भोर और बरखा सार वसंत भाग - 1 (Summary of Bhor aur Barkha Vasant)

'भोर और बरखा' मीराबाई द्वारा रचित दो पद हैं। पहला पद भोर अर्थात् सुबह के बारे में हैं। दूसरा पद बरखा अर्थात वर्षा ऋतु के बारे में है।

पहला पद

कवयित्री ने माँ यशोदा द्वारा बाल कृष्ण को जगाने का वर्णन किया है। माँ यशोदा कृष्ण को जगाती हुई कहती हैं कि रात बीत गई है और सुबह हो गई| हर घर के दरवाजे खुल गए हैं। गोपियाँ दही को मथकर मक्खन निकाल रही हैं। उनके कंगनों की झंकार साफ़ सुनाई दे रही है। उठो मेरे बेटे! देवता व मनुष्य सभी दरवाजे पर खड़े हैं। ग्वाल-बाल सब तुम्हारी जय-जयकार कर रहे हैं। तब श्रीकृष्ण उठ जाते हैं और अपने हाथ में मक्खन और रोटी लेकर गायों की रखवाली के लिए चल पड़ते हैं। मीराबाई कहती हैं श्रीकृष्ण अपनी शरण में आने वालों का उद्धार करते हैं।

दूसरा पद

मीरा कहती हैं कि सावन के बादल बरसने लगे हैं जो कवियित्री के मन को बहुत अच्छे लगते हैं। सावन के आने को कृष्ण के आगमन का सुखद संदेश समझ रही हैं। इसके कारण मेरे मन में उमंग भर गया है क्योंकि इसमें मेरे प्रभु के आने की आहट सुनाई दे रही है। बादल चारों दिशाओं से उमड़-घुमड़ कर बरसने के लिए आए हैं। बीच-बीच में बिजली भी चमक रही है। वर्षा की छोटी-छोटी बूंदें धरती पर पड़ रही हैं और ठंडी, सुहावनी हवा चल रही है। ऐसे में कवयित्री अपने प्रभु गिरधर नागर के लिए सुखद और मंगलगीत गाना चाहती है।

कठिन शब्दों के अर्थ -

• रजनी – रात
• भोर - सुबह
• भयो – हो गई
• किंवारे - किवाड़
• द्वार
• मथत - मथना
• सुर-नर - देवता और मनुष्य
• ठाढे - खड़े।
• कुलाहल - शोर
• सबद - शब्द
• उचारै - उच्चारण करना
• लीनी - ले ली
• गउवन - गायें
• रखवारे - रखवाली करने वाले
• सरण - शरण
• तारै - उद्धार करना
• बरस - बरसना
• बदरिया - बादल
• भावन - अच्छा लगना
• उमग्यो - प्रसन्न होना
• मनवा - मन
• भनक - खबर
• हरि - भगवान
• आवन - आना
• चहुँदिस - चारों दिशाओं से
• दामिण - बिजली
• दमक – चमक
• लावण - लाना
• मेहा - मेघ, बादल
• सीतल - ठंडी
• नागर - चतुर
• मंगल गावन - मंगल गीत

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