पठन सामग्री और नोट्स (Notes)| पाठ 2 - भारत का भौतिक स्वरुप भूगोल (bharat ka bhautik swarup) Bhugol Class 9th

इस अध्याय में विषय:

• परिचय
• मुख्य भौगोलिक वितरण
→ हिमालय पर्वत-श्रृंखला
→ उत्तरी मैदान
→ प्रायद्वीप पठार
→ भारतीय मरूस्थल
→ तटीय मैदान
→ द्वीप समूह
• विविध भौतिक आकृतियाँ भारत के लिए कैसे उपयोगी है?

परिचय

• भारत विभिन्न स्थलाकृतियों वाला एक विशाल देश है जहाँ हर प्रकार की भू-आकृतियाँ पाई जाती हैं जैसे- पर्वत, मैदान, मरूस्थल, पठार तथा द्वीप समूह।

विभिन्न प्रकार की भू-आकृतियाँ कैसे बनीं?

• इन भौतिक आकृतियों के निर्माण के पीछे कुछ सिद्धांत हैं जिनमें से एक सिद्धांत है- प्लेट विवर्तनिक सिद्धांत।

विवर्तनिक सिद्धांत क्या है?

• इस सिद्धांत के अनुसार पृथ्वी की ऊपरी पर्पटी सात बड़ी एवं कुछ प्लेटों से बनी है।

• प्लेटों की गति के कारण प्लेटों के अन्दर एवं ऊपर की ओर स्थित महाद्वीपीय शैलों में दबाव उत्पन्न होता है। इसके परिणामस्वरूप वलन, भ्रंशीकरण तथा ज्वालामुखीय क्रियाएँ होती हैं।

• इन प्लेटों की गतियों को तीन वर्गों में विभाजित किया गया है:
→ अभिसारित परिसीमा- कुछ प्लेटें एक-दूसरे के करीब आती हैं और अभिसारित परिसीमा का निर्माण करती है। जब दो प्लेट एक दुसरे के करीब आती हैं तब या तो वे टकराकर टूट सकती हैं या एक प्लेट फिसलकर दूसरी प्लेट के नीचे जा सकती हैं।
→ अपसारित परिसीमा- जब कुछ प्लेटें एक दुसरे से दूर जाती हैं और अपसारित परिसीमा का निर्माण करती हैं।
→ रूपांतर परिसीमा- कभी-कभी ये प्लेटें एक दूसरे के साथ क्षैतिज दिशा में भी गति कर सकती हैं और रूपांतर परिसीमा का निर्माण करती है।

• इन प्लेटों में हो रही गतियाँ जैसे-अपक्षय, अपरदन और निक्षेपण, में लाखों वर्षों से हो रही गति के कारण महाद्वीपों की स्थिति तथा आकार में परिवर्तन आया है और भारत की वर्तमान स्थलाकृति उच्चावच का विकास भी इसी प्रकार की गतियों से प्रभावित हुआ है।

• सबसे प्राचीन भूभाग (अर्थात् प्रायद्वीप भाग) गोंडवाना भूमि का एक हिस्सा था।

गोंडवाना भूमि क्या है?

गोंडवाना भूभाग के विशाल क्षेत्र में भारत, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका तथा दक्षिण अमेरिका के क्षेत्र शामिल हैं| ये प्राचीन विशाल महाद्वीप पैंजिया का दक्षिणतम भाग है, जिसके उत्तर में अंगारा भूमि है।

हिमालय का निर्माण

• संवहनीय धाराओं ने भू-पर्पटी को अनेक टुकड़ों में विभजित कर दिया।
→ इस प्रकार भारत-ऑस्ट्रेलिया की प्लेट गोंडवाना भूमि से अलग होने के बाद उत्तर दिशा की ओर प्रवाहित होने लगा, परिणामस्वरूप ये प्लेट अपने से अधिक विशाल प्लेट, यूरेशियन प्लेट से टकराई।
→ इस टकराव के कारण इन दोनों प्लेटों के बीच स्थित ‘टेथित’ भू-अभिनति के अवसादी चट्टान, वलित होकर हिमालय तथा पश्चिम एशिया की पर्वतीय श्रृंखला के रूप में विकसित हो गए।

