पठन सामग्री, अतिरिक्त प्रश्न और उत्तर और व्याख्या - कर चले हम फ़िदा स्पर्श भाग - 2

व्याख्या

कर चले हम फ़िदा जानो-तन साथियो
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो
साँस थमती गई, नब्ज़ जमती गई
फिर भी बढ़ते क़दम को न रुकने दिया
कट गए सर हमारे तो कुछ ग़म नहीं
सर हिमालय का हमने न झुकने दिया
मरते-मरते रहा बाँकपन साथियो
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो

प्रस्तुत गीत कैफ़ी आजमी द्वारा भारत-चीन युद्ध की पृष्ठभूमि पर बनी फ़िल्म 'हकीकत' से लिया गया है। इस गीत में कवि ने खुद को भारत माता के सैनिक के रूप में अंकित किया है। कवि कहते हैं कि युद्धभूमि में सैनिक शहीद होते हुए अपने दूसरे साथियों से कहते हैं कि हमने अपने जान और तन को देश सेवा में समर्पित कर दिया, हम जा रहे हैं, अब देश की रक्षा करने का भार तुम्हारे हाथों में है। हमारी साँस थम रही थीं, ठंड से नसें जम रही थीं, हम मृत्यु की गोद में जा रहे थे फिर भी हमने पीछे हटकर उन्हें आगे बढ़ने का मौका नही दिया। हमारे कटे सिरों यानी शहीद हुए जवानों का हमें ग़म नहीं है, हमारे लिये ये प्रसन्नता की बात है की हमने अपने जीते जी हिमालय का सिर झुकने नहीं दिया यानी दुश्मनों को देश में प्रवेश नही करने दिया। मरते दम तक हमारे अंदर बलिदान और संघर्ष का जोश बना रहा। हम बलिदानी देकर जाकर रहे हैं, अब देश की रक्षा करने का भार तुम्हारे हाथों में है।

ज़िंदा रहने के मौसम बहुत हैं मगर
जान देने के रुत रोज़ आती नहीं
हुस्न और इश्क दोनों को रुस्वा करे
वह जवानी जो खूँ में नहाती नहीं
आज धरती बनी है दुलहन साथियो
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो

कवि एक सैनिक के रूप में कहते हैं कि व्यक्ति को जिन्दा रहने के लिए बहुत समय मिलते हैं परन्तु देश के लिए जान देने के मौके कभी-कभी ही मिलते हैं। जो जवानी खून में सराबोर नही होती वही प्यार और सौंदर्य को बदनाम करती है। सैनिक अपने साथियों की सम्बोधित करते हुए कहते हैं कि आज धरती दुल्हन बनी हुई है यानी हमारी आन, बान और शान का प्रतीक है, इसलिए इसकी रक्षा करना हमारा कर्तव्य है। हमारे जाने के बाद इसकी रक्षा की जिमेवारी अब आपके हाथों में है।

राह कुर्बानियों की न वीरान हो
तुम सजाते ही रहना नए काफ़िले
फतह का जश्न इस जश्न‍ के बाद है
ज़िंदगी मौत से मिल रही है गले
बांध लो अपने सर से कफ़न साथियो
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो

शहीद होते हुए सैनिक कहते हैं कि बलिदानों का जो सिलसिला चल पड़ा है वो कभी रुक ना पाये यानी अपने देश की दुश्मनों से रक्षा के लिए सैनिक हमेशा आगे बढ़ते रहे। इन कुर्बानियों के बाद ही हमें जश्न मनाने के अवसर मिलेंगे। आज हम मृत्यु को प्राप्त होने वाले हैं इसलिए हमें अपने सिर पर कफ़न बाँध लेना चाहिए यानी मृत्यु का चिंता ना करते हुए शत्रु से लोहा लेने के लिए तैयार रहना चाहिए। अब हमारे जाने के बाद देश की रक्षा की जिमेवारी तुम्हारी है।

खींच दो अपने खूँ से ज़मी पर लकीर
इस तरफ आने पाए न रावण कोई
तोड़ दो हाथ अगर हाथ उठने लगे
छू न पाए सीता का दामन कोई
राम भी तुम, तुम्हीं लक्ष्मण साथियो
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो

सैनिक अपनी बलिदानी से पहले अपने साथियों से कहता है कि आओ हम अपने खून से धरती पर लकीर खीच दें जिसके पार जाने की कोई भी रावण रूपी शत्रु हिम्मत ना कर पाए। भारत माता को सीता समान बताते हुए कहता है अगर कोई भी हाथ भारत माता की आँचल छूने का दुस्साहस करे उसे तोड़ दो। भारत माता के सम्मान को किसी भी तरह ठेस ना पहुँचे। जिस तरह राम और लक्ष्मण ने सीता की रक्षा के लिए पापी रावण का नाश किया उसी तरह तुम भी शत्रु को पराजित कर भारत माता को सुरक्षित करो। अब ये वतन की जिमेवारी तुम्हारे हाथों में है।

कवि परिचय

कैफ़ी आज़मी

अतहर हुसैन रिज़वी का जन्म 19 जनवरी 1919 को आज़मगढ़ जिले में मजमां गाँव में हुआ। ये आगे चलकर कैफ़ी आज़मी के रूप में मशहूर हुए। कैफ़ी आज़मी की गणना प्रगतिशील उर्दू कवियों की पहली पंक्ति में की जाती है। इनकी कविताओं में एक ओर सामाजिक और राजनितिक जागरूकता का समावेश है तो दूसरी ओर हृदय कोमलता भी है। इन्होने 10 मई 2002 को इस दुनिया को अलविदा कहा।

प्रमुख कार्य

कविता संग्रह - झंकार, आखिर-ए-शब, आवारा सज़दे, सरमाया
गीत संग्रह - मेरी आवाज़ सुनो
पुरस्कार - साहित्य अकादमी सहित अन्य पुरस्कार।

कठिन शब्दों के अर्थ

• फ़िदा - न्योछावर
• हवाले - सौंपना
• जानो-तन - जान और शरीर
• वतन - देश
• नब्ज़ - नाड़ी
• रुत - मौसम
• हुस्न - सौंदर्य
• इश्क़ - प्यार
• रुस्वा - बदनाम
• खुँ - खून
• वीरान - सुनसान
• काफिले - यात्रियों का समूह
• फतह - जीत
• जश्न - ख़ुशी
• दामन - आँचल

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