Solution of Previous Year Question Paper Class 10th Hindi Course 'B' Summative Assessment II 2014

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खंड - क

1. (i) (घ) मानवीय गुणों के विकास की
(ii) (ख) मन की दृढ़ता
(iii) (ग) कष्टों से जूझकर
(iv) (ग) सबल अतिसबल बन जाता है
(v) (ग) मन और शरीर की दृढ़ता

2. (i) (घ) चरित्र-निर्माण करना
(ii) (ग) प्रिया के रूप में
(iii) (घ) गार्गी तथा अपाला
(iv) (ग) मर्यादा की रक्षा के लिए
(v) (ग) प्रत्यक्ष

3. (i) (ख) भुजाओं के बल से
(ii) (ग) निरूद्यमी
(iii) (क) उद्यम और परिश्रम से
(iv) (ख) दूसरों का हिस्सा दबाकर रखते हैं
(v) (ख) उद्यम और परिश्रम का महत्व बताना

4. (i) (ख) छोटे-छोटे स्वार्थों के लिए
(ii) (ख) विध्न-बाधाओं से
(iii) (घ) महिमावान् है
(iv) (ग) सहायता के लिए विदेशियों के सामने हाथ नहीं फैलाएँगे
(v) (ख) गर्हित

खंड - ख

5. (क) (i) इतना मधुर - विशेषण पदबंध
(ii) पशु-पर्व का आयोजन - संज्ञा पदबंध

(ख)  विश्वसंगठन - विश्व रूपी संगठन (कर्मधारय समास)

(ग) सुन्दर हैं जो नयन - सुनयन (कर्मधारय समास)

6. (क) (i) भीड़ - संज्ञा, जातिवाचक संज्ञा, स्त्रीलिंग, बहुवचन, कर्ता कारक, 'होने' की क्रिया कर्ता।
(ii) कर रहे थे - क्रिया, सकर्मक क्रिया, पुल्लिंग, बहुवचन, 'कर' धातु, भूतकाल
(iii) धीरे-धीरे - अव्यय, क्रियाविशेषण, रीतिवाचक, क्रियाविशेषण, 'बढ़ रहे थे' क्रिया का विशेषण

(ख) पुष्पोद्यान - पुष्प + उद्यान

7. (क) (i) मिश्र वाक्य
(ii) आज जब झंडा फहराया जाएगा, तब प्रतिज्ञा पढ़ी जाएगी।
(iii) वे प्रतियोगिता में भाग लेने गए और बाहर रोक लिए गए।

8. (क) (i) हमारा लक्ष्य देश की चहुँमुखी प्रगति होना चाहिए।
(ii) यहां केवल दो पुस्तकें रखीं हैं।
(iii) उसने आज घर में क्या किया?

(ख) अत्यधिक - अति अधिक

9. (i) हाथ फैलाना - अपने एकमात्र पुत्र की नौकरी लग जाने के लिए उसने देवी के सामने हाथ फैलाए।

(ii) राई का पर्वत करना - उसने खामखाँ छोटी-सी बात को लेकर राई का पर्वत कर दिया।

(iii) जाके पैर न फटी बिवाई सो क्या जाने पीर पराई - वह नेता खुद दो मंजिली मकान में रहता है, और अभी जनता के सामने बड़ी-बड़ी बातें करके सुविधाएँ दिलाने की बात कर रहा है। क्या वह सही में उनका नेतृत्व कर पाएगा? जाके पैर न फटी बिवाई सो क्या जाने पीर पराई!

(iv) हाथ कंगन को आरसी क्या? - मोहन जी इस इलाके के प्रसिद्ध डॉक्टर हैं। ऐसा न हुआ है कि उन्होंने किसी का सही इलाज न किया हो। उनके बारे में किसी से भी पूछ लो, आखिर हाथ कंगन को आरसी क्या?