उत्तरी मैदान का निर्माण

• ‘टेथिस’ के हिमालय के रूप में ऊपर उठने तथा प्रायद्वीपीय पठार के उत्तरी किनारे के नीचे धँसने के परिणामस्वरूप एक बहुत बड़ी द्रोणी का निर्माण हुआ।
→ समय के साथ-साथ यह बेसिन उत्तर के पर्वतों एवं दक्षिण के प्रायद्वीपीय पठारों से बहने वाली नदियों के अवसादी निक्षेपों द्वारा धीरे-धीरे भर गया। इस प्रकार जलोढ़ निक्षेपों से निर्मित एक विस्तृत समतल भू-भाग भारत के उत्तरी मैदान के रूप में विकसित हो गया।

• भूगर्भीय तौर पर प्रायद्वीपीय पठार पृथ्वी की सतह का प्राचीनतम भाग है और इसे भूमि का एक बहुत ही स्थिर भाग माना जाता है।
→ हिमालय एवं उत्तरी मैदान हाल ही में बनी स्थलाकृतियाँ हैं।
→ हिमालय पर्वत एक अस्थिर भाग है जो एक युवा स्थलाकृति को दर्शाती है, जिसमें ऊँचे शिखर, गहरी घाटियाँ तथा तेज बहने वाली नदियाँ हैं।

भारत का मुख्य भौगोलिक वितरण

हिमालय पर्वत श्रृंखला

• भारत की उत्तरी सीमा पर विस्तृत हिमालय भूगर्भीय रूप से युवा एवं बनावट के दृष्टिकोण से वलित पर्वत श्रृंखला है।

→ ये पर्वत श्रृंखलाएं पश्चिम-पूर्व दिशा में सिन्धु से लेकर ब्रह्मपुत्र तक फैली हैं जिसकी लम्बाई 2400 कि.मी. है और ये विश्व की सबसे ऊँची पर्वत श्रेणियों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

→ इसकी चौड़ाई कश्मीर में 400 कि.मी.एवं अरूणाचल में 150 कि.मी. है। पश्चिम भाग की अपेक्षा पूर्वी भाग की ऊँचाई में अधिक विविधता पाई जाती है।

• हिमालय का देशांतरीय विभाजन :
→ महान या आंतरिक हिमालय या हिमाद्रि
→ निम्न हिमालय या हिमाचल
→ शिवालिक

• महान या आंतरिक हिमालय या हिमाद्रि :
→ यह सबसे उत्तरी भाग में स्थित और सबसे अधिक सतत् श्रृंखला है जिसमें 6,000 मीटर की औसत ऊँचाई वाले सर्वाधिक ऊँचे शिखर हैं।
→ इसमें हिमालय के सभी मुख्य शिखर है। हिमालय के वलय की प्रकृति असंममित है।
→ हिमालय के इस भाग का क्रोड ग्रेनाइट का बना है।
→ यह श्रृंखला हमेशा बर्फ से ढँकी रहती है तथा इससे बहुत-सी हिमानियों का प्रवाह होता है।

• निम्न हिमालय या हिमाचल :
→ हिमाद्रि के दक्षिण में स्थित यह श्रृंखला सबसे अधिक असम है।
→ इन श्रृंखलाओं का निर्माण मुख्यतः अत्यधिक संपीडित तथा परिवर्तित शैलों से हुआ है।
→ इनकी ऊँचाई 3,700 मीटर से 4,500 मीटर के बीच तथा औसत चौड़ाई 50 कि.मी. है।
→ पीर पंजाल श्रृंखला, धौलाधर एवं महाभारत श्रृंखलाएँ सबसे लंबी तथा सबसे महत्वपूर्ण श्रृंखला है।
→ इसी श्रृंखला में कश्मीर की घाटी तथा हिमाचल के कांगड़ा एवं कुल्लू की घाटियाँ स्थित है। इस क्षेत्र को पहाड़ी नगरों के लिए जाना जाता है।

• शिवालिक :
→ हिमालय की सबसे बाहरी श्रृंखला को शिवालिक कहा जाता है।
→ इनकी चौड़ाई 10 से 50 किमी. तथा ऊँचाई 900 से 1,100 मीटर के बीच है।
→ ये श्रृंखलाएँ उत्तर में स्थित मुख्य हिमालय की श्रृंखलाओं से नदियों द्वारा लायी गई असंपीडित अवसादों से बनी है।
→ ये घाटियाँ बजरी तथा जलोढ़ की मोटी परत से ढँकी हुई हैं।

