पठन सामग्री, अतिरिक्त प्रश्न और उत्तर और भावार्थ - दोहे स्पर्श भाग - 2

भावार्थ

सोहत ओढैं पीतु पटु स्याम, सलौनैं गात।
मनौ नीलमनि-सैल पर आतपु परयौ प्रभात।।

भावार्थ - इन पंक्तियों में बिहारी ने श्रीकृष्ण के सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहते हैं पीले वस्त्र पहने श्रीकृष्ण ऐसे सुशोभित हो रहे हैं मानो नीलमणि पर्वत पर प्रातःकालीन सूर्य की किरण पड़ रही हो।

कहलाने एकत बसत अहि मयूर , मृग बाघ।
जगतु तपोबन सौ कियौ दीरघ–दाघ निदाघ।।

भावार्थ - ग्रीष्म ऋतू की भयानक ताप ने इस संसार को जैसे तपोवन बना दिया है। इस भयंकर गर्मी से बचने के लिए एक-दूसरे के शत्रु साँप, मोर और सिंह साथ-साथ रहने लगे हैं। विपत्ति की इस घडी में सभी द्वेषों को भुलाकर जानवर भी तपस्वियों जैसा व्यवहार कर रहे हैं।

बतरस-लालच लाल की मुरली धरी लुकाइ।
सौंह करैं भौंहनु हँसै, दैन कहैं नटि जाइ।।

भावार्थ - गोपियों ने श्रीकृष्ण से बात करने की लालसा के कारण उनकी बाँसुरी छुपा दी हैं। वे भौंहों से मुरली ना चुराने का कसम खातीं हैं। वे कृष्ण को उनकी बाँसुरी देने से इनकार करती हैं।

कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत,खिलत, लजियात।
भरे भौन मैं करत हैं नैननु हीं सब बात।।

भावार्थ - इन पंक्तियों में बिहारी ने लोगों बीच में भी दो प्रेमी किस तरह अपने प्रेम को जताते हैं इसे दिखाया है। भरे भवन में नायक अपनी नैनों से नायिका से मिलने को कहता है, जिसे नायिका मना कर देती है। उसके मना करने के इशारे पर नायक मोहित हो जाता है जिससे नायिका खीज जाती है। बाद में दोनों मिलते हैं और उनके चेहरे खिल जाते हैं तथा नायिका शरमा उठती है। ये सारी बातें वे दोनों भौंहों के इशारों और नैन द्वारा करते हैं।

बैठि रही अति सघन बन , पैठि सदन–तन माँह।
देखि दुपहरी जेठ की छाँहौं चाहति छाँह।।

भावार्थ - इन पंक्तियों में बिहारी ने जेठ मास की दोपहरी का चित्रण किया है। इस समय धूप इतनी अधिक होती है कि आराम के लिए कहीं छाया भी नहीं मिलती। ऐसा लगता है मानो छाया भी छाँव को ढूँढने चली गई हो। गर्मी से बचकर विश्राम करने के लिए वह भी अपने घने भवन में चली गयी है।

कागद पर लिखत न बनत , कहत सँदेसु लजात।
कहिहै सबु तेरौ हियौ, मेरे हिय की बात।।

भावार्थ - इन पंक्तियों में बिहारी उस नायिका के मनोदशा को दिखा रहे हैं जिसका प्रियतम उससे दूर है। नायिका कहती है कि उसे कागज़ पे अपना सन्देश लिखा नहीं जा रहा है। किसी संदेशवाहक के द्वारा सन्देश नही भिजवा सकती क्योंकि उसे कहने में लज्जा आ रही है। इसलिए वह कहती है कि अब तुम्हीं अपने हृदय पर हाथ रख महसूस करो की मेरा हृदय में क्या है।

प्रगट भए द्विजराज – कुल सुबस बसे ब्रज आइ ।
मेरे हरौ कलेस सब , केसव केसवराइ।।

भावार्थ - इन पंक्तियों में बिहारी श्रीकृष्ण से कह रहे हैं कि आप चन्द्रवंश में पैदा हुए तथा अपनी इच्छा से ब्रज आये। आप मेरे पिता के समान हैं। आप मेरे सारे कष्टों को दूर करें।

जपमाला , छापैं , तिलक सरै न एकौ कामु।
मन–काँचै नाचै बृथा, साँचै राँचै रामु ।।

भावार्थ - बिहारी कहते हैं कि हाथ में जपमाला थाम, तिलक लगा कर आडम्बर करने से कोई काम नही होता। मन काँच की तरह क्षणभंगुर होता है जो व्यर्थ में नाचता रहता है। इन सब दिखावा को छोड़ अगर भगवान की सच्चे मन से आराधना की जाए तभी काम बनता है।

कवि परिचय

बिहारी

इनका जन्म 1595 में ग्वालियर में हुआ था। सात-आठ वर्ष की उम्र में ही इनके पिता ओरछा चले गए जहाँ इन्होंने आचार्य केशवदास से काव्य शिक्षा पायी। यहीं बिहारी रहीम के संपर्क में आये। बिहारी ने अपने जीवन के कुछ वर्ष जयपुर में भी बिताये। ये रसिक जीव थे पर इनकी रसिकता नागरिक जीवन की रसिकता थी। इनका स्वभाव विनोदी और व्यंग्यप्रिय था। इनकी एक रचना 'सतसई' उपलब्ध है जिसमे करीब 700 दोहे संगृहीत हैं। 1663 में इनका देहावसान हुआ।

कठिन शब्दों के अर्थ

• सोहत - अच्छा लगना
• पीतु - पिला
• पटु - वस्त्र
• नीलमनि सैल - नीलमणि का पर्वत
• आतपु - धुप
• बसत - बसना
• अहि - साँप
• तपोबन - वह वन जहाँ तपस्वी रहते हैं
• दीरघ–दाघ - भयंकर गर्मी 
• निदाघ - ग्रीष्म ऋतू
• बतरस - बातचीत का आनंद
• मुरली - बाँसुरी
• लुकाइ - छुपाना
• सौंह - शपथ
• भौंहनु - भौंह से
• नटि - मना करना
• रीझत - मोहित होना
• खिझत - बनावटी गुस्सा दिखाना
• मिलत - मिलना
• खिलत - खिलना
• लजियात - लज्जा आना
• भौन - भवन
• सघन - घना
• पैठि - घुसना
• सदन–तन - भवन में
• कागद - कागज़
• सँदेसु - सन्देश
• हिय - हृदय
• द्विजराज - चन्द्रमा, ब्राह्मण
• सुबस - अपनी इच्छा से
• केसव - श्री कृष्ण
• केसवराइ - बिहारी कवि के पिता
• जपमाला - जपने की माला
• छापैं - छापा
• मन–काँचै - कच्चा मन
• साँचै - सच्ची भक्ति वाला

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