NCERT Solutions of Psychology in Hindi for Class 11th: Ch 2 मनोविज्ञान में जाँच कि विधियाँ मनोविज्ञान 

प्रश्न 

पृष्ठ संख्या 41

1. वैज्ञानिक जाँच के लक्ष्य क्या होते हैं?

उत्तर

वैज्ञानिक जाँच के निम्नलिखित लक्ष्य हैं:

• वर्णन: मनोवैज्ञानिक अध्ययन में हम व्यवहार अथवा किसी घटना का यथासंभव सही-सही वर्णन करते हैं जिससे किसी व्यवहार विशेष को अन्य व्यवहारों से अलग करने में सहायता मिलती है|

• पूर्वकथन: वैज्ञानिक जाँच का दूसरा लक्ष्य व्यवहार का पूर्वकथन है| यदि आप व्यवहार को सही-सही समझने तथा वर्णन करने में सक्षम हैं तो आप एक व्यवहार विशेष के अन्य व्यवहारों, घटनाओं, अथवा गोचरों से संबंध को सरलतापूर्वक जान सकते हैं| ऐसी स्थिति में इस बात की भविष्यवाणी की जा सकती है कि कतिपय दशाओं में कुछ त्रुटियों के साथ वह व्यवहार विशेष घटित हो सकता है| पूर्वकथन प्रेक्षण किए गए व्यक्तियों की संख्या में वृद्धि होने पर अधिक सही होता है|

• व्याख्या: मनोवैज्ञानिक जाँच का तीसरा लक्ष्य व्यवहार के कारणों की अथवा उसके निर्धारकों की जानकारी प्राप्त करना है तथा वे कौन सी दशाएँ हैं जिनमें व्यवहार विशेष घटित नहीं होता है|

• नियंत्रण: यदि एक व्यक्ति व्यवहार विशेष के घटित होने की व्याख्या कर लेता है तो वह उक्त व्यवहार की पूर्ववर्ती दशाओं में परिवर्तन करके उसको नियंत्रित कर सकता है| नियंत्रण तीन बातों से संबंधित होता है: किसी व्यवहार विशेष को घटित करना, उसे कम करना अथवा बढ़ाना|

• अनुप्रयोग: वैज्ञानिक जाँच का अंतिम लक्ष्य किसी विशेष व्यवहार के प्रयोग के द्वारा लोगों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाना है|

2. वैज्ञानिक जाँच करने में अन्तर्निहित विभिन्न चरणों का वर्णन कीजिए|

उत्तर

वैज्ञानिक जाँच करने में अन्तर्निहित विभिन्न चरण निम्नलिखित हैं:

• समस्या का संप्रत्ययन: वैज्ञानिक शोध का कार्य तब प्रारंभ होता है जब शोधकर्ता अध्ययन के कथ्य अथवा विषय का चयन करता है|  इसके बाद वह अपना ध्यान केन्द्रित करता है तथा विशेष शोध प्रश्न अथवा समस्या का विकास करता है| ऐसा पूर्व में किए गए अनुसंधानों की समीक्षा, प्रेक्षणों तथा व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर किया जाता है| समस्या की पहचान के बाद शोधकर्ता समस्या का एक काल्पनिक उत्तर ढूँढ़ता है, जिसे परिकल्पना कहते हैं|

• प्रदत्त संग्रह: वैज्ञानिक विधि का दूसरा चरण प्रदत्त संग्रह होता है| प्रदत्त संग्रह के लिए संपूर्ण अध्ययन का एक अनुसन्धान अभिकल्प होना चाहिए|
इसके लिए अग्रलिखित चार पहलुओं के बारे में निर्णय लेना पड़ता है:
(क) अध्ययन के प्रतिभागी
(ख) प्रदत्त संग्रह की विधि
(ग) अनुसंधान में प्रयुक्त उपकरण एवं
(घ) प्रदत्त संग्रह की प्रक्रिया|