• निम्न हिमालय तथा शिवालिक के बीच में स्थित लम्बवत् घाटी को दून के नाम से जाना जाता है।
→ कुछ प्रसिद्ध दून हैं- देहरादून, कोटलिदून एवं पाटलिदून।

• पश्चिम से पूर्व तक स्थित क्षेत्रों के आधार पर हिमालय का विभाजन :
→ पंजाब हिमालय- सतलुज और सिन्धु के बीच स्थित हिमालय के भाग को पंजाब हिमालय के नाम से जाना जाता है। लेकिन पश्चिम से पूर्व तक क्रमशः इसे कश्मीर तथा हिमाचल हिमालय के नाम से भी जाना जाता है।
→ कुमाँऊ हिमालय- सतलुज तथा काली नदियों के बीच स्थित हिमालय के भाग को कुमाँऊ हिमालय के नाम से जाना जाता है।
→ नेपाल हिमालय- काली व तिस्ता नदियाँ नेपाल हिमालय का निर्माण करती हैं।
→ असम हिमालय- तिस्ता एवं दिहांग नदियाँ असम हिमालय का निर्माण करती हैं।

• पूर्वांचल या पूर्वी पहाड़ियों तथा पर्वत श्रृंखलाएँ :
→ ये पूर्वी भारत की पर्वत श्रृंखलाएँ हैं जिसमे ब्रह्मपुत्र हिमालय की सबसे पूर्वी सीमा बनाती है।
→ दिहांग महाखड्ड के बाद हिमालय दक्षिण की ओर एक तीखा मोड़ बनाते हुए भारत की पूर्वी सीमा के साथ फ़ैल जाता है।
→ ये पहाड़ियाँ उत्तरी-पूर्वी राज्यों से होकर गुजरती हैं, जैसे- अरूणाचल प्रदेश, नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा तथा पूर्वी असम तथा मजबूत बलुआ पत्थरों जो अवसादी शैल से हैं, से बनी है।
→ ये घने जंगलों से ढँकी हैं| इसमें पटकाई, नागा, मिज़ो तथा मणिपुर पहाड़ियाँ शामिल हैं।

उत्तरी मैदान

• उत्तरी मैदान तीन प्रमुख नदी प्रणालियों- सिन्धु, गंगा एवं ब्रह्मपुत्र तथा इसकी सहायक नदियों से बना है।

• यह मैदान जलोढ़ मृदा से बना है। लाखों वर्षों में हिमालय के गिरिपाद में स्थित बहुत बड़े बेसिन में जलोढ़ों का निक्षेप हुआ, जिससे इस उपजाऊ मैदान का निर्माण हुआ है।

• इसका विस्तार 7 लाख वर्ग कि.मी. के क्षेत्र पर है तथा लगभग 2,400 कि.मी. लंबा एवं 240 से 320 कि.मी. चौड़ा है।

• यह सघन जनसंख्या वाला भौगोलिक क्षेत्र है। समृद्ध मृदा आवरण, पर्याप्त पनी की उपलब्धता एवं अनुकूल जलवायु के कारण कृषि की दृष्टि से यह भारत का अत्यधिक उत्पादक क्षेत्र है।

• उत्तरी पर्वतों से आने वाली नदियाँ निक्षेपण कार्य में मदद करती हैं।
→ नदी के निचले भागों में ढाल कम होने के कारण नदी की गति कम हो जाती है जिसके परिणामस्वरूप नदीय द्वीपों का निर्माण होता है।

• ये नदियाँ अपने निचले भाग में गाद एकत्र हो जाने के कारण बहुत-सी धाराओं में बँट जाती हैं जिन्हें वितरिकाएँ कहा जाता है।

• उत्तरी मैदान को मोटे तौर पर तीन उपवर्गों में विभाजित किया गया है :
→ पंजाब का मैदान- उत्तरी मैदान के पश्चिम भाग को पंजाब का मैदान कहा जाता है। सिन्धु तथा इसकी सहायक नदियों के द्वारा बनाये गये इस मैदान का बहुत बड़ा भाग पाकिस्तान में स्थित है।
→ गंगा का मैदान- इस मैदान का विस्तार घघ्घर तथा तिस्ता नदियों के बीच है। यह उत्तरी भारत के राज्यों हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, झारखण्ड के कुछ भाग तथा पश्चिम बंगाल में फैला है।
→ ब्रह्मपुत्र का मैदान- यह मैदान गंगा के मैदान के पश्चिम में विशेषकर असम में स्थित है।