खंड - ग

10.
(क) जापान के अस्सी फीसदी लोग मनोरुग्न हैं। यह हाल केवल जापान का ही नहीं, बल्कि अन्य विकसित और विकासशील देशों का भी है, जिसका कारण है लोगों के बीच बढ़ती प्रतिस्पर्धा। यहाँ सभी अपने आप- दूसरे से श्रेष्ट दिखाना चाहते हैं। एक महीने का काम एक दिन में निपटाना चाहते हैं। इसके कारण उनके दिमाग का रफ़्तार बढ़ गया है और ऐसा लगता है मानो उनके दिमाग में स्पीड का इंजन लग गया है। जीवन के बढ़ते रफ़्तार के कारण लोग अपना मानसिक संतुलन भुलाते जा रहे हैं। इसके परिणामस्वरूप अधिकाधिक लोग मानसिक रोगों से ग्रस्त होने जा रहे हैं जो आधुनिक युग की देन है।

(ख) ख्यूक्रिन अपनी ऊँगली ऊपर उठाते हुए जोर-जोर से चिल्ला रहा था और किकिया रहे कुत्ते को एक टाँग से पकड़ रहा था। पूछे जाने पर उसने कहा कि वह पेशे से सुनार था। उसका कार्य इसी कारण अत्यंत पेचीदा था। मित्री मित्रिच के काठगोदाम से लकड़ी लेकर उसे कुछ जरुरी काम निपटाने थे कि अचानक उस कुत्ते ने अकारण ही उसकी ऊँगली काट खाई। ऊँगली के घायल होने के स्थिति में वह कई दिन तक काम नहीं कर पाता, जिसके कारण उसका भारी नुकसान होता। उस नुकसान की भरपाई के लिए उसने कुत्ते के मालिक से हरजाने की माँग की। मुआवज़ा पाने के लिए अपनी दलील को और करते हुए कहा कि कानून में कहीं नहीं लिखा है कि आदमखोर जानवर हमें काट खाएँ और हम उन्हें बरदाश्त करते रहें।

11. वज़ीर अली एक देशप्रेमी सैनिक था, जिसका लक्ष्य था अंग्रेज़ों को अपनी भारत-भूमि से समूल उखाड़ फेंकना। उसे अंग्रेज़ों से इतना नफ़रत था कि वह उनमें से किसी का कत्ल तक कर सकता था। उन लोगों के रहन-सहन तथा रीति-रिवाज़ों के प्रति नफ़रत उसके दिल में कूट-कूटकर भरी थी। एक अंग्रेज़ का कत्ल कर देने के बाद वह जंगलों में अपने गिने-चुने कुछ साथियों के साथ रहने लगा। वहीं अंग्रेज़ सिपाही वज़ीर अली को गिरफ्तार करने के लिए जंगल में डेरा डालते-डालते थक गए थे। ऐसी स्थिति में अंग्रेज़ कर्नल और लेफ्टिनेंट की आँखों में धूल झोंकते हुए वज़ीर अली ने छल से उससे दस कारतूस जिस तरह हासिल किए, वह कानून तथा लेफ्टिनेंट को चौंका देने वाला था। वज़ीर अली की ऐसी वीरता देखकर कर्नल हक्का-बक्का रह गया और उसके मुख से अनायास ही वज़ीर अली के लिए प्रशंसा के शब्द फर पड़े। वज़ीर अली शत्रु के खेमे में घुसकर जिस प्रकार कारतूस लेकर चला गया, उससे उसकी जाँबाजी का परिचय कर्नल को मिल ही गया और वह उसकी वीरता के सामने नतमस्तक हो गया।

12. (i) (ग) बलिदानी सैनिकों की परंपरा बनी रहे
(ii) (घ) बलिदानी सैनिकों के जत्थों को
(iii) (घ) जीत की खुशियाँ
(iv) (ख) देश पर बलिदान की ओर
(v) (ख) वीरों का समुदाय

13. (क) व्यवहारवादी लोग हमेशा सजग रहते हैं क्योंकि वे लाभ-हानि का हिसाब लगाकर ही कदम उठाते हैं। वे जीवन में सफल होना चाहते हैं और अन्यों से आगे रहना चाहते हैं।

(ख) आदर्शवादी लोग खुद ऊपर चढ़ते हैं और दूसरों को भी ऊपर ले जाते हैं। समाज को शाश्वत मूल्यों की पूँजी तो आदर्शवादी लोगों की ही देन है।

(ग) समाज को पतन की ओर व्यवहारवादी लोग ही गिराते हैं। उनका मुख्य उद्देश्य लाभ का ही रहता है।