• निष्कर्ष निकलना: अगला चरण संगृहित प्रदत्तों का सांख्यिकीय प्रक्रियाओं की सहायता से विश्लेषण करना है जिससे हम समझ सकें कि प्रदत्तों का क्या अर्थ है? यह कार्य ग्राफ द्वारा (जैसे वृतखंड, दंड-आरेख, संचयी बारंबारता आदि बनाना) तथा विभिन्न सांख्यिकीय विधियों के उपयोग द्वारा भी किया जा सकता है| विश्लेषण का उद्देश्य परिकल्पना की जाँच करके तदनुसार निष्कर्ष निकालना है|

• शोध निष्कर्षों का पुनरीक्षण: अनुसंधानकर्ता प्रस्तुत परिकल्पना की पुष्टि करते हैं या फिर एक वैकल्पिक परिकल्पना स्थापित करता है तथा नए प्रदत्तों के आधार पर इसका परीक्षण करता है और निष्कर्ष निकालता है| इस परिकल्पना/सिद्धांत की परीक्षा भावी अनुसंधानकर्ताओं द्वारा की जा सकती है, अतः यह निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है|

3. मनोवैज्ञानिक प्रदत्तों के स्वरुप की व्याख्या कीजिए|

उत्तर

मनोवैज्ञानिक प्रदत्तों के स्वरुप हैं:

• ये व्यक्तियों के अव्यक्त तथा व्यक्त व्यवहारों, आत्मपरक अनुभवों तथा मानसिक प्रक्रियाओं से संबंधित होता है|

• दत्त भौतिक अथवा सामाजिक सन्दर्भों, संबंधित व्यक्तियों तथा व्यवहार के गह्तित होने के समय आदि से स्वतंत्र नहीं होते हैं|

• प्रदत्त संग्रह की प्रयुक्त विधियाँ (सर्वेक्षण, साक्षात्कार, प्रयोग आदि) तथा सूचना के स्रोत (उदाहरण के लिए, व्यक्ति अथवा समूह, युवा अथवा वृद्ध, पुरूष अथवा महिला, शहरी अथवा ग्रामीण) प्रदत्त के स्वरुप तथा गुणवत्ता का निर्धारण करते हैं|

4. प्रायोगिक तथा नियंत्रित समूह एक-दूसरे से कैसे भिन्न होते हैं? एक उदाहरण की सहायता से व्याख्या कीजिए|

उत्तर

• प्रायोगिक तथा नियंत्रित समूह एक-दूसरे से भिन्न होते हैं| प्रायोगिक समूह वह समूह होता है जिसमें समूह सदस्यों को अनाश्रित परिवर्त्य प्रहस्तन के लिए प्रस्तुत किया जाता है जो नियंत्रित समूह में अनुपस्थित रहता है| उदाहरण के लिए, लताने और डार्ली के अध्ययन में, दो प्रायोगिक समूह और एक नियंत्रित समूह थे| अध्ययन में प्रतिभागी तीन कक्षों में भेजे गए थे| एक कक्ष में कोई उपस्थित नहीं था (नियंत्रित समूह)| अन्य दो कक्षों में दो व्यक्ति बैठाए गए थे (प्रायोगिक समूह)|

• एक कक्ष में दो व्यक्तियों की उपस्थिति या अनुपस्थिति अनाश्रित परिवर्त्य था| कक्ष में भौतिक एवं अन्य प्रकार की सुविधाएँ दोनों समूहों के लिए एकसमान थीं| प्रायोगिक समूह में, दो व्यक्ति असली प्रतिभागी के रूप में मौजूद थे तथा नियंत्रित समूह में कोई प्रतिभागी नहीं था| इसलिए यह कहा जा सकता है कि नियंत्रित समूह में प्रहस्तित परिवर्त्य अनुपस्थित रहता है|