• उत्तरी मैदान की भूमि समतल नहीं है। इन विस्तृत मैदानों की भौगोलिक आकृतियों में भी विविधता है।

• आकृतिक भिन्नता के आधार पर उत्तरी मैदानों को चार भागों में भी विभाजित किया जा सकता है –
→ भाबर- नदियाँ पर्वतों से नीचे उतरते समय शिवालिक की ढाल पर 8 से 16 कि.मी. के चौड़ी पट्टी में गुटिका का निक्षेपण करती है जिसे भाबर के नाम से जाना जाता है।
→ तराई- भाबर के दक्षिण में नदियाँ नम एवं दलदली क्षेत्र का निर्माण करती है जिसे तराई कहा जाता है।
→ भांगर- पुराने जलोढ़ से बना उत्तरी मैदान का सबसे विशालतम भाग जो नदियों के बाढ़ वाले मैदान के ऊपर स्थित है, भांगर कहलाता है।
→ खादर- बाढ़ वाले मैदानों के नये तथा युवा निक्षेपों को खादर कहा जाता है।

प्रायद्वीपीय पठार

• प्रायद्वीपीय पठार एक मेज की आकृति वाला स्थल है जो पुराने क्रिस्टलीय, आग्नेय तथा रूपांतरित शैलों से बना है।
• यह गोंडवाना भूमि के टूटने एवं अपवाह के कारण बना था।

• इस पठार के दो मुख्य भाग हैं-
→ मध्य उच्चभूमि
→ दक्कन का पठार

• मध्य उच्चभूमि- नर्मदा नदी के उत्तर में प्रायद्वीपीय पठार का वह भाग जो कि मालवा के पठार के अधिकतर भागों पर फैला है उसे मध्य उच्चभूमि के नाम से जाना जाता है।
→ विंध्य श्रृंखला दक्षिण में मध्य उच्चभूमि तथा उत्तर-पश्चिम में अरावली से घिरी है।
→ पश्चिम में यह धीरे-धीरे राजस्थान के बलुई तथा पथरीले मरूस्थल से मिल जाता है।
→ इस क्षेत्र में बहने वाली नदियाँ हैं- चम्बल, सिंध, बेतवा तथा केन।
→ मध्य उच्चभूमि पश्चिम में चौड़ी लेकिन पूर्व में संकीर्ण है।
→ इस पठार के पूर्वी विस्तार को स्थानीय रूप से बुंदेलखंड तथा बघेलखंड के नाम से जाना जाता है।
→ इसके और पूर्व के विस्तार को दामोदर नदी द्वारा अपवाहित छोटा नागपुर पठार दर्शाता है।

• दक्षिण का पठार- यह एक त्रिभुजाकार भूभाग है, जो नर्मदा नदी के दक्षिण में स्थित है।
→ उत्तर में इसके चौड़े आधार पर सतपुड़ा की श्रृंखला है, जबकि महादेव, कैमूर की पहाड़ी तथा मैकाल श्रृंखला इसके पूर्वी विस्तार हैं।
→ दक्षिण का पठार पश्चिम में ऊँचा एवं पूर्व की ओर कम ढाल वाला है।
• इस पठार का एक भाग उत्तर-पूर्व में भी देखा जाता है जिसे स्थानीय रूप से ‘मेघालय’ तथा ‘कार्बी एन्गलौंग पठार’ के नाम से जाना जाता है।
→ यह एक भ्रंश के द्वारा छोटानागपुर पठार से अलग हो गया है।
→ पश्चिम से पूर्व की ओर तीन महत्वपूर्ण श्रृंखलाएँ गारो, खासी तथा जयंतिया हैं।

• प्रायद्वीपीय पठार की एक विशेषता यहाँ पाई जाने वाली काली मृदा है, जिसे ‘दक्कन ट्रैप’ के नाम से भी जाना जाता है।