14. (क) गोपियाँ, जो श्रीकृष्ण को अत्यंत प्रेम करती है, उनकी बातों का रसास्वादन करना चाहती हैं। परंतु वे कृष्ण से बातें कर ही नहीं पातीं क्योंकि कृष्ण की मुरली सदैव उनके होठों से लगी रहती है। उनकी मुरली उनके मधुर अधरों से हटती ही नहीं। ईर्ष्यावश गोपियाँ श्री कृष्ण की मुरली छिपा देतीं हैं कि न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी। कृष्ण अपनी मुरली को यथास्थान में न पाकर गोपियों से प्रश्न करते हैं और गोपियाँ शपथ लेती हैं कि उन्होंने मुरली नहीं चुराई। परन्तु भौहों के हँस देने से यह स्पष्ट हो जाता है कि उन्हीं ने मुरली छिपाई है। इस प्रकार उन्हें श्री कृष्ण से बात करने का अवसर मिल जाता है और वे उनकी बातों का आनंद लेती हैं।

(ख) 'आत्मत्राण' कविता में कवि इस पंक्ति द्वारा कहना चाहते हैं हे ईश्वर! आप मुझे वह शक्ति दें कि मैं दुःख का तो सामना कर सकूँ, साथ ही साथ में सुख के समय में भी आपके सामने नतमस्तक होऊँ। अपने चारों ओर की प्रत्येक वस्तु में आपका आभास करूँ। सुख की प्राप्ति हेतु आपका आभार मानूँ। ऐसा कभी ना हो कि सुख के समय में मैं एक क्षण के लिए भी आपको भुला दूँ। कवि ऐसा कहकर सुख और दुःख, दोनों समय में ईश्वर को अपना साथी मानते हैं। वे अपने कष्टों का निवारण स्वयं करना चाहते हैं और सुख के समय में ईश्वर को अपने मन में बसाकर रखना चाहते हैं।

(ग) 'मधुर-मधुर मेरे दीपक जल' कविता में कवयित्री ने अपने आत्म-दीप के समक्ष मोम की तरह घुलने की बात कही है। उनकी इस बात में अपने आराध्य देव की ओर समर्पण का भाव है। वे चाहती हैं कि ईश्वर को अपना सबकुछ समर्पित कर देते हुए वे अपने कोमल शरीर को मोम की तरह घुल दें। वे  अपने शरीर के अणु-अणु को मोम की तरह गला देते हुए भी कोई अफ़सोस महसूस नहीं करना चाहती हैं। कवयित्री ने अपने दीपक से मोम की तरह घुलने को कहा ताकि वे अपना सबकुछ अपने आराध्य देव को समर्पित कर सकें।

15. (ख) एक बार टोपी ने मुन्नी बाबू को रहीम कबाबची की दुकान पर कबाब खाते हुए देख लिया था। इसका ज्ञान होने पर मुन्नी बाबू ने टोपी से यह बात किसी से न कहने को कही और उसे इकन्नी रिश्वत में दे दिया। फिर भी मुन्नी बाबू को यह बात सताती रही कि कहीं टोपी उसका यह राज़ दादी के सम्मुख उजागर न कर दे, हालांकि सीधा-सादा होने के कारण टोपी ने किसी से यह बात नहीं कही थी। एक बार जब टोपी ने इफ़्फ़न से दोस्ती करने के कारण पिट रहा था, तभी मुन्नी बाबू ने उसी बात का इल्ज़ाम टोपी के सिर मढ़ दिया क्योंकि उसे पता था कि टोपी इस बात से और तो पिटेगा, साथ में उसकी सच्चाई पर किसी को विश्वास तक नहीं होगा।

(ग) 'सपनों के-से दिन' पाठ में लेखक और उनके दोस्तोंको स्कूल ऐसी जगह कभी नहीं लगी, जहाँ भाग के जाई जा सके। उन्हें तो स्कूल कैद की तरह प्रतीत होता था तथा लेखक और उनके अधिकांश साथी चौथी कक्षा तक रोते-चिल्लाते ही स्कूल जाया करते। इसके पीछे का प्रमुख भय शिक्षकों के मारपीट का ही रहता। परन्तु उन्हें स्कूल जाना तब अच्छा लगने लगता जब पीटी मास्टर प्रीतमचंद उन्हें स्काऊटिंग का अभ्यास कराते। पढाई की वे उन्हें हाथ में नीली-पीली झंडियाँ पकड़वा लेते और वन-टू-थ्री कहकर मार्च करवाया करते। अच्छा परेड होने पर वे अपनी आँखों को झपकाकर शाबाशी देते, जो बच्चों को कुछ कम चमत्कृत नहीं करता।