5. एक अनुसंधानकर्ता साइकिल चलाने की गति एवं लोगों की उपस्थिति के मध्य संबंध का अध्ययन कर रहा है| एक उपयुक्त परिकल्पना का निर्माण कीजिए तथा अनाश्रित एवं आश्रित परिवर्त्यों की पहचान कीजिए|

उत्तर

साइकिल चलाने की गति एवं लोगों की उपस्थिति के मध्य संबंध:

परिकल्पना- जैसे ही साइकिल चलाने की गति बढ़ जाती है, वहाँ उपस्थित लोगों की चाल भी तेजी से बढ़ती है|

क्षेत्र प्रयोग- दो बाजार स्थल

एक लड़के को बाजार में अलग-अलग गति से साइकिल चलाने के लिए कहा जाता है|

• बाजार 1- यह देखा जाता है कि जब लड़का साइकिल पर उच्च गति के साथ बाजार की सड़कों से गुजरता है, तो लोग धक्का लगने से बचने के लिए उसके आस-पास के लोग जल्दी भाग जाएँगे|

• बाजार 2- यह देखा जाता है कि जब लड़का बाजार की सड़कों पर सामान्य गति से गुजरता है तो उसके आसपास के लोग बाजार 1 की तुलना में धीरे-धीरे हटेंगे|

• निष्कर्ष- जब साइकिल कि गति उच्च होती है तो लोग वहां से जल्दी हट जाते हैं जबकि गति कम होने पर पहले की तुलना में धीरे हटते हैं|

• निष्कर्षों का पुनरीक्षण- निष्कर्ष परिकल्पना से मेल खाता है| इसलिए परिकल्पना सत्य है|
अनाश्रित परिवर्त्य- साइकिल की गति|

• आश्रित परिवर्त्य- लोगों की चाल|

6. जाँच की विधि के रूप में प्रायोगिक विधि के गुणों एवं अवगुणों की व्याख्या कीजिए|

उत्तर

जाँच की विधि के रूप में प्रायोगिक विधि के गुण निम्नलिखित हैं:

• यह निर्धारित करने के लिए संभव है कि क्या अनाश्रित परिवर्त्य में परिवर्तन आश्रित परिवर्त्य में परिवर्तन के कारण होता है|

• बाह्य परिवर्तन को कम किया जा सकता है|

• प्रतिसंतुलनकारी तकनीक द्वारा क्रम प्रभाव को कम करने के लिए उपयोग किया जाता है|

• विभिन्न समूहों में प्रतिभागियों के यादृच्छिक वितरण से समूहों के बीच विभवपरक व्यवस्थित अंतर को समाप्त करता है|

जाँच की विधि के रूप में प्रायोगिक विधि के अवगुण निम्नलिखित हैं:

• अत्यधिक नियंत्रित प्रयोगशाला परिस्थिति में इनका प्रयोग किया जाता है जो वास्तविक व्यवहार में नहीं होते|

• प्रयोग ऐसे परिणाम प्रदान कर सकते हैं जिनका ठीक से सामान्यीकरण नहीं हो पाता अथवा वे वास्तविक परिस्थितियों में अनुप्रयुक्त नहीं हो पाते हैं|

• यह सर्वदा संभव नहीं होता कि किसी समस्या विशेष का अध्ययन प्रायोगिक रूप में किया जा सके|

• समस्त प्रासंगिक परिवर्त्यों को जानना और और उनका नियंत्रण करना कठिन होता है|

7. डॉ. कृष्णन व्यवहार को बिना प्रभावित अथवा नियंत्रित किए एक नर्सरी विद्यालय में बच्चों के खेलकूद वाले व्यवहार का प्रेक्षण करने एवं अभिलेख तैयार करने जा रहे हैं| इसमें अनुसंधान की कौन-सी विधि प्रयुक्त हुई है? इसकी प्रक्रिया की व्याख्या कीजिए तथा इसके गुणों तथा अवगुणों का वर्णन कीजिए|

