लगा देते थे। कुछ छात्रों को छोड़कर बाकी सब रोते हुए ही स्कूल जाया करते थे। कभी-कभी स्कूल अच्छा भी लगता था जब पी.टी. टीचर कई रंगों की झंडियाँ पकड़वाकर स्काउटिग का अभ्यास करवाते थे। यदि हम ठीक से काम करते तो वे ‘शाबाश’ कह कर हमारा हौसला बढ़ाते थे।

लेखक के परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, इसलिए हेडमास्टर शर्मा एक अमीर परिवार के लड़के की किताबें लाकर उसे दे देते थे। अपने स्कूल के हेडमास्टर के कारण ही लेखक अपनी शुरू की पढ़ाई पूरी कर सका। लेखक अपने परिवार का पहला लड़का था, जो स्कूल जाने लगा था। लेखक को नई कक्षा में जाने पर कभी कोई खुशी अनुभव नहीं होती थी। उसे किताबों और कॉपियों में से अजीब-सी गंध आती थी, जिससे उसका मन उदास हो जाता था। इसका कारण उसे आज भी समझ में नहीं आता। इसके पीछे मनोवैज्ञानिक कारण हो सकते थे; जैसे-आगे की पढ़ाई का कठिन होना या नए मास्टरों से मार का भय। यह भय मन के अंदर गहरी जड़ें जमा चुका था। इसलिए लेखक को नई कक्षा में जाने का कोई उत्साह नहीं होता था।

यह दूसरे विश्व-युद्ध का समय था। नाभा रियासत के राजा को अंग्रज़ेां ने सन 1923 में गिरफतार कर लिया था। तमिलनाडु में काडेाएकेनाल में जंग शुरू होने से पहले उनका देहांत हो गया था। उनका बेटा विलायत में पढ़ रहा था। उन दिनों अंग्रेज़ फौज में भरती करने के लिए नौटंकी वालों को साथ लेकर गाँवों में जाया करते थे। वे फैाज के सुखी जीवन का दृश्य प्रस्तुत करते थे ताकि नौजवान फैाज में भरती हो जाएँ। जब लेखक स्काउटिग की वर्दी पहन कर परेड करते, तब उनको भी ऐसा ही महसूस होता था।

लेखक ने मास्टर प्रीतमचंद को कभी मुसकराते हुए नहीं देखा। उनकी वेशभूषा सभी को भयभीत कर देती थी। उनसे सभी डरते थे और नफ़रत भी करते थे। वे बहुत कठिन सज़ा दिया करते थे। वह चैाथी श्रेणी में फारसी पढ़ाते थे। एक दिन उन्होंने सभी बच्चों को शब्द-रूप याद करने के लिए कहा। अगले दिन उन्होंने सब बच्चों से शब्द-रूप सुने, परंतु किसी भी बच्चे को पूरी तरह शब्द-रूप याद नहीं थे। मास्टर जी ने सभी बच्चों को टाँगों के पीछे से बाँहें निकालकर कान पकड़ने और पीठ ऊँची करने के लिए कहा। कमजोर बच्चे सहन नहीं कर सके; तीन चार मिनट बाद वे गिरने लगे थे। जब लेखक की बारी आई, उसी समय हेडमास्टर शर्मा जी उधर से निकले। उन्होंने पीटी सर को बच्चों से इतना बुरा व्यवहार करते देखा, तो उन्हें सहन नहीं हुआ। उन्होंने उन्हें बहुत डाँटा और उनकी शिकायत डायरेक्टर को लिखकर भेज दी। जब तक ऊपर से आदेश नहीं आ जाते थे, तब तक पीटी सर स्कूल में नहीं आ सकते थे। 

पी. टी. मास्टर अपने घर पर आराम करते रहते थे। उन्हें अपनी नौकरी की बिलकुल भी चिंता नहीं थी। वे अपने पिंजरे में रखे दो तोतों को दिन में कई बार भीगे हुए बादाम खिलाते थे और उनसे मीठी-मीठी बातें करते रहते। बच्चों को यह एक चमत्कार लगता था कि जो मास्टर स्कूल में बच्चों को बुरी तरह मारता था, वह अपने तोतों के साथ कैसे मीठी बातें कर लेता था।

कठिन शब्दों के अर्थ-

• ट्रेनिंग - प्रशिक्षण
• लंडे - हिसाब-किताब लिखने की पंजाबी प्राचीन लिपि
• बहियाँ - खाता
• खेडण -  खेलने
• श्रेणी - कक्षा
• ननिहाल - नानी का घर
• खाल खींचना - पिटाई करना
• पीटी शिक्षक - शारीरिक शिक्षा के अध्यापक
• चपत - थप्पड़
• सतिगुर - सच्चा गुरु
• धनाढ्य - अमीर
• मनोविज्ञान - मन का विज्ञान
• हरफनमौला - विद्वान
• अढे - यहाँ
• उठै - वहाँ
• लीतर - टूटे हुए पुराने खस्ताहाल जूते
• मुअत्तल - निलंबित
• महकमाएँ-तालीम - शिक्षा विभाग
• अलौकिक -अनोखा
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