• पश्चिमी घाट और पूर्वी घाट दक्षिण पठार के पूर्वी तथा पश्चिमी सिरे पर स्थित है।

पश्चिमी घाट
पूर्वी घाट
दक्षिण पठार के पश्चिमी सिरे पर स्थित है। यह दक्षिण पठार के पूर्वी सिरे पर स्थित है।
वे सतत् हैं तथा उन्हें केवल दर्रों के द्वारा ही पार किया जा सकता है। ये अनियमित हैं एवं बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियों ने इनको काट दिया है।
पश्चिमी घाट की ऊँचाई 900 से 1,600 मीटर है। इसकी औसत ऊँचाई पश्चिमी घाट से कम, 600 मीटर है।
पश्चिमी घाट में गर्मियों में पर्वतीय वर्षा होती है। जबकि पूर्वी घाट में ज्यादातर शीत ऋतु में वर्षा होती है।
पश्चिमी घाट की ऊँचाई उत्तर से दक्षिण की ओर बढ़ती जाती है| इस भाग के शिखर सबसे ऊँचे हैं- अनाईमुडी (2,695 मी.) तथा डोडा बेटा (2,633 मी.)। पूर्वी घाट का सबसे ऊँचा शिखर महेंद्रगिरी (1,500 मी.) है।

भारतीय मरूस्थल

• अरावली पहाड़ के पश्चिमी किनारे पर थार का मरूस्थल स्थित है।

• यह बालू के टिब्बों से ढँका एक तरंगित मैदान है।
→ इस क्षेत्र में प्रति वर्ष 150 मि.मी. से भी कम वर्षा होती है।
→ इस शुष्क जलवायु वाले क्षेत्र में वनस्पति बहुत कम है।

• लूनी इस क्षेत्र की सबसे बड़ी नदी है।

• बरकान (अर्धचन्द्राकार बालू का टीला) का विस्तार बहुत अधिक क्षेत्र पर होता है, लेकिन लम्बवत् टीले भारत-पाकिस्तान सीमा के समीप प्रमुखता से पाए जाते हैं।

तटीय मैदान

• प्रायद्वीपीय पठार के किनारों संकीर्ण तटीय पट्टियों का विस्तार है जो पश्चिम में अरब सागर से लेकर पूर्व में बंगाल की खाड़ी तक विस्तृत है।

• इस मैदान के तीन भाग हैं-
→ तट के उत्तरी भाग को कोंकण कहा जाता है (मुंबई तथा गोवा)।
→ मध्य भाग को कन्नड मैदान कहा जाता है।
→ दक्षिणी भाग को मालाबार तट कहा जाता है।

• बंगाल की खाड़ी के साथ विस्तृत मैदान चौड़ा एवं समतल है।
→ उत्तरी भाग में इसे ‘उत्तरी सरकार’ जबकि दक्षिणी भाग कोरोमंडल तट’ के नाम से जाना जाता है।
→ बड़ी नदियाँ, जैसे- गोदावरी, महानदी, कृष्णा तथा कावेरी इस तट पर विशाल तट का निर्माण करती है।
→ चिल्का झील पूर्वी तट पर स्थित एक महत्वपूर्ण भू-लक्षण है।

द्वीप समूह

• केरल के मालाबार तट के पास द्वीपों का समूह लक्षद्वीप स्थित है।
→ द्वीपों का यह समूह छोटे प्रवाल द्वीपों से बना है।
→ पहले इनको लकादीव, मीनीकाय तथा एमीनदीव के नाम से जाना जाता था।
→ यह 32 वर्ग कि.मी. के छोटे से क्षेत्र में फैला है।
→ कावारत्ती द्वीप लक्षद्वीप का प्रशासनिक मुख्यालय है।
→ पिटली द्वीप, जहाँ मनुष्य का निवास नहीं है, वहां एक पक्षी अभयारण्य है।

• अंडमान और निकोबार द्वीप बंगाल की खाड़ी में उत्तर से दक्षिण के तरफ फैले द्वीपों की श्रृंखला है।
→ यह द्वीप समूह आकर में बड़े संख्या में बहुल तथा बिखरे हुए हैं।
→ यह द्वीप समूह मुख्यतः दो भागों में बाँटा गया है- उत्तर में अंडमान तथा दक्षिण में निकोबार।
→ यह द्वीप समूह निमज्जित पर्वत श्रेणियों के शिखर हैं।

विविध भौतिक आकृतियाँ भारत के लिए कैसे उपयोगी है:

→ उत्तरी पर्वत जल एवं वनों के प्रमुख स्रोत हैं।

→ उत्तरी मैदान देश के अन्न भंडार हैं।

→ पठारी भाग खनिजो के भंडार हैं, जिसने देश के औद्योगीकरण में विशेष भूमिका निभाई हैं।

→ तटीय क्षेत्र मत्स्यन और पोत संबंधी क्रिया-कलापों के लिए उपयुक्त स्थान हैं।


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