16. पाठ 'सपनों के-से दिन' में एक ऐसी शिक्षा व्यवस्था का वर्णन है जहाँ दंड देना शिक्षक को कतई अस्वीकार नहीं है। वे विद्यार्थी को अनुशासित रखने के लिए कठोर से कठोर दंड अपनाना चाहते हैं। आज के परिपेक्ष में कठोर दंड देना कानूनन जुर्म है। शिक्षा मंत्रालय ने विद्यार्थियों के सार्वमौलिक विकास के लिए अनेक बदलावों को अपनाया है, जैसे 'पास'और 'फेल' जैसे शब्दों को निलंबित करना तथा दंड व्यवस्था को खारिज करना। यदि बच्चों को सदैव हर बातों पर दंड दिया जाए, तो वह डब्बू और डरा-डरा सा रहने लगता है। शिक्षकों के भय से वह सही प्रकार से पढ़ नहीं पाता है और स्कूल उसे जेल प्रतीत होता है। वर्तमान शिक्षा प्रणाली के सुखद बदलाव के बाद ऐसा काम हो गया है। अब शिक्षकों को आभास होना चाहिए कि विद्यानुकूल पपरिवेश की सृष्टि तभी होती है, जब विद्यार्थियों को शिक्षा प्राप्त करने, खेल-कूद करने तथा स्कूल के अंदर-बाहर हर प्रकार की आजादी हो। कार्य पूरा न होने पर शिक्षकों को बच्चों के साथ संवेदनात्मक व्यवहार करना चाहिए, न कि उसपे टिका-टिप्पणी करना, उसे ताने मारना तथा उसे दंड देना।

खंड - घ

17.

सेवा में,
अध्यक्ष,
जल बोर्ड,
क.ख.ग नगर निगम,
क.ख.ग नगर।
दिनांक - 5-3-2014

विषय - दूषित जल की आपूर्ति के कारण जन-सामान्य को हो रही कठिनाई।

मान्यवर,
सेवनीय निवेदन है कि कुछ दिनों से हमारे इलाके में दूषित जल की आपूर्ति के कारण हमें बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। दूषित जल के कारण हम अपने दैनिक कार्यों को करने में कठिनाई का अनुभव करते हैं तथा हमारे मोहल्ले के कुछ बच्चे रोगग्रस्त भी हो चुके हैं। टाइफाइड और जॉन्डिस जैसे भयंकर रोगों के होने पर भी जब हमने अधिकारियों को इस बारे में पत्र लिखा, तब उनके कानों में जूँ तक नही रेंगीं।
आशा करती हूँ कि आप उचित कार्यानुष्ठान ग्रहण करते हुए इस नर्कतुल्य जीवन से शीघ्र ही उद्धार करेंगे।
सधन्यवाद
भवदीया,
य.र.ल.व
अ.ब.ज कॉलोनी
क.ख.ग. नगर

18. (ख)
परोपकार

'परोपकार' शब्द दो शब्दों के मेल से बना है - 'पर' और 'उपकार' जिसका अर्थ है, दूसरों का उपकार या दूसरों की सहायता। मनुष्य सामाजिक और विनयशील प्राणी है, जिसे सहानभूति लेने तथा देने, दोनों की आवश्यकता होती है। दूसरों की सहायता को ही परोपकार कहते हैं, तथा ऐसा करने वाले मनुष्य सबसे श्रेष्ठ होता है क्योंकि परोपकार ही श्रेष्ठतम मानवीय गुण है। इस गुण के बिना मनुष्य पशु-तुल्य होता है। परोपकार करने से कोई हानि नहीं होती, वरन् लाभ अनेक होते हैं। इससे मानवीय सौहार्द का विकास होता है तथा उपकार करने, और उपकृत - दोनों के संबंध को और मज़बूत करता है। इससे न केवल उपकार पाने वाला व्यक्ति धन्य होता है बल्कि उपकार करने वाले के हृदय में भी दया और इंसानियत की लहर दौड़ जाती है। परन्तु आज के कलियुग में में परोपकार जितना आवश्यक है, उतना अनावश्यक भी। समाज में कई ऐसे लोग पाए जा सकते हैं जो उपकार-प्राप्ति की आड़ में रहते हुए अनचाहा फायदा भी उठा लेते हैं। हमें परोपकारी तो रहना चाहिए, परन्तु ऐसे लोगों को भी ध्यान चाहिए और सही निर्णय लेते हुए कदम उठाना चाहिए। अंत में इस महान गुण के विषय में यही कहा जा सकता है कि - "परहित सरिस धन नहीं भाई।"

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