उत्तर

डॉ. कृष्णन  के अनुसंधान में असहभागी प्रेक्षण विधि प्रयुक्त हुई है| वह नर्सरी विद्यालय में बच्चों के खेलकूद वाले व्यवहार का प्रेक्षण करने के लिए एक विडियो कैमरा लगा सकते हैं या फिर बिना अवरोध पैदा किए अथवा सामान्य गतिविधियों में भाग लिए बिना कक्षा के एक कोने में बैठ सकता है और फिर इसका विश्लेषण कर निष्कर्ष निकाल सकता है|

• गुण- अनुसंधानकर्ता लोगों और उनके व्यवहारों का प्रकृतिवादी स्थिति में जैसे वह घटित होती है अध्ययन करता है|

• अवगुण- यह विधि श्रमसाध्य है, अधिक समय लेता है, तथा प्रेक्षक के पूर्वाग्रह के कारन इसमें गलती होने का डर रहता है|

8. उन दो स्थितियों का वर्णन कीजिए जहाँ सर्वेक्षण विधि का उपयोग किया जा सकता है| इस विधि की सीमाएँ क्या हैं?

उत्तर

वे दो स्थितियाँ जहाँ सर्वेक्षण विधि का उपयोग किया जा सकता है:
• परिवार नियोजन के प्रति लोगों की अभिवृति में इसका उपयोग किया जाता है|

• पंचायती राज की संस्थाओं, शिक्षा, स्वच्छता आदि से संबंधित कार्यक्रमों के संचालन हेतु शक्ति प्रदान करने के प्रति लोगों की अभिवृति जानने के लिए भी किया जाता है|

इस विधि की सीमाएँ निम्नलिखित हैं:

• लोग गलत सूचनाएँ दे सकते हैं | वे स्मृति की गड़बड़ी से अथवा शोधकर्ता को यह बताना चाहते हैं कि किसी मुद्दे पर उनके वास्तविक विचार क्या हैं- वे कैसा विश्वास करते हैं|

• लोग कभी-कभी वैसी प्रतिक्रियाएँ देते हैं जैसा शोधकर्ता जानना चाहता है|

9. साक्षात्कार एवं प्रश्नावली में अंतर कीजिए|

उत्तर

साक्षात्कार
प्रश्नावली
यह अंतःक्रिया का वह रूप है जहाँ साक्षात्कारदाता अथवा प्रतिक्रियादाता से सीधे प्रश्न पूछे जाते हैं|यह एक रूपरेखा है जिसमें वैज्ञानिक प्रश्नों के उत्तर लिख कर दिया जाता है|
स्थिति के अनुसार इसके प्रश्न उनके अनुक्रम में भिन्न हो सकते हैं|इसमें पूर्वनिर्धारित प्रश्न व्यवस्थित होते हैं|
अनुसंधानकर्ता तथा साक्षात्कार आमने-सामने संपर्क में रहते हैं|अनुसंधानकर्ता तथा साक्षात्कार के आमने-सामने संपर्क की आवश्यकता नहीं होती|
प्रश्नों की संख्या घटाई या बढ़ाई जा सकती है|प्रश्नों की संख्या में कोई परिवर्तन नहीं होता है|

10. एक मानकीकृत परीक्षण की विशेषताओं का वर्णन कीजिए|

उत्तर

एक मानकीकृत परीक्षण की विशेषताएँ निम्नलिखित है:

• विश्वसनीयता- इसका संबंध दो भिन्न अवसरों पर एक ही परीक्षण पर किसी व्यक्ति द्वारा प्राप्त लब्धांकों की संगति से है| परीक्षण-पुनःपरीक्षण कालिक स्थिरता का द्योतक है तथा विभक्तार्ध परीक्षण की आंतरिक संगति की मात्रा का संकेत देती है|

• वैधता- परीक्षण का उपयोग होने के लिए उसकी वैधता भी आवश्यक है जिससे यह पता चलता है कि क्या परीक्षण उस चीज का मापन कर रहा है जिसका कि वह मापन करने का दावा करता है|

