चित्रकूट में भरत सार NCERT Class 6th Hindi

भरत अपनी ननिहाल केकय राज्य में थे। वे अयोध्या में हो रही घटनाओं से अनजान थे| भरत ने सपने में देखा कि समुद्र सूख गया। चन्द्रमा धरती पर गिर पड़ा है। वृक्ष सूख गये हैं। एक राक्षसी उसके पिता को खींचकर ले जा रही है। वे रथ पर बैठे हैं। रथ गधे खींच रहे हैं। अयोध्या से घुड़सवार दूत वहाँ पहुँचे और उन्हें तुरंत अयोध्या चलने के लिए कहा। केकयराज ने भरत को सौ रथों और सेना के साथ विदा किया।


वे आठ दिन बाद अयोध्या पहुँचे तब उन्हें वहाँ शान्ति और उजाड़ दिखाई दी| उनकी माता कैकेयी ने बताया कि उनके पिता महाराज दशरथ का देहान्त हो गया है। भरत यह सुनकर विलाप करने लगे| भरत ने माता से राम के बारे में पूछा| कैकेयी ने बताया कि महाराज ने राम को चौदह वर्ष का वनवास और भरत को राजगद्दी दी है। भरत के पूछने पर कैकेयी ने उन्हें वरदान वाली बात बताई| भरत को क्रोध आ गया। वे माँ को भला-बुरा कहने लगे। उन्होंने कहा कि पिता को खोकर तथा भाई से बिछड़कर राज्य नहीं चाहिए। वहाँ अन्य मंत्रीगण और सभासद भी आ गए। भरत ने कहा कि वे राम के पासजायेंगें। उन्हें मना कर लाएँगें और प्रार्थना करेंगें कि वे गद्दी सँभालें|

भरत कौशल्या के महल की ओर चल पड़े। उन्होंने साड़ी बात माता कौशल्या को बताई| उन्होंने भरत को माफ़ कर दिया| सुबह तक शत्रुघ्न को भी यह पता चल गया था कि मंथरा ने ही कैकेयी के कान भरे थे। वे मंथरा को मार देना चाहते थे परंतु भरत ने उसे बचा लिया था। मुनि वशिष्ठ को अयोध्या का राजसिंहासन खाली रखना ठीक नहीं लग रहा था। उन्होंने भरत को राजकाज सँभालने के लिए कहा तो भरत ने वन जाकर राम को अयोध्या वापस लाने की बात कही।

भरत के साथ मुनि वशिष्ठ, सभी माताएँ, मंत्रीगण, सभासद, नगरवासी और अयोध्या की चतुरंगिणी सेना राम को अयोध्या वापस लाने के लिए चित्रकूट के लिए चल पड़ीं। भरत जब शृंगवेरपुर पहुंचे तो उनके साथ सेना को देखकर निषादराज गुह को लगा की भरत राम पर आक्रमण करने जा रहे परंतु सही स्थिति जानकर उन्होंने उनका स्वागत किया| उन लोगों ने नौकाओं द्वारा गंगा पार की| राम भारद्वाज आश्रम से दूर एक पहाड़ी पर पर्णकुटी बनाकर रह रहे थे। अयोध्यावासियों ने रात भारद्वाज आश्रम में व्यतीत की और सुबह राम के पास जाने के लिए प्रस्थान आरम्भ किया|

राम और सीता पर्णकुटी में थे। लक्ष्मण पहरा दे रहे थे। कोलाहल सभी ने सुना। लक्ष्मण ने देखा अयोध्या की विराट सेना चली आ रही है। उन्होंने जाकर राम को बताया और कहा कि शायद एकछत्र राज करने के लिए हमें भरत मार डालना चाहते हैं। राम ने लक्ष्मण को धैर्य रखने के लिए कहा| भरत सेना को पहाड़ी के नीचे रोककर शत्रुघ्न के साथ नंगे पाँव चलकर शिला पर बैठे हुए राम के चरणों में आकर गिर पड़े और कुछ नहीं बोले। राम-लक्ष्मण और सीता पहाड़ी से उतरकर नीचे नगरवासियों से मिले|

अगले दिन भरत ने राम से राजग्रहण करते हुए अयोध्या चलने का आग्रह किया। राम ने पिता की आज्ञा का उल्लंघन करने से इंकार कर दिया। राम के मना करने पर भरत ने कहा कि मैं आपके खड़ाऊँ अपने साथ लेकर जाऊँगा और चौदह वर्ष उसी की आज्ञा से राजकाज चलाऊँगा। भरत अयोध्या में कभी नहीं रुके। उन्होंने तपस्वी वस्त्र पहने और नंदीग्राम चले गए।

शब्दार्थ -

• अनभिज्ञ – अनजान
• मन उचटना – उदास होना
• तुमुलनाद - बहुत शोर
• कलरव – पक्षियों का चहचहाना
• विकलता – बेचैनी
• अक्षम्य – जिसे क्षमा न किया जा सके
• ग्लानि – पछतावा
• उद्यत – तैयार
• चतुरंगिणी सेना – हाथी, घोड़ों, रथों और पैदल सैनिकों की सेना
• सुरम्य – सुंदर
• पर्णकुटी – पत्तों से बनी कुटिया
• नैसर्गिक – प्राकृतिक
• विरत – अलग
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