• मानक- कोई परीक्षण प्रामाणिक परीक्षण तब होता है जब परीक्षण के लिए मानक विकसित कर लिए जाते हैं| इससे एक व्यक्ति के निष्पादन समूह के अन्य व्यक्तियों के साथ तुलना करने में सहयता मिलती है|

11. मनोवैज्ञानिक जाँच की सीमाओं का वर्णन कीजिये|

उत्तर

मनोवैज्ञानिक जाँच की सीमाएँ निम्नलिखित हैं:

• वास्तविक शून्य बिंदु का अभाव: मनोवैज्ञानिक मापन में हमें शून्य बिंदु नहीं मिलते हैं| उदाहरण के लिए, इस दुनिया में किसी भी व्यक्ति की बुद्धि शून्य नहीं होती| मनोवैज्ञानिक अध्ययन में जो कुछ लब्धांक प्राप्त करते हैं वे अपने आप में निरपेक्ष नहीं होते बल्कि उनका सापेक्षिक मूल्य होता है|

• मनोवैज्ञानिक उपकरणों का सापेक्षिक स्वरुप: मनोवैज्ञानिक परीक्षणों का निर्माण किसी सन्दर्भ विशेष के प्रमुख पक्षों को ध्यान में रखकर किया जाता है| उदाहरण के लिए, शहरी क्षेत्र के छात्रों के लिए विकसित परीक्षण ग्रामीण क्षेत्र के छात्रों पर लागू नहीं किया जा सकता है|

• गुणात्मक प्रदत्तों की आत्मपरक व्याख्या: गुणात्मक अध्ययनों में प्रदत्त प्रायः आत्मपरक होते हैं क्योंकि इनकी व्याख्या अनुसंधानकर्ता एवं प्रदत्त प्रदान करने वाले होते हैं| एक व्यक्ति की व्याख्या दूसरे से भिन्न हो सकती है|

12. मनोवैज्ञानिक जाँच करते समय एक मनोवैज्ञानिक को किन नैतिक मार्गदर्शी सिद्धांतों का पालन करना चाहिए?

उत्तर

मनोवैज्ञानिक जाँच करते समय एक मनोवैज्ञानिक को निम्नलिखित नैतिक मार्गदर्शी सिद्धांतों का पालन करना चाहिए:

• स्वैच्छिक सहभागिता: यह सिद्धांत कहता है कि जिन व्यक्तियों पर आप अध्ययन करने जा रहे हैं उन्हें यह निर्धारित करने का विकल्प होना चाहिए कि वे अध्ययन में भाग लेंगे अथवा नहीं|

• सूचित सहमति: यह आवश्यक है कि प्रतिभागी को यह पता होना चाहिए कि अध्ययन के दौरान उनके साथ क्या घटित होगा|

• स्पष्टीकरण: अध्ययन समाप्त हो जाने के बाद प्रतिभागियों को वे सब आवश्यक सूचनाएँ देनी चाहिए जिनसे वे अनुसंधान को ठीक से समझ सकें|

• अध्ययन के परिणाम की भागीदारी: मनोवैज्ञानिक अनुसंधानों में प्रतिभागियों से सूचनाएँ संगृहित करने के बाद हम अपने कार्य-स्थान पर वापस आते हैं, प्रदत्तों का विश्लेषण करते हैं एवं निष्कर्ष निकालते हैं| अनुसंधानकर्ता के लिए यह आवश्यक है कि वह प्रतिभागियों के पास वापस जाकर अध्ययन के परिणाम को उनको बताए|

• प्रदत्त स्रोतों की गोपनीयता: अध्ययन में प्रतिभागियों को अपनी निजता का अधिकार होता है| अनुसंधानकर्ता को चाहिए कि वह उनकी निजता की रक्षा के लिए उनके द्वारा दी गई सूचनाओं को अत्यंत गोपनीय रखे|

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